बीथोवन: संगीत में ढाली हुई विद्रोह की आवाज़
2020 का दिसंबर माह पूरी दुनिया में महान बीथोवन के जन्म की 250वीं वर्षगांठ के रूप में मनाया जा रहा है। बीथोवन संगीत के इतिहास के सर्वकालिक महान शख्सियत माने जाते हैं। संगीत को जैसे सुना व समझा जाता रहा है, उसमें युगांतकारी परिवर्तन लाने का श्रेय बीथोवन को दिया जाता है। बीथोवन ने ऐसी धुनों व संगीत की रचना की जो सुनने वाले को सुकून पहुंचाने के बदले उन्हें चकित व विचलित अधिक करता रहा है।
बीथोवन के बाद संगीत को पुराने दिनों में ले जाना असंभव हो गया था। बीथोवन के पूर्व संगीत को अमीर व संभ्रांत लोगों के आराम पहुँचाने, उनके अंदर सुकून पैदा करने वाले माध्यम के रूप में देखने की परिपाटी थी। ताकि कुलीन लोग ऐसा संगीत सुनने के बाद शांति से चैन की नींद सो सकें। परन्तु बीथोवन के संगीत ने सुहाना धुनों की ओर लौटना मुश्किल बना दिया। बीथोवन का संगीत सुलाता नहीं था अपितु अचंभित व स्तब्ध करने वाला था। यह ऐसा संगीत था जो आपको सोचने व महसूस करने पर विवश कर देता है। ऐसा माना जाता है कि फ्रांसीसी क्रांति को सबसे अच्छी अभिव्यक्ति बीथोवन के धुनों व संगीत में ही हासिल हो सकी थी।
वियना में
बीथोवन के जन्मदिन को लेकर थोड़ा विवाद रहा है। ऐसा माना जाता है कि लुडविग वान बीथोवन का जन्म 17 दिसंबर 1770 को हुआ था। बीथोवन का जन्म जर्मनी के बॉन शहर में एक संगीतकार परिवार में हुआ था। उनके पिता जोहानन आर्कबिशप इलेक्टर के दरबार में बतौर संगीतकार नियुक्त थे। वे एक कठोर, निर्मम व थोड़े अवारा किस्म के व्यक्ति थे। बीथोवन की मां अपने पति की सारी कारगुजारियों को चुपचाप सहा करती। बीथोवन के प्रारंभिक जीवन में खुशियों का नामोनिशान न था। संभवतः इस कारण उनका स्वभाव थोड़ा अंर्तमुखी होने के साथ-साथ विद्रोही किस्म का था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा जैसे-तैसे हुई। ग्यारह वर्ष की अवस्था में उन्होंने स्कूल छोड़ दिया। उनके भीतर की संगीत प्रतिभा को सबसे पहले एक दरबारी वादक गोट्टलॉब नेफ्फे ने पहचाना। उसने बीथोवन का परिचय बाख के संगीत से और खासकर उनकी महत्वपूर्ण संगीत रचना वेल टेंपर्ड क्लावियरसे कराया। अपने पुत्र की प्रतिभा को देखते हुए पिता को अपने बच्चे को युवा मोजार्ट के रूप में देखने की ख्वाहिश हुई। पांच वर्ष की उम्र में ही बीथोवन का पहला सार्वजनिक कंसर्ट हुआ। लेकिन जोहानन को निराशा हाथ लगी। बीथोवन बचपन के मोजार्ट की तरह न थे। उनके अंदर संगीत को लेकर स्वाभाविक झुकाव नहीं था। फिर भी उनके पिता ने कई गुरूओं के पास उसे संगीत की शिक्षा के लिए भेजा। तब बॉन, जहां उनका जन्म हुआ था एक सोया हुआ छोटा शहर था। जहां संगीत सीखने के बहुत अवसर न थे।
अतः बीथोवन को संगीत संबंधी पढ़ाई के लिए वियना जाना पड़ा। परिवार बहुत समृद्ध नहीं था लेकिन 1787 में युवा बीथोवन को आर्चबिशप द्वारा मुहैया कराए गए अनुदान रूपी पैसों से पढ़ने का मौका मिला। यहीं उसकी मुलाकात मोजार्ट से हुई। मोजार्ट भी बीथोवन से प्रभावित हुए। बाद के दिनों में उनके एक शिक्षक संगीतकार हेडन भी थे। जो अपने समय के खुद बड़े संगीतकार माने जाते थे। लेकिन हेडन से, पढ़ाई-लिखाई में उन्हें, दिक्कत आनें लगीं। उसकी वजह यह थी कि अब बीथोवन में संगीत को लेकर मौलिक किस्म के विचार आने शुरू हो गए थे जबकि हेडन पुराने ढ़ंग के दरबारी और पारपंरिक संगीत के कायल थे।
