पाकिस्तान में अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे 300 छात्रों पर राजद्रोह का मुकदमा
पाकिस्तान में शिक्षा के निजीकरण और छात्रसंघ की बहाली के लिए प्रदर्शन कर रहे लगभग 300 छात्रों पर राजद्रोह का मुकदम दर्ज किया गया है। पाकिस्तान की पुलिस का कहना है कि उसने सैकड़ों छात्रों और कार्यकर्ताओं पर विश्वविद्यालयों में राजनीतिक गतिविधि पर प्रतिबंध हटाने की मांग के विरोध के दौरान पाकिस्तानी सेना के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की है। इसलिए उन छात्रों पर राजद्रोह का आरोप लगाया है।
We have been nominated in an FIR. We met Governor who assured us of support. Ministers tweeted in our support. Protestors gathered & dispersed peacefully.
Do we even have a govt in our country? Can we trust anybody's words?
We are peaceful citizens & will remain undeterred. pic.twitter.com/KiixJt1uRj
— Ammar Ali Jan (@ammaralijan) December 1, 2019
हालांकि, पश्तून तहफ्फुज आंदोलन से जुड़े लोगों में से एक, आलमगीर वजीर को 1 दिसंबर को गिरफ्तार किया गया था और पुलिस ने अदालत से 10 दिन के फिजिकल रिमांड यानी पुलिस हिरासत की माँग की थी जिसे अदालत ने खारिज कर दिया और उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया ।
सरकार की ओर से सिविल लाइंस पुलिस द्वारा दर्ज पहली सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) में, इन छात्रों के नाम दर्ज हैं: मोहम्मद शब्बीर, कामिल खान, अम्मार अली जान, फारूक तारिक और इकबाल लाला, जो मशाल खान के पिता हैं , जिनको 23 वर्षीय की उम्र में अप्रैल 2017 में ईश निंदा के आरोप में मौत की सजा दी गई थी।
पख्तून काउंसिल के कार्यवाहक अध्यक्ष, आलमगीर वजीर पंजाब विश्वविद्यालय के छात्रावास में ठहरे हुए थे। जब उनको हिरासत में लिया गया था। पख्तून काउंसिल से जुड़े छात्रों ने एक बयान जारी कर इसकी निंदा की हैं।
रविवार को हिरासत में लेने के बाद, आलमगीर को कैंट कचहरी में पेश किया गया, जहां पुलिस अधिकारियों द्वारा यह बताने के बावजूद कि इस छात्र ने राज्य विरोधी भाषण दिया और साउंड सिस्टम एक्ट का उल्लंघन किया है, अदालत ने पुलिस रिमांड की मांग को रद्द कर दिया।
एक तरफ, प्रधानमंत्री इमरान खान और पूर्व वित्त मंत्री असद उमर के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ सरकार ने वर्तमान सरकार की ओर से पाकिस्तान भर में छात्र संघों पर लगाए गए प्रतिबंधों को बहाल करने के लिए किए गए संशोधनों की योजनाओं पर संकेत दिया है। जैसे सिंध प्रांत में, जहां 2 दिसंबर को सरकार द्वारा छात्र संघों पर प्रतिबंध हटा दिया गया है।
दूसरी ओर, पुलिस और विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा की गई राज्य कार्रवाई ने आश्चर्यचकित कर दिया है।
प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ता जिब्रान नासिर ने कहा, "डिग्री रद्द करने से लेकर कैंपस से अपहरण करने के लिए छात्रों पर राष्ट्रद्रोह के आरोपों के तहत मुकदमा दर्ज किया जा रहा है।
देश के प्रधानमंत्री इमरान खान का भी ट्वीट आया था। जिसमे उन्होंने भी छात्रसंघ को पुनः बहाल करने की मांग समर्थन किया हैं। इसके बाद ट्वीटर पर कई लोगों ने सवाल किया की फिर उनकी पुलिस यही मांग कर रहे छात्रों पर राजद्रोह का मुकदमा क्यों दर्ज कर रही हैं। ऐसे ही एक यूजर अम्मार अली ने ट्वीट किया। उन्होंने मजाकिया तर्ज पर लिखा की 'आप छात्रसंघ का समर्थन करते समय सवधान रहें। इस सरकार ने उन लोगों के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया है जो छात्र एकजुटता रैली में शामिल हुए थे। एक छात्र को तो पंजाब यूनिवर्सिटी से अगवा भी कर लिया गया हैं '
Sir, please be careful before supporting student unions.
The government has launched sedition charges against participants of the #StudentsSolidarityMarch. One student was abducted from Punjab University last night.
