दुनिया भर की: कोलंबिया में पहली बार वामपंथी राष्ट्रपति बनने की संभावना
मध्य व दक्षिण अमेरिका में वामपंथ के नए सिरे से उदय के अगले कदम के तौर पर अब कोलंबिया में पहली बार एक वामपंथी राष्ट्रपति बनने की संभावना बन रही है। रविवार को वहां हुए मतदान में वामपंथी नेता और अपनी युवावस्था में गुर्रिल्ला संगठन एम-19 के सदस्य रहे गुस्तावो पेट्रो सबसे आगे रहे।
राजधानी बोगोटा के मेयर रह चुके पेट्रो को छह उम्मीदवारों में सबसे ज्यादा 40 फीसदी वोट मिले। मध्य व दक्षिण अमेरिका में कई देशों में प्रचलित चुनावी व्यवस्था के अनुरूप अब सबसे ज्यादा मत पाने वाले शीर्ष दो उम्मीदवारों में निर्णायक भिड़ंत होगी 19 जून को। अगर पेट्रो को पहले दौर में ही 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिल जाते तो वह राष्ट्रपति बन जाते और दूसरे दौर की जरूरत ही नहीं रहती। किसी भी उम्मीदवार को 50 फीसदी से ज्यादा वोट न मिलें तो फिर दूसरे दौर का मतदान होता है।
लैटिन अमेरिका में बदहाल आर्थिक स्थिति से नाराज लोगों ने हाल के कई चुनावों में वामपंथी सरकारों को चुना है। पिछले साल चिली, पेरु व होंडुरास में वामपंथी राष्ट्रति निर्वाचित हुए। मेक्सिको में पहले ही 2018 में वामपंथी राष्ट्रपति चुने गए थे। ब्राजील में भी इस साल चुनाव होने हैं और अब तक के संकेतों के अनुसार वहां भी वामपंथी रुझान वाले पूर्व राष्ट्रपति लुला दा सिल्वा रायशुमारियों में आगे चल रहे हैं। रविवार के मतदान को समझें तो कोलंबिया भी इसी दिशा में बढ़ रहा है।
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हालांकि पेट्रो का मुकाबला निर्णायक दौर में उस प्रत्याशी से नहीं होगा, जिससे होने के अनुमान तमाम विश्लेषणों में लगाए जा रहे थे। पेट्रो तो पिछले कई महीनों से तमाम रायशुमारियों में आगे ही चल रहे थे, लेकिन अनुमान यह था कि दूसरे दौर के सीधे मुकाबले में उनकी भिड़ंत मेडेलिन के पूर्व मेयर फेड्रिको गुतिएरेज से होगी। उन्हें सत्ता व्यवस्था की ही निरंतरता के दावेदार के तौर पर देखा जा रहा था, जाहिर था कि उनका रुख व्यवसायी वर्ग के हितैषी वाला और कथित आर्थिक विकास को बढ़ाने वाला था।
लेकिन मतदान से पहले के अंतिम दिनों में एक व्यवसायी रुडोल्फो हर्नांदेज़ ने अपनी चमकदार सोशल मीडिया छवि के आधार पर काफी लोकप्रियता हासिल कर ली और वह गुतिएरेज को पीछे छोड़कर रविवार के मतदान में 28.2 फीसदी वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहे। अब वह 19 जून को होने वाले रन-ऑफ में पेट्रो को चुनौती देंगे। हर्नांदेज़ भी बुकारामांगा शहर के मेयर रह चुके हैं। हर्नांदेज भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ने के नाम पर चुनाव लड़ रहे हैं हालांकि खुद उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के एक मामले की जांच चल रही है। हर्नांदेज की खास बात यही है कि वह किसी भी राजनीतिक धारा से ताल्लुक नहीं रखते हैं। प्रचार के दौरान उनकी छवि डोनाल्ड ट्रंप सरीखी सामने आई- अस्थिर व बड़बोली।
पेट्रो आर्थिक व सामाजिक व्यवस्था में बदलाव के एजेंडे पर मैदान में उतरे थे। खालिस वामपंथी एजेंडे के तौर पर उन्होंने पेंशन को फिर से बांटने, मुफ्त यूनिवर्सिटी शिक्षा उपलब्ध कराने, कर व्यवस्था सुधारने और सदियों से चली आ रही घोर असमानता को दूर करने के लिए काम करने के वादे किए थे। पहले दौर के नतीजों से साफ है कि कोलंबिया के लोग बदलाव चाहते हैं, यथास्थिति नहीं। इसके अलावा पेट्रो के प्रमुख वादों में कोलंबिया के ड्रग्स कार्टेल और पूर्व बागियों से निबटने के तरीके में खासा बदलाव लाना भी है। पेट्रो के पास अनुभव भी है।
पेट्रो ने 2016 में फार्क बागियों के साथ किए गए शांति समझौते को भी पूरी तरह से अमल में लाने का वादा किया है। फार्क यानी कि रिवोल्यूशनरी आर्म्ड फोर्सेज ऑफ कोलंबिया-पीपुल्स आर्मी एक मार्क्सवादी-लेनिनवादी गुर्रिल्ला संगठन था। शीत युद्ध के दिनों में इसकी शुरुआत श्रमिक दस्ते के तौर पर हुई थी। एम-19 व ईएलएन भी कोलंबिया में सक्रिय बाकी गुर्रिल्ला संगठनों में से थे।
