‘इंडिया’ : राज्यों के चुनाव में राहें जुदा, हरियाणा में कांग्रेस-आप के बीच खींचतान!
केंद्र की सत्ता में भाजपा सरकार को करीब 10 साल पूरे होने वाले हैं। इसी शासन और राज को खत्म करने के लिए भारत की बड़ी-बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने मिलकर 'इंडिया' नाम का गठबंधन बनाया है, जो आने वाले लोकसभा में जीत का दावा कर रहा है।
इंडिया गठबंधन अपनी जीत का दावा करने के लिए सबसे बड़ा आधार मोदी सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ तमाम राजनीतिक दलों की 'एकता' को बता रहा है। इस 'एकता' का नमूना पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के घोसी विधानसभा उपचुनाव समेत पश्चिम बंगाल और झारखंड में देखने को मिला, जहां जनता ने नाम की बजाय काम पर वोट दिया।
लेकिन मोदी सरकार के ख़िलाफ़ इंडिया गठबंधन क्या वाकई में एकजुट है? इससे जुड़े सवाल हर दिन गठबंधन में शामिल पार्टियां ही खड़े कर देती हैं।
जैसे हरियाणा में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर आम आदमी पार्टी ने ऐलान किया है कि वह प्रदेश की सभी सीटों पर अकेली चुनाव लड़ेगी जिसके बाद गठबंधन में रार आनी तय मानी जा रही है।
दरअसल आम आदमी पार्टी के संगठन महासचिव संदीप पाठक ने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी पार्टी विधानसभा चुनावों में अकेले ही लड़ेगी और वो किसी अन्य दल के साथ सीट शेयरिंग नहीं करेंगे।
संदीप पाठक ने कहा है, "हरियाणा में विधानसभा का चुनाव आने वाला है और आम आदमी पार्टी अब एक नेशनल पार्टी है। हम सभी राज्यों में संगठन बना रहे हैं। हरियाणा में सर्कल लेवल तक हमारा संगठन बन चुका है, लगभग 15 दिन में हरियाणा के एक-एक गांव में हमारी सारी कमेटी बन जाएंगीं और उसके बाद हम अपना कैंपेन शुरू कर देंगे। हरियाणा की जनता बदलाव के लिए उत्सुक है, हम हरियाणा में अच्छा करेंगे। हम विधानसभा चुनाव में निश्चित रूप से सभी सीटों पर लड़ेंगे।"
आम आदमी पार्टी के हरियाणा में अकेले चुनाव लड़ने वाले फैसले को बहुत आसानी से समझा जा सकता है। दरअसल इस पार्टी के एजेंडे में महज़ हरियाणा ही नहीं है बल्कि दूसरे राज्य भी हैं। इसमें भी वो प्राथमिकता पर हैं, जिनकी सीमाएं दिल्ली से सटी हुई हैं क्योंकि दिल्ली के भीतर विधानसभा से लेकर नगर निगम तक आम आदमी पार्टी का क़ब्ज़ा हो चुका है। दूसरी बात ये कि क्षेत्रीय पार्टी से अब ये राष्ट्रीय पार्टी हो चुकी है, तो अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल के सपने भी बड़े हो चले हैं। कई बार तो इनके नेताओं ने ये भी कहा कि अरविंद केजरीवाल पीएम मैटेरियल हैं। अब पीएम मैटेरियल को पीएम बनने के लिए पहले राज्यों पर क़ब्ज़ा करना पड़ेगा, जिसके लिए अरविंद केजरीवाल पूरी तरह से मशगूल हो चुके हैं और इंडिया गठबंधन में शामिल होकर महज़ लोकसभा चुनाव पर फोकस करना चाहते हैं, जबकि विधानसभा चुनाव वो अकेले दम पर लड़ना चाहते हैं।
इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि इंडिया गठबंधन के प्रमुख दल कांग्रेस की आलोचना करते-करते ही आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ है, फिर आरजेडी के लालू यादव के लिए तो अरविंद केजरीवाल ने क्या-क्या नहीं बोला। नीतीश कुमार, शरद पवार या फिर उद्धव ठाकरे तक...अरविंद केजरीवाल ने किसी को नहीं छोड़ा! कहने का मतलब ये है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में अगर इंडिया गठबंधन की जीत होती है, तब भी अरविंद केजरीवाल इस गठबंधन के साथ अपनी बड़ी शर्तों के साथ ही रहेंगे।
