मध्य प्रदेश आनंद विभाग: कर्मकांड और प्रचार से दूर 'आनंद' की हक़ीक़त
मध्य प्रदेश सरकार की कैबिनेट ने 4 जनवरी 2022 को हुई बैठक में ‘आनंद विभाग’ के गठन को मंजूरी दे दी है। इसके अलावा अध्यात्म विभाग का नाम बदलकर अब "धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग" कर दिया गया है। कैबिनेट ने और भी कुछ परियोजनाओं को मंजूरी दी है लेकिन ये दो निर्णय ऐसे हैं जिन पर ध्यान जाना कई वजहों से ज़रूरी है।
उल्लेखनीय है कि 6 अगस्त 2016 को मध्य प्रदेश सरकार ने मध्य प्रदेश शासन कार्य (आबंटन) नियमों में नियम संख्या 2 में संशोधन करते हुए आनंद विभाग को वजूद में लाया था। जिसे 4 जनवरी 2022 को हुई कैबिनेट की बैठक में स्थायी तौर पर मान्य कर लिया गया है। हिंदुस्तान में यह पहली बार हुआ था कि किसी एक राज्य में अपने नागरिकों की खुशहाली को मापने और खुशहाली का प्रचार-प्रसार करने या उनके लिए खुशनुमा माहौल बनाने के लिए सांस्थानिक स्तर पर पहल की हो। 6 अगस्त 2016 को राज्य आनंद संस्थान का गठन भी इसी उद्देश्य से किया गया था।
माना जा रहा था कि मध्य प्रदेश सरकार पड़ोसी देश भूटान के खुशहाली सूचकांकों से बेहद प्रभावित और प्रेरित रही है। हालांकि आज मध्य प्रदेश नागरिकों की खुशहाली के मामले में पूरे देश में राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों की सूची में 33वें नंबर पर है जिसकी तुलना घाना जैसे देश से की जा सकती है। यह जानकारी विकिपीडिया पर है जिस पर पूरी तरह एतबार तो नहीं किया जा सकता लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि मानव विकास सूचकांक जिसके पैमाने लगभग वही हैं जो खुशहाली सूचकांक के लिए अपनाए जाते हैं तो इन सूचकांकों पर मध्य प्रदेश की स्थिति 29 राज्यों में 26वें स्थान पर है। और अगर केंद्रशासित प्रदेशों को भी इसमें जोड़ लिया जाये तो यह 33वें क्रम पर ठहरता है।
विश्व खुशहाली सूचकांक (WHR) की पहली रिपोर्ट 2012 में प्रकाश में आयी थी जिसकी शुरूआत संयुक्त राष्ट्र की एक उच्च स्तरीय बैठक में भूटान के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में ही हुई थी। 2012 से विश्व खुशहाली सूचकांक की रिपोर्ट ‘द सस्टेनेबल डेवलपमेंट सोल्युशन नेटवर्क’ द्वारा प्रकाशित की जा रही है।
2021 की विश्व खुशहाली सूचकांक रिपोर्ट में भारत की स्थिति पिछले सालों की तुलना में बहुत नीचे गिरी है। यह रिपोर्ट बताती है कि 2021 में भारत 139वें स्थान पर आ गया है जो 2013 में 111वें स्थान पर था। खुशहाली के आंकलन के लिए जो पैमाने तय किए गए हैं मुख्य रूप से 6 पैमाने हैं जिनमें सकाल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी, जीवन प्रत्याशा,उदारता, सामाजिक सहयोग, आज़ादी और भष्टाचार शामिल हैं। किसी भी देश के नागरिकों की खुशहाली इन छह मूल कारणों से तय होती है। भारत का स्थान इन छह वजहों से लगातार नीचे गिर रहा है।
लेकिन इसका इलाज़ मध्य प्रदेश सरकार ने अनोखे तरीके से खोजा और बजाय इन छह पैमानों को दुरुस्त करने के सीधा अपने नागरिकों को खुश रखने की सांस्थानिक पहल शुरू कर दी। आनंद विभाग के ऊपर अपने नागरिकों के सर्वांगीण विकास करने और उन्हें हर हाल में यानी भौतिक, भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक रूप से खुशहाल महसूस कराने की महती ज़िम्मेदारी है। इस विभाग और राज्य आनंद संस्थान के मुख्य कर्ता-धर्ता यानी अध्यक्ष प्रदेश के मुखिया श्री शिवराज चौहान ने अपने कंधों पर ली हुई है।
