CAA के समर्थन में रैली ने किया इशारा, राज ठाकरे ले चुके हैं एक नया मोड़
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने 9 फरवरी को मुंबई में एक रैली की। यह रैली नागरिकता संशोधन अधिनियम, NRC और NPR के विरोध में जारी प्रदर्शनों के जवाब में की गई थी। राज ठाकरे के मुताबिक़, ''आज देश भर में जो प्रदर्शन हो रहे हैं, वो महज़ मुस्लिमों का गुस्सा है, जो अनुच्छेद 370 और राम जन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सरकार द्वारा अलग-थलग किया जाना महसूस कर रहे थे।''
राज ठाकरे ने जो भाषण दिया, वो बेहद भड़काऊ था। उन्होंने कहा, ''यह उनके जुलूसों का महज़ जवाब है। मैं आपसे कहता हूं कि भविष्य में पत्थर का जवाब पत्थर से और तलवार का जवाब तलवार से दिया जाएगा।''
यह पहली बार नहीं है जब राज ठाकरे ने CAA-NRC-NPR के समर्थन में इस तरह के बयान दिए हैं। 23 जनवरी को उन्होंने मुंबई में अपनी पार्टी की पहली राज्य स्तरीय प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया था। इस बैठक में उन्होंने एक नए झंडे का लोकार्पण किया, जो पूरी तरह से भगवा रंग में रंगा था। झंडे के बीच में शिवाजी का प्रतीक चिन्ह भी है। इस बैठक में उन्होंने CAA-NRC-NPR को पूरा समर्थन दिया और ''घुसपैठियों'' के खिलाफ़ कड़ा रुख अपनाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई दी।
लेकिन राज ठाकरे की यह हालिया राजनीतिक स्थिति, 2019 के लोकसभा चुनावों से बिल्कुल उल्टी है। लोकसभा चुनावों के महीनों पहले ठाकरे ने तानाशाही भरे रवैये के लिए मोदी और शाह की जमकर आलोचना की थी। उन्होंने अपनी बड़ी रैलियों में अपने तर्कों के पक्ष में बहुत सारे वीडियो भी पेश किए। कहीं न कहीं इससे बीजेपी के समर्थकों पर प्रभाव भी पड़ा।
लेकिन महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के ठीक पहले अगस्त, 2019 में चीजें बदल गईं। उन्हें प्रवर्तन निदेशालय से एक नोटिस आया। तब से ही उन्होंने ''एंटी-मोदी कैंपेन'' को थोड़ा धीमा कर दिया। हालांकि विधानसभा चुनाव खत्म होने तक राज ठाकरे बीजेपी की आलोचना करते रहे। लेकिन चुनावों के बाद अप्रत्याशित तौर पर शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के गठबंधन ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार बना ली।
वरिष्ठ पत्रकार जतिन देसाई ने न्यूज़क्लिक से कहा, ''ऐसा लगता है कि राज ने शिवसेना के कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाने की स्थितियों को कुछ दूसरे तरीके से देखा। उन्हें लगता है कि अब शिवसेना के कट्टर हिंदुत्व समर्थकों का पार्टी से मोह भंग होगा और अगर उनकी पार्टी, मनसे, भगवा रंग में रंग जाती है, तो हिंदुत्व के समर्थक उनके पाले में आ सकते हैं। इसलिए उन्होंने राम मंदिर, CAA और NRC जैसे मुद्दे उठाए हैं, जो हिंदू पहचान की राजनीति के नज़दीक हैं। इस तरह राज अपने लिए जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं।''
राज ठाकरे द्वारा बीजेपी के साथ हाथ मिलाने की स्थिति अभी तक साफ नहीं है। सूत्रों ने बताया कि मनसे नेताओं में ही फिलहाल उलझन है। आंकड़ों से पता चलता है कि भले ही मनसे ने विधानसभा में सिर्फ एक सीट जीती हो, लेकिन आठ जगहों पर पार्टी के प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे हैं। इन सभी आठ जगहों पर बीजेपी के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की थी। मतलब साफ है कि दो दक्षिणपंथी पार्टियों में कड़ी टक्कर रही।
एक दूसरे पहलू पर भी ध्यान देने की जरूरत है। बीजेपी और शिवसेना पहली बार 1987 में एक साथ आए थे। हिंदुत्व के नाम पर यह पहला राजनीतिक गठबंधन था। उस वक्त शिवसेना के पास गठबंधन में पहले नंबर पर मानी जाती थी, वहीं बीजेपी छोटे साझीदार के तौर पर शामिल थी। लेकिन 2014 तक बीजेपी इतनी मजबूत हो गई कि पार्टी ने राज्य में 122 सीटें जीत लीं। वहीं शिवसेना सिर्फ 63 सीटों पर सिमटकर रह गई।
अब जब शिवसेना हिंदुत्व के गठबंधन से अलग हो चुकी है, तो भविष्य में राज ठाकरे और बीजेपी की नई साझीदारी की चर्चाएं तेज हैं।
अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
Raj Thackeray’s Pro-CAA Rally an Indication of His Sharp Right Turn?
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