रेलवे समेत देश के सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण के ख़िलाफ़ मज़दूरों का देशव्यापी विरोध प्रदर्शन
सोशल मीडिया में शिद्दत के साथ उठाया जा रहा सवाल कि देश के सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण के खिलाफ पूरे देश में निरंतर जारी मजदूरों व उनके संगठनों के विरोध को मुख्यधारा की मीडिया ने सिरे से गायब कर रखा है, काफी सही प्रतीत होता है। क्योंकि सोशल मीडिया में प्रायः हर दिन ही सार्वजनिक क्षेत्रों में कार्यरत मजदूर–कर्मचारियों के अपने संस्थानों से लेकर सड़कों के प्रतिवाद की खबर अथवा उसका वीडियो वायरल होता ही रहता है।
लेकिन तथाकथित मुख्यधारा की मीडिया के नकारात्मक रवैये को देखकर यही प्रतीत होता है मानो उसने अघोषित सेंसर कर रखा हो। सूत्रों के अनुसार यह सब केंद्र की वर्तमान सरकार के ही निर्देशों और तथाकथित गाईड लाइन से अंजाम दिया जा रहा है। ताकि मजदूरों के विरोध की कोई भी आवाज़ व्यापक जनता के बीच किसी भी सूरत में नहीं जा सके।
मसलन, रेलवे के निजीकरण के खिलाफ लाखों रेलवे मजदूर–कर्मचारी पूरे देश में पिछले 7 दिनों से आन्दोलन कर रहें हैं लेकिन इसकी कोई खबर मीडिया देश के लोगों को पता ही नहीं चलने दे रही है। हालाँकि तब भी आन्दोलन की ख़बरें सोशल मीडिया पर निरंतर वायरल हो रहीं हैं।
उन्हीं ख़बरों के अनुसार 18 अगस्त को झारखण्ड व बिहार समेत देश के कई राज्यों में ‘एंटी प्राइवेटाईजेशन डे’ के तहत ‘सार्वजनिक उपक्रम बचाओ-देश बचाओ’ तथा ‘रेल बचाओ-देश बचाओ’ का सफल प्रतिवाद अभियान चलाया गया।
जिसमें देश के सभी आन्दोलनकारी केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों से जुड़े मजदूर–कर्मचारी संगठनों और अन्य यूनियनों के बैनर तले विभिन्न सेक्टरों के हजारों मजदूरों ने मोदी सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण को राष्ट्र व जन विरोधी करार देते हुए आक्रोश प्रकट किया।
18 अगस्त के ‘रेल बचाओ, देश बचाओ’ अभियान के तहत ईस्ट सेन्ट्रल रेलवे इम्प्लाईज़ फेडरेशन तथा कई अन्य रेल मजदूर संगठनों के आह्वान पर ईसीआर के विभिन्न रेल मंडलों में मजदूर–कर्मचारियों ने अपने कार्यस्थलों पर संगठित विरोध किया।
ईसीआर के बिहार स्थित दानापुर मंडल मुख्यालय, सोनपुर मंडल के बेगुसराय, समस्तीपुर मंडल के रक्सौल–दरभंगा जंक्शनों के अलावे मुगलसराय के चंदौली–कर्मनाशा व मिर्ज़ापुर समेत कई अन्य स्टेशनों पर रेल मजदूर–कर्मचारियों नेप्रतिवाद अभियान को सफल बनाया।
जिसकी खबर या तो इक्के दुक्के अखबारों के अन्दर के पन्नों में सिमटी रही अथवा पूरे तौर पर सेंसर कर दी गई। इसी क्रम में देश स्तर पर गठित देश ‘ निजीकरण विरोधी आन्दोलन समिति’ द्वारा चलाये जा रहे हस्ताक्षर अभियान की खबर भी सेंसर ही दिख रही है। क्योंकि इस हस्ताक्षर अभियान को देश के व्यापक और आम लोगों में ले जाकर ये बताया जा रहा है कि इस हस्ताक्षर–पत्र के माध्यम से देश के प्रधान मंत्री के समक्ष 9 सूत्री मांगें पेश कर उन्हें संबोधित कर कहा गया है कि –