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा नव गठित आनंद विभाग के बारे में ज़्यादा जानकारी 2016 से अस्तित्व में आए राज्य आनंद संस्थान की वेबसाइट है। यहाँ दिये गए ब्यौरों के हिसाब से तो यही लगता है कि 6 साल पहले जब प्रदेश सरकार को इस बावत पहला ख्याल आया था और इसके लिए बजाफ़्ता एक संस्थान गठित किया गया था उसके लगभग 6 सालों बाद इस विभाग को स्थायी दर्जा देने की सख्त ज़रूरत थी। हालांकि ऐसा कोई आंकलन उपलब्ध नहीं है कि इन छह सालों में प्रदेश के नागरिकों की खुशहाली में कितने प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। बावजूद इसके अगर एक संस्थान को बजाफ़्ता नियमों में संशोधन करते हुए एक स्थायी विभाग में बदलने की राजनैतिक कोशिश हुई है तब ज़रूर मध्य प्रदेश सरकार को इन छह सालों में कुछ बेहतर परिणाम प्राप्त हुए होंगे।
संभव है इसकी वजह प्रदेश में बढ़ती बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, जीवन प्रत्याशा में निरंतर गिरावट, शिक्षा का पातालगामी स्तर और प्रति व्यक्ति आय में आ रही निरंतर कमी से नागरिक खुद को निराश या हताश पा रहे हों ऐसे में राज्य सरकार के लिए यह और भी ज़रूरी हो जाता है कि नागरिकों की खुशी का ख्याल रखें और यह एहसास करवाएँ कि वो खुश हैं जिसके लिए खुशहाली से जुड़ी तमाम गतिविधियों के माध्यम से उन्हें यह बताया जा सके कि उनकी प्रदेश सरकार नागरिकों की खुशहाली को लेकर कितना फिक्रमंद है। कई दफा खुशी से ज़्यादा खुशहाली का इज़हार ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है।
आनंद विभाग के तहत कई तरह की गतिविधियों का संचालन किया जाएगा जैसे आनन्द एवं सकुशलता को मापने के पैमानों की पहचान करना तथा उन्हें परिभाषित करना, राज्य में आनन्द का प्रसार बढ़ाने की दिशा में विभिन्न विभागों के बीच समन्वयन के लिये दिशा-निर्देश तय करना, आनन्द की अवधारणा का नियोजन नीति निर्धारण और क्रियान्वयन की प्रक्रिया को मुख्यधारा में लाना, आनन्द की अनुभूति के लिये एक्शन प्लान एवं गतिविधियों का निर्धारण करना, निरंतर अन्तराल पर निर्धारित मापदंडों पर राज्य के नागरिकों की मन:स्थिति का आंकलन करना, आनन्द की स्थिति पर सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार कर प्रकाशित करना, आनन्द के प्रसार के माध्यमों, उनके आंकलन के मापदण्डों में सुधार के लिये लगातार अनुसंधान करना और आनन्द के विषय पर एक ज्ञान संसाधन केन्द्र के रुप में कार्य करना।
इतने महत्वपूर्ण काम करने के लिए एक सुनियोजित यान्त्रिकी की भी ज़रूरत होगी जिसके लिए आनंद विभाग के तहत एक सुनियोजित ढांचा भी तैयार किया गया है। इसकी एक कार्यपालन समिति है जिसकी अध्यक्षता राज्य शासन द्वारा मनोनीत अध्यक्ष करेंगे। सचिव के रूप में राज्य आनंद संस्थान के निदेशक होंगे। इसके अलावा योजना, खेल एवं युवा कल्याण, स्कूल शिक्षा, उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, लोक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण तथा संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव इस समिति में सदस्य होंगे। हर जिले में नियुक्त राज्य आनंद संस्थान के निदेशकगढ़ भी इस समिति में बतौर सदस्य शामिल होंगे और इस समिति के अध्यक्ष के पास यह शक्तियाँ होंगीं कि वो पाँच गैर शासकीय सदस्यों को इस कार्यपालन समिति में नामांकित कर सकते हैं।
