सीजेआई को क्लीन चिट का विरोध, सुप्रीम कोर्ट के बाहर प्रदर्शन
यौन शोषण के आरोपों से घिरे प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई को निर्दोष करार दिए जाने पर सवाल उठाते हुए मंगलवार को दिल्ली में सर्वोच्च न्यायालय के बाहर महिला वकील और महिला संगठन से जुड़ी कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया। इस दौरान पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया।
आपको बता दें कि किसी भी तरह के प्रदर्शन के लिए सर्वोच्च न्यायालय के बाहर एकत्र होने की मनाही है। इसी के चलते दिल्ली पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया और इलाके में सीआरपीसी की धारा 144 लगा दी।
आपको मालूम होगा कि न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे की अगुआई वाली शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ को सर्वोच्च न्यायालय की एक पूर्व कर्मचारी द्वारा प्रधान न्यायाधीश गोगोई के खिलाफ लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोप के मामले में कोई सबूत नहीं मिला और सोमवार को उन्होंने गोगोई को क्लीन चीट दे दी।
प्रदर्शनकारी शिकायतकर्ता के पक्ष में खुलकर सामने आए, जिसने 30 अप्रैल को सीजोआई (प्रधान न्यायाधीश) पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था, और कहा था कि वह शीर्ष अदालत द्वारा इन आरोपों की जांच के लिए गठित इन-हाउस पैनल के समक्ष अब पेश नहीं होगी क्योंकि उसे लगा कि उसे न्याय मिलने की कोई संभावना नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय की पूर्व कर्मचारी ने कहा कि उसने शीर्ष अदालत के तीन न्यायाधीशों की उपस्थिति में 'काफी भयभीत और घबराया हुआ' महसूस किया।
प्रदर्शनकारियों का भी कहना था कि महिला को न्याय का पूरा अवसर नहीं दिया गया और सीजेआई को क्लीनचिट दे दी गई। प्रदर्शनकारियों ने इसे न्याय का माखौल बताया। प्रदर्शन के दौरान दिल्ली पुलिस कई प्रदर्शनकारियों को जबरन हिरासत में लेकर मंदिर मार्ग थाने ले गई। हिरासत में लिए गए प्रदर्शनकारियों में एनी राजा, एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज, अकादमिक उमा चक्रवर्ती, वकील नंदिनी राव और नंदिनी सुंदर शामिल हैं। राइट टू फूड अभियान से अमृता जौहरी को भी हिरासत में लिया गया, जौहरी ने कहा, "वे हमें नहीं छोड़ रहे हैं, जब तक कि उच्च अधिकारी इसकी अनुमति नहीं देते हैं, इससे साफ है कि हमारी आवाज को दबाने का प्रयास किया जा रहा है।"
हिरासत में लिए जाने से पहले न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, एनी राजा ने कहा, “मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को इस्तीफा देने की आवश्यकता है, इस मामले ने न्यायपालिका की विश्वसनीयता को गंभीर चोट पहुंचाई है, जिसमें शिकायतकर्ता को एक वकील भी नहीं दिया गया, जबकि ये आंतरिक शिकायत समिति और यौन उत्पीड़न निरोधक अधिनियम (POSH) के तहत एक तय प्रक्रिया है।”
वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने भी क्लीन चिट दिए जाने पर अपनी असहमति व्यक्त की है।
दरअसल सीजेआई को क्लीन चिट देने वाली समिति ने कहा कि शीर्ष अदालत के पूर्व कर्मचारी की 19 अप्रैल, 2019 की शिकायत में लगाये गये आरोपों में कोई आधार नहीं मिला। इन्दिरा जय सिंह बनाम शीर्ष अदालत और अन्य के मामले में यह व्यवस्था दी गयी थी कि आंतरिक प्रक्रिया के रूप में गठित समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जायेगी। इस पर असहमति जताते हुए इंदिरा जयसिंह ने#NotInMyName हैशटैग के साथ ट्वीट किया जिसमें कहा कि "यह एक है घोटाला है...।” उन्होंने कहा कि यह आरटीआई से पहले का मामला था और एक ख़राब कानून था।
#NotInMyName
This is a scandal
Indira Jaising v Supreme Court of India was also a case of sexual harassment by a sitting High Court of Karnataka.It is a pre RTI case and is bad in law
Demand the disclosure of the findings of the enquiry committee in public interest https://t.co/Saw07mBPhV— indira jaising (@IJaising) May 6, 2019
यहां आपको बता दें न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने न्यायमूर्ति बोबडे की अध्यक्षता वाले जांच पैनल को 2 मई के पत्र में, उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर विचार करने के लिए एक फुल कोर्ट यानी पूर्ण पीठ की मांग की। महिला शिकायतकर्ता को एक वकील के इनकार को "निष्पक्ष प्रक्रिया का गंभीर निषेध" कहते हुए, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि यह "उसकी गरिमा" का सवाल है, जिसे संरक्षित करने की आवश्यकता है।
(आईएएनएस के इनपुट के साथ)
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