पत्रकारों पर बढ़ते हमलों के ख़िलाफ़ कई पत्रकार संगठन आए एक साथ
दिल्ली: देश की राजधानी में कई पत्रकार संगठन एक साथ आए और दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में एक साझा बैठक की। इसमें स्वतंत्र पत्रकारिता पर हो रहे हमले को लेकर चिंता जताई गई। इसके साथ ही देशभर में पत्रकारों की उनके काम को लेकर हो रही गिरफ्तारियों पर भी चिंता व्यक्त करते हुए एक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास किया गया। प्रस्ताव में पत्रकारों ने फैक्ट चेकिंग वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ (Alt News) के पत्रकार मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ़्तारी को लेकर भी रोष प्रकट किया और इसे स्वतंत्र पत्रकारिता पर हमला बताया।
पत्रकारों और स्वतंत्र मीडिया प्लेटफॉर्म पर हो रहे हमले के खिलाफ देश की प्रतिष्ठित संस्था प्रेस क्लब ऑफ़ इण्डिया, दिल्ली जर्नलिस्ट यूनियन, डिज़ीपब, आईडब्लूपीसी समेत कई अन्य पत्रकार संगठन और बड़ी संख्या में पत्रकार इस बैठक में शामिल हुए।
बीते सालों में भारत में पत्रकारों पर कई गंभीर हमले हुए हैं, यहाँ तक कई पत्रकारों को अपनी जान की कुर्बानी भी देनी पड़ी है। मोदी सरकार आने के कुछ समय बाद ही बेंगलुरू में संपादक गौरी लंकेश, श्रीनगर में शुजात बुखारी सहित कई पत्रकारों की हत्या तक हुई। लेकिन सरकार ने कुछ नहीं किया। बल्कि दूसरी तरफ जो निष्पक्ष और आलोचनात्मक पत्रकार हैं उनपर सरकारी दमन बढ़ा है।
प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा ने कहा कि देशभर में पत्रकारों के खिलाफ एकतरफ हमले हो रहे है। दूसरा जहां दुनिया भर में कोरोना प्रतिबंध हट गए हैं वहीं भारत में कोरोना प्रतिबंध के नाम पर पत्रकारों पर गैरजरूरी प्रतिबंध लगाए हुए है। आज भी इन प्रतिबन्ध के कारण पत्रकारों को संसद मीडिया गैलरी के पास नही दिए जा रहे हैं।
लखेड़ा ने ज़ुबैर की गिरफ़्तारी को सरकार का एक संदेश बताया और कहा सरकार इन हमलों से पत्रकारों को डराना चाहती है। इस डर को देश के लोकतंत्र के लिए ख़तरा भी बताया।
इसके साथ ही उन्होंने गंभीर सवाल उठाते हुए कहा की कि ये सरकार हमारे ही एक वर्ग को हमारे खिलाफ इस्तेमाल कर रही है वो मीडिया को चरमपंथी या कट्टर बनाया जा रहा है, जिससे देश में सिर्फ़ ज़हर ही ज़हर फैले।
द वायर के संस्थापक सिद्धार्थ वरदराजन ने कहा कि ज़ुबैर का मामला दिखता है कि सरकार का पत्रकार के खिलाफ कितना गलत व्यवहार है। उन्होंने कहा ज़ुबैर ऑल्ट न्यूज़ के लिए फैक्ट चेक करते है। जो की मीडिया का अभिन्न अंग है, क्योंकि मीडिया अपना ये काम नहीं कर रहा है इसलिए इस तरह के प्लेटफॉर्म बनाया गया है।
आपको बता दें कि कुछ लोग ज़ुबैर के पत्रकार होने पर ही सवाल उठा रहे थे। सिद्धार्थ ने कहा ऑल्ट न्यूज़ सत्ताधारी दल के झूठे प्रचार में बाधा बन रहा है। इसलिए उनपर ये हमला हो रहा है। इसके साथ ही उनकी मुस्लिम पहचान के कारण हमला हुआ क्योंकि पिछले सालों में हमने ये पैटर्न देखा है। ये भी वही है।
हालांकि ज़ुबैर का कोई अकेला सवाल नही है। पिछले कुछ सालों में स्वतंत्र पत्रकारिता के मामले में दुनिया भर में भारत की स्थिति खराब हुई है। पिछले साल रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की एक रिपोर्ट आई थी जिसमें भारत को पत्रकारिता के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में शामिल किया गया था। इस रिपोर्ट के मुताबिक 2021 वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत को 180 देशों में 142 स्थान मिला है, जो मीडिया स्वतंत्रता की खराब स्थिति को जाहिर करता है। उसी साल रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने दुनिया के 37 ऐसे नेताओं की सूची जारी की थी, जो मीडिया पर लगातार हमलावर हैं। उनमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी नाम है ।