अपने समय के दूसरे संगीतकारों की तरह बीथोवन को भी धनी व कुलीन लोगों के अनुदानों पर भरोसा करने के लिए बाध्य होना पड़ता था। लेकिन बीथोवन कोई दरबारी संगीतकार नहीं थे जैसे कि हेडन। हेडन कुलीन एस्टेराजी परिवार के दरबारी संगीतज्ञ थे, जबकि बीथोवन दरबारी संगीतकार न होने के बावजूद उनके संगीत की महानता ने उनकी आजीविका को सुनिश्चित किया था।
बीथोवन को परंपरा व रूढ़ियों से चिढ़ थी। बाहरी चमक-दमक से जरा भी प्रभावित होने वाले व्यक्ति वे नहीं थे। संगीत उनके लिए ओढ़ना-बिछौना की तरह था जिसमें दुनियावी आरामगाहों के लिए बहुत स्थान न था। उनका निजी जीवन भी अस्त-व्यस्त, अस्थिर और बोहेमियन किस्म का था।
नवाबों व राजकुमारों के प्रति उनके रवैये को उस प्रसिद्ध पेंटिंग से पता लगाया जा सकता है जिसमें बीथोवन को जर्मनी के सबसे महान कवि गोयथे के साथ दिखाया गया है। गोयथे राजा-रानी के सम्मानस्वरूप अपनी टोपी उतारकर उनके समक्ष झुककर विनम्रता पूर्वक सलाम पेश करते हैं। जबकि बीथोवन उनके राजा-रानी के आभामंडल की जरा भी परवाह न करते हुए उसके बगल से गुजरते प्रतीत होते हैं। यह पेंटिंग बीथोवन के निर्भीक व क्रांतिकारी जज्बे को सामने लाता है। इस संबंध में चर्चित रूसी संगीतकार रहे इगोर स्त्राविन्स्की की यह टिप्पणी द्रष्टव्य है कि जनता के उस महान जीनियस ने गर्वपूर्वक अपनी पीठ बादशाहों और कुलीनों की ओर से फेर ली थी। निराशा के क्षणों में भी बीथोवन का उद्याम आशावाद, कुंवारी उदासी, उसके संघर्ष करने के लिए प्रेरणा, उसकी फौलादी इच्छाशक्ति जिसके परिणामस्वरूप उसके अंदर नियति को भी उसकी गर्दन पकड़ने का माद्दा पैदा किया।
फ्रांसीसी क्रांति और बीथोवन
बीथोवन ने जिस दुनिया में जन्म लिया था वो उथल-पुथल से भरी थी, समाज संक्रमण से गुजर रहा था। युद्ध, क्रांति, प्रतिक्रांति से गुजरते हुए बीथोवन ने अपने संगीत को आकार दिया। वह समय लगभग आज के वक्त से बहुत मिलता-जुलता प्रतीत होता नजर आता है।
1776 में अमेरिका को ब्रिटेन के उपनिवेश से मुक्ति हासिल हुई थी। अमेरिकी लोगों का यह मुक्ति संग्राम इतिहास के नाटकीय घटनाक्रमों का पहला अंक था। अमेरिकी क्रांति ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आदर्शों की प्रेरणा लंबे समय से चल रही फ्रांसीसी नवजागरण से मिल रही थी। उसके लगभग एक दशक बाद ही जुलाई 1789 में बास्तिले की घटना से इतिहास बदल डालने वाली फ्रांसीसी क्रांति घटित हुई। जब फ्रांसीसी क्रांति अपने उभार काल में थी उसने तमाम सामंती शक्तियों का ध्वंस कर उन्हें धो डाला, पूरे यूरोप को अपने साहस व प्रतिबद्धता से झुका डाला। फ्रांस से निकले मुक्तिकामी आवेग ने पूरे यूरोप को अपने गिरफ्त में ले लिया था। एक नया युग जन्म ले रहा था। इतिहास के ऐसे निर्णायक मोड़ पर कला को नये माध्यमों, नई शैलियों की दरकार थी। इसे बीथोवन ने अपने संगीत में अन्य किसी कलाकार की अपेक्षा सबसे बेहतर व प्रभावी ढंग से पकड़ने का प्रयास किया।
