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गोधरा दंगे, चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट: संस्थाओं की आजादी अतीत की बात है?

मौजूदा भारत में चुनाव आयोग और सर्वोच्च न्यायालय जैसी अहम संस्थाओं को अक्सर सरकारी दबाव के आगे झुकते और पार्टी लाइन को टटोलते हुए देखा जाता है। दो दशक पहले हालात काफी अलग थे। साल 2002 में गोधरा दंगों के बाद, भाजपा ने विधानसभा भंग करके राज्य में चुनाव कराने की कोशिश की थी। भाजपा का मकसद था कि ध्रुवीकृत हो चुके समाज का राजनीतिक फायदा उठाया जाए। लेकिन चुनाव आयोग इस दबाव के आगे नहीं झुका। चुनाव आयोग ने घोषणा की कि राज्य के हालात चुनाव कराने के लिए अनुकूल नहीं है। इतिहास के पन्ने के इस एपिसोड में नीलांजन मुखोपाध्याय 2002 के दंगों और उस समय के चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्थाओं की सत्यनिष्ठा पर बात कर रहे हैं, जिन्होंने सरकार के आगे घुटने नहीं टेके।

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