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क्या हिंदुत्व के प्रचार-प्रसार के लिए आईआईटी खड़गपुर का कैलेंडर तैयार किया गया है?

कैलेंडर विवाद में जहां संस्थान और इस कैलेंडर को तैयार करने वाले इसमें कुछ भी गलत नहीं होने का दावा कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर कई शिक्षाविद् और संस्थान के पूर्व छात्र इसके खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं।
calendar of IIT Kharagpur

'हिंदुत्व' शब्द इस साल के आखिरी महीने में लगातार सुर्खियां बटोर रहा है। कभी धर्म संसद के नाम पर तो कभी नफरती भाषण और शपथ ग्रहण कार्यक्रमों के चलते, इसकी जगह-जगह आलोचना भी हो रही है। अब इसी बीच खबर है कि पश्चिम बंगाल स्थित देश के सबसे पुराने भारतीय तकनीकी संस्थान यानी आईआईटी खड़गपुर भी इसके चलते विवादों में आ गया है। संस्थान की ओर से तैयार एक कैलेंडर पर हिंदुत्व के प्रचार-प्रसार की कोशिश में इतिहास को विकृत करने का आरोप लग रहा है। जहां संस्थान और इस कैलेंडर को तैयार करने वाले इसमें कुछ भी गलत नहीं होने का दावा कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर कई शिक्षाविद् और संस्थान के पूर्व छात्र इसके खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं।

बता दें कि इससे पहले कोलकाता के हावड़ा स्थित केंद्रीय संस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग साइंस एंड टेक्नोलाजी के वर्चुअल वर्कशॉप में गीता पाठ को लेकर भी विवाद हुआ था। अब आईआईटी के इस कदम को एक राजनीतिक खेल और इतिहास से छेड़छाड़ करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।

क्या है पूरा मामला?

मीडिया में आई खबरों के मुताबिक आईआईटी खड़गपुर ने 18 दिसंबर को संस्थान के 67वें दीक्षांत समारोह के अवसर पर साल 2022 के लिए एक नया कैलेंडर जारी किया। इस चर्चित कैलेंडर का अनावरण खुद केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की मौजूदी में हुआ। 'रिकवरी ऑफ द फाउंडेशन ऑफ इंडियन नॉलेज सिस्टम' शीर्षक वाले इस कैलेंडर में भारत की पारंपरिक अध्ययन प्रणाली को दर्शाया गया है। इस पूरे कैलेंडर में वेदों-पुराणों के हवाले से भारतीय सभ्यता और संस्कृति का जिक्र करते हुए अपनी दलीलों के समर्थन में ऋषि अरविंद और स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुषों के कथन का भी हवाला दिया गया है।

कैलेंडर में सलाहकार टीम के सदस्यों के तौर पर संस्थान के निदेशक वीरेंद्र कुमार तिवारी, ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन के अध्यक्ष अनिल डी. सहस्रबुद्धे और वित्त मंत्रालय में प्रमुख आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल के नाम शामिल हैं।

आखिर इस कैलेंडर में है क्या?

हिंदुस्तान की खबर के अनुसार इस कैलेंडर में जनवरी से दिसंबर तक के महीनों के साथ ही 12 तथ्य दिए गए हैं। इनके जरिए यह साबित किया गया है कि भारतीय सभ्यता की जड़ें यूरोप से संबंधित नहीं रही हैं। हर महीने के पेज पर दुनिया के मशहूर शख्सियतों की तस्वीरें हैं और इस पर भारतीय गणितीय भाषा में विषयों के नाम लिखे हैं। मिसाल के तौर पर मार्च महीने के पेज पर बीजगणित और ज्यामिति लिखा हुआ है। साथ ही मशहूर साइंटिस्ट अल्बर्ट आइंस्टीन की फोटो है। इसी तरह अगस्त महीने वाले पेज पर विष्णु पुराण के हवाले से सप्त ऋषि को प्रदर्शित किया गया है। उनको भारतीय ज्ञान के अग्रदूत के रूप में बताया गया है।

