ख़बरों के आगे-पीछे: हरियाणा से सबक़ लिया राहुल ने!
(फ़ाइल फ़ोटो) राहुल गांधी (बाएं), शरद पवार (मध्य), उद्धव ठाकरे (दाएं)
एलन मस्क को नाराज़ नहीं करेगी मोदी सरकार
दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति और सेटेलाइट इंटरनेट सेवा देने वाली कंपनी स्पेसएक्स के मालिक एलन मस्क ने भारत की चुनाव प्रक्रिया पर एक बार फिर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को हैक करना बहुत आसान है। अमेरिका में एक टाउन हॉल कार्यक्रम के दौरान एलन मस्क ने कहा, ''मेरे विचार से कागजी मतपत्र ही सबसे भरोसेमंद है। मैं एक प्रौद्योगिकीविद् हूं और कंप्यूटर के बारे में बहुत कुछ जानता हूं। इसलिए मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि ईवीएम को हैक करना बहुत आसान है।’’ एलन मस्क के इस बयान ने भारत की मोदी सरकार को बेहद असहज कर दिया है। भारत में पिछले कुछ सालों से चुनाव प्रक्रिया संदेह के घेरे में है और ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं। लेकिन मोदी सरकार ईवीएम पर हठयोग की मुद्रा में है। चुनाव आयोग और न्यायपालिका भी ईवीएम को बेहद पवित्र गाय की तरह मानती है। बहरहाल एलन मस्क के बयान को भारत में होने वाले सैटेलाइट ब्राडबैंड स्पेक्ट्रम के आबंटन से जोड़ कर भी देखा जा रहा है। दरअसल एलन मस्क भारत में सैटेलाइट ब्राडबैंड सेवा शुरू करना चाहते हैं। माना जा रहा है कि भारत सरकार पर दबाव बनाने के मकसद से ही उन्होंने ईवीएम पर बयान दिया है। इधर भारत में रिलायंस जियो और भारती एयरटेल भी स्पेक्ट्रम हासिल करना चाहती हैं। लेकिन लगता है कि मोदी सरकार अपने ईवीएम प्रेम के चलते एलन मस्क को नाराज करने का जोखिम नहीं उठाएगी।
गंभीर सवाल पर कांग्रेस इतनी अगंभीर क्यों?
कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने हरियाणा के चुनाव नतीजों को अस्वीकार कर दिया। जयराम रमेश और पवन खेड़ा ने कहा कि भाजपा ने हेरफ़ेर के जरिए जीत हासिल की है। मगर हरियाणा में पार्टी दो दिग्गज नेताओं- भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा ने कांग्रेस की हार को स्वीकार किया है। हुड्डा ने कहा है कि 'विरोध जताते हुए’ वे इसे स्वीकार कर रहे जबकि शैलजा ने हार का पूरा ठीकरा प्रदेश इकाई के सिर फोड़ा है। उधर कर्नाटक के प्रमुख नेता डीके शिवकुमार ने भी 'हरियाणा के जनादेश को स्वीकार’ किया है। इसलिए भ्रम पैदा हुआ है कि हरियाणा के चुनाव परिणाम पर पार्टी की असल राय क्या है? इसमें कोई शक नहीं है कि भारत में निष्पक्ष चुनाव नहीं हो रहे है। पैसा, प्रचार तंत्र, और निर्वाचन आयोग जैसी निर्णायक संस्थाओं के एक पार्टी की तरफ पूरे झुकाव ने प्रतिस्पर्धा का समान धरातल नहीं रहने दिया है। लोकसभा चुनाव के बाद वोट फॉर डेमोक्रेसी नामक एक एनजीओ ने अपनी अध्ययन रिपोर्ट में भी यह तथ्य शिद्दत से उभर कर आया है। मगर कांग्रेस पार्टी ने ऐसे सवालों को कभी-कभार ही उठाया है। उसने कभी इसे पूरी शिद्दत से नहीं उठाया, ना ही इनको लेकर कभी सुसंगत एवं निरंतर जन अभियान चलाया है। अभी भी ऐसा नहीं लगता कि इस मुद्दे पर पार्टी के अंदर कोई गंभीर विचार-विमर्श हुआ है या उसका इरादा इसे जनता के बीच ले जाने का है। गंभीर सवाल पर अगंभीर नजरिया अनुचित है। इससे चुनाव प्रणाली की साख पर तो सवाल उठेंगे ही, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव से संबंधित व्यापक सवाल भी कमजोर होंगे।
राहुल गांधी के ख़िलाफ़ मूर्खतापूर्ण शिगूफ़ा
लगता है भाजपा में शीर्ष नेतृत्व की निगाह में चढ़ने के लिए पार्टी के नेताओं का मूर्ख होना या मूर्ख दिखना अनिवार्य हो गया है। यही वजह है कि पार्टी के नेताओं ने एक अजीब बहस शुरू कर दी, जो बाद में सोशल मीडिया में भी खूब फैल गई। भाजपा नेताओं ने यह शिगूफा छोड़ा है कि विपक्ष की पार्टियां लोकसभा में नेता विपक्ष के रूप में राहुल गांधी के कामकाज और उनके प्रदर्शन से खुश नहीं है और नेता प्रतिपक्ष बदलना चाहती हैं। सवाल है कि क्या भाजपा नेताओं को यह मालूम नहीं है कि कांग्रेस लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है और उसके नेता के नाते राहुल गांधी को नेता विपक्ष पद मिला है, न कि विपक्षी गठबंधन ने उन्हें नेता चुना है? अगर विपक्षी गठबंधन की बाकी सारी पार्टियां भी एकजुट हो जाएं और राहुल को नेता विपक्ष के पद से हटाना चाहे तो यह संभव नहीं है। हां, सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी किसी वजह से चाहे तो नेता बदल सकती है। यह सामान्य सी बात तो सबको पता होती है। फिर भी भाजपा नेताओं ने इसका प्रचार किया। हैरानी की बात है कि विदेश से कानून की पढ़ाई करने और लंबे समय तक वकालत करने के बाद भाजपा की सांसद बनी बांसुरी स्वराज ने भी यह बात कही। भाजपा के तमाम नेता प्रचार कर रहे हैं कि गैर कांग्रेस विपक्षी पार्टियां चाहती हैं कि विभिन्न विपक्षी पार्टियों के नेता बारी-बारी से नेता विपक्ष का पद संभाले। इससे ज्यादा मूर्खतापूर्ण बात क्या हो सकती है?
