मिर्ज़ापुर में मिड-डे-मील की चोरी: बर्तन-गिलास तक ‘बेचे’, प्रिंसिपल-शिक्षक गिरफ़्तार
उत्तर प्रदेश का मिर्जापुर सुर्खियों में है। एक विद्यालय के प्रधानाध्यापक और सहायक अध्यापक पर आरोप है कि उन्होंने मिलकर मिड-डे-मील योजना का 43 बोरी खाद्यान्न समेत स्कूली बच्चों को भोजन-दूध परोसे जाने वाले बर्तनों को भी बेच दिया। आरोप है कि दोनों शिक्षकों ने अपने बचाव के लिए खुद ही चोरी की रिपोर्ट भी दर्ज करा दी थी। जांच हुई तो तस्वीर कुछ और नज़र आई। पुलिस ने दोनों शिक्षकों को फ़िलहाल गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया है। इससे पहले राज्य में हुए नमक रोटी प्रकरण में जिन अध्यापकों को दोषी मानते हुए निलंबित किया गया था वे अब बहाल हो गए हैं और विधिवत ड्यूटी कर रहे हैं।
ये पूरा मामला मिर्जापुर के अमोई पुरवा स्थित कंपोजिट विद्यालय का है। विद्यालय के सहायक अध्यापक सूर्यकांत तिवारी ने 03 जनवरी 2023 को संतनगर थाना पुलिस को खाद्यान्न और बर्तन चोरी की सूचना दी। तहरीर के मुताबिक, "कंपोजिट विद्यालय में बने महात्मा गांधी कक्ष के कमरे का ताला तोड़कर दो जनवरी की रात 23 बोरी चावल, 21 बोरी गेहूं के अलावा 30 थाली और 20 ग्लास चोरी कर लिया गया।" मिड-डे-मील राशन चोरी का मामला उजागर हुआ तो पुलिस और प्रशासन की नींद उड़ गई। दरअसल, यह वही जिला है जहां 22 अगस्त 2019 को मिड-डे-मील योजना के तहत बच्चों को नमक रोटी खिलाए जाने का मामला चर्चा में आया था। मिर्जापुर की मौजूदा कलेक्टर प्रियंका निरंजन उस समय जिले की मुख्य विकास अधिकारी हुआ करती थीं और उन्होंने ही इस मामले की जांच की थी। बाद में पुलिस ने मिर्जापुर के पत्रकार पवन जायसवाल के ख़िलाफ़ संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया था।
राशन चोरी की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद मिर्जापुर के अपर पुलिस अधीक्षक ओपी सिंह (ऑपरेशन) और लालगंज के क्षेत्राधिकारी ने पुलिस की कई टीमें की गठित की। अभियुक्तों की यथाशीघ्र गिरफ्तारी के लिए संतनगर के थाना प्रभारी को सख्त निर्देश दिए गए। 04 जनवरी 2023 को पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि अमोई कंपोजिट विद्यालय का खाद्यान्न गल्ले के एक स्थानीय कारोबारी के यहां छिपाकर रखा गया है। पुलिस ने साक्ष्य जुटाया और गल्ला कारोबारी रमेश सेठ के गोदाम में छापा मारा। पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की तो गल्ला कारोबारी ने सारा राज उगल दिया। गल्ला कारोबारी ने यह भी बताया दिया कि अमोई कंपोजिट विद्यालय के प्रधानाध्यापक और सहायक अध्यापक ने मिड-डे-मील का राशन बेचा था।
जांच में खुलासा, शिक्षकों ने बेचा राशन
पुलिस जांच-पड़ताल से पता चला कि मिड-डे-मील का राशन चोरी नहीं हुआ था, बल्कि दोनों आरोपी शिक्षकों ने ही गल्ला कारोबारी के यहां पहुंचाया था।
संतनगर थाना प्रभारी राम शरीक गौतम के मुताबिक, "खाद्यान्न चोरी के मामले का खुलासा होने पर दोनों अध्यापक लापता हो गए। पुलिस दोनों को ढूंढती रही और वो बचते रहे। दोनों अध्यापकों के मोबाइल फोन सर्विलांस पर लगाए गए। तब उनका सुराग मिला और उनकी संलिप्तता भी उजागार हुई। बाद में पुलिस ने छापा मारकर दोनों अध्यापकों को गिरफ़्तार कर लिया। इस मामले में पुलिस को कई ऐसे अहम साक्ष्य मिले हैं जिससे पता चला है कि अमोई कंपोजिट विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्याम बहादुर यादव और सहायक अध्यापक सूर्यकांत तिवारी लंबे समय से मिड-डे-मील का राशन गोलमाल कर रहे थे। स्कूली बच्चों को भोजन देने के बजाय वो ज़्यादातर राशन बाज़ार में बेच दिया करते थे। बच्चों की थाली-ग्लास बेचने में भी उन्होंने शर्म महसूस नहीं की।"
