"सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है...": पाकिस्तान में छात्रों का ऐतिहासिक मार्च
"सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर की कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।" शुक्रवार 29 नवंबर को पूरा पाकिस्तान इस क्रांतिकारी शेर से गूंज गया। इसे साल 1921 में बिस्मिल अज़ीमाबादी ने लिखा था। पूरे पाकिस्तान में छात्रों ने इस शेर को गुनगुनाते हुए अपने अधिकारों के लिए देश भर में मार्च किया।
वामपंथी छात्र संगठनों द्वारा पिछले महीने छात्रों से एकजुटता मार्च का आह्वान किया गया था। इन संगठनों में प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स कलेक्टिव(पीएससी), प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स फेडरेशन(पीआरएसएप) और रिवोल्यूशनरी स्टूडेंट्स फ्रंट (आरएसएफ) शामिल थे। इन संगठनों ने विश्वविद्यालयों में छात्र संघों पर तीन दशक पुराने प्रतिबंध को हटाने और शिक्षा के निजीकरण को समाप्त करने की मांग की।
नेशनल स्टूडेंट्स फ़्रंट (एनएसएफ़) के अरसलाम भुट्टो ने पीपल्स डिस्पैच से बात करते हुए कहा, “हम पूरी तरह फ़ीस वृद्धि के ख़िलाफ़ हैं और छात्र संघों के गठन के अधिकार की मांग कर रहे हैं। छात्रों कीयूनियनें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता चाहती हैंजिससे सरकार डरती है।” भुट्टो ने कहा कि "सरकार झूठ फैला रही है कि यूनियनें हिंसा पैदा करती हैं।"
उनकी लामबंदी को राष्ट्रीय स्तर पर अपनाया गया और कई और छात्र संगठनों, ट्रेड यूनियनों और सिविल सोसाइटी के सदस्यों ने छात्रों के इस मार्च के साथ अपनी एकजुटता बढ़ानी शुरू की।
कराची की एक छात्रा सहर ने पीपल्स डिस्पैच से बात करते हुए कहा कि वे इस मार्च में इसलिए शामिल हुईं क्योंकि "निजी विश्वविद्यालय अपनी फीस बढ़ाते रहते हैं और सरकार इसके ख़िलाफ़ बोलने वाले छात्रों की आवाज़ को दबाने के अलावा कुछ नहीं कर रही है।"
Jub laal laal lehraay ga#StudentsSolidarityMarch pic.twitter.com/7lLtX2LH5L
— Salman Sikandar ☭ (@salmansikanda12) November 29, 2019
शुक्रवार के मार्च में भारी संख्या में छात्र शामिल हुए जो अभूतपूर्व था। ये मार्च न केवल संख्या के मामले में बल्कि व्यापकता के मामले में भी काफी अहम था। पाकिस्तान के सबसे दूरदराज के इलाक़ों में विश्वविद्यालय के छात्रों ने इस छात्र एकता मार्च में हिस्सा लिया। एक्टिविस्ट का कहना है कि 40 से अधिक शहरों में इस मार्च में छात्र बड़ी संख्या में शामिल हुए।
दुनिया भर में छात्र नवउदारवाद और अधिकार के उदय के खिलाफ लामबंदी के मोर्चे पर रहे हैं। राजधानी इस्लामाबाद में मार्च के दौरान एक बैनर में लिखा था, "दुनिया के छात्र एकजुट हों,आपके पास क़र्ज, ऋण और निजीकरण के अलावा खोने के लिए कुछ भी नहीं है।"
छात्रों की आवाज़ दबाना
साल 1984 में पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक द्वारा तानाशाही के ख़िलाफ़ प्रतिरोध को दबाने के प्रयास में छात्र संघों पर प्रतिबंध लगाया गया था। छात्र और कार्यकर्ता ज़िया-उल-हक की इस क्रूर शासन व्यवस्था के ख़िलाफ़ संघर्ष में सबसे आगे थे। इस प्रतिबंध को 1988 में प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो द्वारा हटाया गया था लेकिन उच्चतम न्यायालय ने1993 में प्रतिबंध को फिर से लागू कर दिया। उत्तरवर्ती सरकारों ने इस प्रतिबंध का इस्तेमाल सभी के लिए शिक्षा की मांग करने वाले छात्रों की आवाज़ को दबाने के लिए किया है लेकिन आज छात्र खड़े हो रहे हैं।
