“शौक नहीं मजबूरी है, पुरानी पेंशन ज़रूरी है”
2004 से देश के तमाम सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन को खत्म कर दिया गया है। अब पेंशन केंद्र सरकार की नई पेंशन स्कीम के तहत मिलती है जिसमें कुछ पैसा कर्मचारियों का कटता है और कुछ नियोक्ता देता है लेकिन इस पेंशन स्कीम से कर्मचारी खुश नहीं हैं और वे पुरानी पेंशन की बहाली की मांग कर रहे हैं। ऐसे ही हजारों कर्मचारी सोमवार को दिल्ली के रामलीला मैदान में जमा हुए और केंद्र से पुरानी पेंशन बहाल करने की मांग की।
पुरानी पेंशन बहाली राष्ट्रीय आंदोलन (NMOPS) के राष्ट्रीय मीडिया सचिव अभिनव सोंघ राजपूत ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि सरकार ने हमारे और हमारे परिवार के भविष्य को, हमारी सामजिक और आर्थिक सुरक्षा को नई पेंशन स्कीम के तहत खत्म कर दिया है। उन्होंने कहा कि हम 60 लाख कर्मचारी सरकार बना भी सकते हैं और सरकार गिरा भी सकते हैं, इसलिए दिल्ली में 22 राज्यों से आये कर्मचारियों ने शपथ ली कि वो उसी पार्टी को वोट करेंगे जो पुरानी पेंशन को बहाल करेगी।
रैली में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल भी पहुंचे और कहा कि हम दिल्ली में पुरानी पेंशन बहाल करेंगे। इसको लेकर सोमवार को ही विधानसभा के विशेष सत्र में एक प्रस्ताव पास किया गया, परन्तु अंत में उन्होंने गेंद केंद्र के पाले में डाल दी और कहा दिल्ली में पेंशन केंद्र सरकार से मिलती है।
इस पर न्यूज़क्लिक से बात करते हुए दिल्ली सीटू के अध्यक्ष वीरेंद्र गौड़ ने कहा कि दिल्ली सरकार जो कह रही है कि वो दिल्ली के कर्मचारियों को पुरानी पेंशन देना चाहती है परन्तु वो केंद्र के बिना नहीं दे सकती, ये बात पूरी तरह गलत है। दिल्ली सरकार चाहे तो अपने विभाग के कर्मचारियों को पुरानी पेंशन दे सकती। कई अन्य राज्य दे भी रहे हैं। उन्होंने कहा कि केजरीवाल बहाने छोड़कर कर्मचारियों की मांग को स्वीकार कर उसे जल्द लागू करें।
ये कोई पहला मौका नहीं था जब पेंशन को लेकर कर्मचारियों ने अपनी नाराजगी जाहिर की हो। अभी बीते 16 नवंबर को लखनऊ में रेल कर्मचारियों के एक कार्यक्रम में रेल मंत्री पीयूष गोयल को कर्मचारियों के गुस्से का सामना करना पड़ा था। अन्य मुद्दों के अलावा कर्मचारी नई पेंशन योजना को लेकर बहुत ही नाराज़ थे और पुराने सिस्टम की बहाली की मांग कर रहे थे। ये सिर्फ उत्तर प्रदेश या रेलवे का मामला नहीं बल्कि इस योजना के खिलाफ नाराजगी पूरे देश के सरकारी कर्मचारियों में है और अक्सर बड़े पैमाने पर प्रदर्शनों में प्रकट भी होती है।
हाल ही में सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों का कहना है कि अपनी पेंशन राशि से वो अपने मासिक बिजली बिल का भुगतान भी नहीं कर सकते हैं। नए योगदान-आधारित पेंशन सिस्टम के तहत शामिल इनमें से कई कर्मचारी मासिक पेंशन के रूप में 700-800 रुपये ही प्राप्त कर रहे हैं, जबकि पुरानी परिभाषित लाभ योजना में न्यूनतम गारंटीकृत राशि 9,000 रुपये थी।
अब कर्मचारी अपने मासिक वेतन का 10% भुगतान करते हैं और सरकार भी इतना ही इसमें डालती है बाद में इसे इक्विटी शेयरों में निवेश किया जाता है। सेवानिवृत्ति पेंशन उस संचित निवेश के रिटर्न पर निर्भर रहती है।
पुरानी व्यवस्था में, पूरी पेंशन राशि सरकार द्वारा दी जाती थी, जबकि जनरल प्रोविडेंट फंड (जीपीएफ) में कर्मचारी योगदान के लिए निश्चित रिटर्न की गारंटी थी। सरकार अंतिम वेतन और महंगाई भत्ता (डीए) का 50% सेवानिवृत्त होने के बाद कर्मचारियों को पेंशन के रूप में और मौत के बाद कर्मचारियों के आश्रित परिवार के सदस्यों को भुगतान करती थी।
नई पेंशन योजना क्या है?
