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पश्चिम अफ़्रीका के साहेल क्षेत्र में बढ़ता रूस का प्रभाव 

पश्चिम के नव-उपनिवेशवादी एजेंडे का मुक़ाबला, चीन की विकट उपस्थिति और मॉस्को की माली में सैन्य प्रशिक्षकों की तैनाती से किया जा रहा है।
Russia
26 दिसंबर, 2021 को माली की राजधानी बमाको में रूसी झंडे की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए सिलाई में  लगे दर्जी

पिछले शुक्रवार को, माली की संक्रमणकालीन सरकार ने स्पष्ट किया कि वह रूसी सैन्य प्रशिक्षकों के साथ व्यस्त है, भले ही फ्रांसीसी सेना उनके पीछे आ रही हो। इसलिए, अब यह बात  आधिकारिक है कि रूसी सुरक्षा कर्मियों की सेना माली में तैनात है।

माली, पश्चिम अफ्रीका में साहेल क्षेत्र में एक भूमि से घिरा देश है, चीन और रूस को नीचा दिखाने की संयुक्त राज्य अमेरिका की रणनीतियों के शुभारंभ के बाद अब बड़ी शक्तियाँ विभिन्न रूपों के खेल में शामिल हो गई हैं और माली अब प्रतियोगिता का नवीनतम रंगमंच बन गया है।

फ्रांस, माली पर शासन करने वाली पूर्व औपनिवेशिक शक्ति है, और जर्मनी जिसे अफ्रीका में एक हिंसक इतिहास वाली एक अन्य औपनिवेशिक शक्ति माना जाता है, वे पिछले कई वर्षों से साहेल क्षेत्र में उग्रवाद/घुसपैठ के खिलाफ लड़ रहे हैं।

हालांकि, माली के लोग, इस बात से भली भांति परिचित हैं और उन्हे संदेह भी है कि ये यूरोपीय शक्तियाँ जिहादी समूहों से लड़ने के मामेल में गंभीर नहीं हैं, बल्कि अपने नव-उपनिवेशवादी एजेंडे को आगे बढ़ा रही हैं।

कम से कम 2019 के बाद से रूसी मीडिया में रिपोर्टें सामने आ रही हैं कि साहेल देशों ने मध्य अफ्रीकी गणराज्य जैसे अफ्रीका के अन्य क्षेत्रों के मॉडल की तर्ज़ पर सैन्य सलाहकारों की तैनाती के बारे में मास्को से गुहार लगाई है। 

साहेल क्षेत्र अफ्रीका के मध्य से गुजरने वाले महाद्वीप के कुछ सबसे बड़े जलभृतों के ऊपर है और संभावित रूप से दुनिया के सबसे समृद्ध क्षेत्रों में से एक है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह एक महान रणनीतिक/सामरिक महत्व का क्षेत्र है, एक इलाका जो 1,000 किमी चोड़ा है और जो अटलांटिक महासागर से लाल सागर तक 5,400 किमी तक फैला है।

बीते वक़्त में सोची में 23-24 अक्टूबर 2019 को आयोजित रूसी अफ्रीकी आर्थिक मंच की बैठक एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक घटना बन गई थी जहां रूसी राजनयिकों ने खुद के लाभ के लिए इतिहास को प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया था। 

ऐतिहासिक रूप से, फ्रांस, ब्रिटेन, इटली, जर्मनी, पुर्तगाल या स्पेन के विपरीत - रूस का अफ्रीकी महाद्वीप में कोई औपनिवेशिक दखल करने का रिकॉर्ड नहीं है। रूस के पास संयुक्त राज्य अमेरिका के विपरीत भी - अफ्रीका में सैन्य हस्तक्षेप करने का कोई खूनी रिकॉर्ड नहीं है। इसकी स्लेट साफ़ है - चीन की तरह।

यह इतिहास अफ्रीका के अभिजात वर्ग को बहुत आकर्षक लगता है। रूस को यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं है कि माली सरकार ने संघर्षग्रस्त देश में सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए निजी कंपनियों को नियुक्त करने के लिए उससे संपर्क किया था।

इस महीने की शुरुआत में, रूसी विदेश मंत्रालय ने जोर देकर कहा था कि मास्को आतंकवाद के खिलाफ खुद की लड़ाई में माली की सहायता करना जारी रखेगा और उसकी सेना की युद्ध प्रभावशीलता को मजबूत करने में मदद करेगा।

