स्मृति शेष: विनोद रंजन सरल स्वभाव के प्रतिबद्ध गांधीवादी थे
पटना: नागरिक सरोकारों और जनतांत्रिक अधिकारों के लिए प्रतिबद्ध संस्था 'सिटीजन्स फोरम' की ओर से बिहार के चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता विनोद रंजन की स्मृति सभा का आयोजन कृष्णा नगर स्थित कार्यालय में हुआ। स्मृति सभा में पटना के सामाजिक, सांस्कृतिक क्षेत्र से जुड़े व्यक्तित्व, विभिन्न जनसंगठनों के प्रतिनिधि के अलावा विनोद रंजन को जानने वाले लोग, शामिल थे।
सबसे पहले उनकी तस्वीर पर उपस्थित लोगों द्वारा फूल चढ़ाए गए।
सर्वप्रथम सिटीजन्स फोरम के संयोजक अनीश अंकुर ने विनोद रंजन के जीवन पर प्रकाश डाला " सिटीजंस फोरम के सभी अभियानों में वे बढ़चढ़कर हिस्सा लिया करते थे। कई मोर्चों पर उनकी सक्रियता थी। जब उनको ब्रजकिशोर स्मृति प्रतिष्ठान के प्रबंधन द्वारा गलत तरीके से हटाया गया। इसका उन्हें काफी दुख था। अपने अंतिम दिनों में योगी आदित्यनाथ के सरकार द्वारा बनारस के सर्वोदय आश्रम को बचाने के लिए संघर्षरत थे।"
स्मृति सभा का संचालन फिलहाल की संपादक प्रीति सिन्हा ने किया।
सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रभूषण जी ने उनको याद करते हुए बताया " विनोद रंजन लंबे समय से सामाजिक कार्यों से जुड़े थे। उनका जाना पटना शहर में बहुत खलनेवाला है। उनके साथ सर्वोदय मंडल के कार्यक्रमों में जाया करता था। हम लोगों ने उनकी याद में एक स्टडी सेंटर चलाना तय किया है। "
शिक्षा कार्यकर्ता राजीव रंजन ने कहा " मेरा उनसे 2002 से संपर्क था। मैं उनके तबसे सानिध्य में था। तब उनके और मेरे विचारों में काफी मतभेद था क्योंकि मैं वामपंथी पृष्ठभूमि से आया था।लेकिन धीरे-धीरे उनसे ऐसा अपनत्व हुआ कि बिहार और पटना के विभिन्न संस्थाओं से जुड़ सका तो यह उनके कारण ही संभव हो सका। विनोद जी खाना खाने में दो दाना भी छूट जाता था तो वे उसका विरोध करते थे। कई बार एक ही कुर्ता पूरे बांह का पहना करते थे और फट जाने पर आधे बांह का पहनने लगते थे। वे अलग स्वभाव और व्यक्तित्व के स्वामी थे। उनको इस बात का अहसास था कि दलित पृष्ठभूमि के कारण उनके साथ भेदभाव किया जाता रहा है। उनका नाम विनोद रंजन चौधरी था। इधर कुछ सालों से परिवार के कारण बहुत तनाव में थे। तीन महीना पहले उनकी मां का भी देहांत हुआ। विनोद जी चलता फिरता शब्दकोश थे। बिहार के किसी जिले में ठहरने की व्यवस्था वे कर सकते थे।"
रूपेश के अनुसार " हंसता हुआ चेहरा उनकी पहचान थी। मेरा उनसे संपर्क 1983 का है। उनका जन्म 12 मई 1960 को हुआ था। पटना कॉलेज से उनकी पढ़ाई हुई थी। उनके घर के आसपास ही समाजवादी पार्टी और राष्ट्र सेवा दल का कार्यालय था। वहीं से सार्वजनिक जीवन में आए। वे मुजफ्फरपुर के रमण जी और अनिल प्रकाश से जुड़े थे। संघर्ष वाहिनी और गंगा मुक्ति आंदोलन से संबंध रहा। विनोद जी दो भाई और दो बहन थे। उनके एक भाई की काफी पहले मधुबनी में अपहरण कर हत्या कर दी गई थी। इस कारण उन पर पारिवारिक जिम्मेवारी अधिक थी। उन्होंने अंतर्जातीय विवाह किया था। व्यवहार के मामले में वे बेहद सरल रहे। और अक्सर समस्याओं की चर्चा करते थे। 'संवाद', 'बिहार लोक अधिकार मंच', 'गांधी स्मारक निधि' तथा 'ब्रजकिशोर स्मारक प्रतिष्ठान' और 'सिटीजंस फोरम' से उनका जुड़ाव था। विनोद रंजन ने कोरोना का टीका नहीं लिया था। बिहार सर्वोदय मंडल की जमुई में बैठक में गए थे। वहां से आने के बाद उनको और शाहिद कमाल को बुखार आया। शाहिद कमाल तो ठीक हो गए। लेकिन विनोद रंजन ठीक नहीं हो पाए। उनके परिवार और दोस्तों दोनों ने उनके इलाज में कोई कसर न छोड़ी।"