इस विभाग की मौजूदा संरचना को देखें तो स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इसके अध्यक्ष हैं। कार्यपालन समिति के अध्यक्ष मौजूदा मुख्य सचिव (पदेन) हैं। इसके अलावा एक लंबी फेहरिस्त इसके सदस्यों की है।
इस विभाग द्वारा आयोजित होने वाले कार्यक्रमों को देखें तो जैसे आनंद की बरसात होते हुए प्रतीत होती है। इसके द्वारा आयोजित होने वाले तमाम कार्यक्रमों और गतिविधियों में आनंद एक संपुट चौपाई की तरह या किसी गाने की टेक की त्राह समाहित है। मसलन आनंद उत्सव, आनंद सभा, आनंदम आनंद क्लब, अल्प विराम।
विभाग द्वारा हर वर्ष 14 जनवरी से 28 जनवरी के बीच ‘आनंद उत्सव’ का आयोजन किया जाता है। जिसकी स्थापना है कि “जीवंत सामुदायिक जीवन, नागरिकों की जिन्दगी में आनंद का संचार करता है”।
आनंद उत्सव का उद्देश्य नागरिकों में सहभागिता एवं उत्साह को बढ़ाने के लिये समूह स्तर पर खेल-कूद और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करना है। आनंद उत्सव की मूल भावना प्रतिस्पर्धा नहीं वरन सहभागिता है । आनंद उत्सव, नगरीय और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में आयोजित किए जाते है । आनंद उत्सव में प्रमुख रूप से स्थानीय तौर पर प्रचलित परम्परागत खेल-कूद जैसे कबड्डी, खो-खो, बोरा रेस, रस्सा कसी, चेअर रेस, पिठ्ठू, सितोलिया, चम्मच दौड़, नीबू दौड़ आदि तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसे लोक संगीत, नृत्य, गायन, भजन, कीर्तन, नाटक आदि एवं स्थानीय स्तर पर तय अन्य कार्यक्रम किये जाते हैं।
यहाँ यह भूलना गैर ज़रूरी है कि मकर संक्रांति के दौरान ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा ‘खिचड़ी’ का आयोजन गांवों गांवों में किया जाता है जिसके जरिये जात-पात में बंटे तथाकथित हिन्दू समाज को संगठित किया जाता है। इसे ‘सह-भोज’ कहा जाता है। इस कार्यक्रम के जरिये हर घर से खाना आता है जिसे आपस में मिश्रित कर दिया जाता है और जिसे सभी जातियों के लोग एक साथ बैठकर खाते हैं। जाति-उन्मूलन के मुकर्रिर इस सालाना आयोजन और आनंद उत्सव के आयोजन की तिथियों में जो साम्य दिख रहा है उसे प्रधानमंत्री की भाषा में ‘संयोग’ न समझा जाये बल्कि एक सधे हुए ‘प्रयोग’ के तौर पर ही देखा जाये।
इसके अन्य आयोजन ‘आनंदम’ की स्थापना भी बहुत मानवीय है। इसके अनुसार ‘दूसरों की निस्वार्थ सहायता करना तथा उसके लिए आगे बढ़कर त्याग करने का भाव भारतीय संस्कृति का आधार है’। सहायता करने के अनेक तरीके हो सकते हैं उदाहरणत: घरों में कई बार ऐसा सामान होता है जिसकी आवश्यकता नहीं होती। ऐसे सामान को किसी जरूरतमंद तक पहुंचाने की संस्थागत व्यवस्था होनी चाहिए। यह मदद करने का प्रभावी तरीका हो सकता है। इसी बात को ध्यान में रखकर ‘’आनंदम’’ नामक व्यवस्था को आरंभ किया गया है। इसके अंतर्गत ऐसा घरेलू सामान, जिसकी आवश्यकता न हो, उसे व्यक्ति एक निश्चित स्थल पर रख दे तथा जिसे जरूरत हो वह वहां से बिना किसी से पूछे ले जा सके। आनंदम की यह व्यवस्था पूरे प्रदेश में हर जिले में समाज सेवी तथा जन प्रतिनिधियों के सहयोग से आरंभ की गई है। एक स्वत: स्फूर्त नागरिक पहल का सांस्थानीकरण और सरकारीकरण कैसे किया जा सकता है उसकी मिसाल इस आनंदम नामक आयोजन के तहत ‘नेकी की दीवार’ जैसी नागरिक पहल में देखा जा सकता है।
