एक राष्ट्र, एक परीक्षा का गहराता संकट
यह काफी समय से चल रही थी, लेकिन आखिरकार यह सामने आ ही गई – आधुनिक परीक्षा प्रणाली, जिसे अक्सर वैश्विक प्रथाओं के अनुरूप बताया जाता है, धराशाी हो गई। हालांकि मेडिकल पाठ्यक्रमों की प्रवेश परीक्षा (NEET) को अभी तक रद्द नहीं किया गया है, लेकिन हर दिन पेपर सॉल्व करने वाले गिरोहों के नए-नए खुलासे उभर कर समाने आ रहे हैं, कुछ खास केंद्रों पर परीक्षा शुरू होने में कथित देरी के लिए बड़े पैमाने पर ‘ग्रेस मार्क्स’ जैसी आधिकारिक धोखाधड़ी की जाने, और इसी तरह की अन्य बातें सामने आ रही हैं। सरकार टेक्नोक्रेट की एक जांच समिति बैठाने, राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी के प्रमुख को बर्खास्त करने, कुछ उम्मीदवारों की फिर से परीक्षा लेने और ढहती व्यवस्था को हमेशा के लिए ठीक करने के बड़े-बड़े वादों के साथ मामले को शांत करने के लिए हाथ-पांव मार रही है। लाखों परीक्षार्थियों और उनके चिंतित परिवारों को यह आश्वासन देते हुए कि सब कुछ नियंत्रण में हैं, सरकार ने कुछ दिन पहले ही हुई यूजीसी-नेट (UGC-NET) परीक्षा और आगामी सीएसआईआर-यूजीसी-नेट (CSIR-UGC-NET) और नीट-पीजी (NEET-PG) परीक्षा को भी रद्द कर दिया है। इस बात का पता नहीं चल पाया है कि ऐसा क्यों किया गया। सर्वोच्च न्यायालय भी इसमें शामिल हो गया है, क्योंकि अदालतों को व्यक्तिगत शिकायतों से लेकर व्यवस्थागत सवालों तक की ढेरों याचिकाओं का सामना करना पड़ रहा है। यह नए भारत के जीवन का एक और दिन है।
हमारी आंखों के सामने, एक आम सहमति गढ़ने की कोशिश की जा रही है - समस्या भ्रष्टाचार और अकुशलता है, और इसे एक सख्त कानून, नए कर्मियों, तकनीकी सुधार/परिष्कार और सरकार में विश्वास जताने के साथ ठीक किए जाने की बात की जा रही है। सरकार - जैसा कि पहले से पता था – अपने उक्त दृष्टिकोण को आगे बढ़ा रही है और कॉर्पोरेट मीडिया इस पर अपना काम कर रहा है, यह पता लगा रहा है कि कैसे पेपर लीक हुए, आदि, शायद लोग न चाहते हुए भी आश्वस्त हो जाएंगे क्योंकि उनके पास इसे जानने का कोई अन्य विकल्प ही नहीं है।
लेकिन कुछ ऐसे गहरे सवाल हैं जो पूछे नहीं जा रहे हैं, हालांकि छात्रों/परीक्षार्थियों और उनके परिवारों ने महसूस किया है जिनका जवाब देना तो बनता है। ये सवाल निम्न हैं:
* क्या परीक्षा प्रक्रियाओं को निजी कम्पनियों को सौंपने से कदाचार और भ्रष्टाचार के द्वार नहीं खुल गए हैं?
* क्या कंप्यूटर आधारित परीक्षा निष्पक्ष और जरूरी है? और, इससे जुड़ा हुआ सवाल यह कि: क्या बहुविकल्पीय प्रश्नों (MCQ) की प्रणाली शैक्षणिक स्तर को मापने का एक निष्पक्ष और वैध साधन है?
* क्या केंद्रीकृत परीक्षा ("एक राष्ट्र, एक परीक्षा") हमारे जैसे विशाल, विविध और असमान देश में, ऐसी परीक्षाएं आयोजित करने का एक निष्पक्ष और वैध साधन बन सकता है?