विदेश मंत्रालय ने कहा है कि, "मास्को मैत्रीपूर्ण माली में आतंकवादी ताकतों द्वारा किए गए बर्बर कृत्य की कड़ी निंदा करता है, हम लोगों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने, अपराधों के जिम्मेदार लोगों को हिरासत में लेने और दंडित करने के लिए सभी आवश्यक उपाय करने के लिए माली सरकार की मंशा का समर्थन करते हैं।

"रूस सहारा-सहेल क्षेत्र में आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए सामूहिक प्रयासों का समर्थन करना जारी रखेगा, माली सहित इस क्षेत्र के देशों को उनके सशस्त्र बलों, सैनिकों के प्रशिक्षण और कानून लागू करने वालों की युद्ध प्रभावशीलता बढ़ाने के संदर्भ में व्यावहारिक सहायता प्रदान करन आजारी रखेगा।"

खुद के मामले में माली भी खुले हाथ से खेलता है। सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिए अपने संबोधन में, माली के प्रधानमंत्री चोगुएल कोकल्ला माईगा ने फ्रांस पर सैनिकों को वापस बुलाने के "एकतरफा" निर्णय और देश छोड़ने का आरोप लगाया था। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन की दुखद स्थिति यह है कि अफ्रीका के साहेल क्षेत्र में उनका पांच देशों के साथ युद्ध माली में उतना ही अलोकप्रिय है जितना कि फ्रांस में है।

इस बीच, मालियों ने रूसी सैन्य सलाहकारों का जोरदार स्वागत किया है। फ्रांस 24 मीडिया ने बताया कि माली की राजधानी और सबसे बड़े शहर बमाको में दर्जी रूसी झंडे सिलने के लिए स्थानीय मांग को पूरा करने के व्यवसाय में व्यस्त हैं।

फ्रांस के 10 साल पुराने युद्ध ने माली और कई अन्य देशों को तबाह कर दिया है, लेकिन अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट से जुड़े मुस्लिम विद्रोही समूहों से खतरे को रोकने में विफल रहा है, जो नाटो द्वारा निर्देशित शासन परिवर्तन परियोजना के बाद लीबिया में पैदा केई गए थे। 2011 में मुअम्मर गद्दाफी को उखाड़ फेंकने के बाद वाली विडंबना ही काफी थी, जिसे केवल फ्रांस ने संचालित किया था।

अफ़ग़ानिस्तान पर अमरीका के क़ब्ज़े की तरह इस बात पर भी संदेह पैदा हो गया था कि फ़्रांस भी माली में एक संदिग्ध खेल खेल रहा है। अक्टूबर में, प्रधानमंत्री चोगुएल कोकल्ला मागा ने रूसी मीडिया को बताया कि फ्रांसीसी सेना अल-कायदा-गठबंधन अंसार अल-दीन फ्रंट जैसे आतंकवादी समूहों को गुप्त रूप से समर्थन दे रही है और उनके खिलाफ युद्ध जीतने का उनका कोई इरादा नहीं है।

वास्तव में, मैक्रोन आंशिक रूप से सैनिकों की वापसी का आदेश दे रहे हैं। माली में तैनात 5,000 फ्रांसीसी सैनिकों में से अधिकांश साहदार्ण तौर पर दक्षिण की ओर बढ़ रहे हैं, यानि बुर्किना फासो और नाइजर के साथ त्रिकोणीय सीमा क्षेत्र की तरफ। फ्रांस का साहेल को छोड़ने का कोई इरादा नहीं है, हालांकि इसकी प्रतिष्ठा स्थानीय लोगों के बीच काई खराब है। इसका नव-औपनिवेशिक एजेंडा खुद में स्पष्ट है।

दरअसल, माली में सोना, बॉक्साइट, मैंगनीज, लौह अयस्क, चूना पत्थर, फॉस्फेट, यूरेनियम आदि का समृद्ध भंडार है। माली के खनिज क्षेत्र में सोना काफी हावी है; माली अफ्रीका में चौथा सबसे बड़ा सोना उत्पादक है। माली के खनिज संसाधन अपेक्षाकृत अविकसित हैं; इसका बड़ा क्षेत्र काफी हद तक बेरोज़गार और इसका भूदृष्टि से विश्लेषण भी नहीं किया गया है।

