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महाराष्ट्र: अपनी समस्याओं को लेकर आख़िर क्यों सड़क पर उतरे शिक्षक?

प्रदेश में प्राथमिक स्कूलों का ढांचा बहुत तेजी से चरमरा रहा है। जाहिर है कि इसका असर भी स्कूली शिक्षा पर ही नहीं बल्कि वहां काम करने वाले शिक्षकों पर भी पड़ रहा है।
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नागपुर में अपनी मांगों को लेकर शिक्षकों की रैली में उमड़ी भारी भीड़ सियासी चर्चा की वजह बन रही है। तस्वीर: सोशल मीडिया से

ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) लागू करने और ग्रुप स्कूल योजना बंद करने सहित विभिन्न मांगों को लेकर महाराष्ट्र की उप-राजधानी नागपुर में विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान राज्य के प्राथमिक स्कूलों के शिक्षकों ने 11 दिसंबर को एक बड़ी रैली निकाली और राज्य सरकार का विरोध प्रदर्शन किया।

इस विरोध प्रदर्शन में शिक्षकों की भारी तादाद को देखते हुए दबाव में आकर राज्य सरकार के शिक्षा विभाग ने प्रदेश में 20 हजार शिक्षकों की भर्ती करने की बात कही। हालांकि, रिक्त पदों की संख्या को देखते हुए सरकार के ऐसे वादे और दावे नाकाफी ही लगते हैं। वहीं, यह बात भी छिपी नहीं है कि प्रदेश में प्राथमिक स्कूलों का ढांचा बहुत तेजी से चरमरा रहा है। जाहिर है कि इसका असर भी स्कूली शिक्षा पर ही नहीं बल्कि वहां काम करने वाले शिक्षकों पर भी पड़ रहा है। नतीजा, शिक्षा और शिक्षक दोनों की स्थिति बिगड़ती जा रही है। यही वजह है कि सरकारी स्कूलों के शिक्षक अब खुल कर सरकार के खिलाफ संगठित होकर अपनी मांगे रख रहे हैं।

राज्य में प्राथमिक स्कूलों की हालत पर चिंता क्यों?

महाराष्ट्र के शिक्षकों में बढ़ते असंतोष और सरकार के विरोध में आने के पीछे की स्थितियों पर नजर डालें तो जो तस्वीर उभरती है वह निराशाजनक है। महाराष्ट्र में लगभग 1 लाख 6 हजार 338 प्राथमिक स्कूल हैं इनमें से 77 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। कुल मिलाकर, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति हजार बच्चों पर प्राथमिक स्कूलों की संख्या दस और उच्च प्राथमिक स्कूलों की संख्या नौ है। हालांकि, दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों में यह अनुपात और बिगड़ता जाता है।

हिन्दी पट्टी के अन्य राज्यों की तुलना में महाराष्ट्र में सरकारी स्कूलों की स्थिति काफी अच्छी मानी जाती रही है, मगर हाल के कुछ वर्षों में बुनियादी शिक्षा के स्तर पर आ रही गिरावट चिंता की वजह बनती जा रही है। तस्वीर सांगली जिले के एक ग्रामीण सरकारी स्कूल की। फोटो: शिरीष खरे 

वहीं, राज्य में शिक्षकों की संख्या भी करीब पांच लाख है। इसी तरह, प्रति दस वर्ग किलोमीटर पर प्राथमिक स्कूलों का घनत्व 3.5 तथा उच्च प्राथमिक स्कूलों का घनत्व 2 है। राज्य में 'निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009' वर्ष 2010 से लागू है। इस अधिनियम के तहत बच्चे निकटतम स्कूल में मुफ्त और अनिवार्य तौर पर पूर्ण प्राथमिक शिक्षा के हकदार हैं। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों में स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों की स्थिति एक बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आई है।

राज्य के शिक्षक प्राथमिक शिक्षा की बदहाली को अपनी स्थिति से जोड़कर देखते हैं। शिक्षकों के विरोध प्रदर्शन के पीछे उनकी मांगों पर गौर करें तो राज्य में सरकारी स्कूल स्थानीय स्व-सरकारी निकायों जैसे जिला परिषद, नगर पालिका, छावनी, नगर परिषद में चलाए जाते हैं। ये स्कूल ग्रामीण क्षेत्रों के जरूरतमंद छात्रों और शहर के गरीब परिवारों के छात्रों को शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से चलाए जा रहे हैं।

महाराष्ट्र में प्राथमिक शिक्षक समिति के प्रदेश अध्यक्ष विजय कोम्बे कहते हैं कि राज्य भर के इन स्कूलों में पढ़ाने के लिए पर्याप्त शिक्षक उपलब्ध नहीं हैं। प्राथमिक स्कूलों को लेकर राज्य सरकार कितनी गंभीर है तो इसका उत्तर सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी से पता चलता है। स्थिति यह है कि राज्य के सरकारी स्कूलों में करीब 31 हजार 472 शिक्षकों के पद खाली हैं।

इसकी एक वजह यह है कि शिक्षकों के सेवानिवृत्त होने पर उनके स्थान पर कोई नियुक्ति नहीं की जा रही है। वहीं चित्रकला, शारीरिक शिक्षा, संगीत, अभ्यास, खेल आदि की नियुक्तियां बंद कर दी गई हैं। सवाल है कि जब सरकारी स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं तो शिक्षा नीति को कैसे क्रियान्वित किया जा सकता है। लिहाजा, जरूरतमंद बच्चे निकटतम स्कूल में मुफ्त और अनिवार्य तौर पर पूर्ण प्राथमिक शिक्षा के हक से वंचित हो रहे हैं।