आइये हम इन मुद्दों पर विचार करें, लेकिन केवल संक्षेप में, क्योंकि ऐसे जटिल मुद्दों की तह तक पहुंचने के लिए देश को वास्तव में किसी प्रकार के जांच आयोग की जरूरत है।
आउटसोर्सिंग की सीमाएं
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एनटीए (NTA) बड़ी संख्या में छात्रों के लिए परीक्षा आयोजित करता है - अनुमान है कि 2023 में यह संख्या 1.23 करोड़ होगी। कुल मिलाकर 15 प्रमुख परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं, जिनमें NEET-UG, JEE, UGC-NET आदि शामिल हैं। व्यावहारिक रूप से देश भर में इन परीक्षाओं को आयोजित करने से संबंधित सभी काम आउटसोर्स किए जाते हैं। एनटीए (NTA) द्वारा जारी किए गए टेंडर, जो उनकी वेबसाइट पर उपलब्ध हैं, इस बात की पुष्टि करते हैं। निजी सेवा प्रदाता अपने कर्मचारियों के साथ परीक्षा आयोजित करने का काम करते हैं, आईटी सिस्टम और क्यूआर कोड से संबंधित सभी तकनीकी सहायता समान रूप से की जाती है। टेस्ट पेपर ऐसे विषय विशेषज्ञों द्वारा बनाए जाते हैं जिन्हें कोई नहीं जानता है और उन्हें टेस्ट डेवलपमेंट कमेटी द्वारा अंतिम रूप दिया जाता है। एनटीए (NTA) से पहले इन परीक्षाओं की जिम्मेदारी, CBSE और AICTE जैसी सरकारी संस्थाओं की होती थी।
स्पष्ट है कि यह पूरी की पूरी परीक्षा श्रृंखला में गड़बड़ी की एक बड़ी संभावना की तरफ इशारा करता है, लेकिन मुख्य रूप से निचले स्तर पर, उन केंद्रों के आसपास जहां वास्तविक परीक्षाएं आयोजित होती हैं। इस आउटसोर्स सिस्टम को रखने का तर्क कहीं और आउटसोर्सिंग के समान ही है – एक तो पैसे की बचत और दूसरा यह विश्वास जताना कि निजी संस्थाएं कम लागत पर उसी काम को बेहतर अंजाम देंगी। ऐसा कोई सबूत नहीं मिलता है जो दिखाता हो कि वास्तव में ऐसा होता है, लेकिन पूरी अर्थव्यवस्था अब व्यावहारिक रूप से अनुबंधित या आउटसोर्स पर चल रही है। यह नवउदारवादी सोच का एक तरीका है जो अधिकांश देशों में अधिकांश नीति निर्माताओं को अंधा कर रहा है।
यहां यह ध्यान रखना उचित होगा कि राज्य चयन बोर्ड जैसी विभिन्न राज्य स्तरीय परीक्षाओं के संचालन में भी आउटसोर्सिंग की गई है, और रेलवे और बैंकों जैसे क्षेत्रों में भर्ती में भी, जिनकी परीक्षा और चयन के लिए अलग-अलग संस्थाएं हैं। नीट (NEET) जैसी प्रतिष्ठित परीक्षाओं में अब जो गड़बड़ी दिखाई दे रही है, वह राज्यों में बार-बार सामने आई है। इस साल की शुरुआत में प्रकाशित द इंडियन एक्सप्रेस की एक जांच में पिछले पांच सालों में 15 राज्यों में कम से कम 48 पेपर लीक के मामले सामने आए हैं। अखबार के एक अनुमान के अनुसार इन लीक ने “लगभग 1.2 लाख पदों के लिए कम से कम 1.4 करोड़ आवेदकों के जीवन को प्रभावित किया” है।
सीबीटी और एमसीक्यू बहिष्कृत वाली प्रणाली हैं
कंप्यूटर आधारित परीक्षा (सीबीटी) और इसके परिणामस्वरूप, एमसीक्यू (बहुविकल्पीय प्रश्न) अब नौकरियों के लिए आवेदकों के ज्ञान या योग्यता की जांच करने के साथ-साथ व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए पसंदीदा विकल्प बन गया है। एमसीक्यू में एक सीधा सवाल शामिल होता है, जिसका उत्तर एक शब्द (या वाक्यांश) या एक अंक में देना होता है। फिर परीक्षा को इस तरह से तैयार किया जा सकता है कि परीक्षार्थियों को 200 मिनट में 180 प्रश्न के जवाब देने होते हैं। ऐसा करने का सबसे तेज़ तर्रार तरीका एक ओएमआर (ऑप्टिकल मार्क रिकॉग्निशन) शीट है, जहां परीक्षार्थी सही उत्तर के सामने एक गोले में रंग भरेगा। तब इस शीट को कम्प्यूटरीकृत उपकरण तेजी से पहचानते हैं और इसका मूल्यांकन करते हैं। प्रश्न पत्र खुद कंप्यूटर पर एक समर्पित साइट पर दिखाई दे सकता है। कुछ मामलों में उत्तर ऑनलाइन भी सबमिट किए जा सकते हैं।
