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‘क़ानून वापसी तक जारी रहेगी हड़ताल’: ‘हिट एंड रन क़ानून’ से ड्राइवर्स में भारी रोष

देश भर में ड्राइवर्स सड़कों पर हैं, हड़ताल और प्रदर्शन कर रहे हैं। कई जगहों से झड़प और आगज़नी की भी ख़बरें आईं है। ड्राइवर्स की इस नाराज़गी की वजह है 'हिट एंड रन' क़ानून। जानिए क्या है पूरा मामला।
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फ़ोटो : PTI

देश के कई हिस्सों में ड्राइवर्स सड़कों पर हैं, हड़ताल कर रहे हैं, प्रदर्शन कर रहे हैं। यही नहीं, कई जगहों से पुलिस के साथ झड़प और आगज़नी की भी ख़बरें आईं है। ड्राइवर्स की इस नाराज़गी की वजह है 'हिट एंड रन' क़ानून। कुछ मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने 'हिट एंड रन' नियमों को 'मोटर व्हीकल एक्ट' का हिस्सा बताया, हालांकि अब इस पर ट्रांसपोर्ट मिनिस्ट्री ने सफाई दी है।

ट्रांसपोर्ट मिनिस्ट्री ने कहा है कि कुछ मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर मौजूदा ट्रक ड्राइवर्स की हड़ताल को मोटर व्हीकल एक्ट से जोड़कर देखा जा रहा है। मगर ये ग़लत है। इसका संबंध संसद में पास नए क़ानून से है, न कि व्हीकल एक्ट से।

दरअसल, हाल ही में संसद से भारतीय न्याय संहिता क़ानून को पास किया गया है, जिसमें 'हिट-एंड-रन' को लेकर कड़े प्रावधान हैं। ट्रक ड्राइवर्स ने इन प्रावधानों को लेकर ही प्रदर्शन किया है। आपको बता दें अभी ये क़ानून लागू नहीं हुआ है। सरकार के पक्षकारों का कहना है कि देश में क़ानून को सख्त करने की बेहद ज़रूरत थी क्योंकि हर साल सड़क हादसों में मौत का आंकड़ा बढ़ रहा है।

क्या है ‘हिट एंड रन’ के नए प्रावधान?

भारतीय न्याय संहिता के माध्यम से इंडियन पीनल कोड (IPC) को बदला गया है। इसमें 'हिट-एंड-रन' को लेकर कड़े प्रावधान किए गए हैं। खासतौर पर उस स्थिति में, जब किसी गंभीर एक्सीडेंट के बाद वाहन चालक मौके से फरार हो जाता है और अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं देता है। नए क़ानून के तहत अगर एक्सीडेंट होने के बाद वाहन चालक घायल व्यक्ति को छोड़कर भाग जाता है तो ऐसे में चालक पर 7 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है। सिर्फ इतना ही नहीं, उसे 10 साल जेल की सज़ा भी हो सकती है। यदि ड्राइवर रुक कर घायल व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाए तो सज़ा कम हो सकती है।

प्रदर्शनकारी ड्राइवर्स इन प्रावधानों से नाराज़ हैं, वे इसे ग़लत बता रहे हैं। उनका कहना है सरकार के इस 'अनुचित' क़दम से देश के 22 करोड़ चालक प्रभावित होंगे। ट्रक ड्राइवर्स के प्रदर्शन की वजह से ज़रूरी चीज़ों की सप्लाई नहीं हो पा रही है। इसका सीधा असर सबसे पहले पेट्रोल पंपों पर देखने को मिला है। सप्लाई न होने की वजह कई शहरों के पेट्रोल पंपों पर ईंधन ख़त्म हो रहा है। पेट्रोल पंप के बाहर लंबी कतारें भी देखी गईं।

'ऑल ड्राइवर्स कल्याण संघ' जो कि ड्राइवर्स की यूनियन है, का कहना है कि उनकी लंबित मांगों पर सरकार ने आज तक कोई विचार नहीं किया। यूनियन ने बताया कि उनकी प्रमुख मांगों में ड्राइवर आयोग, राष्ट्रीय ड्राइवर सम्मान दिवस और ड्राइवर राहत कोष समेत 29 सूत्रीय मांगें शामिल हैं। यूनियन का कहना है, "अभी तक सरकार ने ड्राइवर्स की ज़िंदगी पर कोई मंथन नहीं किया। ‌ड्राइवर किस हाल में रहते हैं, किस हाल में जीते हैं, उनका भविष्य कैसा है, उनकी परिस्थितियां कैसी हैं इसका चिंतन किसी ने नहीं किया‌। हादसों और एक्सीडेंट के ज़िम्मेदार ड्राइवर नहीं। सरकार और प्रशासन की ग़लत नीतियां है। ट्रैफिक रूल्स भारत में दुरुस्त नहीं हैं, ट्रैफिक रूल्स की नीतियां ग़लत हैं।”