एटक के राज्य महासचिव अजय कुमार ने विनोद रंजन के संबंध में बताया, " उनसे परिचय सिटीजंस फोरम की बैठकों से हुआ। दो चार बैठकों में उनसे अपनत्व हो गया था। वे व्यवहार कुशल और कर्मठ थे। वे संघर्षशील थे। उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि के बारे में पता भी न चला। ब्रज किशोर स्मारक प्रतिष्ठान में ताला बंद कर दिया गया था जबकि वे उस संस्था के अध्यक्ष थे। वे गांधीवादी थे, संघर्ष वाहिनी से जुड़ाव रहा। कम उम्र से ही समाज के लिए काम करने की लालसा थी। अपनी बीमारी की परवाह न करने के कारण असमय चले गए।"
चक्रवर्ती अशोक प्रियदर्शी ने बताया " विनोद रंजन बड़े आदमी थे लेकिन सादा रहा करते थे। संघर्ष वाहनी में जब विभाजन हुआ तो वे दूसरे धड़े के साथ थे। वे अपने एक्टिविस्ट और एन.जी.ओ गतिविधि दोनों में संतुलन बिठाने का काम करते थे। एक एक्टिविस्ट को वर्तमान और इतिहास दोनों से संबंध बिठाना पड़ता है। पटना रिपब्लिक और बाहर के समाज में उनको खासा सम्मान मिला। लेकिन मौत के वक्त थोड़े असहाय से थे। वे अपने पीछे ऐसा समाज छोड़ गए हैं जिसमें हजारों ईमानदार कार्यकर्ता हैं।"
विजयकांत सिन्हा ने विनोद रंजन को याद करते हुए कहा "मैं विनोद रंजन को तबसे जानता था जब मैं पटना कॉलेज में ए.आई.एस.एफ से जुड़ा था और इंटर का छात्र था। जब छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का निर्माण हुआ तो उसके हार्डकोर साथी थे। जो उनको सत्य लगता था उससे पीछे नहीं हटते थे। जिन आदर्शों को छोड़कर वे विदा हुए हैं हमें उनको आगे बढ़ाना चाहिए।"
नंदकिशोर सिंह ने बताया " मैं भी उन्हें सिटीजंस फोरम के माध्यम से ही जान पाया। वे कई किस्म के गतिविधियों में बिहार और बाहर भी आया-जाया करते थे। जीवन के अंतिम वक्त तक उनकी सक्रियता कायम रही। अंतिम बैठक में उनसे ब्रज किशोर प्रतिष्ठान की समस्या के बारे में बात हुई थी। हमलोग क्या कर सकते हैं इस बारे में उन्होंने जानाना चाहा था। मैं सत्तर के दशक में पटना विश्विद्यालय के छात्र आंदोलन से जुड़ा था। उस समय वहां छात्र वाहिनी के लोग भी थे। 1985 में वाहिनी में विभाजन हुआ था। वे घनश्याम वाले धड़े के साथ थे। बाद के दिनों में गांधी निधि के मंत्री थे। उनकी चिंता थी कि जिस स्तर की चुनौतियां हैं उसका सही ढंग से मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं बल्कि पिछड़ जा रहे हैं। हमें अपनी सीमाओं का भी अहसास है। जितना भी कंटा-छंटा जनतंत्र है इसे पूंजीवादी जनतंत्र कहना बेहतर होगा। इस पर फासीवाद शक्तियों ने भीतर से कब्जा कर लिया है। दंगा का विरोध करने वालों को जेल में डाल दिया जाता है। हम सब लोग उसके राडार पर हैं। इस लड़ाई को मिल जुल कर ही लड़ा जा सकता है। मुकाबला करने के सिवाय कोई रास्ता नहीं है।"
गालिब खान ने कहा " विनोद रंजन को मैं 1990 के बाद से जानता रहा हूं। 1980 के बाद से बिहार की राजनीति में जेपी लहर का असर रहा। वे समाजवाद में यकीन रखा करते थे। सिटीजंस फोरम के गठन में उनके भूमिका थी। वे ऐसे फोरम के निर्माण के प्रति चिंतित थे। लोकतंत्र, गरीबों की बातों और उनके सपनों को कैसे आगे ले जाया जाए यह हमारे लिए चुनौती है। हम सारे लोग यहां है वे अस्सी के बाद की राजनीति में भूमिका वाले लोग हैं। यह सिटीजंस फोरम और आगे कैसे वाइब्रेंट बने यह सोचना चाहिए। उनके विचारों को आगे बढाना ही उनके प्रति सच्ची श्रृद्धांजलि है।"
रंगकर्मी विनोद कुमार वीनू ने उन्हें याद करते हुए कहा "मेरी उनसे मुलाकात 1970 के अंतिम दशक से थी। मेरी दो बहने संघर्ष वाहिनी में थीं। उन जैसा कार्यकर्ता बहुत मुश्किल से पैदा होता है। वैसा सरल और सहज कार्यकर्ता कम होता है।"