यूरोपीयन देश ईर्ष्या और गुस्से से भर हुए रहे हैं कि कहीं रूसी माली में खुद को स्थापित न ले। पिछले गुरुवार को फ्रांस और नाटो के 15 सहयोगियों ने एक संयुक्त बयान जारी कर रूसी सुरक्षा कर्मियों द्वारा माली सरकार पर निमंत्रण की निंदा की है। दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका ने अलग से बयान जारी किया है ।

तथ्य यह है कि नाटो पश्चिमी शक्तियों को उस क्षेत्र के संसाधनों का दोहन करने के लिए अपने नव-औपनिवेशिक एजेंडे पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक मंच प्रदान करने के लिए साहेल में जमने की योजना बना रहा है। लेकिन यह परियोजना ठप हो गई है क्योंकि साहेल में प्रवेश करने का द्वार लीबिया से निकलता है जहां अराजक स्थितियां बनी हुई हैं (और जबकि रूस की वहाँ पहले से ही उपस्थिति है।)

यदि रूसी साहेल क्षेत्र में अपने पंख फैलाने चाहेगा तो नाटो एक बार फिर हमेशा की तरह  अपने अफ्रीकी सपनों को खो सकता है।

वैसे भी, पश्चिमी शक्तियाँ चीन द्वारा अफ्रीकी महाद्वीप में पैठ बनाने को लेकर बेताब हैं। चीन ने बेल्ट एंड रोड की आधिकारिक वेबसाइट पर 39 अफ्रीकी देशों को सूचीबद्ध किया है, जो भौगोलिक रूप से ट्यूनीशिया से लेकर दक्षिण अफ्रीका तक जाती हैं। चीन ने अफ्रीकी देशों को बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत सैकड़ों अरब डॉलर का क़र्ज़ दिया है।

बीआरआई की अक्सर इसके विरोधियों द्वारा तथाकथित "ऋण जाल कूटनीति" के रूप में आलोचना की जाती है। लेकिन अफ्रीका में बीआरआई परियोजनाएं एक सूक्ष्म वास्तविकता को दिखाती हैं कि विकासशील दुनिया में कैसे पहल का काम करती थी, जहां बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण की सख्त जरूरत है, और इन सहायताओं के हासिल करने वाले देशों के लिए यह कोई राजनीतिक बाहरी कारक कोई खास चिंता का विषय नहीं है।

बीजिंग के शीर्ष नेतृत्व के दौरों के साथ अफ्रीकी राजनीतिक और सैन्य नेताओं की चीन की प्रेम-मिलाप काफी उत्कृष्ट घटनाएं रही है। साथ ही, यह अफ्रीकी अभिजात वर्ग के लिए यूरोप में तत्कालीन औपनिवेशिक शक्तियों के साथ बातचीत करने की जगह भी बनाता है।

वाशिंगटन में स्टिमसन सेंटर के एक निदेशक, प्रसिद्ध अमेरिकी विद्वान यून सन ने अफ्रीका में चीन की उपस्थिति और निवेश पर कांग्रेस की गवाही में कहा कि "चीन की रणनीतिक आकांक्षाएं अफ्रीका में उसके आर्थिक जुड़ाव से संबंधित हैं और वे परस्पर रूप से एक-दूसरे को मजबूत कर रही हैं।" यह काफी महसूस करने वाला अवलोकन है।

इस संदर्भ में पश्चिमी शक्तियों के पागलपन को समझना होगा - कि रूस प्रभावी रूप से चीनी चुनौती का पूरक हो सकता है जो पहले से ही दुर्जेय है। संक्षेप में कहें तो, पश्चिम के नव-उपनिवेशवादी एजेंडे की जांच की जा रही है। यहां गहन आर्थिक और सामरिक निहितार्थों को कम करके नहीं आंका जा सकता है।

इसका मतलब यह नहीं है कि रूस और चीन माली में एक साथ काम कर रहे हैं, हालांकि यह कल्पना की जा सकती है कि वे समन्वय कर सकते हैं और निश्चित रूप से दोनों एक ही पृष्ठ पर हैं। दांव ऊंचे लगे हैं क्योंकि माली उस विशाल खनिज संपदा पर बैठा हुआ है जिसका अभी तक दोहन नहीं किया गया है। 

चीन के विपरीत, जो व्यापारिक सौदों पर कायम रहता है, रूस अफ्रीका कभी भी नव-औपनिवेशिक प्रवृत्तियों के खिलाफ उनके संघर्ष के प्रति अपने अडिग समर्थन की घोषणा करने से नहीं कतराता है।

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Russia’s Shadows in West Africa’s Sahel Region

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