बिहार : सैनेटरी पैड पर IAS अधिकारी के बेतुके बयान के लिए क्या सिर्फ़ माफ़ी मांगना काफ़ी है?
बिहार की महिला आईएएस अधिकारी हरजोत कौर इन दिनों सुर्खियों में हैं। इसकी वजह सैनिटरी पैड और शौचालय को लेकर छात्राओं के दिए उनके अटपटे और अजीब जवाब हैं। जो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहे हैं। हालांकि मामले के तूल पकड़ने और चौतरफा सरकारी दबाव के चलते पहले अपने बयान को आउट ऑफ़ कॉन्टेक्स्ट और भ्रामक रिपोर्टिंग बताने वाली आईएएस साहिबा ने अब मांफी मांगते हुए खेद जताया है लेकिन महिला संगठन और झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाली महिलाएं इससे संतुष्ट नज़र नहीं आ रही हैं।
अखिल भारतीय महिला संगठन (ऐपवा), भाकपा-माले और छात्र संगठन आइसा के नेताओं, कार्यकर्ताओं ने हरजौत कौर के बयान की कड़ी निंदा करते हुए सरकार से उन्हें तुरंत पद से हटाने की मांग की है। वहीं शुक्रवार, 30 सितंबर को बिहार के कई जिलों में स्कूली छात्राओं के साथ स्थानीय महिलाओं ने भी इन संगठनों के साथ मिलकर सैनेटरी पैड की मांग पर उटपटांग बयान देने वाली आईएएस अधिकारी के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन भी किया। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने भी आईएएस अधिकारी से पूरे मामले पर सात दिन के अंदर लिखित जवाब माँगा है।
बता दें कि बिहार में माहवारी और हाइजिन को लेकर सरकार बीते कई सालों से जागरूकता अभियान चला रही है। मुख्यमंत्री किशोरी स्वास्थ्य योजना के तहत सरकार कक्षा 9 से 12 के बीच की छात्राओं के खाते में सैनेटरी पैड के लिए सरकार 300 रुपये भी डालती है। लेकिन ये जानकारी का आभाव और योजना का अधूरा क्रियान्वयन ही है जो आज भी छात्राएं और महिलाएं माहवारी में कपड़े का इस्तेमाल करने को मजबूर हैं। वैसे भी भारत एक वेलफेयर स्टेट है और जनता की बुनियादी चीज़ों का ध्यान रखना सरकार का काम है। आईएएस साहिबा को ये ध्यान होना चाहिए कि यहां कुछ भी फ्री में नहीं होता। सरकार जनता के पैसों से ही जनता को सुविधाएं देती है। और इसमें सिर्फ कमाऊ लोगों के टैक्स का पैसा ही नहीं होता बल्कि आपके हमारे और हर घर में आने वाली तमाम चीज़ों पर लगने वाले इनडारेक्ट टैक्स का भी पैसा है, जो हर अमीर-गरीब के जेब से जाता है। सरकार वेलफेयर योजना के रूप में वही पैसा उन्हें लौटाती है।
जानकारी के लिए मालूम हो कि बिहार सरकार से सम्बद्ध व महिला एवं बाल विकास निगम की अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक के तौर पर कार्यरत हरजोत कौर बम्हरा बिहार कैडर के 1992 बैच की आईएएस हैं। पूर्व में वह खान और भू-विज्ञान विज्ञान विभाग के अलावा विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग में प्रमुख के तौर पर कार्यरत रही हैं। उन्होंने पशुपालन विभाग में सचिव के तौर पर भी काम किया है। हरजोत कौर के पति दीपक कुमार भी आईएएस अधिकारी हैं। वे शिक्षा विभाग में अपर मुख्य सचिव के तौर पर कार्यरत हैं।
क्या है पूरा मामला?