संतनगर थाना पुलिस ने प्रधानाध्यापक और सहायक अध्यापक को जेल भेज दिया है। गल्ला कारोबारी की गिरफ्तारी अभी तक नहीं हुई है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले 14जनवरी 2017 में मिर्जापुर जिले के पहाड़ी प्रखंड की ग्राम सभा देवरी उत्तरी में एक कोटेदार ने मिड-डे-मील योजना के लिए लाया गया अनाज खुले बाज़ार में बेच दिया था। इस मामले में कोटेदार के ख़िलाफ़ पड़री थाने में मुकदमा दर्ज कराया गया था।
जानकारों का कहना है कि मिड-डे-मील योजना में ऊपर से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार है और दोनों अध्यापकों के सिर पर महकमे के कुछ जिम्मेदार अधिकारियों का हाथ था। खाद्यान्न चोरी होने की सूचना मिलने के बाद बेसिक शिक्षा विभाग के कई अफसरों ने जांच-पड़ताल की, लेकिन वो गुनहगारों को नहीं पकड़ पाए। दोनों अध्यापक तब पकड़े गए जब पुलिस ने जांच आगे बढ़ाई।
इस मामले का पर्दाफाश होने के बाद शिक्षा विभाग ने फिलहाल दोनों अध्यापकों को निलंबित कर दिया है। मिर्जापुर के बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) अनिल कुमार वर्मा ने कहा है कि स्कूली बच्चों के मिड-डे मील के राशन की चोरी बेहद गंभीर मामला है। इस मामले में मड़िहान इलाके के खंड शिक्षा अधिकारी से जवाब तलब किया गया है।
बीएसए वर्मा कहते हैं, "मिड-डे-मील का खाद्यान्न बाज़ार में नहीं बेचा जा सकता है। पुलिस के अलावा शिक्षा विभाग के अधिकारी भी इस मामले की जांच-पड़ताल करेंगे। सिर्फ मड़िहान ही नहीं, समूचे मिर्जापुर जिले में मिड-डे-मील योजना की गहन जांच कराई जाएगी। जिन विद्यालयों में स्कूली बच्चों को दोपहरिया भोजन देने में गड़बड़ी मिलेगी उनके ख़िलाफ़ निलंबन की कार्रवाई की जाएगी। अमोई पुरवा के श्याम बहादुर यादव तथा सहायक अध्यापक सूर्यकांत तिवारी का अपराध बेहद संगीन है। इनकी बर्खास्तगी के लिए शासन को पत्र भेजा जाएगा।"
पहले भी चर्चा में रह चुका मिर्जापुर
एक स्थानीय हिंदी अख़बार के लिए काम करने वाले पत्रकार पवन जायसवाल ने ज़मालपुर प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय शिउर में छात्रों को मिड-डे-मील में नमक के साथ रोटी खाते हुए वीडियो रिकॉर्ड किया था। सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने के बाद स्थानीय प्रशासन की भूमिका पर गंभीर सवाल भी खड़े हुए। हालांकि इस मामले में उल्टा पत्रकार पवन जायसवाल पर ही आपराधिक साज़िश और धोखाधड़ी के आरोप में एफ़आईआर दर्ज की गई। यह मामला 22 अगस्त 2019 का है।
पत्रकार पवन ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि "मिड-डे-मील में बच्चों के लिए सिर्फ़ रोटी बनाई गई थी। सब्ज़ी की जगह नमक दिया गया था। स्थानीय प्रशासन ने पांच मर्तबा इस मामले जांच की। वीडियो और घटनाक्रम को सही पाया गया। स्कूली बच्चों को नमक रोटी परोसे जाने का मामला उजागर होने के बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जांच के आदेश दिए। आखिर में छठी जांच तत्कालीन जिला विकास अधिकारी प्रियंका निरंजन(मौजूदा समय में मिर्जापुर की जिलाधिकारी) ने की और कुछ ही दिन बाद पवन जायसवाल पर आईपीसी की धारा 120 बी (आपराधिक षडयंत्र), 420 (धोखाधड़ी) और 193 (झूठे सबूत गढ़ना) के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया। इसी बीच स्कूल में अनियमितता की सूचना देने वाले राजकुमार पाल नाम के व्यक्ति को पुलिस ने गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया।"