यूरोप में प्रतिक्रांति का दौर
जब फ्रांस के राजा लुई सोलहवें को 1793 में सजा दी गयी तो पूरा यूरोप स्तब्ध रह गया था। यूरोप के शासक वर्ग में भय व्याप्त हो गया था। इसने क्रांतिकारी फ्रांस के खिलाफ यूरोप में प्रतिक्रियावादी गोलबंदी शुरू हो गयी और उनका रवैया फ्रांस के प्रति बहुत सख्त होने लगा। जिन उदारवादियों ने प्रारंभ में फ्रांसीसी क्रांति का स्वागत किया था लेकिन अब उससे वे दूर हटने लगे थे। प्रतिक्रियावाद का एक नया दौर शुरू हआ। क्रांति के समर्थकों को अविश्वास और संदेह की निगाह से देखा जाने लगा था। अब फ्रांसीसी क्रांति का समर्थक बने रहना खतरे से खाली न था। यह बेहद तूफानी समय था। बीथोवन बहुत प्रारंभ से ही फ्रांसीसी क्रांति के प्रशंसक थे। जब क्रांति का प्रभाव तिरोहित होने लगा उस वक्त भी उसके प्रति वफादार बने रहे। बीथोवन का वियना ऑस्ट्रिया प्रतिक्रियावादी शक्तियों का अगुआ बना बैठा था। साम्राज्य की राजधानी व केंद्र वियना में चारों ओर आतंक का माहौल था। चप्पे-चप्पे पर जासूस थे, हर ओर संदेह का वातावरण था, स्वतंत्र अभिव्यक्तियों को दबाया जा रहा था। लेकिन जिस बात को लिखित रूप में, शब्दों में नहीं बयां किया जा सकता था उसे बीथोवन ने अपने संगीत और अपनी सिंफनियों के माध्यम से स्वर प्रदान किया।
लेकिन जिंदगी ने मानो उनके साथ क्रूर मजाक किया। 1796-97में वो गंभीर रूप से बीमार हो गए। उन्हें मेनिजिाइटिस हो गया जिसने उनके सुनने की क्षमता को बुरी तरह प्रभावित कर डाला। उस वक्त बीथोवन मात्र 28 वर्ष के थे और अपने कैरियर की उंचाइयों को छू रहे थे। इसी समय उनकी श्रवण शक्ति कमजोर पड़ने लगी। सन् 1800 के आसपास उन्हें बहरेपन का एहसास होने लगा। हालांकि वो पूरी तरह अब तक बहरे नहीं हुए थे। परन्तु इससे वह मानसिक अवसाद का इस कदर शिकार हो गए कि उनके अंदर आत्महत्या की प्रवृत्ति जन्म लेने लगी। ऐसे वक्त में संगीत ने उन्हें आत्महत्या से बचाया। अपने अंदर की इस हलचल ने अपनी पीड़ा से पार पाने की जद्दोजहद, इस सबने उसे गहरे मानवतावादी आवेग से भर दिया।
बीथोवन का निजी जीवन भी कभी भी बढ़िया नहीं रहा। उनके अंदर धनी व कुलीन लोगों की पत्नियों व पुत्रियों के प्रेम में पड़ जाने की आदत हो गयी थी। इसका अंत बहुत बुरा व अशोभनीय होता। इससे उन्हें अवसाद के बार-बार दौरे पड़ते। अवसाद के ऐसे ही एक दौरे के दौरान उन्होंने लिखा- “कला, और सिर्फ कला ही है जिसने मुझे बचाया। ऐसा लगता है मेरे लिए इस दुनिया को तब तक छोड़ना मुश्किल होगा जब तक कि जो कुछ मेरे अंदर पनप रहा है उसे संसार के समक्ष अभिव्यक्त न कर दूं।”
इरोइका की रचना
अवसाद से उबरने के बाद बीथोवन ने खुद को नये संगीत के सृजन में खुद को झोंक डाला। इसी दरम्यान 1802में उन्होंने अपनी महान कृति इरोइका की रचना की थी। बीथोवन के जीवन और संगीत के पश्चिमी संगीत के विकास में भी उनकी तीसरी सिंफनी इरोइका एक निर्णायक मोड़ की तरह सामने आता है। पहली व दूसरी सिंफनी मोजार्ट व हेडन की ध्वनियों की दुनिया से कोई भिन्न दुनिया न थी। परन्तु इरोइका अपने पहले स्वर से ही एक दम अलग ध्वन्यालोक में ले जाता है। इस संगीत का सबटेक्स्ट राजनीतिक था।