लैंगिक असमानता मिटाने वाली सरकारी योजनाओं से झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाली छात्राओं को रूबरू कराने के मकसद से बिहार की राजधानी पटना में मंगलवार, 27 सितंबर को महिला एवं बाल विकास निगम और यूनिसेफ के साथ ही 'सेव द चिल्ड्रेन' और 'प्लैन इंटरनेशनल' नामक संस्था के सहयोग से "सशक्त बेटी, समृद्ध बिहार: टुवर्ड्स इन्हैन्सिंग द वैल्यू ऑफ़ गर्ल चाइल्ड" विषय पर राज्य स्तरीय वर्कशॉप का आयोजन किया गया था।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस वर्कशॉप के दौरान एक सेशन 'झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाली सरकारी स्कूलों की छात्राओं और संबंधित विभाग के अधिकारियों के बीच संवाद' का था। पहले से तय इस सेशन के दौरान छात्राओं ने संबंधित विभाग की अधिकारी हरजोत कौर से सैनिटरी पैड को लेकर सवाल किए। छात्राओं का सवाल था कि 'जैसे सरकार पोशाक से लेकर छात्रवृत्ति तक देती है, तो क्या 20 और 30 रुपये का व्हिस्पर (सैनिटरी पैड) नहीं दे सकती?'
इसी सवाल के जवाब में हरजोत कौर ने कहा, "20 और 30 रुपये का व्हिस्पर नहीं दे सकते हैं, कल को जीन्स पैंट भी दे सकते हैं। परसों जूते क्यों नहीं दे सकते हैं? अंत में जब परिवार नियोजन की बात आएगी तो निरोध भी मुफ्त में देना पड़ेगा, है ना?''
इसके अलावा उन्होंने छात्राओं की ओर से स्कूलों के भीतर टॉयलेट के टूटे दरवाजों और ताकझांक के सवाल पर कहा कि ''क्या तुम्हारे घर में अलग से शौचालय है? हर जगह अलग से बहुत कुछ मांगोगी तो कैसे चलेगा।"
हालांकि ऐसा नहीं है कि हरजोत कौर ने ख़ुद को यहीं रोक लिया हो। जब छात्राओं ने उनके जवाब पर फिर से सवाल किए कि सरकार वोट लेने के लिए आती है तब? इस पर उनका जवाब था, "मत दो तुम वोट। सरकार तुम्हारी है। बन जाओ पाकिस्तान।"
सेशन की समाप्ति के बाद छात्राओं ने वहां मौजूद मीडियाकर्मियों से बातचीत में निराशा ज़ाहिर करते हुए कहा कि उन्हें इस कार्यक्रम से उम्मीद थी कि उनकी बातें सुनी जाएंगी। बात को बहस के रूप में नहीं लिया जाएगा। इसके बाद सोशल मीडिया पर हरजोत कौर का ये बयान काफी तेज़ी से वायरल हो गया। बयान वायरल होने के बाद हरजोत कौर ने दोबारा मीडिया से बात की।
वायरल बयान पर अपना पक्ष रखते हुए उन्होंने कहा, "मीडिया में चल रही बातें आउट ऑफ़ कॉन्टेक्स्ट हैं। गलत और भ्रामक तरीके से खबरें चलाई जा रही हैं। हम कार्यक्रम के पूरे वीडियो को महिला विकास निगम के हैंडल पर जारी कर देंगे। आप लोग खुद ही देख लीजिएगा।"
हालांकि चौतरफा आलोचना और दबाव के बीच भले ही हरजोत कौर ने मांफी मांग ली हो लेकिन एक प्रशासनिक अधिकारी का ऐसा बयान वो भी लड़कियों से जुड़ी सरकारी योजनाओं से जुड़े सवाल को लेकर लोगों को असहज जरूर कर रहा है। अब तक पाकिस्तान भेजने की बात कथित तौर पर बीजेपी नेताओं के मुंह से सुनी जा रही थी लेकिन पहली बार किसी आईएएस अधिकारी ने खुले तौर पर ऐसा वक्तव्य दिया है, जो निश्चित तौर पर उनकी संकीर्ण मानसिकता का परिचय है। आईएस महोदया की बात सैनिटरी पैड से शुरू होकर मतदान और फिर पाकिस्तान तक कैसे पहुंच गई, ये तो वही जानें लेकिन इतना तो तय है कि वो महिला एवं बाल विकास निगम की अध्यक्ष के पद लायक तो कतई नहीं हैं।
पीरियड्स और सैनिटरी पैड्स पर खुलकर चर्चा क्यों नहीं होती?