गुस्तावो पेट्रो के एम-19 ने तो पिछली सदी के नौवें दशक में ही सशस्त्र बगावत का रास्ता छोड़कर राजनीतिक मुख्यधारा में प्रवेश कर लिया था। ईएलएन अब भी सक्रिय है, हालांकि उसका ज्यादा प्रभाव की नहीं रहा। लेकिन फार्क बहुत ताकतवर था और वह कुछ साल पहले तक सक्रिय रहा। यहां यह याद दिलाना जरूरी है कि 2016 में फार्क ने कोलंबिया की सरकार के साथ शांति समझौते पर रजामंदी दिखाई थी और फिर हवाना में समझौते पर दस्तखत किए गए थे। यही वह समझौता था जिसके चलते कोलंबिया के उस समय राष्ट्रपति रहे जुआन मैनुअल सांतोस को 2016 का नोबेल शांति पुरस्कार मिला था। समझौता कितना कारगर रहा, यह बहस का विषय हो सकता है, लेकिन फार्क का दौर उससे बेशक खत्म हो गया।
कोलंबिया के बारे में हमारी तरफ़ के लोगों की जानकारी सीमित है और जो है, वह फिल्मों व कतिपय पश्चिमी मीडिया की खबरों से है। उनमें कोलंबिया की सबसे बड़ी छवि ड्रग्स के गैरकानूनी धंधे के केंद्र के रूप में और ड्रग्स माफिया की आपसी जंग के लिए है। हालांकि कोलंबिया की राजनीतिक व सामाजिक व्यवस्था वैसी है नहीं जैसी दिखती है, वह काफी जटिल है। कोलंबिया के लोगों ने करीब 60 सालों तक इसका काफी हिंसक स्वरूप देखा है। वहां सभी लोग ड्रग्स के कारोबार का अपने-अपने हित में फायदा उठाते रहे हैं।
वहां वामपंथी गुर्रिल्ला संगठनों के अलावा दक्षिणपंथी अर्धसैनिक बल भी सक्रिय रहे हैं और खुद सरकार की भूमिका तो हमेशा से संदिग्ध रही है। कोलंबिया के नेशनल सेंटर फॉर हिस्टोरिकल मेमॉरी—जो एक सरकारी एजेंसी है—ने कुछ साल पहले अनुमान लगाया था कि वहां 1981 से लेकर 2012 तक के बीच नागरिकों की जो हत्याएं हुई हैं, उनमें से केवल 16.8 फीसदी के लिए गुर्रिल्ला जिम्मेदार रहे। सबसे ज्यादा 38.4 फीसदी नागरिक हत्याएं दक्षिणपंथी अर्धसैनिक बलों ने की, 27.7 फीसदी कतिपय गुमनाम सशस्त्र गुटों ने और 10.1 फीसदी कोलंबिया के सैन्य बलों ने। वहीं संयुक्त राष्ट्र ने भी एक अनुमान जारी किया जिसके मुताबिक कोलंबिया की जंग में कुल नागरिक मौतों में से 12 फीसदी के लिए फार्क व ईएलएन के गुर्रिल्ला जिम्मेदार थे, जबकि 80 फीसदी के लिए दक्षिणपंथी अर्धसैनिक बल और 8 फीसदी के लिए कोलंबिया के सैन्य बल जिम्मेदार थे।
इन सबसे इतर अमेरिका वहां की राजनीति का एक प्रमुख अदृश्य खिलाड़ी रहा है। वहां के ड्रग्स कारोबार से निपटे के तौर-तरीक़े भी अमेरिका काफी हद तक प्रभावित करता रहा है, क्योंकि उसमें उसके भी अलग हित निहित हैं। इससे साफ है कि वहां चीजें वैसी हैं नहीं, जैसी आम तौर पर जाहिर की जाती हैं। ऐसे में एक वामपंथी नेता यदि वहां राष्ट्रपति बनता है तो उसकी काफी अहमियत होगी। पेट्रो के जेहन में ड्रग्स के इस समूचे संकट से निपटने का भी अलग खाका है।
पेट्रो ने ईएलएन बागियों से भी बातचीत की वकालत की है और तेल व गैस के नए उत्खनन पर भी रोक लगाने का वादा किया है। मजेदार बात यह भी है कि वहां की राजनीति में बदलाव की चाह रखने वालों में युवाओं की संख्या ज्यादा है। मतदान से पहले की रायशुमारियों में कोलंबिया के सबसे युवा मतदाताओं में से 50 फीसदी से भी ज्यादा पेट्रो का समर्थन कर रहे थे। उन्होंने भी अपने चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में युवाओं को बाहर निकालकर वोट डालने के लिए लाने पर काफी जोर लगाया। वैसे रविवार को तकरीबन 54 फीसदी लोगों ने ही वहां वोट डाले।
भले ही पेट्रो की बढ़त अभी अच्छी दिख रही है, लेकिन ध्यान देने की बात है कि वहां की दक्षिणपंथी ताकतें उन्हें इतनी आसानी से जीतने नहीं देंगी। गुतिएरेज ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि वह दूसरे दौर में हर्नांदेज को समर्थन देंगे।
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देखना यही है कि क्या पेट्रो अगले तीन हफ्ते तक अपने प्रभाव को कायम रखकर वामपंथी धारा को एक और महत्वपूर्ण जीत दिला पाएंगे। पेट्रो तीसरी बार राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ रहे हैं, उम्मीद है इस बार कामयाबी उनके हाथ लगेगी।
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