किसान आंदोलन के समर्थन में वाम दलों का देशव्यापी प्रदर्शन
देशभर में किसानों के समर्थन में वाम दलों ने प्रदर्शन किया। उनके इस प्रदर्शन में उनके सहयोगी जनसंगठन भी सड़क पर उतरे। दो दिन पहले ही सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने अपने कार्यकर्ताओ से सड़क पर उतरकर किसानों का साथ देने को कहा था। जिसके बाद से ही लगातर बंगाल, हिमाचल, बिहार, पांडुचेरी, तमिलनाडु, केरल, असम सहित देश के तमाम राज्यों में वाम दलों और उनके सहयोगी जनसंगठनों के लोगों ने किसानो के समर्थन में प्रदर्शन किया।
आपको बता दें कि पिछले कई दिनों से पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड के किसान दिल्ली बॉर्डर पर तीन कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं। सरकार ने इनके प्रदर्शन को रोकने के लिए बल प्रयोग भी किया और इनके रस्ते भी रोके लेकिन किसान डटे रहे। अब इन किसानों के समर्थन में पूरे देश में प्रदर्शन हो रहे हैं। सरकार भी बैकफुट पर है और किसानों से वार्ता शुरू की है।
प्रदर्शनकारियों ने साफतौर पर तीन किसान विरोधी कानूनों को लेकर संघर्षरत किसानों के आंदोलन का पुरजोर समर्थन किया है। इन संगठनों ने केंद्र व हरियाणा सरकार द्वारा किये जा रहे किसानों के बर्बर दमन की कड़ी निंदा की है। इन्होंने ऐलान किया है कि किसानों के आंदोलन के समर्थन में वो देश भर के मजदूरों, किसानों, महिलाओं, युवाओं, छात्रों व सामाजिक तथा आर्थिक रूप से पिछड़े तबकों द्वारा देशव्यापी प्रदर्शन करके किसानों के साथ एकजुटता प्रकट कर रहे हैं।
दिल्ली के संसद मार्ग में किसानों के समर्थन में प्रदर्शन
इसी कड़ी में आज बुधवार को दिल्ली के संसद मार्ग पर सभी वाम दलों से संयुक्त रूप से प्रदर्शन किया। इसमें सीपीएम पोलित ब्यूरो सदस्य और पूर्व सांसद वृंदा करात, अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मौल्ला और सीपीआई के महासचिव डी राजा के साथ ही कई अन्य राष्ट्रीय और दिल्ली राज्य के नेता शामिल हुए।
वृंदा करात ने प्रदर्शन कर रहे किसानों का अभिवादन किया और कहा कि उन्होंने इस सरकार की कॉरपोरेट परस्त नीतियों की पोल खोल दी है। उन्होंने कहा ये सरकार द्वारा मेहनतक़श अवाम, किसान, मज़दूर, दलित और आदिवासियों पर हमला है। हम सभी वाम दल एक साथ आकर यहां यह कहने आये हैं कि इसे हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।
आगे उन्होंने प्रधानमंत्री और सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि एक तरफ वो कहते हैं कि ये किसानों के फ़ायदे का क़ानून है, दूसरी तरफ वो अपने मन की बात में अंबानी अडानी की बात करते हैं। आपने संसद की धज्जियाँ उड़ाई ,कानूनों की धज्जियां उड़ाई लाखों किसानों पर वाटर कैनन और आँसू जैसे के गोले चलवाया और किसान नेताओं पर फर्जी मुक़दमे लगवाए है। इसको बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
उन्होंने कहा यह आर पार की लड़ाई है। हम सभी दलों से अपील करते है कि वो इस मोदी सरकार के ख़िलाफ़ सड़क पर उतरें। हमारा संघर्ष तबतक जारी रहेगा जबतक ये तीन काले क़ानून वापस नहीं हो जाते हैं।
बिहार में वाम दलों का संयुक्त हल्ला बोल
इसी तरह बिहार में भी वाम दलों ने सयुंक्त रूप से प्रदर्शन किया। वहां सीपीएम राज्य सचिव अवधेश सिंह ने कहा कि मोदी जी के मन की बात सुनकर अब जनता ऊब चुकी है लेकिन मोदी सरकार किसानों की मन की बात सुनने को तैयार नहीं है। आज किसान सड़क पर इसलिए हैं क्योंकि लॉकडाउन में उन्होंने केवल पूंजीपतियों के हक़ में क़ानून बनाने का काम किया।