मिर्जापुर में स्कूली बच्चों को दोपहरिया भोजन में नमक रोटी परोसे जाने के मामले में पत्रकार के ख़िलाफ़ केस दर्ज किए जाने का मामला प्रेस काउंसिल आफ इंडिया के पास पहुंचा तो तमाम अफसर तलब कर लिए गए। अपना गला फंसते देख पुलिस ने पत्रकार पवन जायसवाल के ख़िलाफ़ दर्ज रिपोर्ट से उनका नाम हटा दिया। बाद में प्रयागराज में प्रेस काउंसिल आफ इंडिया के चेयरमैन जस्टिस चंद्रमौली कुमार प्रसाद ने इस मामले की सुनवाई करते हुए मिर्जापुर के पुलिस व प्रशासन को कड़ी फटकार लगई। यही नहीं, पुलिस और प्रशासनिक अफसरों को सख्त नसीहत दी। जस्टिस चंद्रमौली ने यहां तक कहा कि यह घटना पत्रकार के ख़िलाफ़ क्रूर कार्रवाई है, जिसमें व्यवस्था ठीक करने के बजाय मैसेंजर के ख़िलाफ़ ही कार्रवाई कर दी गई।
यहां चर्चा में रहे इस तरह के कई मामले
मिर्जापुर जिले में शिऊर प्राथमिक स्कूल पर भीस तरह के आरोप लगे थे। मझवां विकास खंड के पूर्व माध्यमिक विद्यालय बरैनी में एक किलो चावल में 32 बच्चों को तहरी खिलाने का आरोप लगा था। इसके अलावा बच्चों को 400 मिली ग्राम दूध बांटने का आरोप लगा था। यह मामला फरवरी 2020 का है। मानक के अनुसार चार किलो आठ सौ ग्राम चावल व छह लीटर तीन सौ एमएलम दूध का बांटा जाना चाहिए था। एमडीएम के मंडलीय समन्वयक राकेश तिवारी ने इस विद्यालय का मुआयना किया तब यह मामला पकड़ में आया। इस मामले में भी प्रधानाध्यापक की भूमिका पर सवाल उठाए गए थे।
मिर्जापुर का नाम पूर्वांचल के पिछड़े जिले में शुमार है। यहां एक बड़ी आबादी आदिवासियों और वनवासियों की है। मिर्जापुर में 1611 प्राथमिक और 599 उच्च प्राथमिक विद्यालय हैं। इनके अलावा 24 सहायता प्राप्त विद्यालय, 52 मान्यता प्राप्त प्राथमिक विद्यालय, 06 राजकीय और दो मदरसों सहित 2295 विद्यालयों में मिड-डे-मील (मध्याह्न भोजन) योजना संचालित की जा रही है। इस योजना के तहत करीब तीन लाख, 25 हज़ार, 623 बच्चों को लाभान्वित करने का दावा किया जा रहा है।
साल 2019 में संभल जिले में अभिभावकों ने इसलिए हंगामा कर दिया कि बच्चों को ख़राब खाना मिल रहा है। अभिभावकों का कहना था कि "मिड-डे-मील में बासी खिचड़ी और ख़राब केले दिए जाते हैं, और दूध के नाम पर खानापूर्ति की जाती है।"
हालांकि सरकार हज़ारों करोड़ रुपये इस योजना पर न सिर्फ़ ख़र्च कर रही है बल्कि मॉनीटरिंग और क्रियान्वयन के लिए वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के नेतृत्व में एक प्राधिकरण का गठन किया गया है। इसके अलावा सोशल ऑडिटिंग की भी व्यवस्था लागू है। पहले प्राथमिक विद्यालयों में मध्याह्न भोजन के लिए प्रति छात्र 3.11 रुपये और पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में 4.65 रुपये दिए जाते थे। महंगाई को देखते हुए ही पिछले साल एक जुलाई से कनवर्जन कॉस्ट में वृद्धि करने का निर्णय लिया गया। नया शासनादेश जारी होने के बाद एक जुलाई से प्राथमिक विद्यालयों में एमडीएम कनवर्जन कॉस्ट प्रति छात्र 3.34 और पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में प्रति छात्र पांच रुपये दिया जा रहा है।
कुपोषण दूर करना मकसद
मिड-डे-मील स्कूलों में बच्चों को मुफ़्त पौष्टिक भोजन मुहैया कराने की केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी योजना है। इसके तहत देशभर के प्राइमरी स्कूलों में बच्चों को खाना खिलाया जाता है। इसका मकसद ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों में कुपोषण समाप्त करना है। मिर्जापुर के नमक-रोटी कांड के बाद में प्रदेश शासन ने एक नया आदेश जारी करते हुए कहा था कि मिड-डे-मील योजना के तहत हर बच्चे को रोजाना 450 कैलोरी के हिसाब से भोजन दिया जाए, जिसमें कम से कम 12 ग्राम प्रोटीन जरूर होना चाहिए। यूपी में एक करोड़ से अधिक बच्चों को मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। राज्य में 1.5 लाख से अधिक प्राथमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालय इस योजना से कवर हैं।
देश में बाल पोषण को बढ़ावा देने के लिए मध्याह्न भोजन योजना चलाई जा रही है। देश में मिड-डे-मील योजना इसलिए शुरू की गई थी ताकि बच्चों को पौष्टिक भोजन मिले। गरीब घरों के तमाम बच्चे पहले खाली पेट ही स्कूल में आते थे। मिड-डे-मील योजना इसलिए शुरू की गई ताकि हर जाति-वर्ग के बच्चे, साथ बैठकर खाएंगे ऊंच-नीच का भेद मिटेगा। मध्याह्न भोजन योजना भारत सरकार और राज्य सरकार के संयुक्त प्रयास से संचालित योजना है जिसे 15 अगस्त 1995 में लागू किया गया था। पहले इस योजना के तहत बच्चों के अभिभावकों को अनाज उपलब्ध कराया जाता था, लेकिन साल 2004 से सुप्रीम कोर्ट के एक निर्देश के मुताबिक पका-पकाया भोजन प्राथमिक विद्यालयों में उपलब्ध कराने की योजना शुरू की गई।
मोदी सरकार ने मिड-डे-मील योजना का नाम बदलकर अब ‘पीएम पोषण शक्ति निर्माण योजना’ कर दिया है। मिड-डे-मील देने वाले स्कूलों में सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों के अलावा मदरसे भी शामिल हैं। हफ्ते के हर दिन बच्चों को खाने में क्या दिया जाएगा, इसका बाक़ायदा मेन्यू तैयार है जिसे हर स्कूल में अनिवार्य रूप से बड़े-बड़े अक्षरों में लिखाया जाता है। फिलहाल, सरकार का दावा है कि यह योजना देश के करीब 80 करोड़ बच्चों की सेवा करने वाले सभी 11.20 लाख सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में कक्षा 1 से 8 तक के बच्चों को गर्म तैयार भोजन मुहैया कराती है।
कितनी कारगर है योजना?
बनारस के वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं, "यूपी सरकार के लाख प्रयास के बावजूद दोपहरिया भोजन योजना ठीक से फलीभूत नहीं हो पा रही है। इस योजना पर निगरानी के लिए कई तंत्र भले ही विकसित किए गए हैं और उच्च अधिकारियों को भी नियमित तौर पर स्कूलों में भोजन की गुणवत्ता को परखने की ज़िम्मेदारी दी गई है, लेकिन समूची योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है।"
"शहरों में यह योजना ठीक से काम कर रही है, क्योंकि वहां इसकी मॉनीटरिंग भी अच्छे से होती है। कई स्तर के अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों की नजर में रहती है, लेकिन गांवों में यह योजना भगवान भरोसे है। वहां न तो सही समय पर राशन और भोजन सामग्री पहुंच पाती है और न ही समय पर भुगतान हो पाता है। गांवों में यह व्यवस्था मुख्य रूप से गांव के प्रधान और स्कूल के अध्यापक के विवेक पर चलती है। ग्राम प्रधान, प्रधानाध्यापक और रसोइए की तिकड़ी भी इसके ठीक से लागू न हो पाने के लिए काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार है।"
प्रदीप यह भी कहते हैं, "बनारस, लखनऊ, मथुरा जैसे कुछ शहरों में इस योजना को अक्षयपात्र जैसी संस्थाओं के हवाले किए जाने से उसका क्रियान्वयन कहीं ज़्यादा बेहतर हुआ है, लेकिन ऐसे स्कूलों की तदाद दो-चार फीसदी से अधिक नहीं है। दरअसल, मध्याह्न भोजन योजना का बजट इतना ज़्यादा नहीं है कि तय मानकों के अनुसार बच्चों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराया जा सके। दूसरी बात, उसमें भी नीचे से ऊपर तक बचा लेने की आकांक्षा भी दोपहरिया भोजन योजना को भलीभूत नहीं होने दे रही है।"
(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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