Praying for your safety. #ReleaseAlamgirWazir https://t.co/JT0X6g0BWn
— Ammar Ali Jan (@ammaralijan) December 1, 2019
भारत में भी इन दिनों छात्र अंदोलन चल रहे हैं, यहां भी सरकार अंदोलन को कुचलने के लिए पुलिया दमन का सहारा लेती रही है। वर्तमान में जेएनयू इसका उदहारण जहाँ ऐसा लगता है की सरकार ने अपनी सीधी लड़ाई जेएनयू के साथ शुरू कर दी है। सीमा के इस पार और उस पार दोनों तरफ की स्थतियाँ शिक्षा और छात्रों के प्रतिकूल ही लगती हैं।
इन सब स्थतियों को देखकर कुछ सालों पहले पाकिस्तान की मशहूर शायरा फहमीदा रियाज़ की पंक्तियां याद आती हैं जो उन्होंने भारत के हाल को देखते हुए लिखी थी।
तुम तो हम जैसे ही निकले अब तक कहां छुपे थे भाई!
वो मूर्खता, वो घामड़पन जिसमें हमने सदी गंवाई !!
ये पंक्तियां अब पाकिस्तान पर भी फिट बैठती हैं। जहां अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे छात्रों पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया जा रहा है।
वामपंथी छात्र संगठनों द्वारा पिछले महीने छात्रों से एकजुटता मार्च का आह्वान किया गया था। इन संगठनों में प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स कलेक्टिव(पीएससी), प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स फेडरेशन(पीआरएसएप) और रिवोल्यूशनरी स्टूडेंट्स फ्रंट (आरएसएफ) शामिल थे। इन संगठनों ने विश्वविद्यालयों में छात्र संघों पर तीन दशक पुराने प्रतिबंध को हटाने और शिक्षा के निजीकरण को समाप्त करने की मांग की। पाकिस्तानी छात्रों के पास कई दशक से छात्र संघ जैसी संस्था भी मौजूद नहीं है।
दरअसल 1984 में जिया उल हक की सरकार ने छात्र संघ चुनाव पर बैन लगा दिया था। बेहतर शिक्षा और छात्र संघ जैसे जनवादी अधिकार की मांग को लेकर छात्र सड़कों पर हैं।
29 नवंबर को पाकिस्तान के 50 शहरों में ‘स्टूडेंट साॅलीडेरिटी मार्च’ का आयोजन किया। इस मार्च में हजारों छात्रों के साथ-साथ मजदूर संगठनों, किसान संगठनों, वकीलों, नागरिकों ने भी शिक्षा को बचाने के हक में आवाज उठायी। हिंदुस्तान के भी कई छात्रों ने इसका समर्थन किया छात्र संगठन परिवर्तनगामी छात्र संगठन (पछास) ने भी इसको लेकर पर्चा निकला जिसमे कहा कि पाकिस्तान की इमरान सरकार को छात्र और नौजवान की एकता नागवार गुजरी। बिल्कुल वैसे ही जैसे हमारे देश की मोदी सरकार को छात्रों की मांगे नागवार गुजरती है। कितनी समानता है न दोनों देश के शासकों में!
आगे वो कहते है समानता यहीं खत्म नही होती। आपको याद होगा कि JNU, FTII, पंजाब यूनिवर्सीटी के छात्रों द्वारा फीस वृद्धि और सरकार का विरोध करने पर उन पर भी ‘देशद्रोह’ का तमगा लगाया गया था। इस बार इमरान सरकार ने मोदी सरकार से सीखते हुए मार्च निकालने वाले अपने देश के छात्रों पर ‘देशद्रोह’ का मुकदमा दर्ज करवा दिया। छात्रों और जनता की आवाज को दबाने में दोनों देश के शासकों में कितनी समानता है न! और इतनी ही समानता दोनों देश के छात्रों और मेहनतकशों की जिंदगी में है। हम भी शिक्षा को बिकते हुए देख रहे हैं और वो भी। वो भी मेहनतकशों को मरते हुए देख रहे हैं और हम भी। दोनों देशों के शासक एक जैसे मालामाल हैं और दोनों देश की जनता खस्ताहाल।
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अपने बयान के अंत में वो कहते है कि इसलिए पाकिस्तान के छात्रों और इंसाफ पसंद लोगों, एक बेहतर भविष्य के लिए तुम अपने शासकों से लड़ो हम अपने शासकों से लड़ेंगे।
(अंतर्राष्ट्रीय समाचार पोर्टल पीपल्स डिस्पैच के इनपुट के साथ)
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