तिरछी नज़र: उसे अब 'चाणक्य नीति' कहते हैं
रात का समय था। सारा संसार सो गया था। पर बादशाह की आंखों से नींद जैसे कोसों दूर थी। उम्र सत्तर पार हो चुकी थी। समझो पिचहत्तर पहुँचने ही वाली थी। बादशाह ने अपने से पहले पिचहत्तर पार करने वालों को उनके घर में बैठा दिया था कि अब आपको बाहर निकलने की जरूरत नहीं है। आप सिर्फ सलाह देने का काम करोगे। और वे अपने घर में इंतज़ार करते करते थक गए थे, आंखें ठहर गईं थीं कि बादशाह अब सलाह लेने आएगा, कि बादशाह तब सलाह करने आएगा पर बादशाह सलाह लेने कभी नहीं आया।
हाँ तो बादशाह को बिलकुल भी नींद नहीं आ रही थी। वैसे भी जब सठियाये हुए तेरह चौदह साल बीत जाएं तो रात चौकीदारी में ही बीतती है। चौकीदारी भी ऐसी कि सुनने की शक्ति कम होने के कारण न तो चोर की खटपट सुनाई देती है और न बुढ़ापे के कारण चोर के पीछे दौड़ने की ताकत बचती है। बादशाह तो रात भर बस खौं खौं करता रहता है और कहता है कि चौकीदारी कर रहा हूँ।
बादशाह को नींद नहीं आती है तो वह अपने रत्नों को भी चैन से नहीं सोने देता है। रत्न क्या, अगर बादशाह को नींद न आये तो रियाया भी कहाँ चैन की नींद नहीं सो सकती है? तो बादशाह की बादशाहत में बादशाह तो जागता ही था, अवाम को भी चैन की नींद नहीं नसीब थी। कोई रोजगार की चिंता में जागता रहता था तो कोई महंगाई के कारण नहीं सो पाता था। अस्सी करोड़ लोग तो पेट आधा ही भरे होने की वजह से नहीं सो पाते थे।
बादशाह को नींद नहीं आई तो उसने अपने सबसे प्रमुख रत्न, रत्न नंबर एक, अलिफ़ को बुला भेजा। अलिफ़ अपने महल से राजमहल दौड़ते दौड़ते पहुंचा। दो घड़ी भी नहीं लगाई होंगी अलिफ़ ने अपने महल से राजमहल पहुंचने में। अलिफ़ जब पहुंचा तो बादशाह किसी चिंता में डूबा हुआ था। उसे अलिफ़ के पहुँचने का पता तक नहीं चला। रत्न अलिफ़ चुपचाप अपने सिंहासन पर बैठ गया। उसका सिंहासन बादशाह के सिंहासन से छोटा, पर बराबर में ही था।
जब बादशाह की तंद्रा टूटी तो उसने अलिफ़ की ओर देखा, "अरे अलिफ़! तुम कब आये, मुझे पता ही नहीं चला। ऐसा तो शायद पहली बार हुआ है"। "हाँ, जहांपनाह! ऐसा पहली बार हुआ है कि आपको मेरे आने की खबर तक नहीं हुई हो। हज़ूर, कुछ अधिक चिंतित लगते हैं", अलिफ़ ने कहा।
"अलिफ़, तुम तो जानते ही हो, यह जो पाँच साल का नियम है ना, यही जी का जंजाल है। यही चिंता का सबब है। पहले अच्छा था। जो एक बार बादशाह बन गया, हमेशा के लिए बन गया। यही चलते रहना चाहिए था। पांच साल बाद उसको दोबारा चुनने का चक्कर अब समाप्त होना चाहिए। मेरी चिंता का सबब यही है", बादशाह ने अपनी चिंता बताई।
"वैसे हज़ूर, मन में डर तो रहता है कि कहीं हार न जाएं पर मज़ा आ जाता है इस चुनावी कवायद में। जिसको जितनी मर्जी गाली दो। बुजुर्गो को तो दस साल से ही नज़रबंद किया हुआ था, इस बार तो हमनें विरोधियों को भी जेलों में भी दिया है। हज़ूर, निश्चिंत रहिये, इस बार भी हमनें हदें पार कर दी हैं। हमें कोई नहीं हरा सकता है। इंशाअल्लाह! अगले बादशाह भी आप ही होंगे। और उसके बाद ये पाँच साल का चक्कर भी ख़तम करने के बारे में सोचेंगे", अलिफ़ ने बादशाह को चिंता मुक्त करना चाहा।
"वह तो ठीक है अलिफ़, लेकिन अवाम के मूड का पता नहीं चलता है। क्या पता उसे कब बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार सताने लगे"। और फिर बादशाह अलिफ़ की ओर खिसक कर फुसफुसा कर बोले, "और वैसे हमने भी तो इंतेहा ही की हुई है"। आदमी जब राज की बात बोलता है तो फुसफुसा कर ही बोलता है भले ही वहां कोई और सुनने वाला न हो। ऐसे समय के लिए ही तो कहा गया है कि दीवारों के भी कान होते हैं। बादशाह ने आगे जोड़ा, "अलिफ़ कुछ ऐसा करो कि हमारे विरोधी कुछ भी न कर पाएं। न सभायें कर पाएं, न रोड शो कर पाएं। अपना प्रचार तक न कर पाएं। बस हम ही हम छाये रहें"।
"जहांपनाह, इसकी सारी तैयारी है। हर नेता के यहाँ छापा पड़ रहा है। कुछ को तो जेल में डाल ही दिया है, बाकी को जेल में डालने की तैयारी है। और पैसा, वह तो उनके पास छोड़ा ही नहीं है। पहले नोटबंदी और फिर नोटबैन ने उनसे पहले ही सारा पैसा छीन ही लिया था। बाकी काम अकाउंट सीज़ से कर दिया गया है। आप चिंता न करें जहांपनाह, वे हमारे से किसी भी बात में आगे नहीं निकल सकते हैं," अलिफ़ ने बादशाह को यकीन दिलाया।
"वे किसी भी बात में हमसे आगे निकलें या नहीं, चालाकी में तो वे हम से आगे निकल ही नहीं सकते हैं " बादशाह ने जोर से ठहाका लगाया। बादशाह के साथ अलिफ़ ने भी ठहाका लगाया, "चालाकी नहीं जहांपनाह, अब हम उसे 'चाणक्य नीति' कहते हैं "।
अब बादशाह का मूड ठीक हो चूका था। बादशाह हँसते हुए अपने शायनकक्ष की ओर बढ़ गए। रत्न नंबर एक अलिफ़ भी अपने महल लौट आये।
(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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