कटाक्ष: अब की बार यू टर्न सरकार
कोई हमें बताएगा कि आखिर यू टर्न में ऐसी क्या बुराई है? यू टर्न भी तो आखिर, टर्न का ही एक प्रकार है। और टर्न माने, गति भी और गति पर नियंत्रण भी। और नियंत्रण भी ऐसा-वैसा नहीं, बाकायदा दिशा परिवर्तित करने वाला नियंत्रण। सीधे चलते चले जाने में, फिर चाहे सीधे चलने वाला आगे जा रहा हो या पीछे, वैसे नियंत्रण की दरकार ही नहीं होती है, जैसे नियंत्रण की किसी भी तरह के टर्न के लिए जरूरत होती है। और यू टर्न का तो खैर कहना ही क्या; यू टर्न नियंत्रण का शिखर मांगता है। वर्ना गाड़ी कभी भी पलट जाए। फिर भी मोदी जी की सरकार ने जब से यू टर्न का कमाल दिखाना शुरू किया है, उसके चमत्कारी नियंत्रण की सराहना करने की जगह, जिसे भी देखो यू टर्न सरकार, यू टर्न सरकार कहकर मजाक उड़ाने की कोशिश कर रहा है। आखिर, विश्व गुरु बनने के दावेदार देश में, नियंत्रण की प्रतिभा का ऐसा निरादर क्यों--द नेशन वांट्स टु नो!
लेटरल एंट्री उर्फ बगलिया भर्ती के मामले में मोदी जी की सरकार के यू टर्न लेने की देर थी, विरोधियों ने बाकायदा इसके दावे करने शुरू कर दिए कि तीसरी पारी में, मोदी सरकार यूं ही चालेगी। इब आगे ना चाले, मुड़-मुड़ के पाछे ही चालैगी। पर ये बात सरासर गलत है। बेशक, यू टर्न में पीछे मुड़ा जाता है। पर इसे सिर्फ पीछे मुड़ना मानना और बताना, सरासर गलत है। यू टर्न में पीछे मुड़ा ही नहीं जाता है, पीछे मुड़ने से पहले आगे बढ़ा भी जाता है। आगे बढ़ेंगे ही नहीं, तो पीछे लौटेंगे कैसे? सोचने की बात है कि अगर मोदी जी की सरकार ने लेटरल एंट्री से नौकरशाही में करीब चार दर्जन आला अफसर, प्राइवेट कंपनियों से बुला-बुलाकर भर्ती करने, इन भर्तियों में आरक्षण-वारक्षण को अंगूठा दिखाने, सरकारी सेवा को संघ सेवा बनाने के कदम ही नहीं उठाये होते, तो यू टर्न लेकर वापस क्या लेते? आगे बढ़े थे और शान से लंबे डग लेकर आगे बढ़े थे, तभी तो पीछे लौटने की गुंजाइश बनी।
और रही बात नियंत्रण की तो मानना पड़ेगा कि मोदी जी की सरकार का टर्न इतना स्मूथ था कि आसानी से कोई कह नहीं सकता कि आगे जाते-जाते कब पीछे जाने लग गए। जो एकदम मौलिक मास्टर स्ट्रोक था, वह पिछले वाली सरकारों की परंपरा का ही विनम्र निर्वाह बन गया और वह भी महत्वपूर्ण सुधार के साथ। मोदी जी के मंत्री जी ने बताया, तब देश को यह ध्यान आया कि मनमोहन सिंह भी तो कभी लेटरल एंट्री ही थे। और भी न जाने कौन-कौन? पर पहले लेटरल एंट्री में मनमानी चलती थी। राज करने वाले किसी की भी लेटरल एंट्री करा देते थे। पर अब सब व्यवस्थित किया जा रहा था। लेटरल एंट्री में अग्निवीरता का तडक़ा लगाया जा रहा था; लेटरल एंट्री के लिए यूपीएससी से इंटरव्यू तक कराया जा रहा था! बस एक जरा सी कसर रह गयी, लेटरल एंट्री की गाड़ी का आरक्षण की व्यवस्था की पटरी के साथ तालमेल बैठाना भूल गए। बस विरोधियों ने हल्ला मचा दिया, आरक्षण खत्म किया जा रहा है, आरक्षण छीना जा रहा है और भी न जाने