इस कैलेंडर में आर्यों के हमले को काल्पनिक बताते हुए कहा गया है कि हिंदुओं को नीचा दिखाने के लिए ही यह थ्योरी गढ़ी गई कि द्रविड़ स्थानीय थे और आर्यों ने उन पर हमला किया था। कैलेंडर ने आर्यों के हमले को लेकर गढ़े गए कथित मिथक को खारिज कर दिया है। इसके साथ ही पश्चिम के विद्वानों का जिक्र कर भारत की परंपरा को महान भी बताया गया है।

कैलेंडर में भारतीय सभ्यता के कई पहलुओं के बारे में बताते हुए कहा गया कि उपनिवेशवादियों ने वैदिक संस्कृति को 2,000 ईसा पूर्व की बात बताया है, जो गलत है। यही नहीं आईआईटी के इस कैलेंडर में बताया गया है कि कौटिल्य से पहले भी भारत में अर्थव्यवस्था, कम्युनिटी प्लानिंग, कृषि उत्पादन, खनन और धातुओं, पशुपालन, चिकित्सा, वानिकी आदि पर बात की गई है। कैलेंडर के मुताबिक ऐसा बताया जाता है कि 300 ईसा पूर्व कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भारत में इन चीजों का जिक्र किया गया था। लेकिन इससे भी कहीं प्राचीन मनुस्मृति में पहले ही ऐसे तमाम पहलुओं पर बात की गई थी।

संस्थान का क्या कहना है?

संस्थान के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर इंडियन नॉलेज सिस्टम्स के प्रमुख प्रोफेसर जय सेन ने कैलेंडर के लिए सामग्री और इसकी डिज़ाइन तैयार की है। कैलेंडर पर बढ़ते विवाद के बीच उनकी दलील है कि इस कैलेंडर का मकसद सच को सामने लाना है। सोशल मीडिया पर ज़्यादातर लोगों ने इस प्रयास की सराहना की है।

प्रोफेसर सेन ने सोशल मीडिया पर कैलेंडर की आलोचना को “पुराने तरीकों से वातानुकूलित” लोगों द्वारा किया जा रहा विरोध बताया है। साथ ही उन्होंने दावा किया है कि कैलेंडर में कोई विवादास्पद बात है ही नहीं। आर्यों के हमले का मिथक गढ़ कर जिस तरह भारत का गलत और भ्रामक इतिहास पेश किया गया है, कैलेंडर उसी के खिलाफ विरोध दर्ज कराता है। इसके सभी 12 पन्नों पर विज्ञानसम्मत दलीलों के साथ उनके समर्थन में 12 सबूत भी दिए गए हैं।

प्रोफेसर सेन कहते हैं, "हमने सोचा भी नहीं था कि यह कैलेंडर इतनी सुर्खियां बटोरेगा। कैलेंडर छपने के बाद अब तक मिले हज़ारों ई-मेल में से ज़्यादातर में इस प्रयास की सराहना की गई है। यूरोप और अमेरिका के कई शिक्षण संस्थानों ने इस कैलेंडर के हर पेज पर अलग-अलग वर्कशॉप आयोजित करने की भी इच्छा जताई है।

विरोध क्यों हो रहा है?

आईआईटी के इस कैलेंडर के प्रकाशन के साथ ही विभिन्न संगठनों ने इसका विरोध शुरू कर दिया। उनका सवाल है कि देश के शीर्ष तकनीकी संस्थान के साथ कैलेंडर में वर्णित विषयों का क्या संबंध है। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक इसके विरोध में संस्थान के गेट पर प्रदर्शन भी हो चुके हैं। कई संगठन इस कैलेंडर को हिंदुत्व थोपने और इतिहास को विकृत करने का प्रयास बता कर इसकी आलोचना कर रहे हैं।

आईआईटी के सामने विरोध प्रदर्शन करने वाले संगठन अखिल भारत शिक्षा बचाओ समिति का दावा है कि कैलेंडर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की हिंदुत्ववादी अवधारणा को मज़बूत करता है। संगठन की पश्चिम बंगाल शाखा के सचिव तरुण नस्कर ने मीडिया को बताया कि इस कैलेंडर में इंडियन नॉलेज सिस्टम के नाम पर जिस तरह विभिन्न पौराणिक और इतिहास से बाहर की चीजों को विज्ञान और इतिहास बता कर पेश किया गया है वह देश में विज्ञान की शिक्षा के एक कलंकित अध्याय के तौर पर दर्ज किया जाएगा।

