रायबरेली के रेल कारखाने के निगमीकरण के प्रस्ताव के खिलाफ कर्मचारी हुये लामबंद
रेल मंत्रालय ने एक 100 दिवसीय प्रस्ताव में उत्तर प्रदेश के रायबरेली की रेलवे की सबसे आधुनिक निर्माण इकाई, माडर्न कोच फैक्ट्री (एमसीएफ) की निर्माण इकाईयों और कार्यशाला के निगमीकरण का फैसला किया है जिससे फैक्ट्री के कर्मचारियों में आक्रोश फैल गया है।
इस इकाई की क्षमता सालाना तकरीबन रेल के दो हजार डिब्बे बनाने की है।
मंगलवार को जब कार्मिक महानिदेशक ने इस कारखाने का दौरा किया तो उन्हें यहां कार्यरत ढाई हजार कामगारों के गुस्से का सामना करना पड़ा और कर्मचारियों ने ‘‘वापस जाओ’’ के नारे लगाए।
रेल कोच फैक्ट्री मेंस यूनियन, माडर्न कोच फैक्ट्री के महासचिव एल एन पाठक ने कहा कि इस इकाई का लक्ष्य मौजूदा वित्त वर्ष में 2,158 रेल के डिब्बे बनाने का है। दो साल पहले यहां 750 डिब्बे ही बनते थे। इससे अंदाजा लग सकता है कि काम का कितना विस्तार हुआ है। यहां ढाई हजार कर्मचारियों में 1700 ऐसे हैं जिनकी रेलवे भर्ती बोर्ड के जरिए सीधी भर्ती हुई है।
उन्होंने कहा, ‘‘मंत्रालय से तो नहीं पर मीडिया में आई खबरों से पता चला है कि उनकी योजना है कि हमारा काम दूसरी कंपनियों को सौंप दिया जाए। हम इसका विरोध करेंगे। लेकिन इससे काम पर असर नहीं पड़ेगा। हम लोग रैली निकालेंगे, बैठक करेंगे और विरोध प्रदर्शन करेंगे। मगर यह काम सुबह साढ़े सात पर काम शुरू होने से पहले, लंच ब्रेक और काम खत्म होने के बाद के समय में होगा।’’
रेलवे ने अपनी योजना में कहा है कि उत्पादन क्षमता बढ़ाने के मकसद से वह इसकी रेल के डिब्बे और इंजन उत्पादन की इकाइयों और संबंधित कार्यशालाओं को सरकार की नई कंपनी ‘‘इंडियन रेलवे रोलिंग स्टॉक कंपनी’’ को सौंपा जा रहा है।
रेलवे बोर्ड के बनाए दस्तावेज के अनुसार भारतीय रेलवे अपनी सात निर्माण इकाईयों पश्चिम बंगाल की चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स, चेन्नई की इंटीग्रल कोच फैक्ट्री, कपूरथला में रेल कोच फैक्ट्री, पटियाला में डीजल माडर्ननाइजेशन वर्क्स, वाराणसी में डीजल लोकोमोटिव वर्क्स, बेंगलुरु में पहिया एवं धुरी कारखाना और रायबरेली के माडर्न कोच फैक्ट्री को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर रहा है।
सूत्रों के अनुसार रायबरेली की माडर्न कोच फैक्ट्री निगमीकरण के लिए सौंपी जानी वाली पहली इकाई हो सकती है।
पाठक ने कहा कि कर्मचारी ‘‘नाराज’’ और ‘‘दुखी’’ हैं। इस कदम से न केवल कर्मचारियों का बल्कि खुद रेलवे का भविष्य दांव पर लग गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘ जब 1995 में कोचों के निर्माण का काम शुरू हुआ तो एक एलएचबी कोच बनाने में 5.6 करोड़ रूपये की लागत आती थी और अब यह घटकर 2.3 करोड़ रूपये हो गई है। हम इतने कम दाम में कोच बनाते हैं जो वैश्विक कंपनियों के लिए चिंता की बात है। हमारे लिए, यह अस्तिस्व की लड़ाई है।
ये कर्मचारी अब रेलवे बोर्ड के चेयरमैन वीके यादव के अंतिम फैसले की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यादव इस समय विदेश यात्रा पर हैं।
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