फिलहाल अरविंद केजरीवाल का ध्यान राज्यों में अपनी पार्टी के विस्तार पर है और इस विस्तार की शुरुआत पंजाब से हुई थी, जब केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया था। अब चूंकि हरियाणा में लोग सत्ताधारी पार्टी भाजपा से नाराज़ हैं और बदलाव लाना चाहते हैं, तो इस मौके को केजरीवाल किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहते।
केजरीवाल और उनकी पार्टी लगातार हरियाणा के अंदर अपने बूथ के मज़बूत होने का दावा कर रही है, साथ ही जनता से अपने 'दिल्ली मॉडल' यानी मुफ्त बिजली और शिक्षा व्यवस्था बढ़िया देने का वादा कर कर रही है।
हालांकि हरियाणा विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के अकेले चुनाव लड़ने का जवाब देने में कांग्रेस ने देर नहीं की, और पूर्व मुख्यमंत्री दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने आम आदमी पार्टी और आईएनएलडी यानी इंडियन नेशनल लोक दल की दावेदारी पर वोट प्रतिशत का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि हिसार जिले की आदमपुर विधानसभा सीट पर ‘आप’ को कितने वोट मिले, यह सबके सामने है। पिछले 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी 10 लोकसभा सीटें जीती थीं। दूसरे नंबर पर सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस रही। बाकी राजनीतिक दलों के वोट प्रतिशत का आंकड़ा किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में कांग्रेस भी सभी 10 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है।
सिर्फ आम आदमी पार्टी ही नहीं, बल्कि मायावती भी आने वाले राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में अकेली लड़ने का ऐलान कर चुकी हैं, हालांकि उन्होंने हरियाणा और पंजाब में क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन करने से इनकार नहीं किया है। आम आदमी पार्टी और बसपा की तुलना करें तो बसपा बहुत पुरानी है, उसका कैडर भी हरियाणा में अच्छा-खासा है, लेकिन फिर भी यहां मायावती कोई बड़ा कमाल नहीं कर सकीं। बसपा ने 1991 के विधानसभा चुनाव में यहां पहली बार अपने प्रत्याशी उतारे थे। इस चुनाव में बसपा 26 सीटों पर लड़ी थी और एक जीत भी गई थी। उसके बाद से अब तक पार्टी लगातार चुनाव लड़ती है। 1996 के चुनाव में ही ऐसा मौका आया जब बसपा का कोई विधायक नहीं जीता, इस चुनाव में उतरे तो बसपा के 67 प्रत्याशी थे, लेकिन 61 की ज़मानत भी नहीं बची थी। हालांकि 1996 को छोड़ दें तो हर चुनाव में बसपा का एक विधायक बनता आ रहा है। 2014 विधानसभा चुनाव में पृथला से टेकचंद शर्मा बसपा विधायक बने थे हालांकि वह ज़्यादा दिन तक केंद्र की सत्ता के मोह से दूर नहीं रह सके और भाजपा के साथ उनकी नज़दीकियां बढ़ गईं। नतीजा ये हुआ कि बसपा ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया, और उन्होंने विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान भाजपा का दामन थाम लिया।
साल 2009 में जगाधरी से अकरम खान बसपा विधायक चुने गए थे। उन्होंने विधानसभा में कांग्रेस को समर्थन दिया और डिप्टी स्पीकर बने, अब वे कांग्रेस में हैं। कुल मिलाकर 1996 का विधानसभा चुनाव छोड़ दिए जाए तो बसपा ने हर चुनाव में अपना एक विधायक ज़रूर बनाया है। वहीं इनके गठबंधन की बात करें तो 1998 में इंडियन नेशनल लोकदल के साथ गठबंधन किया, बाद में तोड़ दिया, फिर 2009 में कुलदीप बिश्नोई की हरियाणा जनहित कांग्रेस के साथ गठबंधन किया, बाद में इनकी राहें भी जुदा हो गईं। वहीं मई 2018 में फिर इंडियन नेशनल लोकदल के साथ गठबंधन किया, लेकिन ये एक साल भी नहीं चला क्योंकि जींद उपचुनाव में करारी हार के बाद बसपा को इनेलो का अस्तित्व खतरे में नज़र आने लगा था। वहीं इनेलो के साथ गठबंधन तोड़कर फरवरी 2019 में राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी का साथ पकड़ा, लेकिन कुछ महीने बाद गठबंधन खत्म हो गया। लोसुपा के बाद बसपा ने 11 अगस्त 2019 को जजपा के साथ गठबंधन किया, लेकिन पार्टी यहां भी किसी का साथ निभा नहीं पाई और 6 सितंबर 2019 को जजपा से भी नाता तोड़ दिया। फिलहाल पार्टी अकेली है, लेकिन आगामी चुनावों के लिए साथी ढूंढ रही है।
