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कर्नाटक पाठ्यपुस्तक विवाद: सावरकर और बुलबुल- मेटाफर या फ़ैक्ट?

पाठ्यपुस्तक संशोधन समिति ने यह कहते हुए बचाव किया कि यह एक मेटाफर है। हालांकि शिक्षक और आलोचक इसे कुछ और मानते हैं।
Vinayak Damodar Savarkar
Image Courtesy: Wikimedia Commons

नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली राज्य सरकार द्वारा इतिहास के पुनर्लेखन के आरोपों को लेकर कर्नाटक में एक नया विवाद छिड़ गया है। रोहित चक्रतीर्थ की अध्यक्षता वाली पाठ्यपुस्तक संशोधन समिति ने संशोधित हाई स्कूल पाठ्यक्रम में कथित तौर पर विनायक दामोदर सावरकर पर एक खंड को शामिल किया है।

द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार इस आधार पर आपत्तियां उठाई गई हैं कि पुस्तक के खंड के उक्त पाठ में सावरकर का महिमांडन किया गया है। हालांकि उक्त अंश को पाठ्यपुस्तक के लिए ज़िम्मेदार लोगों द्वारा "मेटाफर" और अलंकृत गद्य के रूप में बताया जा रहा है। वहीं आलोचकों का कहना है कि यह मेटाफर की तरह नहीं पढ़ा जाता है, बल्कि यह शाब्दिक प्रतीत होता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि, हालांकि पहले कोई आपत्ति नहीं की गई थी। शुक्रवार को सोशल मीडिया पर ये टेक्स्ट वायरल होने के कुछ घंटे के बाद कर्नाटक टेक्स्टबुक सोसाइटी (केटीबीएस) को कई मौखिक शिकायतें मिलीं।

लेखक ने एक पैराग्राफ में यह कहते हुए उद्धृत किया कि “जहां सावरकर को कैद किया गया था वहां कोठरी में एक चाबी के लायक भी छिद्र नहीं था। लेकिन, बुलबुल पक्षी कमरे में आती थी और सावरकर उनके पंखों पर बैठकर उड़ते थे और हर दिन मातृभूमि जाया करते थे।"

इस बीच, चक्रतीर्थ ने एक बयान जारी कर उक्त पैरा को शामिल करने को सही ठहराया। न्यूज मिनट न चक्रतीर्थ के बयान को कोट करते हुए लिखा "मुझे आश्चर्य है कि अगर कुछ लोगों की बुद्धि इतनी कम हो गई है कि वे समझ नहीं पा रहे हैं कि वह टेक्स्ट क्या है।"

कई शिक्षकों ने इसका विरोध किया है। उनका मानना है कि शिक्षक के रूप में पढ़ाते समय इस मेटाफर को तथ्यों से अलग करना उनके लिए मुश्किल हो जाता है। एक शिक्षक के हवाले से कहा गया, “यदि लेखक ने सावरकर की मेटाफर के रूप से प्रशंसा की है तो कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन उक्त पंक्तियां इस तरह लिखी गई हैं जैसे कि यह एक सच्चाई हो। छात्रों को यह समझाना बहुत कठिन है। अगर छात्र सवाल पूछते हैं और सबूत मांगते हैं तो हम इसे कैसे देंगे?”

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सावरकर की भूमिका भाजपा का वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और कई इतिहासकारों और विपक्षी दलों के बीच एक बड़ी वैचारिक लड़ाई रही है जिन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक आकाओं को उनके माफ़ीनामे को उजागर किया है।

ये पाठ्यपुस्तक विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब सत्तारूढ़ भाजपा सरकार और उसके सहयोगी संगठनों जैसे आरएसएस ने सावरकर को उनकी विवादित विरासत के बावजूद समारोह आयोजित किया है।

हाल ही में भाजपा नेता और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा ने हिंदुत्व के अलमबरदार सावरकर के "संदेश और विरासत" को प्रसारित करने के उद्देश्य से राज्य में 'सावरकर रथ यात्रा' शुरू की।

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक के स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता मंत्री बी.सी. नागेश ने पाठ्यपुस्तक में शामिल किए गए टेक्स्ट को सही बताते हुए इसका समर्थन किया है। उन्होंने कहा, “सावरकर एक महान स्वतंत्रता सेनानी हैं। वह कितना भी महिमामंडित क्यों न हो, यह उनके बलिदान के लिए पर्याप्त नहीं है। लेखक ने इस पाठ में जो वर्णन किया है वह सही है।”

केटीबीएस के प्रबंध निदेशक एमपी मेडेगौड़ा का मानना है कि यह "काव्यात्मक कल्पना" थी।

द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, मेडेगौड़ा ने कहा, "प्रश्न वाले अध्याय में कुछ व्यक्तित्व की यात्रा डायरी के लेखक के विवरण का हिस्सा है, जिनमें सावरकर भी हैं। सावरकर की मातृभूमि के प्रति समर्पण की व्याख्या करने के लिए लेखक इसे एक मेटाफर के रूप में इस्तेमाल कर सकते थे। यह बयान काव्यात्मक कल्पना के अलावा और कुछ नहीं है।"

कर्नाटक में इस वर्ष पाठ्यपुस्तकों को लेकर काफी विवाद देखा गया। ये विवाद विशेष रूप से चक्रतीर्थ की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा शिक्षा के 'भगवाकरण' के संबंध में किए गए संशोधनों के कारण सामने आए हैं।

भारी विरोध के बाद जून में इस समिति को भंग कर दिया गया था।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

Karnataka Textbook Row: Savarkar and Bulbul -- Metaphor or Fact?

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