भारत में इस समय कई पत्रकार जेलों में बंद हैं। कश्मीर के तो कई पत्रकार जेल में बंद हैं। जबकि केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को साल 2020में अक्टूबर में उस वक्त गिरफ्तार कर लिया गया था जब वह उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुए एक बलात्कार और हत्या के मामले की खबर के सिलसिले में यूपी गए थे। कप्पन तभी से यूएपीए के तहत जेल में हैं।
इसी तरह कुछ महीने पहले उत्तर प्रदेश के बलिया से एक पत्रकार को पेपर लीक की खबर चलाने के कारण जेल में डाल दिया गया था।
राजधानी दिल्ली में एक कथित हिंदू महापंचायत में पुलिस के मौजूदगी में पत्रकारों और ख़ासकर मुस्लिम पत्रकारों पर हमला किया गया। लेकिन पुलिस ने उसमें भी कुछ नहीं किया।
जबकि दूसरी तरफ किसान आंदोलन की कवरेज़ कर रहे एक स्वतंत्र पत्रकार मनदीप पुनिया को इसी साल 30 जनवरी को दिल्ली के सिंघु बॉर्डर से गिरफ्तार कर लिया गया था। बाद में उन्हें ज़मानत पर रिहा कर दिया गया।
इन सभी हमलों के बीच दिल्ली में इस तरह की मीटिंग हुई। जो दिखाता है कि देश के पत्रकार इन घटनाओं से दुःखी तो है ही साथ में ही उनमें गुस्सा भी है।
देश के वरिष्ठ पत्रकार टीएन निहान ने कहा ये अच्छा है कि हम इस तरह की मीटिंग कर रहे हैं जहां मीडिया कर्मी एक साथ अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं। लेकिन मुख्य समस्या है कि मीडिया ख़ुद में एकजुट नहीं है। टीवी, प्रिंट , डिजिटल के सबके अलग डायनमिक है और सबकी राजनीति अलग है। लेकिन एक बात सबके लिए है की मीडिया की आज़ादी और निजी मीडिया कर्मी की सुरक्षा सबसे जरूरी है। हमें इस मुद्दे पर एक स्वर में बोलना चाहिए।
आगे उन्होंने कहा हम किसी घटना के बाद बयान, मीटिंग और कई बार रैली भी करते हैं लेकिन हमें अब इससे आगे बढ़ना होगा। देश भर में जिस तरह से पत्रकारों पर हमले बढ़ रहे हैं। उनके लिए हमे लीगल एड फंड बनाना चाहिए जिससे पत्रकारों की मदद हो सके। इसके साथ वकीलों की एक टीम जो देश के अन्य हिस्सों में पत्रकारों के केस लड़े। क्योंकि दिल्ली में तो लोग मिल जाते हैं लेकिन बाक़ी राज्यों में ये एक समस्या है।
इस पर प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया के महासचिव विनय कुमार ने कहा कि लड़ाई बहुत लंबी है और हमें एक साथ लड़नी होगी। हम एक वकीलों के पैनल बनाने को लेकर चर्चा कर रहे हैं।
आईडब्लूपीसी की अध्यक्ष शोभना जैन ने कहा इस समय सवाल पूछने पर तो पाबंदी है ही लेकिन जवाब सुनना भी नही चाहते हैं। इस तरह की चुनौतियों के बीच हम काम कर रहे हैं।
उन्होंने भी कहा की हमारी सोच एक नहीं है और यही सबसे बड़ी चुनौती है। अगर हम सब लोगों की एक ही आवाज़ होगी तो दबाव पड़ेगा। लेकिन हमारी आवाज़ एक नहीं है। हमारी एकजुटता नहीं होगी हम अपनी लड़ाई नहीं लड़ पाएंगे।
डीयूजे के अध्यक्ष एसके पांडे ने न्यूज़क्लिक से कहा कि ये सरकार पत्रकारों को ही नही स्वतंत्र डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म को भी निशान बना रही है। हमने देखा है कि कैसे इस सरकार ने वायर और न्यूज़क्लिक जैसे संस्थानों पर हमले किए क्योंकि ये ही कुछ संस्थान हैं जो आलोचनात्मक रिपोर्टिंग कर रहे हैं।
बैठक में मीडिया के सामने आज जो चुनौतियां हैं, उसको लेकर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास किया गया। इसमें मुख्यतौर पर पत्रकारों के ख़िलाफ़ हो रही एफआईआर और सरकारी इवेंट में पत्रकारों पर लगे प्रतिबंध जैसे मुद्दे शामिल थे। पूरा प्रस्ताव यहां पढ़े
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