हरियाणा से सबक़ लिया राहुल ने
हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार से सबक लेते हुए राहुल गांधी ने महाराष्ट्र के कांग्रेस नेताओं को आगाह किया है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को लेकर वे जीत के अति आत्म-विश्वास में न रहें। दरअसल हरियाणा में जिस मुगालते में पार्टी नज़र आई, उसका शुरू से ही कोई आधार नहीं था। लोकसभा चुनाव में भाजपा जरूर ढलान पर नजर आई, फिर भी उसे कांग्रेस से दो फीसदी ज्यादा यानी 46 फीसदी वोट हासिल हुए थे। सीटें जरूर दोनों पार्टियों को पांच-पांच मिल गई थीं। फिर भी कांग्रेस ने जमीनी तैयारी के बजाय सोशल मीडिया में अपने समर्थकों के बनाए माहौल पर ज्यादा भरोसा किया। दूसरी तरफ भाजपा ने जातीय समीकरण एवं चुनाव प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया। नतीजा सामने है। महाराष्ट्र के लोकसभा चुनाव नतीजों पर भी गौर करें तो भाजपा नेतृत्व वाली महायुति को लगभग 44 फीसदी वोट मिले थे। कांग्रेस-शिवसेना-एनसीपी (शरद पवार) की महा विकास अघाड़ी के हिस्से में भी लगभग इतने वोट ही आए थे। अघाड़ी ने सीटें जरूर 30 जीतीं, जबकि महायुति की झोली में 17 सीटें ही आईं। इससे महायुति की बड़ी हार की धारणा बनना लाजिमी है, लेकिन उसी सोच के साथ विधानसभा चुनाव में उतरना आत्मघाती हो सकता है। वैसे भी लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र की महायुति सरकार ने जातीय समीकरण साधने और 'रेवड़ी’ बांट कर अपने लिए वोट जुटाने की प्रभावशाली कोशिश की है। दरअसल, राहुल ने जो सलाह महाराष्ट्र अपनी पार्टी के नेताओं दी है, ऐसी ही सलाह उन्हें झारखंड में अपने गठबंधन सहयोगियों को भी देना चाहिए, क्योंकि वहां भी हरियाणा जैसी हालत है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 14 में से आठ सीटें जीतीं, लेकिन 2019 की तुलना में उसकी चार सीटें घटीं। इस कारण उसकी हार की धारणा बनी। जबकि उसे लगभग 45 फीसदी वोट मिले, जबकि इंडिया गठबंधन की झोली में बमुश्किल 39 प्रतिशत वोट गिरे। मतलब यह कि दोनों राज्यों में मुकाबला बराबरी का है। इसलिए कारगर रणनीति के बजाय माहौल पर निर्भर रहना आत्मघाती साबित होगा।
योगी को जेपी से समस्या या अखिलेश से?
