Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

महाराष्ट्र : मुसलमान है तो सिर्फ़ ‘अपराधी’? कौन बो रहा सांप्रदायिक नफ़रत के बीज?

सिर्फ़ शक के आधार पर एक मुस्लिम युवक को पीट-पीटकर मार डाला। ये महज़ घटना कैसे हो सकती है? और अगर घटना नहीं है तो इसके पीछे का कारण क्या है? महाराष्ट्र में क्यों बढ़ती जा रही हैं ऐसी घटनाएँ?
muslim
प्रतीकात्मक तस्वीर।

महज़ नाम पूछकर पीटने लग जाना, गालियां देना, नारे लगवाना और फिर सुकून नहीं मिलने पर हत्या कर देना, जैसे फैशन सा हो गया है। सोशल मीडिया पर पिटाई और हत्याओं के वीडियोज़ की जैसे बाढ़ सी आई हो, अपने फोन या लैपटॉप पर स्क्रोल करते जाइए, और हिंसक वीडियोज़ को अपने मन मुताबिक प्रतिक्रियाएं देते जाइए.. दावा है कि ये वीडियोज़ खत्म नहीं होंगे... बोलने में ज़ुबान घबरा रही है लेकिन ये हाल है इन दिनों अमृत काल को जी रहे भारत वर्ष का।

कहने का अर्थ ये है कि भले ही देश की सरकार कानून व्यवस्था और ख़ुद के कामों की तारीफें चुपड़ने में कसर न छोड़ती हो, लेकिन सच है कि कुछ बहुरूपिया देशभक्तों और रक्षकों ने न्यायपालिका को अपने ठेंगे पर रखा हुआ है, जब चाहे, जहां चाहे, किसी को भी मारपीट कर कानून को खुली चुनौती देते हैं, और बाद में वहीं कानून सत्ता के दबाव में उन्हें स्पेशल ट्रीटमेंट देता है, उनके ख़िलाफ शिकायत नहीं लिखता है, और उन्हें छोड़ा देता है।

यही कहानी इन दिनों महाराष्ट्र की है, जहां हैं तो कई राजनीतिक दल, लेकिन मजाल है कि हिंदुत्व के हिंसक कामों के ख़िलाफ कुछ बोल दें। अब ताज़ा मामला ही देख लीजिए... एक हिंसक भीड़ ने दो युवकों को पकड़ लिया, उन दोनों के गुनाह भी दो थे, एक तो ये कि वो दोनों मुसलमान थे, और दूसरा ये कि उनपर शक था कि वो गोमांस की तस्करी कर रहे हैं। यहां एक बात का ध्यान दीजिए कि वो मुसलमान हैं इसलिए ‘शक’ को अपराध की ही संज्ञा दी जाएगी।

इसके बाद जो हुआ उसपर आश्चर्य नहीं होना चाहिए, यानी भीड़ ने उन दोनों को इतना मारा कि एक की मौत हो गई, जबकि दूसरा अस्पताल में मौत के साथ लड़ रहा है। ये वीडियो देख लीजिए...

इस वीडियो में आपको दो युवक दिख रहे होंगे, दोनों बुरी तरह से लहूलुहान हैं... जो लेटा हुआ है उसका नाम अफ्फान अब्दुल अंसारी है और इसकी उम्र 32 है, बाद में इसी शख्स की मौत हो गई थी। दूसरा युवक जो बैठा है उसका नाम है नसीर गुलाम हुसैन कुरैशी। जिसकी हालत भी बहुत ज़्यादा ठीक नहीं है।

24 जून की रात को इस पूरी वारदात को अंजाम दिया गया। जिसे लेकर पीड़ितों के परिजन बताते हैं कि ये घटना कुर्ला कसाई बाड़े के अंदर घटी है, इसमें एक की हत्या कर दी गई, जबकि दूसरे को ख़राब हालत में नासिक से मुंबई लाया गया। डॉक्टरों ने कोई सीटी स्कैन या ठीक तरह की जांच नहीं की है। मृतक के मामा मोहम्मद असगर कहते हैं कि दोनों बच्चों के साथ गौरक्षक और आरएसएस वाले थे, जो करीब 26 लोग थे, इन सभी ने दोनों बच्चों को टोल नाके से उठा लिया और दूसरी जगह ले गए, रस्सी से हाथ-पैर बांधकर तीन घंटे तक मारा है। असगर बताते हैं कि जिस गाड़ी से दोनों बच्चे आए थे, उसमें किसी तरह का कोई गोमांस नहीं थी, फिर भी इसका शक किया और पिटाई की। असगर सरकार पर भी सवाल उठाते हैं कि आरएसएस और बजरंग दल की गुंडई बढ़ती जा रही है, इन्हें सरकार ने खुला छोड़ रखा है।