यूनियन आगे कहती है "ये क़ानून लाने से भारतीय ड्राइवर्स को इंसाफ नहीं मिलेगा। दुखद एक्सीडेंट की स्थिति में ड्राइवर चाहता है कि घायल की जान बच जाए, वह मदद करना चाहता है। लेकिन पब्लिक हंगामा करती है और ड्राइवर जान बचाकर भाग जाता है। अगर वह रुकता है तो पब्लिक उसे पीट-पीट के मार डालेगी, भारतीय ड्राइवर्स के साथ ऐसी अनेकों घटनाएं हो चुकी हैं। लेकिन अब अगर वह अपनी जान बचाकर भागता है तो सरकार का बनाया क़ानून उसको 10 साल की सज़ा देकर उसके घर परिवार को आत्महत्या करने के लिए मजबूर करता है। पांच से दस हज़ार की सैलरी पाने वाला ड्राइवर एक एक्सीडेंट में लाखों रूपये का दंड कहां से जुटा पाएगा। ज़्यादातर ड्राइवर किराए के घरों में रहते हैं। उनका अपना कुछ भी नहीं है। कईयों के पास झुग्गी-झोपड़ी में रूप में अपने घर हैं अगर उनको बेचकर जुर्माना वसूल किया गया तो उनके बाल-बच्चे रोड पर आ जाएंगे। सरकार ग़लत नियम और नीतियों में संशोधन करे और भारत के सभी ड्राइवर्स के साथ इंसाफ करें‌‌।”

कलक्ट्रेट-उदयपुर पर प्रदर्शन

वाहन चालकों के इस देशव्यापी प्रदर्शन को उदयपुर के चालकों ने भी अपना समर्थन दिया। मोटर वाहन दुघर्टना में चालक पर लागू सिविल क़ानून को आपराधिक क़ानून में बदले जाने के ख़िलाफ़ 'टूरिस्ट एंड ट्रैवल्स बस चालक एकता यूनियन (सीटू)’ ने जिला कलक्ट्रेट-उदयपुर पर प्रदर्शन किया एडीएम (सिटी) को ज्ञापन भी सौंपा। जिला कलक्ट्रेट-उदयपुर पर विरोध प्रदर्शन को संबोधित करते हुए, सीटू जिला संयोजक एडवोकेट राजेश सिंघवी ने कहा, "केंद्र सरकार ने मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने का काम किया है। जिस तरह किसान आंदोलन ने मोदी सरकार को तीन काले कृषि क़ानून वापस लेने को मजबूर किया था, वैसे ही देश भर के वाहन चालकों के आंदोलन के कारण सरकार को इस काले क़ानून को भी वापस लेना होगा। इस सरकार की गैर-लोकतांत्रिक तरीके से क़ानून बनाने की नीति, कोई नई बात नहीं है। मोदी जी सबकी बात सुनने की बजाय, अपने मन की बात थोपना चाहते हैं।”

इसी तरह 'टूरिस्ट एंड ट्रैवल्स बस चालक एकता यूनियन' के अध्यक्ष शंकरलाल रेबारी ने कहा कि "विकास के नारे पर राजस्थान की जनता ने भी भाजपा को वोट देकर राज्य में डबल इंजन की सरकार बनाई लेकिन डबल इंजन की सरकार बनते ही उन्होंने इस तरह क़ानून बनाकर जनता के साथ वादाखिलाफी की है। यह विकास का मॉडल न होकर विनाश का मॉडल है जिसमें देश की आम जनता और मेहनतकश ड्राइवर को अपराधी बनाया जा रहा है।”

यूनियन के सचिव सुरेश मेघवाल ने कहा, "अपराध या दुर्घटना रोकने के लिए कड़े क़ानून की नहीं सही नीति बनाने की ज़रूरत है। अधिकांश दुर्घटनाएं सड़कों के सही रखरखाव न होने और तकनीकी कमी के कारण होती है लेकिन सरकारें उस तरफ ध्यान नहीं देती है। यातायात विभाग में क़ानून के पालन की बजाय भ्रष्टाचार हावी है। सड़के टूटी रहती हैं, इसके अलावा लोगों में यातायात नियमों पर चेतना कम है, इसके लिए काम करने की ज़रूरत है।”