उन्होंने बताया की कैसे 2006 में नीतीश कुमार ने भी बिहार में ऐसा ही कानून बनाकर मंडियों को खत्म किया। आज बिहार का किसान अपने फसल के दाम के लिए तरस रहा है। आज जब धान का सरकारी दाम 1900 सौ रुपये है तो बिहार का किसान 900 रुपये में अपना धान बेचने को मज़बूर है। ऐसे हालात में बिहार सरकार बेशर्मी के साथ केंद्र के कानूनों के साथ है।
माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि वार्ता के नाम पर मोदी ने किसानों को अपमानित किया है। एक तरह का पैटर्न बन गया है कि सरकार पहले ऐसे आंदोलनों को दबाती है, गलत प्रचार करती है, दमन अभियान चलाती है, लेकिन फिर भी जब आंदोलन नहीं रुकता, तब कहती है कि यह सबकुछ विपक्ष के उकसावे पर हो रहा है। कृषि कानूनों के बारे में सरकार कह रही है कि किसान इसे समझ नहीं पा रहे हैं, तो क्या पंजाब जैसे विकसित प्रदेश के किसानों को अब खेती-बाड़ी सीखने के लिए आरएसएस की शाखाओं में जाना होगा़।
वाम नेताओं ने कहा कि बिहार में वाम व जनवादी दलों के नेतृत्व में किसानों का आंदोलन संगठित होने लगा है, यदि समय रहते सरकार ने तीनों काले कानूनों को वापस नहीं लिया, तो पूरे बिहार में आंदेालन चलाया जाएगा।
हिमाचल प्रदेश में भी सीपीएम ने किया प्रदर्शन
हिमाचल में भी वाम दल सीपीएम के जनसंगठन सीटू, किसान सभा, जनवादी महिला समिति, डीवाईएफआई,एसएफआई, दलित शोषण मुक्ति मंच ने अपनी मांगों व तीन किसान विरोधी कानूनों को लेकर हिमाचल में प्रदर्शन किया।
प्रदर्शन कर रहे नेताओं ने कहा है कि मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीनों नए कृषि कानून पूर्णतः किसान विरोधी हैं। इसके कारण किसानों की फसलों को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए विदेशी और देशी कंपनियों और बड़ी पूंजीपतियों के हवाले करने की साज़िश रची जा रही है। इन कानूनों से फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की अवधारणा को समाप्त कर दिया जाएगा। आवश्यक वस्तु अधिनियम के कानून को खत्म करने से जमाखोरी,कालाबाजारी व मुनाफाखोरी को बढ़ावा मिलेगा। इससे बाजार में खाद्य पदार्थों की बनावटी कमी पैदा होगी व खाद्य पदार्थ महंगे हो जाएंगे। कृषि कानूनों के बदलाव से बड़े पूंजीपतियों और देशी-विदेशी कंपनियों का कृषि पर कब्जा हो जाएगा और किसानों की हालत दयनीय हो जाएगी।
आगे उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार के नए कानूनों से एपीएमसी जैसी कृषि संस्थाएं बर्बाद हो जाएंगी, न्यूनतम समर्थन मूल्य की अवधारणा खत्म हो जाएगी, कृषि उत्पादों की कालाबाज़ारी, जमाखोरी व मुनाफाखोरी होगी जिससे न केवल किसानों को नुकसान होगा अपितु आम जनता को भी इसकी मार झेलनी पड़ेगी। यह सब कॉरपोरेट्स को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से किया जा रहा है।
नेताओं ने एक बात पर जोर देकर कहा कि आज कृषि भारी संकट में है। उसे मदद देने के बजाय केंद्र सरकार किसानों को तबाह करने पर तुली हुई है। न तो कृषि बजट में बढ़ोतरी हो रही है, न ही किसानों की सब्सिडी में बढ़ोतरी हो रही है, न ही किसानी के उपकरण किसानों को सरकार की ओर से मुहैया करवाए जा रहे हैं, न ही किसानों के कर्ज़े माफ किये जा रहे हैं और न ही उन्हें लाभकारी मूल्य दिया जा रहा है। स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशें पिछले दो दशकों से केंद्र सरकार के मेजों पर धूल फांक रही हैं, लेकिन उन्हें लागू नहीं किया जा रहा है। इसलिए बेहद जरूरी हो गया है कि देश के मजदूर, किसान, महिला, युवा, छात्र, सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े हुए तबके पूर्ण एकता बनाकर इस सरकार की चूलें हिलाएं व इसकी पूंजीपति व कॉरपोरेट परस्त नीतियों पर रोक लगाएं।
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