‘आनंद सभा’ आमतौर पर स्कूलों में सदा से चली आ रहीं साप्ताहिक बालसभाओं का ही बदला हुआ नाम है। नयापन अगर है तो इतना ही कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारकों को स्कूली बच्चों के बीच अपनी पैठ बनाने के औपचारिक अवसर प्रदान किए जा रहे हैं। ऐसे बच्चे जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में नहीं जाते हैं उन्हें अब शासकीय स्कूलों में ‘आनंद सभाओं’ के जरिये आमंत्रित किया जाता है जो बच्चों एक बीच आकर आनंद का संचार करते हैं।
‘आनंद क्लब’ की परिकल्पना और उनका संचालन इस स्थापना पर आधारित है कि अकेले धनोपार्जन अथवा भौतिक तरक्की समाज की खुशहाली का सूचकांक नहीं है, किताबें पढ़कर केवल उथला ज्ञान ही प्राप्त होता है इसलिए यह जरूरी है कि स्वयं सेवी (आनंदक) पहले यह कौशल खुद सीखें, उसे अपने जीवन में उतारें और फिर अपने अनुभवों को अन्य लोगों तक पहुंचाएं तभी उनके द्वारा की गई गतिविधियां तथा प्रयास प्रभावी होंगे। एक विशेष स्थापना यह भी है कि भले ही प्रसन्नचित रहना हम सभी की जरूरत है परन्तु इसके लिए क्या करना चाहिए इसकी स्पष्ट रूप से जानकारी नहीं होती। विपरीत परिस्थितियों में किस प्रकार संतुलित रहा जा सकता है तथा सामान्य अनुभव में बिना उपलब्धि अथवा सफलता के आनंद कैसे प्राप्त हो सकता है जानना सभी के लिए जरूरी है।
इसके लिए हर छोटे बड़े कस्बे में स्वैच्छिक रूप से आनंद क्लब की स्थापना की जा रही है जो आनंद विभाग के संरक्षण में खुशहाली का प्रचार प्रसार करेंगे।
इस विभाग का अन्यतम कार्यक्रम ‘अल्प-विराम’ सरकारी कर्मचारियों के निमित्त बनाया गया है। सभी विभागों के सरकारी कर्मचारियों को उनके काम से पंद्रह मिनिट से आधे घंटे का एक विराम दिया जाएगा जिसमें उन्हे प्रेणादायक फिल्में, कोई कहानी या संगीत सुनने के अवसर मुहैया कराये जाएँगे ताकि उनका मन प्रसन्न रहे और वो अपने जीवन में आनंद की अनुभूति कर सकें।
अब दिलचस्प और स्पष्ट तौर पर अंतर्विरोधी स्थिति यह है कि मध्य प्रदेश पिछले 17 सालों से भारतीय जनता पार्टी के शासन काल में रहा आया एक प्रदेश है जिसमें महज़ एक साल चार महीनों के लिए सरकार बदली। उस प्रदेश की स्थिति तमाम मानव विकास सूचकांकों और खुशहाली के सूचकांकों पर बदतर ही होती गयी है। खुशहाली के तमाम पैमानों मसलन प्रति व्यक्ति आय, जीवन प्रत्याशा, उदारता, समाज में परस्पर सहयोग की भावना, भ्रष्टाचार आदि को देखें तो हम पाते हैं कि मध्य प्रदेश की स्थिति इन तमाम पैमानों में देश के अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की तुलना में बुरी तरह गिरी है।