अब अगर ग़ौर करेंगे तो अरविंद केजरीवाल अपनी ताकत दूसरे राज्यों में बढ़ा रहे हैं, तो वहीं मायावती उत्तर प्रदेश में धीरे-धीरे ही सही लेकिन कम हो रही हैं और फिर वो इंडिया गठबंधन का हिस्सा भी नहीं हैं। ये बात हमने इसलिए की क्योंकि अक्सर अरविंद केजरीवाल मायावती की तारीफ करते रहते हैं, और मायावती भी अरविंद केजरीवाल पर बहुत ज़्यादा हमलावर नहीं होतीं। फिर जिस पंजाब में मायावती ने गठबंधन करने की बात कही है, वहां आम आदमी पार्टी की ही सरकार है, और दूसरी ओर हरियाणा में अरविंद केजरीवाल पैर पसार रहे हैं। ऐसे में कब झाड़ू और हाथी एक हो जाएं, कहा नहीं जा सकता है।
फिलहाल मौजूदा वक्त में कांग्रेस हरियाणा में विपक्षी दल है...यहां पर पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजे समझ लेते हैं।
साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर हुई थी, तब भाजपा सभी 90 सीटों पर लड़ी थी और 40 पर जीत हासिल की थी। इसके अलावा कांग्रेस भी सभी 90 सीटों पर लड़ी थी और 31 पर जीत हासिल की थी। इस चुनाव में सबसे बड़ा फैक्टर साबित हुई थी जेजेपी यानी जननायक जनता पार्टी। जेजेपी ने 10 सीटें जीतकर भाजपा और कांग्रेस का मामला फंसा दिया था। हालांकि आखिर में पार्टी भाजपा के साथ आई और अपना उप मुख्यमंत्री बनाया।
लेकिन फिलहाल महिला पहलवानों के साथ हुए बर्ताव और किसानों के महा प्रदर्शन के बाद हरियाणा के हालात पूरी तरह से बदल चुके हैं। ऐसे में आने वाले लोकसभा चुनाव काफी दिलचस्प हो जाएंगे। ऐसे में इस राज्य की कुछ ऐसी सीटे हैं, जिसे इंडिया गठबंधन की प्रमुख पार्टी छोड़ना नहीं चाहेगी, जैसे सोनीपत लोकसभा, रोहतक, भिवानी, महेंद्रगढ़, गुरुग्राम, अंबाला। गठबंधन और समझौते के बीच भी इन सीटों पर कांग्रेस अकेले लड़ना चाहेगी। इसकी वजह है कि साल 2019 में कांग्रेस के दिग्गज नेता यहां से चुनाव लड़ चुके हैं, कैथल से तो गांधी परिवार के करीबी रणदीप सिंह सुरजेवाला प्रत्याशी थे और फिर इनमें से कई लोकसभा क्षेत्रों में तो राहुल गांधी की 'भारत जोड़ा यात्रा' भी निकाली गई थी।
अब जिन सीटों पर कांग्रेस अपना दावा मज़बूत करने में जुटी है, उसमें से रोहतक, अंबाला, भिवानी और सिरसा पर आम आदमी पार्टी और आईएनएलडी भी दावा ठोक रही है। ऐसे में इंडिया गठबंधन के बीच टकराव होना लगभग तय माना जा रहा है।
वहीं 25 सितंबर को देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल की जयंती है। ऐसे में इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि 36 बिरादरी को साथ लेकर चलने वाले देवीलाल की पार्टी इंडियन नेशनल लोक दल यानी आईएनएलडी उनकी 110वीं जयंती के मौके पर इंडिया गठबंधन में शामिल होने की घोषणा कर सकती है। ऐसा होता है तो इंडिया गठबंधन में हरियाणा की 10 सीटों के बंटवारे पर घमासान मच सकता है।
अब इतनी पशोपेश की स्थिति में देखना ये होगा कि इंडिया गठबंधन का संयोजक कौन बनता है, जो इन पार्टियों को समझा सकेगा और लोकसभा चुनाव को मिलकर लड़ने के लिए दिशा तय कर सकेगा।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।