बनारस : गांधी जयंती पर जबरन रोकी गई शांति-सद्भावना यात्रा, पुलिस ने कहा, ''पहले परमीशन दिखाओ?''
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गांधी जयंती के अवसर पर शांति एवं संद्भावना यात्रा निकालने पहुंचे लोगों को पुलिस ने रोक दिया। साझा संस्कृति मंच ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था। गांधी विचारधारा से जुड़े बड़ी संख्या में लोग लंका स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सिंह द्वार पर पहुंचे,लेकिन पुलिस ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया। यह घटना शनिवार की सुबह करीब आठ बजे की है।
अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस एवं प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती के अवसर पर सामाजिक सरोकारों से जुड़े लोगों ने साझा संस्कृति मंच के बैनर तले काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सिंह द्वार से मैदागिन स्थित टाउनहाल तक शांति एवं संद्भावना यात्रा निकालने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। लंका गेट पर पहले से ही बड़ी संख्या में पुलिस फोर्स मौजूद थी। गांधीवादियों का जत्था जैसे ही आगे बढ़ने को हुआ, तभी बड़ी संख्या में पुलिस के जवान उनके आगे खड़े हो गए। पुलिस का कहना था कि उनके पास शांति एवं संद्भावना यात्रा निकालने के लिए कोई आदेश नहीं है। बगैर आदेश के वो किसी भी दशा में शांति एवं संद्भावना यात्रा निकालने नहीं देंगे। इस बात पर पुलिस से पदायात्रियों के तकरार भी हुई। पुलिस ने सख्त रुख अपनाते हुए साझा संस्कृति मंच के लोगों को घेर लिया। साथ ही उनके शांति एवं संद्भावना यात्रा को कानून का उल्लंघन करार दिया।
सिंह द्वार पर मौजूद भेलूपुर के एसीपी प्रवीण सिंह ने साफ-साफ कहा, '' बिना परमीशन दिखाए शांति एवं संद्भावना यात्रा नहीं निकाली जा सकेगी। इसके जवाब में पदयात्रियों का कहना था कि राष्ट्रीय पर्वों पर शांति एवं संद्भावना यात्रा निकालने के लिए पहले किसी अनुमति की जरूरत नहीं होती थी। मौके पर मौजूद पुलिस बार-बार आगाह कर रही थी कि वे आगे न बढ़ें। सुरक्षा इंतजाम को देखते हुए पदयात्रा कार्यक्रम स्थगित कर दें और कानून का पालन करें।''
पुलिस अधिकारियों ने साझा संस्कृति मंच के कार्यकर्ताओं से कहा कि बीएचयू गेट पर बैठकर गांधी जयंती मनाइए। पदयात्रा को शहर के अंदर प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा। शांति एवं संद्भावना यात्रा निकलने पहुंचे गांधीवादी विचारक संजीव सिंह ने कहा, ''हम शहर में कोई हिंसा नहीं करने जा रहे हैं। पदयात्रियों को रोकना अन्याय है। पुलिस अफसरों ने पदयात्रा रोकने के लिए हमें कोई तर्कसंगत उत्तर नहीं दिया। हमने तो यह भी कहा कि अगर हमें शांति एवं संद्भावना यात्रा निकालने से रोकने का कोई आदेश हो तो उसे दिखा दीजिए। अगर हमने कोई कानून तोड़ा है तो गिरफ्तार कर लीजिए। गांधी जयंती पर शहर में कई पदयात्राएं निकाली गईं, लेकिन किसी को नहीं रोका गया। आखिर हमसे खतरा क्या है? सिर्फ हमें ही नजरबंदियों की तरह क्यों रखा गया है?''
