हरियाणा : 12 दिनों से आशा कार्यकर्ताओं की हड़ताल जारी, 28 को विधानसभा घेराव की तैयारी!
हरियाणा की 20 हज़ार से अधिक आशा कार्यकर्ता बीते 12 दिनों से अपने अधिकारों की मांग को लेकर हड़ताल पर बैठी हैं। ये हड़ताल राज्य के सभी जिलों में जारी है और इस दौरान इन कार्यकर्ताओं के कई बड़े प्रदर्शन और बैठकें भी देखने को मिली हैं। हालांकि इन सब के बावजूद सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही और इन आशा वर्कर्स की लगातार उपेक्षा हो रही है। जिसके चलते अब इन कार्यकार्ताओं ने सरकार को चेताते हुए 28 अगस्त को विधानसभा का घेराव का ऐलान किया है। इनका कहना है कि सरकार अब भी उनकी मांगों को नहीं मानती तो वे बड़ा आंदोलन करने को मजबूर होंगी।
बता दें कि हरियाणा में केंद्रीय मज़दूर संगठन 'सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीआईटीयू)' से जुड़ी आशा वर्कर्स यूनियन के बैनर तले आशा वर्कर्स बीते 8 आगस्त से राजव्यापी हड़ताल पर बैठी हैं। ये हड़ताल पहले तीन दिवसीय थी, लेकिन सरकार की अनदेखी के चलते इसे और आगे बढ़ा दिया गया। हड़ताल मानदेय बढ़ोत्तरी समेत कई अन्य मांगों को लेकर की जा रही है, जिसे लेकर प्रदेश की आशा वर्कर्स लंबे समय से प्रदर्शन और संघर्ष करती आ रही हैं।
क्या है पूरा मामला?
प्राप्त जानकारी के मुताबिक हरियाणा में आशा कार्यकर्ता बीते कई सालों से अपनी लंबित मांगों को लेकर मनोहर लाल खट्टर सरकार से गुहार लगा रही हैं। इसी कड़ी में बीते साल 2022 में 27 दिसंबर 2022 को इन कार्यकर्ताओं का एतिहासिक प्रदर्शन देखने को मिला था, तब उच्च अधिकारियों की ओर से आशा वर्कर्स यूनियन के प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया गया था कि विधानसभा सत्र समाप्त होते ही स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज समेत तमाम उच्च अधिकारियों के साथ यूनियन के प्रतिनिधिमंडल की बैठक कराई जाएगी और समस्याओं का समाधान किया जाएगा।
हालांकि अब जब 6 महीने से अधिक का समय बीत गया और इनकी न तो कोई मीटिंग हुई नही इनकी मांगों पर कोई सुनवाई तो इनका धैर्य जवाब दे गया और अब ये सब आशाकर्मी अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रही हैं। इनका कहना है कि इन्हें अब तक सरकार से आश्वासन के नाम पर सिर्फ धोखा ही मिला है।
यूनियन की प्रदेश अध्यक्ष सुरेखा न्यूज़क्लिक से कहती हैं कि बीते 8 अगस्त से सभी आशा कार्यकर्ता हड़ताल पर बैठी हैं, लेकिन इनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही, न ही अब तक शासन-प्रशासन से किसी ने इनसे कोई मुलाकात ही की है। इनका ये भी कहना है कि राज्यभर की 20 हज़ार आशा वर्कर्स सरकार की वादाखिलाफी से परेशान होकर अब विधानसभा घेराव भी करने को मजबूर हैं, शायद इस कदम के जरिए सरकार की नींद टूट जाए।
आशाकर्मियों की स्थिति बेहद ख़राब
