कोयले की कमी? भारत के पास मौजूद हैं 300 अरब टन के अनुमानित भंडार
पिछले कुछ हफ्तों में कोयले की कमी और विद्युत संकट पर अखबारों में कई रिपोर्ट प्रकाशित हुई हैं। क्या वाकई में यह संकट है या फिर ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जिसमें इस बेकार ईंधन के इस्तेमाल को जारी रखा जा सके और कुछ निहित हितों को फायदा पहुंचाया जा सके।
ऊर्जा मंत्रालय ने कमी से इंकार करते हुए कहा है कि कोयले की कोई कमी नहीं है। लेकिन इस वक्तव्य के उलट, सरकार ने अनुमति प्राप्त क्षमता के परे 10 फ़ीसदी उत्पादन की अनुमति दे दी है, इसे "विशेष खपत" का नाम दिया गया है, जबकि इस अतिरिक्त अनुमति देने की प्रक्रिया में ना तो कोई प्रभाव विश्लेषण किया गया और ना ही स्थानीय लोगों से सलाह संबंधी किसी नियम का पालन किया गया। सरकार ने राज्य सरकारों से भी कोयला आयात को तेज करने के लिए कहा है। कोयले को प्राथमिकता देने के लिए कुछ यात्री ट्रेनों को रोका गया या बाधित किया गया।
चलिए हम "नॉन कोकिंग" कोयले का मामला लेते हैं, जिसे तापीय कोयला भी कहा जाता है, क्योंकि यह ऊर्जा उत्पादन में सहायक होता है। भारत में फिलहाल 150 अरब टन कोयले के भंडार होने की बात को साबित किया जा चुका है। जबकि 300 अरब टन कोयला भंडार होने का अनुमान है। इसलिए संसाधनों की तो कोई कमी नहीं है।
फिलहाल ताप ऊर्जा कोयले की मांग सालाना तौर पर 700 मिलियन टन से भी कम है। हमने ऐसी खदानों को खोला और लाइसेंस दिया है, जिनकी क्षमता करीब़ डेढ़ अरब टन कोयला उत्पादित करने की है। इसलिए भूमि अधिग्रहण, पर्यावरण और वन अनुमति मिलने में देरी होने और कम क्षमता का शोर मचाकर विस्तार या आयात को अनुमति देने अतार्किक है और तथ्यों पर आधारित नहीं है।
पर्यावरण और जैव विविधता नुकसान की पृष्ठभूमि में कोयला खनन की तार्किकतासे जुड़ा एक और बेहद अहम आयाम है। कोल इंडिया 200 से ज़्यादा खदानों में नुकसान सह रही है, जिसकी कीमत करीब़ 12,500 करोड़ रुपये पहुंच चुकी है। यह आंकड़ा पारदर्शी नहीं है, क्योंकि छोटी खदानों के स्तर पर लाभ-नुकसान के आंकड़े सार्वजनिक नहीं हैं। यह आंकड़े कंपनी द्वारा सालाना प्रदर्शित किए जाने वाले भारी-भरकम मुनाफ़े में दब जाते हैं। हम नुकसान करवाने वाली खदानों को बंद कर सकते हैं और उनके संसाधनों का उपयोग कामग़ारों के पुनर्वास में कर सकते हैं, साथ ही पर्यावरण के ह्रास के प्रभावों को भी इससे कम किया जा सकता है, जिससे स्थानीय समुदायों की आजीविका फिर से बहाल हो सकेगी।
देश में 400 से ज़्यादा कोयले की खदाने हैं। लेकिन शुरुआती 26 खदानों के पास ही इतनी क्षमता है कि हमारी जरूरत का सारा कोयला उनसे निकाला जा सकता है। और 25 खदानें हमारी 2030 तक की जरूरतों को पूरा कर सकती हैं। खदानों की संख्या कम करने से खदानों के दुष्प्रभाव भी कम होंगे और इन्हें बेहतर ढंग से प्रबंधित भी किया जा सकेगा।
हमें यह प्रवृत्ति छोड़नी चाहिए कि देश में मौजूद हर खनिज भंडार का खनन कर लिया जाए, क्योंकि यह नवीकरणीय संसाधन हैं। अब ऊर्जा क्षमता की तरफ देखते हैं। हमारे पास ऊर्जा उत्पादन के लिए 4.01 मिलियन मेगावॉट से ज़्यादा क्षमता है। 16 मई की दोपहर को सबसे ज़्यादा विद्युत मांग के वक़्त, 1.97 मिलियन मेगावॉट की मांग को पूरा करने के बाद 6,494 मेगावॉट अधिशेष विद्युत उपलब्ध थी।
अगर हम विकास के नाम पर कोयला खनन के लिए आदिवासियों के ऊपर किए गए अत्याचारों को देखें, अगर हम कोयला और ताप विद्युत उत्पादन क्षेत्रों में होने वाले भयावह स्तर के प्रदूषण और कोयले की वास्तविकता को देखें, तो यह जरूरी हो जाता है कि हम अपने कोयला और ताप विद्युत उद्योग को तुरंत पूरी तरह बदल लें। इसके लिए खदानों की संख्या को ठीक करने और उनके लिए बेहतर उत्पादन प्रबंधन के तरीकों की जरूरत है। साथ ही खदानों की कीमत भी बताए जाने की जरूरत है, ताकि हम क्या मूल्य चुका रहे हैं, उसे ठीक ढंग से प्रदर्शित किया जा सके।
हमें ज़्यादा कठोर अवसंरचना की जरूरत नहीं है, बल्कि हमें बेहतर योजना और प्रभावी प्रबंधन की जरूरत है। दुर्भाग्य से हमारे दिमागों में कोयले की कमी की बात डाली जा रही है, जबकि इस दौरान असली वज़हों और समाधानों का विश्लेषण नहीं किया जा रहा है। जबतक हम मानसून और गर्मी में कोयले की कमी की इस नौटंकी को पहचानकर ठीक नहीं करते हैं, तब तक हमें बेवजह के कोयला खनन विस्तार और महंगा कोयला आयात प्रभावित करता रहेगा।
लेखक एनवॉयरॉनिक्स ट्रस्ट, नई दिल्ली के मैनेजिंग ट्रस्टी हैं।
इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।
Coal Shortage? India has Estimated Total Reserves of 300 Billion Tonnes
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