संजीव सिंह ने कहा, ''हर राजनीतिक दल राष्ट्रीय पर्व मनाता है। साझा संस्कृति मंच तो गांधी के विचारों में यकीन रखता है। हम हर साल प्रभातफेरी निकाला करते थे। समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर योगी सरकार की पुलिस गांधीवादियों के साथ बुरा सुलूक क्यों कर रही है? गुंडागर्दी करने से उन्हें क्या मिलेगा? ''
एक्टिविस्ट रंजू सिंह ने कहा, ''हम शांति का संदेश देने जा रहे थे। कई और भी जुलूस लंका के पास से गुजरे, पर किसी को नहीं रोका गया। हम शांति के साथ टाउनहाल तक जाना चाहते थे। हमारी शांति एवं संद्भावना यात्रा लंका के सिंह द्वार से टाउनहाल तक जानी थी। साझा संस्कृति मंच के बैनरतले शहर भर के गांधीवादी लोग एकत्र थे, मगर हमें शांति एवं संद्भावना यात्रा निकलाने नहीं दिया गया। हमने दो घंटे बाद अपना कार्यक्रम खत्म कर दिया।''
रंजू ने यह भी कहा, ''हमें समझ में नहीं आता कि बनारस में हमेशा दफा 144 क्यों लगी रहती है। पुलिस को यहां चीज के लिए परमीशन चाहिए। राष्ट्रीय पर्व मानने के लिए बनारस में पहली बार परमीशन की डिमांड की गई है। हमें लगता है कि पुलिस को शायद ऊपर से शांति एवं संद्भावना यात्रा नहीं निकालने देने का आदेश था। हम तो गंगा-जमुनी तहजीब को बढ़ावा देने के लिए जनता को संदेश देना चाहते थे। साझा संस्कृति मंच दो दशक पुरानी संस्था है। हम गांधी के रास्ते पर चलते हैं। लड़ाई-झगड़ा नहीं कर सकते। इसीलिए हमने पुलिस का विरोध नहीं किया।''
बाद में सिंह मालवीय प्रतिमा के समक्ष आयोजित सभा में वक्ताओं ने कहा, ''हमारा कर्तव्य हैं कि हम भारत की एकता, अखंडता और साझा संस्कृति को बनाए रखने की ईमानदार कोशिश करें। देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी में शांति, सद्भावना और आपसी भाईचारे को किसी कीमत पर बिगड़ने नहीं दें। भारतीय नागरिक होने के नाते हर व्यक्ति को देश के लोकतंत्र और संविधान की हिफाजत करने की हर मुहिम में शामिल होना चाहिए। जाति, धर्म, संप्रदाय आदि के आधार पर भेदभाव करने वालों से बचते हुए और अपने समाज को भी बचाने की दिशा में प्रयास करना चाहिए। हम समाज में नफरत और हिंसा फैलाने वाली प्रवृत्तियों के खिलाफ आवाज उठाएं और ऐसे भारत के निर्माण की कोशिश करें अथवा ऐसी हर कोशिश का समर्थन करें जो सामाजिक समता व आर्थिक बराबरी को बढ़ाती हो और लोकतंत्र व भाईचारे को मजबूत बनाने का काम करती हो।''
बाद में प्रेरणा कला मंच के कलाकारों ने गांधी के प्रिय भजन और जनवादी गीतों की प्रस्तुति दी। साथ ही अपील की गई कि काशी के लोग शांति, सद्भावना और अहिंसा के आदर्शों को मिटने नहीं दें और अपनी गंगा जमुनी संस्कृति की परंपरा को बनाए रखें। कार्यक्रम में राजेन्द्र तिवारी, संजीव सिंह, तनुजा, रामजन्म, सतीश सिंह, रवि शेखर, रंजू, मैत्री, फादर जयंत, पूनम, प्रियंका, नंदलाल मास्टर आदि ने विचार व्यक्त किए। पूरे समय तक मौके पर पुलिस डटी रही।
लंका के सिंह द्वार पर मौजूद एक महिला एक्टिविस्ट ने न्यूजक्लिक से कहा, ''शायद डबल इंजन की सरकार गोडसेवाद में यकीन रखती है। इसीलिए गांधी जयंती पर हमें शांति एवं संद्भावना यात्रा नहीं निकालने दिया गया। जिन्हें गोडसे से प्यार है, वो भला गांधी के संघर्षों को क्या समझेंगे? '' गांधीवादी विचारधारा लोग करीब दो घंटे तक सिंह द्वार पर बैठे रहे और बाद में सभी लौट गए। साझा संस्कृति मंच के बैनरतले गांधी जयंती की पूर्व संध्या पर अस्सी घाट पर पोस्टर प्रदर्शनी लगाई गई थी और सद्भावना संदेश के रूप में पर्चे भी बांटे गए थे।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।