यह बात किसी को समझ में नहीं आई कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को जयप्रकाश नारायण की जयंती का समारोह क्यों नहीं मनाने देती है? पिछले साल बड़ा ड्रामा हुआ था। अखिलेश यादव किसी तरह से दीवार फांद कर जयप्रकाश नारायण के स्मारक पर पहुंचे थे और माल्यार्पण किया था। इस साल भी राज्य सरकार ने 11 अक्टूबर को जयप्रकाश नारायण की जयंती से पहले अखिलेश यादव के सरकारी आवास के सामने चारों तरफ बैरिकेड्स लगा दिए गए और पुलिस तैनात कर दी गई ताकि अखिलेश जेपी को श्रद्धांजलि देने नहीं जा सके। पुलिस ने इसका जो कारण बताया वह बेहद हास्यास्पद है। कहा गया कि स्मारक की सफाई नहीं हुई और बरसात की वजह से वहां कीड़े मकोड़े होंगे, जिससे नेता विपक्ष को खतरा हो सकता है। बहरहाल, अगर स्मारक की सफाई नहीं हुई तो सवाल है कि जिन जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से देश मे पहली गैर कांग्रेस सरकार बनी या अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेता केंद्र में मंत्री बने, उनकी जयंती से पहले स्मारक की सफाई क्यों नहीं हुई? क्या उत्तर प्रदेश की सरकार स्वतंत्रता सेनानी जेपी को महापुरुष नहीं मानती है? यह तथ्य भी दिलचस्प है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर योगी आदित्यनाथ के और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के दो अकाउंट है और उनसे भी जेपी को श्रद्धांजलि नहीं दी गई। इसी बहाने अखिलेश यादव ने नीतीश कुमार को चुनौती दी है कि वे भाजपा से नाता तोड़ें।
प्रदूषण रोकने के लिए बेसिर पैर के उपाय
दिल्ली सरकार वायु प्रदूषण रोकने के लिए कितनी अगंभीर है, इसका अंदाजा पटाखों पर पाबंदी के नियमों को देख कर हो जाता है। दिल्ली सरकार ने सितंबर में ही पटाखों पर पाबंदी का ऐलान कर दिया था लेकिन इसकी अधिसूचना जारी नहीं की थी। वह दशहरा बीतने का इंतजार कर रही थी ताकि रावण के पुतले जलाने में पटाखों का इस्तेमाल होने में कोई बाधा नहीं आए। दशहरे के दिन दिल्ली में खूब पटाखे फूटे और वायु गुणवत्ता सूचकांक में चार गुना गिरावट आई। फिर इसके दो दिन बाद 14 अक्टूबर को दिल्ली सरकार ने पटाखों पर पाबंदी की अधिसूचना जारी कर दी। ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान यानी ग्रैप का पहला चरण भी लागू कर दिया गया है और वन व पर्यावरण मंत्री गोपाल राय घूम-घूम कर निर्माण गतिविधियों वाली साइट पर जुर्माना लगा रहे हैं। यह सब दिखावा है, जिसका मकसद लोगों के साथ साथ न्याय़पालिका को यह बताना है कि राज्य सरकार कुछ कर रही है। हकीकत यह है कि राज्य सरकार को किसी तरह से दो ढाई महीने का समय काटना है। इसीलिए ऑड ईवन लागू करने और एक नए शिगूफे के तौर पर कन्जेशन टैक्स यानी बाहर से गाड़ियों के प्रवेश पर या ज्यादा गाड़ियां होने पर टैक्स लगाने के उपाय की चर्चा हो रही है। असल में दिल्ली सरकार ने पूरे साल वायु प्रदूषण को लेकर कुछ नहीं किया है। इसलिए अब प्रदूषण का समय आया तो कुछ करते हुए दिखना चाह रही है।
दिल्ली में मुख्यमंत्री के बंगले का रहस्य
दिल्ली के सिविल लाइंस में छह, फ्लैग स्टाफ रोड बंगले का पूरा रहस्य क्या कभी सामने आ पाएगा? दो दिन के लिए यह बंगला लोक निर्माण विभाग ने अपने कब्जे में लिया तो एक बड़ा रहस्य खुल गया। पता चला है कि इस कैम्पस में स्थित दो अन्य बंगले पूरी तरह से सही सलामत हैं, जिनके बारे में पहले खबर आई थी कि उन्हे तोड़ कर मुख्यमंत्री के बंगले में मिला दिया गया है। असल में अरविंद केजरीवाल ने चार अक्टूबर को छह, फ्लैग स्टाफ रोड़ का बंगला खाली किया और उसके दो दिन बाद नई मुख्यमंत्री आतिशी इस बंगले में रहने पहुंचीं तो प्रक्रियागत खामियों के आधार पर उनसे यह बंगला खाली करा लिया गया और पीडब्लुडी ने इसे अपने कब्जे में ले लिया। अब पीडब्लुडी के अधिकारियों ने बताया है कि आठ ए और आठ बी नंबर के बंगले सही सलामत हैं। हैरानी की बात है कि यह पीडब्लुडी की प्रॉपर्टी है और उसे ही पता नहीं था कि ये दोनो बंगले हैं या तोड़ दिए गए। जब पीडब्लुडी के अधिकारी मुख्यमंत्री के बंगले में घुसे तब पता चला कि ये बंगले सलामत हैं। भाजपा के नेताओं को भी सही जानकारी नहीं थी। वे आरोप लगा रहे थे कि बंगले तोड़ दिए गए। मुख्यमंत्री आवास में आने-जाने वाले नेताओं ने भी इस पर कोई सफाई नहीं दी। अब फिर से बंगला आतिशी को आबंटित हो गया है तो कम से कम अगले चुनाव तक तो किसी रहस्य का खुलासा नहीं होने वाला है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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