मृतक की मां कहती हैं कि पुलिस प्रशासन से मांग है कि हमारे बच्चे के साथ हुआ वो किसी और के साथ न हो, अगर किसी को पकड़ा भी है, तो इतनी बुरी तरह से मत मारो, पुलिस है, सरकार है वो अपना काम करेंगे। अगर आरएसएस और बजरंग दल वाले ऐसा करेंगे तो सरकार का क्या काम है। उनकी मां ने कहा कि मृतक के दो छोटे बच्चे हैं और पत्नी है, उन्हें कोई मदद मिलनी चाहिए।

क्योंकि वीडियो सोशल मिडिया पर बहुत ज़्यादा वायरल हो चुका था, तो पुलिस ने भी कार्रवाई करने में देर नहीं की, घोटी पुलिस ने इस केस में अभी तक 11 लोगों को गिरफ्तार कर लिया है, जो मांस लड़कों की गाड़ी में मिल है उसे टेस्ट के लिए लैब भेज दिया गया है। लेकिन सवाल वही पुराना और सीधा सा है, कि कानून व्यवस्था और शासन का वजूद क्या है?

इसके घटना के पीछे का कारण और मकसद समझने के लिए इसमें इसी तरह की घटनाएं जोड़ देना और ज़रूरी है.. जैसे पिछले दिनों नासिक से ही एक मुस्लिम युवक की मॉब लिंचिंग कर दी गई थी, ये मामला बीते 8 जून का है। इस दिन करीब 15-16 लोगों ने मिलकर एक युवक को पीट-पीटकर मार डाला था। उस युवक का अपराध वही कि वो मुसलमान था और उसपर पशु तस्करी का शक था। इस नफरती भीड़ के हाथों जो युवक मरा था, उसका नाम लुकमान अंसारी है। वो अपनी जीप में मवेशियों को ले जा रहा था, तभी अचानक राष्ट्रीय बजरंग दल से जुड़े लोगों ने उसकी जीप को रोक लिया, और मारपीट शुरू कर दी, इसके दो दिनों बाद यानी  10 जून को लुकमान की लाश मिली थी। इस मामले में एक अन्य व्यक्ति भी घायल हुआ था। फिलहाल पुलिस ने 6 लोगों को गिरफ्तार किया है।

इससे भी पहले एक घटना महाराष्ट्र के परभणी में हुई, जहां बकरी चोरी के शक में तीन बच्चों को इतना पीटा गया कि एक की मौत हो गई, जबकि दो बच्चे गंभीर रूप से घायल हो गए।

आपको बता दें कि ऐसे मामलों की पूरी फहरिस्त है, जो देश में इन दिनों हो रहे हैं, लेकिन महाराष्ट्र भी ऐसे मामलों के ज़रिए अपने नंबर इसी फहरिस्त में बढ़ाता ही चला जा रहा है। अब इसके पीछे का कारण भीड़ के भीतर गुस्सा है, इसमें कोई दो राय नहीं है, लेकिन भीड़ के भीतर गुस्से की जड़ पनप कहां से रही है, बड़ी बात ये है।

जैसा कि सभी को मालूम को है पिछले कितने सालों से देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग चरम पर है, और इसकी अनुयायी है संघ यानी आरएसएस, और इस आरएसएस के मकसद को पूरा करने के लिए राजनीतिक मदद कर रही है भाजपा और सामाजिक मदद कर रहे हैं हिंदुत्ववादी संगठन। जैसे बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद, गौरक्षक दल।

इस समाज के खिलाफ और एक तरफा मकसद को पूरा करने के लिए इन दलों ने जो हथियार चुना है, उसे हम सीधे तौर पर हिंसा कह सकते हैं, जिसके लिए बहुत शातिर तरीके से लोगों के ज़हन में बिठाया जा रहा है। यानी ये जो मॉब लिंचिंग की घटनाएं घट रही हैं, इसके पीछे एक बड़ा राजनीतिक मकसद छुपा हुआ है इससे इनकार कर पाना थोड़ा मुश्किल है।

अभी हम सिर्फ महाराष्ट्र की बात करेंगे, और हमें बहुत ज़्यादा पीछे भी नहीं जाना पड़ेगा, पिछले महज़ तीन-चार महीनों में अपराधों की लिस्ट खंगालेंगे तो  महाराष्ट्र के अलग-अलग हिस्सों में सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने की कम से कम 10 घटनाएं मिल जाएंगी। इनमें खास बात है कि ये सभी घटनाएं बहुत साधारण कारणों के इर्द-गिर्द थीं जिसमें जुलूस, मंदिर, मस्जिद और सोशल मीडिया पोस्ट जैसी चीजें शामिल थी, और इन तीन-चार-पांच कारणों ने राज्य में हिंदू और मुस्लिम समाज के बीच ज़बरदस्त तनाव को जन्म दे दिया है।