गौरतलब है कि इतनी तरक्की के बावजूद भी आज भी पीरियड्स और सैनिटरी पैड्स पर खुलकर चर्चा नहीं होती। सैनेटरी नैपकिन ज्यादा से ज्यादा महिलाओं तक पहुंचे, इसलिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं। साल 2011 में भारत सरकार ने मासिक स्वास्थ्य रक्षा योजना की शुरुआत की थी। इस योजना के तहत सरकार ग्रामीण इलाकों में रहनी वाली लड़कियों तक सैनेटरी पैड पहुंचाना चाहती थी। इस योजना के अलावा समय-समय पर सरकार ने और भी कई योजनाएं निकाली हैं। जैसे साल 2018 में ओडिशा सरकार ने कालिया योजना शुरू की ताकि स्कूली छात्राओं को निशुल्क पैड मिल सके। लेकिन इतनी सारी योजनाओं के बावजूद भी सैनेटरी पैड भारतीय लड़कियों और महिलाओं तक नहीं पहुंच पाते। इसकी तमाम वजहे हैं, जैसे सरकारी योजनाओं की लंबी प्रक्रियाएं और सीमित फंड्स।
आंकड़ों को देखें तो सैनिटरी पैड, जो किसी भी महिला के लिए एक ज़रूरी चीज़ की श्रेणी में आना चाहिए वह सैनिटरी पैड आज भी एक औरतों के एक बड़े तबके के लिए लग्ज़री के समान है। नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 के मुताबिक सिर्फ 36 फीसद भारतीय महिलाएं सैनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं। बाकी महिलाएं पुराने कपड़े, मिट्टी, पत्ते जैसी चीज़ों का इस्तेमाल करती हैं। 36 फीसद के साथ भारत थाईलैंड, इंडोनेशिया और चीन इन सभी देशों से पीछे है जहां लगभग 50 फीसद महिलाएं सैनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के साल 2017 के एक सर्वे के मुताबिक लगभग 43 फीसद भारतीय महिलाओं को पीरियड्स के दौरान सैनेटरी पैड मिल ही नहीं पाते। इसकी वजह से लड़कियां स्कूल या काम पर नहीं जा पाती या घर के अंदर महिलाओं को परेशानी का सामना करना पड़ता है। अधिकतर मामले में उन्हें सेनेटरी पैड की गैरमौजूदगी में ऐसी चीजों का प्रयोग करना पड़ता है, जो उनके स्वास्थ्य के लिए बेहद ही खरतनाक होती हैं।
अगर दुनिया की बात करें तो, हमें याद रखना चाहिए कि साल 2020 के आखिर में स्कॉटलैंड की संसद में 'द पीरियड प्रोडक्ट्स (फ्री प्रोविजन) (स्कॉटलैंड) बिल' पारित किया था। जिसके बाद स्कॉटलैंड दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया था जिसने अपनी सभी जनता के लिए पीरियड प्रोडक्ट्स फ्री कर दिए। स्कॉटलैंड के अलावा न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, केन्या, ब्रिटेन और US के राज्यों में भी पीरियड प्रोडक्ट्स को लेकर कई मुफ्त सरकारी योजनाएं चल रही हैं। ये योजनाएं महिलाओं काे मुफ्त मिलने वाली खैरात नहीं बल्कि उनका बुनियादी हक़ हैं, वो हक़ जो उन्हें एक सुरक्षित जीवन की ओर ले जाता है।
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