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क्या है विनेश फोगाट और सोनम मलिक के निलंबन के पीछे का कारण? अनुशासन की आड़ में, मुखर होने की सजा!

डब्ल्यूएफआई द्वारा दोनों महिला पहलवानों को अनुशासनात्मक कारणों का हवाला देते हुए निलंबित कर दिया गया है, इसके पीछे जिन कारणों का हवाला दिया गया है, वे हैरान करने वाले हैं, इन आरोपों की बारीकी से जांच करने पर कोई बड़ा आधार नहीं निकलता है। ऐसे लगता है दोनों महिला पहलवानों के निलंबन पीछे कुछ अन्य कारण हैं
क्या है विनेश फोगाट और सोनम मलिक के निलंबन के पीछे का कारण? अनुशासन की आड़ में, मुखर होने की सजा!

खेल के संदर्भ में अनुशासन, विशेषकर भारतीय वातावरण में एक अस्पष्ट रूप से परिभाषित शब्द है, अनुशासन कब किसी बहाने की तरह इस्तेमाल हो जाए इसका कुछ पता नहीं। हाल ही में विनेश फोगाट और सोनम मलिक, को भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) ने “घोर अनुशासनहीनता” के आरोप में निलंबित कर दिया है,जबकि इन आरोपों की जांच करने पर पता चला है कि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया है जिसे बड़ी अनुशासनहीनता की तरह देखा जा सके. न उन्होंने ऐसा कुछ किया है जिसे उस संस्था के दायरों में ही सुलझाया ना जा सकता हो, जिसका प्राथमिक कार्य अपने एथलीटों के हितों और भलाई को ध्यान में रखने का हो.

अगर इस मामले को शुरू से ही देखें तो जिस प्रकार से महासंघ के स्रोतों ने गैर-जिम्मेदाराना तरीके से मीडिया में खबरें लीक की हैं, जिसमें “फंड में हेराफेरी” जैसे शब्द यूज किये गए हैं उनमें अधिक दम नहीं है. ये आरोप कई स्तरों पर तर्कहीन नजर आते हैं और नैतिकता के भी खिलाफ हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि महासंघ के अधिकारियों ने किसी एजेंडे के तहत उन पर एक्शन लिया है, अनुशासन तो सिर्फ एक बहाना है। एक संभावना यह भी हो सकती है कि फोगाट के विरुद्ध ये कार्यवाही इसलिए की गई है क्योंकि वो महासंघ के कामकाजों को लेकर कई बार आलोचनात्मक और मुखर रही हैं.

उदाहरण के लिए, टोक्यो ओलंपिक के दौरान चार भारतीय महिला पहलवानों के लिए एक फिजियो की जरूरत के मामले में भी फोगाट मुखर बनी रहीं थीं। उन्होंने बगैर किसी फिजियो के ही प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लिया, जो कि प्रतिस्पर्धा के स्तर को देखते हुए एक बड़ी बात थी, कुश्ती में जिस प्रकार की चोट शरीर को झेलनी पड़ती हैं, जिसके लिए उन्हें फिर से मैदान में प्रवेश करने से पहले एक पेशेवर फिजियो के हस्तक्षेप की दरकार होती है, उस हिसाब से ये एक बड़ी बात थी. 

टोक्यो में कुश्ती के आयोजन शुरू होने से एक हफ्ते पहले ही सोशल मीडिया में फोगाट के बयान ने खूब सुर्खियां बटोरीं थीं, शायद इन्हीं कुछ कारणों से कुश्ती महासंघ और भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) इस प्रकार के कुछ असहज महसूस कर रहे थे।

पहलवानों के घर वापसी के चंद दिनों बाद ही 11 अगस्त को दोनों के निलंबन की घोषणा कर दी गई है। इसके पीछे जिन कारणों का हवाला दिया गया है, वे हैरान करने वाले हैं, इन आरोपों की बारीकी से जांच करने पर कोई बड़ा आधार नहीं निकलता है।

आपको बता दें कि भले ही खेलों ने वैश्विक स्तर पर लैंगिक समानता को हासिल करने की कोशिश की है लेकिन भारतीय कुश्ती महासंघ को पुरुषों द्वारा नियंत्रित किया जाता रहा है, जिसने फोगाट के खिलाफ तीन-सूत्रीय आरोप पत्र को तैयार किया है। ये तीन आरोप इस प्रकार हैं-

पहला आरोप- गेम्स विलेज में फोगाट ने अपनी टीम के साथियों के साथ एक ही कमरे में नहीं ठहरने का फैसला किया। 

संभव है कि, फोगाट को अपने आसपास किसी अन्य के कमरे में बने रहना पसंद न हो। हो सकता है कि अपनी एकाग्रता को हासिल करने के लिए उन्होंने एकांत वास को प्राथमिकता दी हो। यह फेडरेशन की जिम्मेदारी है कि वह महिला पहलवान या किसी भी पहलवान की सहूलियत को सुनिश्चित करे। यह मांग कोई गैरवाजिब नहीं है। 

