महाराष्ट्र: फ़सल बीमा ने किसानों के ज़ख़्मों पर छिड़का नमक
महाराष्ट्र में राष्ट्रीय फ़सल बीमा योजना 1999 से 2016 तक लागू की गई थी। फिर वर्ष 2016 में इसे कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तनों के साथ प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना के नाम से लागू किया गया। इस योजना के तहत विभिन्न फ़सलों के लिए बीमा कवर प्रदान किया जाता है। लेकिन, किसानों को इस योजना से भी राहत नहीं मिल रही है। इस साल ख़रीफ़ सीजन में भारी बारिश के कारण बड़े पैमाने पर फ़सलों को नुक़सान पहुंचा है।
मौजूदा स्थिति यह है कि फ़सल बीमा कंपनियों ने प्रभावित 12 ज़िलों के लगभग 5 लाख किसानों के अग्रिम नोटिस को रद्द कर दिया है। वहीं, 44 हज़ार किसानों को एक हज़ार रुपये यानी बीमा प्रीमियम का भुगतान भी नहीं किया गया है। इसलिए, सवाल है कि यह योजना किसानों के हित में है या बीमा कंपनियों के हित में!
बता दें कि प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना सभी किसानों के लिए स्वैच्छिक है। किसानों को ख़रीफ़ सीजन की फ़सलों के लिए बीमा राशि का 2 प्रतिशत भुगतान करना होता है। इसका उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं, कीटों और बीमारियों के कारण फ़सल की क्षति के मामले में किसानों को बीमा कवर प्रदान करना है। फ़सल ख़राब होने की स्थिति में किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए यह योजना शुरू की गई है। सभी ख़रीफ़ फ़सलों के लिए जोखिम स्तर 70 प्रतिशत निर्धारित किया गया है। इस योजना का उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं, कीट और बीमारियों, जलवायु परिवर्तन जैसे कारकों के कारण फ़सल कीक्षति के मामले में किसानों की वित्तीय स्थिरता को बनाए रखना है।
किसानों की सुरक्षा के नाम पर कंपनियों की चांदी?
महाराष्ट्र में बीड ज़िले में ख़रीफ़ 2020 सीजन से पायलट आधार पर 'कप एंड कैप मॉडल' 80:110 लागू किया गया। इस मॉडल के अनुसार बीमा कंपनी किसानों को कुल बीमा प्रीमियम का 110 प्रतिशत तक मुआवज़ा देगी, जबकि इससे अधिक मुआवज़ा देने की ज़िम्मेदारी राज्य सरकार की है। यदि बीमा मुआवज़ा कुल प्रीमियम के 80 प्रतिशत से कम है, तो बीमा कंपनी कुल प्रीमियम का 20 प्रतिशत अपने पास रखेगी और शेष राशि राज्य सरकार को लौटा देगी। इस पैटर्न को अब देश में 'बीड पैटर्न' के नाम से जाना जाता है। प्रदेश में इस योजना को इसी पद्धति से क्रियान्वित किया जा रहा है।
वहीं, महाराष्ट्र में ख़रीफ़ 2020 में 107 लाख, ख़रीफ़ 2021 में 84 लाख और ख़रीफ़ 2022 में 96 लाख किसानों ने बीमा योजना में भाग लिया है। अभी तक फ़सल बीमा के तहत कंपनियों ने किसानों के लिए क़रीब 2 हज़ार करोड़ रुपये का मुआवज़ा स्वीकृत किया है। किसानों का कहना है कि यह राशि नुक़सान की तुलना में काफ़ी कम है। बीमा योजना में 2016 से 2021 तक किसानों ने 3 हज़ार 293 करोड़ रुपये का तो बीमा प्रीमियम ही जमा कराया है। कुल बीमा राशि 28 हज़ार 369 करोड़ रुपये थी, जबकि अंतरिम मुआवज़ा भुगतान 19 हज़ार 411 करोड़ रुपये था। बीमा प्रीमियम के मुआवज़े का अनुपात केवल 69 प्रतिशत है। यह देखा जा सकता है कि बीमा कंपनियों को इसका फ़ायदा मिला है, जबकि किसान ठगा महसूस कर रहा है।