ओल्ड पेंशन स्कीम के चलते आए एक मंच पर

ओल्ड पेंशन स्कीम न सिर्फ शिक्षक बल्कि राज्य के सभी सरकारी कर्मचारियों की प्रमुख मांग है और इसके लिए अलग-अलग राज्य सरकारी कर्मचारी संगठन राज्य में धरना-प्रदर्शन करते रहे हैं। पिछले दिनों प्राथमिक स्कूलों के शिक्षकों द्वारा नागपुर में आयोजित बड़े विरोध प्रदर्शन के पीछे भी उनकी यह मांग उजागर हुई। इसके अलावा शिक्षकों द्वारा मांग की जा रही है कि आवास न मिलने तक मुख्यालय पर रहने के लिए बाध्य करने को लेकर उनके खिलाफ सख्ती न की जाए। वहीं, शिक्षक मकान किराया भत्ता बंद करने के मुद्दे पर भी आक्रमक दिखे।

इसके अलावा कई स्कूलों को बंद करके उन्हें दूसरे स्कूलों के साथ मर्ज कर देने की सरकारी योजना को लेकर भी सारे शिक्षक आम सहमति से सरकार के विरोध में हैं।

शिक्षकों की एक मांग यह भी है कि जिला परिषद प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले पिछड़े वर्ग समुदायों के गरीब बच्चों की आर्थिक सहायता में बढ़ोतरी की जानी चाहिए। इसके अलावा गरीब परिवारों से स्कूलों तक पहुंचने वाली लड़कियों की उपस्थिति भत्ता बढ़ाया जाना चाहिए, सरकार को नगरपालिका और नगरपालिका प्राथमिक शिक्षकों के वेतन के लिए 100 प्रतिशत सब्सिडी देनी चाहिए और अलग वेतन समिति का गठन किया जाना चाहिए।

शिक्षकों का कहना है कि प्राथमिक स्कूलों में जब तक शिक्षकों के हजारों पद खाली रहेंगे तब तक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार कैसे आएगा इसलिए इन पदों को तुरंत भरा जाए। इसी तरह, संविदा के आधार पर शिक्षकों को भर्ती करने की प्रक्रिया बंद की जाए।

धुलिया जिले से आंदोलन में भाग लेने के लिए आए एक शिक्षक राकेश ताम्बेकर कहते हैं कि शिक्षिकों की कमी और ठेके पर उनकी भर्ती ने राज्य में बुनियादी शिक्षा की गुणवत्ता पर बहुत बुरा प्रभाव डाला है। इससे सरकारी स्कूल ही नहीं सरकारी शिक्षक और बच्चों की स्थितियां भी पहले जैसी नहीं रह गई हैं।

तीन राज्यों में बीजेपी की जीत के बावजूद बड़ा आंदोलन

बता दें कि मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने ओल्ड पेंशन स्कीम का पक्ष लेते हुए चुनाव प्रचार किया था। इसके बावजूद परिणाम कांग्रेस के अनुकूल नहीं रहे और बीजेपी इन तीनों राज्यों में सरकार बनाने में सफल रही। वहीं, महाराष्ट्र में ओल्ड पेंशन स्कीम को लेकर राज्य सरकार के कर्मचारी लगातार आंदोलन करते रहे हैं और यहाँ इन आंदोलनों को व्यापक समर्थन भी मिलता रहा है। देखा जाए तो महाराष्ट्र में शिक्षकों का विरोध प्रदर्शन एक तरह का शक्ति प्रदर्शन भी था कि राज्य के कर्मचारियों ने ओल्ड पेंशन स्कीम की मांग को छोड़ा नहीं है और वे इसे लेकर गंभीर हैं।

यही वजह है कि शिक्षकों के आंदोलन को व्यापक समर्थन मिला क्योंकि राज्य में सभी कर्मचारी संगठन सामूहिक एवं साझा मांगों को लेकर आंदोलन करते हैं। ओल्ड पेंशन स्कीम न केवल शिक्षकों के लिए बल्कि सभी सरकारी, अर्ध-सरकारी सहायता प्राप्त संस्थानों के कर्मचारियों के लिए भी एक गंभीर मुद्दा है। वहीं, स्थानीय निकायों के प्राथमिक स्कूलों में बच्चों के लिए चल रही योजनाएं, गतिविधियां और सरकारी स्कूलों के प्रति शासन-प्रशासन की अरुचि परेशान करने वाली है।

नागपुर के आंदोलन में शामिल एक शिक्षिका दिव्या सावंत कहती हैं कि शिक्षक संगठनों की मांगों के प्रति सरकार उदासीन है जो कि दुखद एवं क्षोभजनक है। वहीं,  प्राथमिक शिक्षक समिति के प्रदेश अध्यक्ष विजय कोम्बे ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया है कि सरकार लंबित मांगों की अनदेखी कर रही है। वह कहते हैं कि सरकार उनकी बात आसानी से मानने वाली नहीं है, इसलिए वे चरणबद्ध तरीके से विरोध प्रदर्शन करेंगे।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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