इस प्रणाली में दो स्पष्ट समस्याएं हैं: एक तो यह कि परीक्षार्थी को कम से कम समय में कुछ प्रकार के प्रश्नों के उत्तर खोजने में निपुण होना जरूरी है, और दूसरी बात यह कि परीक्षार्थी के पास नेट और उपयुक्त कंप्यूटर डिवाइस या स्मार्टफोन होना चाहिए। एमसीक्यू (MCQs) का तेजी से उत्तर देने में निपुण होने के लिए, बहुत अधिक रटने जैसा अभ्यास करने की जरूरत होती है। इसके लिए परीक्षार्थी को कोचिंग सेंटर में मदद लेनी पड़ती है जो अब देश के हर कोने में मौजूद हैं। हज़ारों रुपये की फीस वसूलने पर, ये केंद्र छात्रों को सिस्टम को मात देने के लिए प्रशिक्षित करते हैं।
इस प्रकार, पूरी परीक्षा प्रणाली और इसकी जुड़वां कोचिंग प्रणाली, समाज के गरीब तबके, वंचित समुदायों, दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों और जिनके पास मजबूत नेट कनेक्शन तक की पहुंच नहीं है, उनके लिए पहुंच से बाहर है।
यह दूसरे बड़े सवाल से बिलकुल अलग है: क्या इस तरह की परीक्षा से आवेदनकर्ता के ज्ञान और योग्यता का मूल्यांकन किया जा सकता है? क्या यह चिकित्सा या इंजीनियरिंग जैसे अध्ययन के लिए आवेदन करने वाले छात्रों के चयन में मदद करता है? वास्तव में, कई शिक्षा जगत से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि इससे कोई मदद नहीं मिलती है। ये परीक्षा वास्तव में बड़ी संख्या में छात्रों/आवेदकों को शिक्षा से बाहर रखने का साधन है। उदाहरण के लिए इस साल 23 लाख नीट (NEET) आवेदकों में से केवल एक लाख का चयन किया जाना था। सीबीटी/एमसीक्यू (CBT/MCQ) प्रणाली बाकी बचे 22 लाख छात्रों को आसानी से बाहर कर देती। पूरी प्रणाली में धांधली साफ नज़र आता है – यह भ्रष्ट अर्थों वाली धांधली नहीं बल्कि वंचितों के खिलाफ पक्षपातपूर्ण है।
केंद्रीकृत परीक्षाएं क्यों?
पिछले कई सालों में भारतीय जीवन के कई पहलुओं को केंद्रीकृत करने की मुहिम चली है। पिछली सरकारों में इस ‘जरूरत’ को विशुद्ध प्रशासनिक दृष्टिकोण के रूप में महसूस किया गया था। यहां तक कि परीक्षा आयोजित करने के लिए एक केंद्रीय जांच एजेंसी बनाने का विचार भी पहली बार 1990 के दशक की शुरुआत में आया था। इसका एक कारण समाज के बड़े व्यापारिक वर्गों के लिए सुविधा - लाभप्रदता - भी था। इस प्रकार माल और सेवा कर (जीएसटी) जैसे एक कर की मांग की गई। लेकिन, मोदी सरकार ने एक राष्ट्र, सब कुछ एक ही विचारधारा वाली राष्ट्रवादी ऊर्जा दी है – जिसे एक चुनाव, एक राशन कार्ड, एक स्वास्थ्य कार्ड, आदि की तरह पेश किया गया। इस प्रकार प्रत्येक व्यावसायिक स्ट्रीम में प्रवेश के लिए एक केंद्रीय परीक्षा को लागू करना एक स्वाभाविक बात बन गई थी। इससे वे लोग भी संतुष्ट हुए जो शिक्षा के पश्चिमी (अमेरिकी) मॉडल के मुरीद थे और विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए दरवाजे खोलने के अतिरिक्त लाभ के साथ इसे यहां भी अपनाना चाहते थे।
चाहे जो भी हो, केंद्रीकृत अखिल भारतीय परीक्षा की अवधारणा ने सभी क्षेत्रीय आकांक्षाओं और विविधता को खत्म कर दिया, राज्य द्वारा संचालित परीक्षाओं की स्थापित प्रणालियों का अतिक्रमण किया गया और पाठ्यक्रम और परीक्षाओं दोनों को जमीनी हकीकत से दूर कर दिया गया। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, इसने परीक्षा से पहले और परीक्षा के दौरान छात्रों के बड़े वर्ग को बाहर करने में मदद की है।
चूंकि अधिकांश राजनीतिक दलों (कुछ क्षेत्रीय दलों और वाम दलों को छोड़कर) को इस प्रणाली से कोई समस्या नहीं है, और चूंकि इस विफलता के पीछे के गहरे कारणों को देखे बिना उन्हें केवल लीक के बारे में बात करना ही उचित लगता है, इसलिए ऐसा लगता है कि कुछ हाथ मलने और गुस्सा जाहिर करने के बाद, कुछ दिखावटी बदलाव किए जाएंगे, पेपर लीक करने वाले विभिन्न ‘गिरोहों’ को पकड़ा जाएगा (ऐसा होना भी चाहिए) और यह मामला बहुत जल्द ही समाचारों से बाहर हो जाएगा। जरूरत इस बात की है कि, परीक्षा प्रणाली की पूरी स्वतंत्र जांच की जाए, उसके बाद गंभीरता से पुनर्विचार और उसमें सुधार किया जाए। अन्यथा देश के भावी नागरिक अज्ञानता की छाया में जीने के लिए अभिशप्त हो जाएंगे।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:
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