रंगकर्मी मोना झा ने अपने संबोधन में कहा " सिटीजंस फोरम की बैठकों में वे हमेशा समय पर आया करते थे। खाना खाते समय उनकी थाली में भोजन बहुत करीने से रहा करता था। "
पत्रकार कुलभूषण गोपाल ने बताया " उनसे सर्वोदय आंदोलन से संबंधित कार्यक्रमों के बारे में जानकारी मिला करते थे। "
देवरत्न प्रसाद ने बताया " उनसे पटना सिटी में होने वाले कार्यक्रमों में मुलाकात हुआ करती थी। जब कोई कार्यकर्ता रहता है उसके बारे में हमें ठीक से विचार करना चाहिए।"
पत्रकार अमरनाथ झा ने बताया " मैं पत्रकार आदमी हूं। वे बहुत उपयोगी आदमी थे। उनसे सर्वोदय धारा के साथ-साथ वाम धारा के कार्यक्रमों के बारे में जानकारी मिलती थी। वे जिंदगी में कभी बीमार नहीं पड़े। जब बीमार पड़े तो फिर मौत ही हो गई।"
सी.पी.आई. के पटना जिला सचिव विश्वजीत कुमार ने बताया "उनका अचानक चले जाना स्तब्ध करने वाला कहर है। वे प्रतिबद्ध और गरीबों के साथ रहने वाले साथी थे। मलाही पकड़ी में जब झुग्गी झोपड़ी उजाड़ा गया इसमें सिटीजंस फोरम ने जो हस्तक्षेप किया उसमें उनकी बड़ी भूमिका थी।"
जयप्रकाश ललन ने कहा " जब भी सिटीजंस फोरम की बैठक होगी हमें विनोद रंजन की कमी खलेगी।"
पत्रकार सीटू तिवारी ने बताया " उनसे कुछ सालों पहले बात हुई थी। वे कम से कम शिकायतों और विनम्रता के साथ मिला करते थे। "
मणिलाल ने बताया " विनोद रंजन से परिचय बीस सालों से था। उनसे मिलने से नई ऊर्जा मिला करती थी। उनसे लगातार मुलाकतें होती रहतीं थीं। बनारस में गांधी स्मारक को बचाने के लिए आंदोलन में गए। साईं हॉस्पिटल में भर्ती हुए। शक था कि उनको कैंसर है लेकिन जांच में निगेटिव आया। वे हमलोगों के लिए प्रेरणास्रोत थे।"
अधिवक्ता अशोक चंद्रवंशी ने कहा " उनके साथ पी.यू.सी.एल में जुड़ाव था। कई जगहों पर उनके साथ जाना हुआ था।"
समाजिक कार्यकर्ता पूनम प्रियदर्शी ने बताया " हमलोग नूतन व्याख्यान माला में हुआ करती थी।अंतिम मुलाकात गांधी संग्रहालय में हुई थी। उनका हंसता चेहरा याद आता है। उनका जाना दुख भरा है।"
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए अरुण मिश्रा ने कहा " मेरा उनसे सिटीजंस फोरम के दौरान ही परिचय हुआ। आज जो युद्ध चल रहा है ऐसी अवस्था में एक भी सिपाही का जाना बेहद दुखद है। आज जरूरत है कि जितने लोगों को भी जोड़ सकें। हम जिस जनतंत्र के लिए लड़ रहे हैं। आज नवउदारवादी दौर में बुर्जुआ डेमोक्रेसी के पक्ष में खड़ा होना है। तीन दिन में ट्रक हड़ताल ने सरकार को झुका दिया वार्ता करने के लिए। हमें इन शक्तियों के साथ होना है। यह स्वतः स्फूर्त आंदोलन था। ड्राइवरों में आज भी उतना ही गुस्सा है। हमें उन ताकतों को पहचान कर आगे बढ़ना चाहिए। निराश होने की कोई जरूरत नहीं। बर्बर हमारे दरवाजे पर हैं। अब लड़ने के सिवा कोई चारा नहीं है।"
दूसरे अध्यक्ष अरविंद सिन्हा ने कहा " विनोद रंजन को मैं अस्सी के दशक से जानता रहा हूं। वे मुझ से 10 साल छोटे थे। क्या बीमारी रही यह पता ही नहीं चला। हमारे यहां स्वास्थ्य विभाग में कई सारे विभाग ही नहीं है जिस कारण बीमारी का पता नहीं चलता और लोगों का असमय निधन हो जाता है। जिस दबंगई से सत्ताधारी काम कर रहे हैं वह चिंताजनक है।"
स्मृति सभा को संबोधित करने वालों में प्रमुख थे सतीश कुमार, नौबतपुर से आए मनोज कुमार, विश्वमोहन चौधरी संत, अनिल अंशुमन, सुनील सिंह, जौहर, पुष्पराज, गोपाल शर्मा ने भी संबोधित किया। सभा में मौजूद प्रमुख लोगों में थे जयप्रकाश, आनंद शर्मा, देवरत्न प्रसाद, चंद्रबिंद सिंह, कमलकिशोर, विश्वमोहन चौधरी संत आदि।
अंत में सभा में दो मिनट का मौन रखा गया।
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