सबसे ताज़ा घटना तो गौमांस के शक में एक मुस्लिम युवकी की हत्या है, लेकिन हम इससे थोड़ा पीछे चलेंगे और नासिक जिले के त्र्यंबकेश्वर में हुई घटना के ज़रिए आगे बढ़ेंगे। दरअसल यहां कुछ संगठनों ने आरोप लगाया था कि कुछ मुसलमानों ने ज़बरदस्ती मंदिर में घुसने की कोशिश की थी, जिसके बाद खूब बवाल हुआ। हालांकि बाद में शहर के कई निवासियों ने कहा कि ये एक पुरानी परंपरा थी जहां मुसलमान मंदिर की सीढ़ियों पर देवता को सुगंधित धुआं दिखाते हैं और मंदिर के पास से गुजरते हैं। क्योंकि ये घटना तो थी नहीं, प्लान के हिस्से में अचानक मिलने वाले अवसर की तरह था, तो डर के कारण मुस्लिम समाज ने इस खुशबूदार धुंआ दिखाने वाली परंपरा को बंद करने का फैसला किया। तो दूसरी ओर हिंदुत्ववादी संगठनों के ग्रुप “सकल हिंदू समाज” के सदस्यों ने मंदिर में गोमूत्र छिड़का ताकि मंदिर शुद्ध हो जाए।

यहां इस बात का ध्यान रखना भी ज़रूरी है कि देश के भीतर ऐसी कई धार्मिक जगह हैं, जिसकी पूजा हिंदू और मुसलमान के मिलने के बाद ही पूरी होती है, या फिर दोनों का योगदान होता है, जैसे लखनऊ में अलीगंज का पुराना हनुमान मंदिर, जिसे एक मुसलमान ने बनवाया और हिंदू समाज के लिए आज वो सबसे बड़ा आस्था का प्रतीक है। उसी मंदिर में मुसलमान की ओर से शुरु किए गए भंडारे को हर साल ज्येष्ठ के महीने में पूरा शहर मनाता है। दरअसल यही एकजुटता हिंदुस्तान की संस्कृति है।

लेकिन इस संस्कृतियों को हाशिये पर रखकर राजनीतिक दल और संगठन अपने मकसद को पूरा करने की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं। कहने का अर्थ है कि ऐसे कारनामों के लिए बीच बहुत पहले डाला जा चुका था, मौजूद वक्त में सिर्फ उसे पानी दिया जा रहा है। जैसे एक उदाहरण लीजिए पिछले साल का यानी 2022 का, और याद कीजिए अप्रैल महीने की 7 तारीख़ को फिर चले आइए पिछले साल के ही मई महीने में। जब राज ठाकरे की नव निर्माण सेना ने लाउडस्पीकर के ख़िलाफ एक अलग ही अभियान छेड़ दिया था, जगह-जगह हनुमान चालीसा का पाठ होने लगा, हिंदूवादी संघठन कहने लगे कि अगर लाउडस्पीकर अज़ान बंद नहीं हुई तो उसी वक्त पर हनुमान चालीसा का पाठ किया जाएगा। इसके बाद मिल गया लव ज़िहाद का मामला। मुंबई की श्रद्धा वाकर की कथित तौर पर उसके मुस्लिम प्रेमी द्वारा हत्या के बाद “लव जिहाद” पर हंगामा शुरु हो गया। राज्य भर में सकल हिंदू समाज ने 50 से ज़्यादा ‘हिंदू जन आक्रोश’ रैलियों में कथित ‘लव जिहाद’ के खिलाफ लोगों को सचेत करने के लिए आंदोलन शुरू कर दिए।

लव ज़िहाद का मामला ठंडा नहीं पड़ा था कि शहरों के नाम बदलने शुरू हो गए। औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति संभाजीनगर और उस्मानाबाद का नाम बदलकर धाराशिव कर दिया गया। ताकि उनके इस्लामी प्रभाव को मिटा दिया जा सके।

सिर्फ इतना ही नहीं शिवसेना में टूट और महाराष्ट्र की राजनीति में हुआ बड़ा बदलाव भी इसका बहुत बड़ा कारण है। यूं समझिए, कि महाराष्ट्र की राजनीतिक पार्टियां हिंदुत्व पर अपने वर्चस्व का दावा करने के लिए बहुत संघर्ष कर रही हैं। जिसमें भाजपा तो है ही, जिसने रास्ता तो हिंदुत्व का पकड़ रखा है, लेकिन बीच-बीच में रुकरुकर मुसलमानों को भी आवाज़ दे देती है, लेकिन उनके सुनते ही आगे बढ़ जाती है। एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना जो जबरन बाला साहेब ठाकरे को अपने साथ जोड़ने पर अमादा है, और ये भी कहने से नहीं चूकती कि उन्हीं के हिंदुत्व को लेकर हम आगे बढ़ रहे हैं, इसके अलावा उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना, जिसे बाला साहेब ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे चला रहे हैं, और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना। इसके अलावा कांग्रेस छुपकर ही सही लेकिन हिंदुत्व के एजेंडे पर संघर्ष ज़रूर कर रही है। अब क्योंकि उद्धव ठाकरे ख़ुद को असली शिवसेना बताते हैं और वो कांग्रेस के साथ आकर खड़े गए हैं, तो इन लोगों को बाला साहेब का कट्टर हिंदुत्व मिलना लाज़मी था, लेकिन दूसरी एकनाथ शिंदे इस हिंदुत्व को अपनी और भाजपा की मिली-जुली कट्टरता से काटने के लिए हर चाल चल रहे हैं। यही कारण है कि इनकी शह में काम करने वाले जो हिंदुत्ववादी संगठन हैं वो हर दिन बहुत उग्र होते जा रहे हैं।