प्रति व्यक्ति आय के मामले में मध्य प्रदेश नीचे से तीसरे पायदान पर है। 1 मार्च 2021 को विधानसभा में जारी किए गए प्रदेश के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक जहां मध्य प्रदेश की जीडीपी पिछले वित्त वर्ष यानी 2019-20 की तुलना में 3.37% घाट गयी है वहीं प्रति व्यक्ति आय प्रति व्यक्ति आय प्रचलित भावों के आधार पर वर्ष 2020-21 में 98 हजार 418 रुपए रह गई है जो वर्ष 2019-20 में 1 लाख 3 हजार 288 थी। यानी प्रति व्यक्ति आय में भी 4.71% की कमी आई है। इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि मध्य प्रदेश में बेरोजगारों की संख्या 25 लाख के करीब पहुँच गयी है। ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार फिलहाल मध्य प्रदेश सरकार के ऊपर 2.56 लाख रुपए का कर्ज़ है जिसका सीधा आशय है कि मध्य प्रदेश के एक एक नागरिक के ऊपर 34 हजार रुपए का कर्ज़ है। कर्ज़ में दबे नागरिकों की खुशहाली के लिए आनंद विभाग की स्थापना भी एक बेजोड़ कदम है जिसे ऐसी चुनौतियों का सामना करने के लिए एक नायाब तरीका माना जा सकता है।
गरीबी के मामले में उत्तर प्रदेश और बिहार को छोड़ दें तो मध्य प्रदेश में इनकी संख्या सर्वाधिक है। मध्य प्रदेश की एक तिहाई आबादी परिभाषा के अनुसार गरीब है। 2.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे किसी तरह जीवन यापन कर रहे हैं।
बाल मृत्यु दर के मामले में मध्य प्रदेश देश में नंबर एक पर है। 2019 में प्रकाशित हुए आंकड़ों के हिसाब से मध्य प्रदेश में बाल मृत्यु दर प्रति एक हजार बच्चों पर 46 है। जिसे पूरी दुनिया में 181वीं रैंक मिली है और जिसकी तुलना अफ्रीकी देश टोगो (180) और नाइजर (183) जैसे देशों से की जा सकती है। बाल मृत्यु दर के लिए जिम्मेदार परिस्थियों में कुपोषण और गरीबी के अलावा स्वास्थ्य सेवाओं की स्थितियों को समझा जा सकता है।
शिक्षा के मामले में मध्य प्रदेश देश के सबसे फिसड्डी राज्यों में अपनी जगह बनाए हुए है। देश के अन्य राज्यों की तुलना में मध्य प्रदेश की स्थिति नीचे से छठवें पायदान पर है। इसे तीसरी श्रेणी के राज्यों में गिना जाता है। मध्य प्रदेश मुख्यत: 16 मापदंडों पर पिछड़ रहा है जिसमें इन्फ्रास्ट्रक्चर, ड्रॉपआउट, छात्र-शिक्षक अनुपात, स्कूलों में पहुंच,समानता और सरकारी सिस्टम शामिल है। इन तमाम कमियों से जूझते मध्य प्रदेश में हालात ऐसे हैं कि पहली से बारहवीं कक्षा तक 82 प्रतिशत छात्र स्कूल छोड़ देते हैं।
समाज में सद्भाव या उदारता का आलम निरंतर उग्र होते ध्रुवीकरण के कारण समाज में गहरे जड़ें जमाती जा रही हिंसा की शक्ल में हर रोज़ अखबारों की सुर्खियां बन रही हैं। इसके बारे में कोई आधिकारिक आंकलन का स्रोत नहीं है लेकिन मध्य प्रदेश जिस तरह से सांप्रदायिक आधारों पर बंट रहा है और सरकार के संरक्षण में लंपट तत्वों को खुलेआम अल्पसंख्यकों विशेष रूप से मुसलमानों और ईसाइयों पर हमलों की छूट हासिल है वह किसी से छिपी नहीं है।
ऐसे में खुशहाली की संख्याकीय और ‘कृत्रिम व्यवस्था’ बनाकर खुशी को पाखंडी कर्मकांड में बदलना असल में अपने नागरिकों को भ्रम में रखने का तो मासूम प्रयास है ही लेकिन वास्तव में अपनी नाकामियों और प्राथमिकताओं पर पर्दा डालने की भी सुचिन्तित और सुनियोजित कोशिश है।
(लेखक पिछले डेढ़ दशकों से जन आंदोलनों से जुड़े हैं।
व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।)
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