सुरेखा आगे बताती हैं कि "प्रदेश में आशाकर्मियों की स्थिति बेहद खराब है। एक ओर काम के लंबे घंटे हैं तो वहीं दूसरी ओर आर्थिक तंगी। कई आशा कार्यकर्ताओं के घर में खाने और जीने की समस्या है, तो वहीं कुछ काम के अत्यधिक बोझ से मानसिक अवसाद में जा रही हैं। मजबूरी ऐसी है कि न काम छोड़ सकते हैं और न इस काम से घर चला सकते हैं। क्योंकि प्रदेश में अभी भी 2018 से मिलने वाला पुराना इंसेंटिव ही जारी है, जबकि काम और महंगाई में की गुना इजाफा हो गया है।
हड़ताल पर बैठीं कई आशा कार्यकर्ताओं का कहना है कि उन्हें हर महीने चार हज़ार रूपये और कुछ इंसेंटिव मिलते हैं। सभी भत्ते मिलाकर कुल आठ से नौ हज़ार के आस-पास उनका मानदेय है, जो आज की महंगाई के हिसाब से काफी कम है। इसके अलावा इन कार्यकर्ताओं के ढ़ाई से तीन हज़ार रूपये मीटिंग और फैसिलिटेटर के यहां आने-जाने में खर्च हो जाते हैं। ऐसे में ये क्या खाएं और क्या बचाएं। परिवार की जिम्मेदारी इन पर अलग से है।
इन आशा कार्यकर्ताओं की एक चिंता छटनी को लेकर भी है। इनका आरोप है कि कुछ आशाकर्मियों को बीते समय में प्रदर्शन करने और प्रशासन के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए नौकरी से निकाले जाने संबंधी नोटिस दिए गए हैं और कई वर्कर्स की छटनी भी की गई है। हालांकि इसके बावजूद इनके हौंसले बुलंद हैं और ये अपनी लड़ाई से पीछे हटने के मूड में बिल्कुल नहीं हैं।
क्या हैं आशा वर्कर्स की प्रमुख मांगें?
- आशा वर्कर्स के मानदेय में बढ़ोतरी हो और उन्हें पक्का किया जाए।
- मानदेय और प्रोत्साहन राशियों को महंगाई भत्ते के साथ जोड़ा जाए।
- पीएफ और रिटायरमेंट सहित सभी सामाजिक सुरक्षा लाभ मिले।
- अनुभव और योग्यता के आधार पर पदोन्नति हो।
- सभी आशा सेंटर पर बुनियादी ज़रूरत की चीज़ों के साथ बैठने की व्यवस्था हो।
- मीटिंग, फैसिलिटेटर विज़िट के लिए अतिरिक्त पैसा मिले।
- किराया भत्ता, ड्रेस और बाकी ज़रूरतों के लिए उचित राशि मिले।
हरियाणा में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में खट्टर सरकार पहले ही कई कर्मचारी और महिला संगठनों का विरोध झेल रही है। हाल ही में लिपिकों की 42 दिन बाद सरकार के आश्वासन के साथ हड़ताल खत्म हुई है। आंगनवाड़ी कार्यकत्रियां भी कई बार प्रदर्शन कर चुकी हैं, इसके अलावा राज्य के सफाई कर्मचारियों की हड़ताल भी कई बार सुर्खियों में रही है। ऐसे में आशा कर्मियों की लंबी हड़ताल स्वास्थ्य व्यवस्था के साथ-साथ सरकार के लिए भी चुनाव में एक नई चुनौती बन सकती है।
गौरतलब है कि आशा वर्कर्स की मानें, तो सरकार उन्हें ऑनलाइन काम करने के साथ ही अन्य विभागों के काम जो उनके लिए सूचिबद्ध नहीं है, उसे करवाने पर भी ज़ोर दे रही है। पहले उनके जिम्मे सिर्फ स्वास्थ्य विभाग के कार्य थे लेकिन अब नशाखोरी और पुलिस के अन्य विभागों के सर्वे भी उन्हीं से करवाए जा रहे हैं। इसके लिए उन्हें न तो कोई अवकाश मिलता है और न ही किसी तरह की कोई सुविधा। कई आशाकर्मियों की शिक्षा बहुत ज़्यादा नहीं है, जिससे उन्हें अन्य विभागों के काम समझने और उसे कंप्यूटर और मोबाइल से करने में काफी दिक्कत आ रही हैं, ऐसे में उन्हें नौकरी से निकालने की धमकी अलग से दी जा रही है जिसके चलते ये कार्यकर्ता मानसिक प्रताड़ना का शिकार हो रही हैं।
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