क्योंकि हमने बात की राज्य में शिवसेना के दो फाड़ के कारण पनपे संप्रादायिक उन्माद की, तो हमें एक बार फिर से त्र्यंबकेश्वर की घटना पर लौटना चाहिए, क्योंकि उस दौरान राज्य के गृह मंत्री और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि कुछ संगठन और लोग हैं जो चाहते हैं कि राज्य में अशांति फैले। जबकि विपक्षी महा विकास अघाड़ी के नेताओं ने इसके लिए भाजपा को दोषी ठहराया और सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के लिए हिंदुत्व के नाम पर गिरोह बनाने की साजिश की ओर इशारा किया।

अब यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि आरोप-प्रत्यारोप तो जनता को दिखा-सुना दिए गए लेकिन न तो सत्तारूढ़ दल- एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और भाजपा ने इसका कड़ा विरोध किया और न ही एमवीए की किसी पार्टी ने जिसमें उद्धव वाली शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी है। यानी राज्य में इस तरह के सांप्रदायिक नफरतों की संख्या बढ़ने के बारे में किसी ने भी मजबूती से आवाज नहीं उठाई।

यानी पहले जहां शिवसेना और भाजपा आपस में कॉम्पटिशन करते थे कि कौन बड़ा हिंदू है, वहीं अब इस कॉम्पटीशन में टीमें बढ़ गई हैं। और यही कारण है कि ऐसी घटनाएं जब होती हें, तब कोई भी पार्टी हिंदुत्ववादी संगठनों के खिलाफ कड़े शब्दों में बोलने से डरता है, ताकि उसकी राजनीति प्रभावित न हो।

जैसा कि सभी को पता है कि भाजपा और शिवसेना का मूल एजेंडा ही हिंदुत्व रहा है, लेकिन कांग्रेस अक्सर इससे बचती आई है, लेकिन पिछले दिनों अपनी हालत ज़मीनी स्तर पर देखने के बाद अब कांग्रेस भी इसी रास्ते पर चल पड़ी है, जैसे उदाहरण के तौर पर पहले कर्नाटक का चुनाव देख लीजिए, कि पहले तो कांग्रेस बजरंग दल को बैन करने तक तैयार हो गई, लेकिन मध्य प्रदेश में चुनाव से पहले बजरंग दल के सपोर्ट में उतर आई।

अब अगर थोड़ा सा प्रैक्टिकल होंगे, तो पूरे देश में खासकर उत्तर भारत के राज्यों में, मध्य प्रदेश में, महाराष्ट्र में हिंदुत्व के मसले पर ज़मीनी स्तर पर भाजपा बहुत मज़बूत है, इनके कार्यकर्ता बहुत मज़बूत है, लेकिन उनकी छवि बहुत उग्र है, यानी गंडागर्दी वाली बनी हुई है, वो मस्ज़िदों, मज़ारों और मौलानाओं के खिलाफ बोलते हैं, मदरसों में पढ़ाई के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं। यहां तक भाजपा के बड़े-बड़े मंत्री और विधायक भी खुलकर मुसलमानों का विरोध करते हैं, जबकि दूसरी ओर कांग्रेस छुपे मुंह ही सही लेकिन हिंदुत्व के एजेंडे पर अपनी जड़े फैलाने की कोशिश कर रही है, जिसमें वो भाजपा को टक्कर दे पाएगी ये कहना मुश्किल है।

लेकिन ये कहना बहुत आसान है, इन पार्टियों का मुस्लिम विरोधी हिंदुत्व वाली लहर अपने मुफीद बनाने के लिए कम्पटीशन देश के लिए बहुत घातक है। जिसका खामियाज़ा हम संप्रादायिक हिंसा के रूप में देखते हैं, संस्कृति पर हमले के रूप में देखते हैं और एक वर्ग को खत्म कर डालने की मंशा रखने के रूप में देखते हैं।

(व्यक्त विचार निजी हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest