शीर्ष अदालत ने अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा के ख़िलाफ़ याचिका पर तीन अक्टूबर तक सुनवाई स्थगित की
उच्चतम न्यायालय ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की नेता बृंदा करात की एक याचिका पर सुनवाई तीन अक्टूबर तक स्थगित कर दी।
इसमें उन्होंने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध में प्रदर्शनों के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा के कथित नफरती भाषणों के संबंध में उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देने से इंकार करने के निचली अदालत के फैसले के विरुद्ध दायर याचिका खारिज करने के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी है।
सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू द्वारा सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किये जाने के बाद न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने मामले की सुनवाई टाली दी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि मामले में प्रतिवादी को आगे और किसी स्थगन की अनुमति नहीं दी जाएगी।
शीर्ष अदालत ने करात की याचिका पर 17 अप्रैल को दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया था।
पिछले साल 13 जून को दिल्ली उच्च न्यायालय ने कथित नफरती भाषणों को लेकर भाजपा सांसदों के खिलाफ माकपा नेताओं करात और के. एम. तिवारी द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया था।
उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था और कहा था कि वर्तमान तथ्यों के मद्देनजर कानून के तहत प्राथमिकी दर्ज करने के लिए सक्षम प्राधिकारी से मंजूरी प्राप्त करना आवश्यक है।
याचिकाकर्ताओं ने निचली अदालत के समक्ष अपनी शिकायत में दावा किया था कि ठाकुर और वर्मा ने ‘‘लोगों को भड़काने की कोशिश की थी, जिसके परिणामस्वरूप दिल्ली में दो अलग-अलग प्रदर्शन स्थलों पर गोलीबारी की तीन घटनाएं हुईं’’।
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि राष्ट्रीय राजधानी के रिठाला में 27 जनवरी, 2020 को एक रैली में ठाकुर ने शाहीन बाग के सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों पर बरसते हुए भीड़ को भड़काऊ नारा -- ‘‘गद्दारों को गोली मारो’’--लगाने के लिये उकसाया था।
उन्होंने दावा किया कि वर्मा ने भी 28 जनवरी, 2020 को शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों के खिलाफ भड़काऊ भाषण दिया था।
निचली अदालत ने 26 अगस्त, 2021 को याचिकाकर्ताओं की शिकायत को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि यह सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि मामले में सक्षम प्राधिकारी केंद्र सरकार से जरूरी मंजूरी नहीं ली गई थी।
अपनी शिकायत में करात और तिवारी ने दोनों भाजपा नेताओं के खिलाफ 153-ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 153-बी (आरोप, राष्ट्रीय एकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले दावे) और 295-ए (जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य, जिसका उद्देश्य किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना है) सहित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध किया था।
उन्होंने आईपीसी की अन्य धाराओं के तहत भी कार्रवाई का अनुरोध किया था, जिसमें धारा 298 (किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से जानबूझकर किया गया शब्द प्रयोग आदि), 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान), 505 (सार्वजनिक उपद्रव को बढ़ावा देने वाले बयान) और 506 (आपराधिक धमकी के लिए सजा)शामिल हैं।
इन अपराधों के लिए अधिकतम सजा सात साल की जेल है।
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