माननीय प्रधान मंत्री जी, क्या हम वह आखिरी पीढ़ी बन जायेंगे जिसने सरकारी रेलगाड़ी में सफ़र किया है? क्योंकि हाल ही में आपकी केंद्र सरकार ने भारतीय रेलवे का निजीकरण किये जाने के तहत 109 रेल रूटों पर 151 निजी ट्रेनें चलाने का फैसला लिया है। रेलवे के ऐसे 17 सार्वजनिक उपक्रम क्षेत्रों में 100 % एफडीआई करने का भी ऐलान किया है जिनमें–तेज़ गति से चलनेवाली ट्रेन परियोजनाएं, उनका रख रखाव, डीजल और बिजली चालित इंजन–कोच और वैगन निर्माण के सभी कारखानों समेत मालवाहक रेल लाइनें और रेलवे स्टेशनों को पूरी तरह से निजी कंपनियों के हवाले कर दिया जाएगा।
जिसपर अमल की शुरुआत काफी तेज़ी से होने भी लगी है। हजारों रेलवे स्कूल और अस्पतालों को तेज़ी से बंद किया जा रहा है और रेलवे कॉलोनियों और ज़मीनों को भी निजी हाथों में बेचने की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है।
माननीय महोदय, भारतीय रेलवे को इस देश की जीवन रेखा माना जाता है। जिस पर लाखों लोगों की जीविका और आवागमन निर्भर है। साथ ही यह देश का रोज़गार उपलब्ध करानेवाला सबसे बड़ा सार्वजनिक उपक्रम है।
ऐसे में रेलवे को निजी हाथों में सौंप देने से व्यापक आम जनता का सामान्य आवागमन न सिर्फ महंगा और असुविधाजनक हो जाएगा बल्कि लाखों कार्यरत मजदूरों–कर्मचारियों और इसमें रोज़गार पानेवाले बेरोज़गार युवाओं के लिए विनाशकारी क़दम होगा।
निजी ट्रेनों के परिचालन की घोषणा बाद रेलवे ने आनन फानन देश की सभी रेल मंडल प्रबंधकों को पत्र जारी कर लगभग 9 लाख कार्यरत कर्मचारियों की छंटनी का आदेश दिया है। इसके अलावे अबतक जिन महिलाओं, बच्चों–बुजुर्गों और विकलांगों को विशेष रियायत मिलती थी, सब ख़त्म कर दीं जायेंगी।
दुनिया की चौथी इस विशाल संरचना पर निजी कंपनियों को मनमाना मुनाफ़ा कमाने का अधिकार दे देना, पूरी तरह से गैर लोकतान्त्रिक और देश की आम जनता के साथ धोखा है। अतः भारतीय रेलवे के निजीकरण के फैसले को तुरंत वापस लिया जाय।
देखना है कि देश के आम लोग इसपर क्या प्रतिक्रिया देते हैं। 18 अगस्त के देशव्यापी प्रतिवाद के जरिये रेल ट्रेड यूनियनों और मजदूरों ने जारी बयान में केंद्र सरकार पर खुला आरोप लगाया है कि पिछले 18 अक्टूबर 2019 को उसके द्वारा घोषित 100 डे एक्शन प्लान दरअसल देश के लोगों के लिए एक झांसा था।
दरअसल यह कवायद रेलवे को निजी हाथों में सौंपने की सुनियोजित शुरुआत था। आज जब देश के सारे लोग कोरोना महामारी आपदा से जूझ रहें हैं और सरकार इसका नाजायज़ फायदा उठाते हुए देश कि जनता और रेलवे कर्मचारियों को धोखा देकर सरकार ने रेलवे को बेचना शुरू कर दिया है।
सीटू झारखण्ड के प्रदेश महासचिव प्रकाश विप्लव तथा एक्टू महासचिव शुभेंदु सेन द्वारा जारी बयान के अनुसार 18 अगस्त को ‘एंटी प्राइवेटाईजेशन डे’ के तहत झारखण्ड के मजदूरों का प्रतिवाद कोयला–इस्पात– बिजली– हेवी इंजीनियरिंग तथा बैंक व बीमा के अलावे भी कई अन्य क्षेत्रों में काफी प्रभावपूर्ण रहा।
ट्रेड यूनियनों ने भी अपने वक्तव्य में कहा है कि उनकी लड़ाई महज किसी सरकार की जन विरोधी नीतियों के ही खिलाफ नहीं है बल्कि देश की संप्रभुता और आज़ाद अर्थव्यवस्था की रक्षा के लिए है। इसलिए हमारी ये लड़ाई अब आर–पार की हो गयी है। इस अवसर पर उन्होंने देश की अन्य मान्यता प्राप्त ट्रेड यूनियनों से भी अपील की है कि वे राष्ट्रहित से जुड़े इन महत्वपूर्ण सवालों पर संवेदनशीलता दीखाएँ और चुप रहकर हो रहे महाअपराध के भागिदार न बनें।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।