क्या-क्या? खैर! मोदी जी ने कह दिया, पहले आरक्षण की व्यवस्था से तालमेल बैठाओ, फिर लेटरल एंट्री की गाड़ी आगे बढ़ाओ। इतनी सी बात पर विरोधियों ने यू टर्न का शोर मचा दिया, जबकि वास्तव में इसमें यू टर्न जैसी तो कोई बात ही नहीं है। बस एलाइनमेंट की प्राब्लम है, उसे दुरुस्त करने तक गाड़ी रुकी हुई है। पटरी का एलाइमनेंट न रहे तो गाड़ी का क्या होता है, इसका अश्वनी वैष्णव से तगड़ा अनुभव अब तक तो किसी रेल मंत्री को रहा नहीं था।
और जो बार-बार यू टर्न की बात कही जा रही है, वह क्या विरोधियों का शुद्ध दुष्प्रचार ही नहीं है। सचाई यह है कि विरोधी भी, उनसे गिनाने के लिए कहा जाए तो यू टर्न के ज्यादा से ज्यादा तीन-चार मामले ही और गिना पाएंगे। एक प्रसारण विधेयक का मामला जो खासतौर पर यू-ट्यूबरों और बाकी पब्लिक के भी हल्ले-हंगामे की वजह से फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। दूसरा, वक्फ विधेयक जो लोकसभा में पेश किए जाने के साथ, संयुक्त संसदीय समिति की गोद में उछाल दिया गया है। और तीसरा, बजट का लान्ग टर्म कैपीटल गेन के मामले में इंडैक्सेशन खत्म करने का प्रस्ताव, जो वापस भी लिया गया है, पर पूरी तरह से खत्म भी नहीं हुआ है। यानी वापसी, मगर शर्तों के साथ। बहुत खींच-खांच कर यू टर्न का ज्यादा से ज्यादा एकाध कोई मामला और निकल आएगा। ढाई महीने में कुल चार-पांच बार पलटी यानी एक पखवाड़े में एक पलटी; जाहिर है कि बाकी समय तो सरकार सीधे ही चल रही होगी। फिर यह झूठ क्यों फैलाया जा रहा है कि मोदी जी की ये सरकार, यू टर्न ही यू टर्न ले रही है; अब की बार, यू टर्न सरकार, वगैरह। जाहिर है कि ऐसा कुछ भी नहीं है।
सच तो यह है कि इनमें से ज्यादातर मामलों को ठीक-ठीक यू टर्न कहा भी नहीं जा सकता है। वक्फ विधेयक, प्रसारण विधेयक, कहीं गए थोड़े ही हैं; वापस तो हर्गिज नहीं लिए गए हैं। बस जरा टल गए हैं, किसी बेहतर मौके के लिए। और इंडैक्सेशन का तो मामला और भी अजब है, वापस हो भी गया है और विकल्प के रूप में बना भी हुआ है। फिर कैसे कोई इन सब को यू टर्नों में गिन सकता है। हम तो कहेंगे कि इनमें शुद्घ यू टर्न तो एक भी नहीं है। और तो और लेटरल एंट्री वाला भी नहीं। उसमें भी लेटरल एंट्री को गलत थोड़े ही माना है, बस आरक्षण की व्यवस्था के साथ एलाइनमेंट खोजना है। बस इतनी सी बात है।
और आखिर में एक बात और। क्या यू टर्न के साथ इस तरह हिकारत से पेश आना भी ठीक है? अरे ये यू टर्न है, कोई रिवर्स गियर थोड़े ही है। गाड़ी तो आगे ही चल रही है ना यानी जिधर को मुंह है, गाड़ी तो उधर ही जा रही है। देश आगे तो बढ़ रहा है। तेज गति से आगे बढ़ रहा है। और आगे बढ़े न बढ़े, तेज गति से चल तो रहा है। और सरकार भी चल रही है, मोदी 3.0 की। अब तो मोदी जी की विदेश यात्राएं भी चल रही हैं और वह भी बिना किसी यू टर्न के। और क्या चाहिए!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)
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