दूसरा आरोप- विनेश ने भारतीय महिलाओं के साथ प्रशिक्षण नहीं लेने का विकल्प चुना। 

यह बात कोई अनुशासनहीनता के अंतर्गत नहीं आती बल्कि यह फोगाट की व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर करता है कि वह टोक्यो में कितनी अधिक टीम भावना का प्रदर्शन करना चाहती हैं। कुश्ती एक वैयक्तिक प्रतिस्पर्धा है और जब फोगाट रिंग में मुकाबले के लिए जाती हैं तो वहां पर उसकी टीम के सदस्यगण नहीं बल्कि उसकी तैयारी होती है, वे मुकाबला हार गईं यह पूरी तरह से एक अलग मामला है, इसे सही खेलभावना के मानदंडों के साथ देखना चाहिए, न कि हर हाल में सजा देने के मकसद से

विनेश ने अपने मुकाबले से पहले अपने नियमित पार्टनर के साथ ही प्रशिक्षण लेना पसंद किया होगा, जो एक हंगेरियाई पहलवान होने के साथ-साथ उनके निजी प्रशिक्षक वोलर अकोस की पत्नी भी हैं। ऐसे मामलों में सहजता मायने रखती है, अपरिचित सहयोगियों के साथ मुकाबला करने पर, भले ही वे भारतीय ही क्यों न हों, अंतिम क्षणों में चोटिल होने की संभावना बनी रहती है। कुश्ती से जुड़े अधिकारियों को यह सब पता है, लेकिन ऐसा लगता है कि उनकी कोशिशें तो बस फोगाट के खिलाफ आरोपपत्र में सिर्फ नए-नए बिन्दुओं को जोड़ने की रही हैं।

तीसरा आरोप- विनेश ने अपने मुकाबलों के लिए नाइके सिंग्लेट (बंडी) को पहनना चुना और भारतीय आधिकारिक किट आपूर्तिकर्ता द्वारा मुहैय्या कराई गई किट को नहीं पहना।

यह अनुबंध के उल्लंघन का मामला साबित हो सकता है। हालांकि, यहां पर कई चीजें विवादास्पद हैं, जिनमें भारतीय कंपनी के सिंग्लेट और दुनिया के सबसे बड़े खेल निर्माता द्वारा मुहैय्या कराये जाने वाले वस्त्रों की गुणवत्ता के बीच की खाई को पाटने में अंतर हो सकता है। उच्च प्रदर्शन वाले खेल में परिधान मायने रखता है, और फिर किसी निश्चित ब्रांड के कपड़ों के साथ बने रहने की सहजता किसी एथलीट के प्रदर्शन में एक अंतर ला सकती है। हमें यकीन है कि टोक्यो में फोगाट एक वैश्विक ब्रांड के साथ चिपके रहकर किसी प्रकार के स्टाइल स्टेटमेंट को दिखाने की कोशिश नहीं कर रही थीं। इसके लिए ठोस खेल के कारण मौजूद हैं।

इसके साथ ही हमें नहीं भूलना चाहिए कि ऐसा ही कुछ घटनाक्रम हमारी एक महिला एथलीट के साथ साल 2016 में रियो ओलंपिक में भी हो चुका है। उस एथलीट का नाम है पीवी सिन्धु। वे योनेक्स पोशाक पहनकर खेली थीं, जबकि उस दौरान किट प्रायोजक ली निंग था। उस दौरान यह बताया गया था कि सिन्धु ली निंग की जर्सी या उसके रंग के साथ सहज नहीं महसूस कर पा रही थीं, और वे उसी ब्रांड के साथ चिपकी रहीं, जिसके साथ खेलने की वे अभ्यस्त थीं। निश्चित रूप से इस पर विवाद भी छिड़ा। लेकिन तब, न तो भारतीय बैडमिंटन संघ और न ही आईओए ने ही सिन्धु को इस बात के लिए प्रतिबंधित किया। भला वे ऐसा कर भी कैसे सकते थे? वे रियो में पदक जीतने वाले दो एथलीटों में से एक थीं। यहां पर फर्क यह है कि तब सिंधु ने रजत पदक जीता था। निश्चित रूप से यही बात है। फोगाट के अपराधों को भी नजरअंदाज कर दिया जाता यदि उन्होंने भी कोई पदक जीता होता। फोगाट अपने 53 किलोग्राम वर्ग के क्वार्टरफाइनल मुकाबले में हार गईं और न ही उन्हें कांस्य पदक के लिए रेपेचेज में ही कोई दूसरा मौका मिल सका।

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आइये अब मलिक के मामले पर भी गौर करते हैं, उनका जो अपराध है और जो सजा उन्हें मिली है, वह पूरी तरह से अविवेकपूर्ण है। जब अधिकारियों ने मलिक के लिए टोक्यो यात्रा के लिए वीजा और मान्यता दे दी, तो उन्हें नई दिल्ली स्थित डब्ल्यूएफआई कार्यालय से पासपोर्ट लेने के लिए कहा गया। 