नई पेंशन व्यवस्था यानी राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) 1 जनवरी, 2004 को या उसके बाद केंद्र सरकार (सशस्त्र बलों को छोड़कर) के लिए सभी नई भर्तियों के लिए अनिवार्य योगदान योजना है। कुछेक राज्यों को छोड़कर सभी राज्य सरकारों ने इसे अनिवार्य बना दिया है। 2013 में स्थापित एक स्वतंत्र पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए), एनपीएस को नियंत्रित करता है।
यह अमेरिकी मॉडल पर आधारित योजना है जिसे आम भाषा में निजी पेंशन या पेंशन का निजीकरण कह सकते हैं। यह 2003 में पूर्व एनडीए सरकार द्वारा लागू की गई थी। जबिक पेंशन नियामक की स्थापना के बारे में 2004 में कानून यूपीए द्वारा भाजपा के समर्थन से पारित किया गया था। बड़े पेंशन फंड को इक्विटी और बांडों में निवेश किया जाता है, जिससे बाजार संबंधी जोखिम बढ़ जाता है।
एक निश्चित कट ऑफ तिथि के बाद शामिल होने वाले कर्मचारियों के लिए यह अनिवार्य है, साथ ही उनके वेतन का 10% स्वचालित रूप से निधि में जा रहा है। त्रिपुरा कुछ ऐसे राज्यों में से एक था, जो अपने कर्मचारियों के लिए एनपीएस लागू नहीं कर रहा था और पुरानी पेंशन योजना को जारी रखे हुआ था, यानी जो कर्मचारियों की कड़ी मेहनत से अर्जित किए गई पेंशन को जोखिम में नहीं डालता था लेकिन अब वहां भी भाजपा के शासन में आने के बाद इसे समाप्त कर दिया गया है। और नई पेंशन स्कीम लागू कर दी गई है।
नई पेंशन पुरानी पेंशन से किस तरह अलग है?
1- पुरानी पेंशन पाने वालों के लिए जी0 पी0 एफ0 सुविधा उपलब्ध है जबकि नई पेंशन योजना में जी0 पी 0एफ0 नहीं है। जी0 पी0 एफ0 पर ब्याज दर निश्चित है जबकि एन0 पी0 एस0 पूरी तरह शेयर पर आधारित है।
2- पुरानी पेंशन वालों के परिवार वालों को सेवाकाल में मृत्यु पर डेथ ग्रेच्युटी मिलती है जो सातवें वेतन आयोग ने 10 लाख से बढाकर 20 लाख कर दिया है जबकि नई पेंशन वालों के लिए डेथ ग्रेच्युटी की सुविधा अभी हाल ही में की गयी है।
3- पुरानी पेंशन योजना में रिटायरमेन्ट के समय एक निश्चित पेंशन (अन्तिम वेतन का 50%) की गारंटी थी जबकि नई पेंशन योजना में पेंशन कितनी मिलेगी यह निश्चित नहीं है यह पूरी तरह शेयर मार्केट व बीमा कम्पनी पर निर्भर है।
4- पुरानी पेंशन सरकार देती है जबकि नई पेंशन बीमा कम्पनी देगी। यदि कोई समस्या आती है तो हमें सरकार से नहीं बल्कि बीमा कम्पनी से लड़ना पडेगा।
5-पुरानी पेंशन पाने वालों के लिए रिटायरमेंट पर ग्रेच्युटी ( अंतिम वेतन के अनुसार 16.5 माह का वेतन) मिलता है जबकि नयी पेंशन वालों के लिये ग्रेच्युटी की व्यवस्था सरकार ने हाल ही में की है।
6- पुरानी पेंशन के लिए वेतन से कोई कटौती नहीं होती है जबकि नयी पेंशन योजना में वेतन से प्रति माह 10% की कटौती निर्धारित है ।
7- पुरानी पेंशन में आने वाले लोगों को सेवाकाल में मृत्यु होने पर उनके परिवार को पारिवारिक पेंशन मिलती है जबकि नयी पेंशन योजना में पारिवारिक पेंशन को समाप्त कर दिया गया है, लेकिन अब सरकार इस पर विचार कर रही है।
8- पुरानी पेंशन पाने वालों को हर छह माह बाद महँगाई तथा वेतन आयोगों का लाभ भी मिलता है जबकि नई पेंशन में फिक्स पेंशन मिलेगी। महँगाई या वेतन आयोग का लाभ नहीं मिलेगा। यह एक बहुत बड़ा नुकसान है।
9- पुरानी पेंशन योजना वालों के लिए जी0 पी0 एफ0 से आसानी से लोन लेने की सुविधा है जबकि नयी पेंशन योजना में लोन की कोई सुविधा नही है (विशेष परिस्थिति में कठिन प्रक्रिया है केवल तीन बार वह भी रिफण्डेबल)।
11-पुरानी पेंशन योजना में जी0 पी0 एफ0 निकासी (रिटायरमेंट के समय) पर कोई आयकर नहीं देना पडता है जबकि नयी पेंशन योजना में जब रिटायरमेंट पर जो अंशदान का 60% वापस मिलेगा उसपर आयकर लगेगा |
केंद्रीय ट्रेड यूनियन सीटू के नेता मनोहर लाल मालकोटीया ने न्यूज़क्लीक से बात करते हुए कहा कि सरकार कह रही है कि कर्मचारियों को पेंशन देने के लिए बजट नहीं है लेकिन वो लगतार उद्योगपतियों को आर्थिक मदद दे रही है। एक तरफ तो सरकार लगतार पक्की नौकरियों को खत्म कर रही है दूसरी तरफ बीजेपी की राज्य सरकारों में करीब 40-50% कर्मचारी ठेके पर हैं। केंद्र सरकार ने स्पष्ट रूप से राज्य की सरकारों को निर्देशित किया है कि केन्द्र प्रायोजित योजनाओं में ठेकेदारी पर रोज़गार दिया जाए। ऐसे कर्मचारियों को अपने निजी नियोक्ताओं (ठेकेदार) से कम वेतन मिलता है, व्यावहारिक रूप से कोई लाभ नहीं होता है और नौकरी की सुरक्षा भी नहीं होती है। पिछले एक दशक में राज्यों के नियमित कर्मचारियों की संख्या लगभग 82 लाख से घटकर 60 लाख हो गई है। यह मुख्य रूप से इसलिए हुआ है क्योंकि केरल को छोड़कर लगभग सभी राज्यों में सरकारी नौकरियों को आउटसोर्स किया गया है।
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