दूसरी तरफ़, नुक़सान से प्रभावित किसानों द्वारा दायर 12 लाख 20 हज़ार अग्रिम नोटिस का मुआवज़ा बीमा कंपनियों ने अभी तक तय नहीं किया है। कई प्रभावित किसान अग्रिम नोटिस दाख़िल नहीं कर सके हैं। इन सभी किसानों को बीमा मुआवज़े से वंचित होने का डर सता रहा है। कंपनी को सरकार के हिस्से के रूप में किसानों द्वारा भुगतान की गई राशि का 9 से 10 गुना राशि प्राप्त हुई है। ऐसे में किसानों के खाते में 25 फ़ीसदी, 50 फ़ीसदी मुआवज़ा राशि चार से पांच हज़ार रुपये डाली गई है। कई किसानों के खाते में एक हज़ार से भी कम राशि जमा हुई है। राज्य में इस साल ख़रीफ़ सीजन में भारी बारिश से क़रीब 40 लाख हेक्टेयर में लगी फ़सल बर्बाद हो गई है। पिछले कुछ वर्षों में प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए राज्य में किसानों का रुझान फ़सल बीमा लेकर अपनी फ़सलों की रक्षा करने का है, लेकिन किसानों में असंतोष है क्योंकि उन्हें जो लाभ मिला है वह नाकाफ़ी है।
21 साल में 18 हज़ार किसानों ने की आत्महत्या
पश्चिम विदर्भ में किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं और इस घटना को लेकर चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं कि पिछले 21 सालों में 18 हज़ार 595 किसानों की मौत हुई है। सरकारी रजिस्ट्री द्वारा 2001 से किसान की आत्महत्याओं का रिकॉर्ड रखा गया है। 2006 में सबसे ज़्यादा 1,295 आत्महत्या के मामले सामने आए हैं। वहीं, चालू वर्ष में अक्टूबर के अंत तक 930 किसानों ने आत्महत्या की है।
इस साल भारी बारिश के कारण ख़रीफ़ की फ़सल को काफ़ी नुक़सान हुआ है। कृषि उत्पादन में गिरावट आई। कृषि की बढ़ती लागत, कृषि ऋण की अदायगी की चिंता, उर्वरकों और कीटनाशकों की अतिरिक्त लागत, कृषि उपज का उचित मूल्य न मिलना, बच्चों की शिक्षा आदि के कारण किसान तनाव में हैं। इन परिस्थितियों के बीच किसानों को फ़सल बीमा का लाभ भी नहीं मिलना अफ़सोसजनक है। पिछले साल अमरावती संभाग में 1,179 किसानों ने आत्महत्या की थी। इस साल की संख्या इससे ज़्यादा बढ़ने की आशंका जताई जा रही है।
पश्चिम विदर्भ में 2001 से अक्टूबर 2022 तक 18 हज़ार 595 किसानों ने आत्महत्या की है, लेकिन इनमें से आधे से भी कम यानी 8 हज़ार 576 किसान परिवारों को ही सरकारी मदद मिल सकी। 9 हज़ार 820 प्रकरणों को सहायता के लिए अपात्र घोषित किया गया है। राजस्व विभाग द्वारा 2005 के एक सरकारी निर्णय के अनुसार, आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों को आपातकालीन राहत देने के लिए तीन मानदंड निर्धारित किए गए हैं: लाभहीन, राष्ट्रीयकृत या सहकारी बैंकों, मान्यता प्राप्त साहूकारों और ऋण चुकौती से लिए गए ऋणों को चुकाने में असमर्थता के कारण ऋणग्रस्तता। इन तीन कारणों से आत्महत्या करने की स्थिति में आत्महत्या करने वाले संबंधित किसानों के परिवारों को 500 रुपए की सहायता राशि दी जाती है। हालांकि, यहां यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि पिछले 16 वर्षों में मानदंड और सहायता की राशि में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
शिंदे समर्थक विधायक ने खोला सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा
भारी बारिश से ज़िले में फ़सलों को भारी नुक़सान हुआ है। फ़सल बीमा योजना में शामिल किसानों को 25 प्रतिशत अग्रिम तत्काल देना बीमा कंपनियों के लिए अनिवार्य था, लेकिन इसमें बड़ा पेंच फंस गया है। कलेक्टर द्वारा अधिसूचना हटाने के बाद भी बीमा कंपनियों ने अग्रिम भुगतान करने से मना कर दिया। इस पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे समर्थक विधायक बच्चू कडू ने चेतावनी दी है कि किसानों को न्याय नहीं मिला तो वे मुंबई जाकर अधिकारियों के चेहरे पर रंग लगा देंगे।
बच्चू कडू का कहना है कि भारी बारिश से प्रभावित किसानों को बीमा कंपनियां मुआवज़ा देने से कतरा रही हैं और बीमा राशि का असमान वितरण किया जा रहा है। अगल-बगल के खेत होने के बावजूद मुआवज़े की राशि में भारी अंतर है। नुक़सान के बाद नोटिस देने वाले किसानों को तत्काल 25 प्रतिशत अग्रिम भुगतान करने की आवश्यकता थी। लेकिन, यह राशि नहीं दी गई।
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