शुक्रवार के मार्च में शामिल हुए एक प्रतिभागी ने कहा कि उनके लिए छात्र संघ नर्सरी की तरह हैं जो छात्रों को गंभीर रूप से सोचने और राय विकसित करने की क्षमता को बढ़ाते हैं। परिसरों पर होने वाली हिंसा छात्रों द्वारा आयोजित राजनीतिक गतिविधियों के कारण नहीं होती है बल्कि क्रूर विचारधाराओं की प्रमुखता के कारण है जो आलोचनात्मक सोच को दबाने में विश्वास करती है।
देश भर में छात्र एकजुटता मार्च ने मशाल खान और अन्य छात्रों को श्रद्धांजलि दी जिन्होंने प्रगतिशील पाकिस्तान के लिए लड़ते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया। 13 अप्रैल 2017 को23 वर्षीय वामपंथी छात्र मशाल पर खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत में अब्दुल वली खान विश्वविद्यालय मर्दन के भीतर दक्षिणपंथी इस्लामवादियों की भीड़ द्वारा हमला किया गया था और बेरहमी से मार दिया गया था। उन पर छात्रावास में धर्म पर बहस के बाद ईशनिंदा का आरोप लगाया गया था।
मशाल के पिता लाला इक़बाल ने भी छात्रों के साथ अपनी एकजुटता दिखाने और अपने बेटे के लिए लाहौर में आयोजित इस मार्च में शामिल हुए। उनके बेटे ने छात्रों के मुद्दे को लेकर अपनी जान गंवा दी थी। जैसे ही उनके पिता इस मार्च में शामिल हुए उनकी आंखों में आंसू भर गए और छात्रों ने नारा लगाना शुरू कर दिया। छात्रों ने “मशाल खान को ला सलाम। मशाल तेरा मिशन अधूरा, हम सब मिल के करेंगे पूरा” का नारा लगाया।
ये छात्र मशाल खान को श्रद्धांजलि देने के लिए13 अप्रैल को सार्वजनिक अवकाश घोषित करने की मांग कर रहे हैं।
कार्यकर्ता और छात्र एकजुट हुए
शिक्षा क्षेत्र, ट्रेड यूनियनों, पेशेवर संगठनों और नागरिक समाज के सैकड़ों लोग फीस वृद्धि और निजीकरण से आज़ादी की मांग करते हुए इस मार्च में शामिल हुए।
पीपल्स डिस्पैच से बात करते हुए मज़दूर किसान पार्टी (एमकेपी) के छात्र विंग के सदस्य वक़ार ने कहा, "हम जैसे छात्र और कार्यकर्ता निजीकरण की व्यवस्था के ख़िलाफ़ एकजुट हैं,और हम देखेंगे कि वे [कुलीन वर्ग] किस तरह हमारे विरोध को रोकेंगे।"
वकार कहते हैं, "एक दिन छात्रों और श्रमिकों की यह लहर अमीरों और कुलीनों को पटखनी देगी और मज़दूर वर्ग और ग़रीबों की सत्ता को स्थापित करेगी।"
ये छात्र शिक्षा के लिए कुल जीडीपी के कम से कम 5% आवंटन और परिसरों से सेनाओं को हटाने की भी मांग कर रहे हैं। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियां उन छात्रों और कार्यकर्ताओं के अपहरण के लिए कुख्यात हैं जो सरकार और सेना की नीतियों के ख़िलाफ़ अपना असंतोष व्यक्त करते हैं।
छात्रों ने बताया कि पाकिस्तान में शिक्षा हमेशा अमीरों के लिए रही है लेकिन इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) की नई सरकार की नीतियों ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है और उच्च शिक्षा ग़रीबों के लिए और भी दुर्गम हो गई है। 11 जून 2019 को घोषित बजट में सरकार ने उच्च शिक्षा विकास बजट में 37% की भारी कटौती की।
सभी तस्वीरें ख़ालिद महमूद द्वारा ली गई हैं।
सौजन्य: पीपल्स डिस्पैच
अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
‘The Desire for Revolution is in Our Hearts’: Historic Students’ March in Pakistan
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