बीथोवन के आर्केस्ट्रा ने ऐसी धुनों को सामने लाना शुरू किया जो इससे पहले कभी सुनी नहीं गईं थी। इसने वियना के लोगों को चकित कर डाला। हेडन और मोजार्ट के शांत, स्थिर व मधुर धुनों को सुनने के आदी रहे वियनावासियों के लिए यह नई धुन स्तंभित करने वाली थी। 1789 की क्रांति ने जो उथल-पुथल मचा डाली थी इरोइका उसकी प्रतीक मानी जाती है। संगीत दुनिया में यह इंकलाब था जो असली जिंदगी के इंकलाब से प्रभावित व बावस्ता था। इराइका ने सनसनी पैदा कर दी। अब तक कोई भी सिंफनी अधिकतम आधे घंटे की हुआ करती थी लेकिन इरोइका की प्रारंभिक गतियां ही आधे घंटे की थीं। इसके साथ इस संगीत में एक संदेश भी था।
संगीत में ढाली हुई विद्रोह की आवाज़
आखिर एक बिल्कुल भिन्न सांगीतिक भाषा एक विशेष कालखंड में ही क्यों उभर कर आती है? सौ वर्ष पूर्व उस किस्म का संगीत क्यों नहीं अस्तित्व में आता है? बीथोवन ने जैसा संगीत प्रस्तुत किया मोजार्ट, हेडन या कहें बाख ही वैसा संगीत क्यों नहीं सृजित कर पाए?
बीथोवन के ध्वनियों की दुनिया सुंदर गानों की दुनिया नहीं थी जैसा कि मोजार्ट और हेडन के संगीतों की दुनिया थी। यह कानों को सुकून नहीं प्रदान नहीं करता, पैरों को थिरकने पर मजबूर करने वाला प्रीतिकर संगीत नहीं था। उस संगीत ने वियनावासियों को स्तंभित कर दिया था। मोजार्ट और हेडन के खुशनुमा संगीत से यह बिल्कुल अलग था। बीथोवन की पहली दो सिंफनियां पहले की तरह रचे जा रहे संगीत की तरह श्रोता को शिथिल व सुस्त करने वाला लुभावना संगीत था। कुलीन लोगों के लिए रचे जाने वाले इस संगीत 1789 की फ्रांसीसी क्रांति के पहले का संगीत था। तीसरी सिंफनी इरोइकाउस संगीत से निर्णायक विच्छेद था। यह संगीत की दुनिया में एक गुणात्मक छलांग लाने वाली क्रांति की तरह था। बीथोवन अमूमन स्फोजान्दोपदबंध का इस्तेमाल किया करते थे जिसका अर्थ होता है आक्रमण। यह हिंसक किस्म का संगीत है जो गतियों से भरपुर, निरंतर बदलता मूड, द्वंद्व, व संघर्ष का अभिव्यक्त करता प्रतीत होता है।
यह संगीत को आसान सुनने व मनोरंजन का साधन नहीं। यह लोगों को क्रियाशील बनाने वाला संगीत है। यह विद्रोह की आवाज है जिसे संगीत में ढाला गया है।
बीथोवन के संगीत में क्रांति की जड़ें संगीत में नहीं बल्कि समाज के बाहर समाज व इतिहास में हैं। बीथोवन अपने समय की पैदाइश थे और यह समय फ्रांसीसी क्रांति का समय था। संगीत में बीथीवोन द्वारा की गयी क्रांति असली जीवन में फ्रांसीसी कांति की अभिव्यक्ति थी। उसने अपनी सभी महान रचना का सृजन क्रांति के दौरान किया था। क्रांति की जज्बा उसके प्रत्येक स्वर में मानो क्रांति पनप रही हो। फ्रांसीसी क्रांति के संदर्भ के बगैर बीथोवन को समझना मुश्किल है।
अगले अंक में पढ़ें 'बीथोवन: सिर्फ़ संगीत नहीं बल्कि राजनीतिक प्रतिरोध।'
(अनीश अंकुर स्वतंत्र लेखक-पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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