ऐसे ही एक संगठन सेव एजुकेशन कमिटी के तपन दास कहते हैं, "आईआईटी का कैलेंडर इतिहास और तथ्यों को विकृत करने का प्रयास है। इसमें आर्यों के हमले को मिथक बता कर इतिहास को खारिज करने का प्रयास किया गया है। इसके समर्थन में अवैज्ञानिक और लचर दलीलें दी गई हैं। संस्थान प्रबंधन और उसके कुछ शिक्षक अपनी महत्वाकांक्षाओं की वजह से आरएसएस और बीजेपी के इशारे पर चलने वाली केंद्र सरकार के एजेंडे को लागू करने का प्रयास कर रहे हैं।"

सीपीएम के मुखपत्र गणशक्ति में इसके विरोध की खबरें प्रमुखता से छप रही हैं। पश्चिम बंगाल विज्ञान मंच ने भी इस कैलेंडर की आलोचना की है। मंच के अध्यक्ष तपन साहा का कहना है कि इस कैलेंडर के जरिए विभिन्न काल्पनिक दलीलों को इतिहास बता कर पेश करने का प्रयास किया गया है। सिंधु सभ्यता और आर्य सभ्यता पर शोध के नाम पर पेश किए गए तमाम तथ्य निराधार हैं। इस कैलेंडर के जरिए हिंदुत्व थोपने की कोशिश की जा रही है। इस प्रयास को केंद्र सरकार का समर्थन हासिल है।

हस्ताक्षर अभियान

आईआईटी के एक पूर्व छात्र आशीष रंजन ने संस्थान के पूर्व छात्रों की ओर से आईआईटी के इस कदम की निंदा की है। इसके ख़िलाफ़ उन्होंने हस्ताक्षर अभियान भी शुरू किया है। उन्होंने आईआईटी के निदेशक को भेजी एक पिटीशन में कैलेंडर की बातों का विरोध करते हुए अपने समर्थन में विज्ञान के हालिया शोध का हवाला दिया है।

'द फार्मेशन ऑफ़ ह्यूमन पापुलेशन इन साउथ एंड सेंट्रल एशिया' शीर्षक शोध पत्र के हवाले से उन्होंने लिखा है कि भारत में इंसान 60 हज़ार साल पहले आए। वही धीरे-धीरे उपमहाद्वीप में फैल गए। उसके बाद ईसा से चार हज़ार साल पहले ईरान से और इंसान आए।

आशीष रंजन ने बीबीसी से कहा, "ईरान से लोगों के भारत आने के मुद्दे पर पूरी दुनिया में आम राय है। लेकिन कैलेंडर के ज़रिए ऐसे मुद्दों को स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है जिन पर न तो आम सहमति है और न ही उसके समर्थन में कोई शोध या सबूत है।"

वह कहते हैं कि देश की इस सबसे पुरानी आईआईटी की ब्रांड इमेज को ऐसे प्रोपेगेंडा से भारी नुकसान पहुंचेगा। वह बिना किसी आधार या शोध के ऐसी बातें कह रही है।

उनका कहना है कि मौजूदा परिस्थिति में आईआईटी खड़गपुर के लिए कैलेंडर के रूप में ऐसे मुद्दों पर, जो उसके कामकाज का मुख्य क्षेत्र नहीं है, अपनी राय प्रकाशित करने का कोई औचित्य नहीं है। उसके पास इसके समर्थन में कोई सबूत भी नहीं है। 

गौरतलब है कि तत्कालीन शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने 6 नवंबर, 2020 को आईआईटी खड़गपुर में भारतीय ज्ञान प्रणालियों के लिए केंद्र स्थापित करने की घोषणा की थी। अब कैलेंडर पर बढ़ते विवाद के बीच ही संस्थान के उसी केंद्र ने वास्तु विद्या (आर्किटेक्चर) परिवेश विद्या (पर्यावरण अध्ययन), अर्थशास्त्र और गणित विषयों में अंडरग्रेजुएट और पोस्ट-ग्रेजुएट कोर्स शुरू करने का फैसला किया है। केंद्र की वेबसाइट का कहना है कि यह भारतीय इतिहास पर अंतर-अनुशासनात्मक अनुसंधान के लिए स्थापित किया गया है।

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