कोविड-19 प्रतिबंधों एवं निजी सुरक्षा के मद्देनजर (एथलीटों को अंतिम क्षण में संक्रमण से बचने के लिए कड़े क्वारंटाइन नियमों में बने रहने की हिदायत, जो कि खुद खेल के नियमों के अनुरूप है), मलिक के पास अपने यात्रा दस्तावेजों को इकट्ठा करने के लिए किसी अन्य की मदद लेने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। उन्होंने कथित तौर पर इसके लिए भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के एक अधिकारी का सहारा लिया। इस कृत्य को अहंकार और अनुशासनहीनता के तौर पर देखा गया, और डब्ल्यूएफआई, 62 किलोग्राम वर्ग में प्रतिस्पर्धा करने वाली इस 19 वर्षीय पहलवान पर बुरी तरह से टूट पड़ी।

कल्पना कीजिये इस युवा पहलवान उस पल किस दौर से गुजर रही होगी। मलिक अपने मुकाबले से पहले ही हार गईं, वे निश्चित तौर पर इससे दुखी हुईं होंगी। और वे इस सीख के साथ और अपने खेल में सुधार लाने और अगले खेलों पर अपने लक्ष्य को केंद्रित करने के इरादे के साथ घर वापस लौटीं, तब तक उन पर कमजोर तर्क के आधार पर प्रतिबंध लागू कर दिए गए हैं।

इस तरह के एक्शन लेने से पहले हमें इन दोनों खिलाड़ियों की उन यात्राओं को भी याद रखना चाहिए जो इन दो पहलवानों ने अपने इस मुकाम तक पहुँचने के लिए की हैं। ओलंपिक खिलाड़ी होना ही अपने आप में एक महत्वपूर्ण उप्लब्धि है, जिसे मौजूदा डब्ल्यूएफआई अध्यक्ष, बृज भूषण शरण सिंह, शायद ही कभी समझ पाएं। बृज भूषण ने खुद कभी कुश्ती नहीं लड़ी। वे डब्ल्यूएफआई के पद पर अपनी राजनीतिक उपलब्धियों की वजह से बने हुए हैं, वह भी सत्तारूढ़ दल भाजपा के एक सांसद होने के नाते।

प्रतिबन्ध लगाते समय डब्ल्यूएफआई की ओर से जो कारण गिनाये गए (फेडरेशन की अनुशासन समिति की ओर से कार्यवाई को अंतिम रूप दने से पहले पहलवानों को 16 अगस्त तक का समय दिया गया है) वो एक बड़े मुद्दे की ओर भी संकेत देता है। ऐसा प्रतीत होता है कि इन दो दृष्टान्तों का मकसद डब्ल्यूएफआई नीतिनिर्धारकों के अहं को तुष्ट करने का है।

टोक्यो खेलों से कुछ हफ्ते पहले ही, डब्ल्यूएफआई के एक शीर्ष अधिकारी ने ओलंपिक खेलों में भारतीय पदक की उम्म्मीदों पर मुझसे बातचीत की थी। उन्होंने वस्तुतः फोगाट को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया था, कि वह “अड़ियल” है, अब जब पीछे मुड़ कर देखते हैं तो, इस प्रतिबंध को देखते हुए, ऐसा प्रतीत होता है कि डब्ल्यूएफआई फोगाट के विफल होने का इंतजार कर रहा था। यदि फेडरेशन को इस बात का आभास था कि फोगाट की तैयारी पूरी तरह से ठीक नहीं है, तो उसे एक संचालक निकाय के तौर पर हस्तक्षेप करना चाहिए था। लेकिन इसके बजाए उसने इंतजार करना चुना, और उसे विफल होते देखते रहे। फिर, उसकी विफलता के कारणों की पड़ताल करने और मार्ग में सुधार लाने के लिए इसका विश्लेषण करने के बजाय (26 वर्षीया फोगाट अभी भी खेलों में भाग लेने के लिए पर्याप्त युवा हैं, संभवतः दो बार भी), फेडरेशन ने उन्हें नीचा दिखाने के लिए एक अभियान छेड़ दिया है।

इस बात की भी संभावना है कि डब्ल्यूएफआई अपनी कमियों को छिपाने के लिए ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहा है। खेलों से दो पदक हासिल करना अच्छा है, और कुश्ती वैसे भी भारत का सबसे सफल क्षेत्र रहा है। लेकिन, दो निश्चित पदक भी हम इस बीच हार गए और इसके अन्य कारण हैं, अनुशासनहीनता उनमें से एक नहीं है।

फोगाट और मलिक पर लगे प्रतिबन्ध बदले की कार्यवाई लगते हैं, फेडरेशन इन दो पहलवानों को एक मिसाल के तौर पर दिखाने की कोशिश में है, जो इस बात को सुनिश्चित करता है कि खेलों में असहमति एक परंपरा नहीं हो सकती, सच में, ये नया भारत है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Vinesh Phogat and Sonam Malik’s Nonsensical Suspensions a Way for WFI to Regain Control

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