सीटू राज्य कमेटी सदस्य हीरालाल सालवी का कहना है कि "सरकार विकास का जो दावा करती है, उसमें सबसे अधिक भूमिका देश के वाहन चालकों की होती है। इस तरह के क़ानून बनाकर उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है।”

'जन सेवा ड्राइवर पार्टी' के सचिव विनोद सिसोदिया ने कहा कि "देश में ट्रक, बस, टैक्सी, ऑटो, ट्रैक्टर, डंपर आदि के चालक अपनी जान को ख़तरे में डालकर 12 से 18 घंटे मेहनत कर देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं लेकिन देश की सरकार उनके हित और सुविधा के लिए सहयोग नहीं करती।”

प्रदर्शन और सभा के बाद राजेश सिंघवी के नेतृत्व में प्रधानमंत्री के नाम अतिरिक्त जिला कलेक्टर (नगर) उदयपुर को ज्ञापन देकर इस क़ानून को वापस लेने की मांग की गई।

काले क़ानून की वापसी तक जारी रहेगी हड़ताल: डॉ. कमल उसरी

प्रयागराज, झूंसी स्थित इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड से संबंधित सैकड़ों टैंकर और ट्रक ड्राइवर्स ने 'इलाहाबाद ड्राइवर एंड वर्कर्स यूनियन (पंजीकृत श्रम मंत्रालय)’ के नेतृत्व में प्रदर्शन किया।

हड़ताल का नेतृत्व कर रहे ऐक्टू के राष्ट्रीय सचिव व इलाहाबाद मोटर एंड ड्राइवर वर्कर्स यूनियन के सचिव डॉ. कमल उसरी ने कहा कि "हिट एंड रन मामले को आईपीसी की धारा 279 (लापरवाही से वाहन चलाना), 304A (लापरवाही के कारण मौत) और 338 (जान जोखिम में डालना) के तहत केस दर्ज किया जाता है। इसमें दो साल की सज़ा का प्रावधान है। विशेष केस में आईपीसी की धारा 302 भी जोड़ दी जाती है। संशोधन के बाद सेक्शन 104 (2) के तहत हिट एंड रन की घटना के बाद यदि कोई आरोपी घटनास्थल से भाग जाता है और पुलिस या मजिस्ट्रेट को सूचित नहीं करता है, तो उसे 10 साल तक की सज़ा भुगतनी होगी और जुर्माना देना होगा। ड्राइविंग लाइसेंस को लेकर सरकार की तरफ से नया नियम लागू किया गया है। 1 अक्टूबर 2024 से सभी वाहनों के लिए सर्टिफिकेट बनवाना अनिवार्य हो जाएगा। ट्रांसपोर्ट मंत्रालय की तरफ से 1 अक्टूबर 2024 से सभी वाहनों के लिए फिटनेस सर्टिफिकेट अनिवार्य होगा। दरअसल संसद में पूंजीपतियों और मालिकों का क़ब्ज़ा हो चुका है इसलिए लगातार संसद में नौजवान, मज़दूर और गरीब विरोधी क़ानून बनाएं जा रहे हैं।”

"केंद्र सरकार ड्राइवर्स के न्यूनतम वेतन, पीएफ़, ईएसआई को सुनिश्चित करने के बजाय ड्राइवर को जेल भेजने और जुर्माना भरने का नियम बना रही है। आज जनता को गैस, सब्जी, खाद्य सामग्री की जो दिक्कत आ रही है उसके लिए स्पष्ट रूप से मोदी सरकार ज़िम्मेदार है। चूंकि यह हड़ताल राष्ट्रीय आह्वान पर आयोजित है इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर लिए गए निर्णय के अनुसार ही हड़ताल आगे जारी रखी या स्थगित की जायेगी।”

माकपा ने किया हड़ताल का समर्थन

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने भी ट्रक ड्राइवर्स की हड़ताल का समर्थन किया है। प्रेस को जारी बयान मे सीपीएम के जिला सचिव राजविंदर चंदी ने कहा कि "मोदी राज कंपनियों का राज है न कि जनता का राज।”

चंदी ने कहा, "सरकार ने दस साल की सज़ा व लाखों रूपये के जुर्माने का प्रावधान इंश्योरेंस कंपनियों के लिए किया है क्योंकि एक्सीडेंट मामलों मे इंश्योरेंस कंपनियों को याचिकाकर्ता को बतौर क्षतिपूर्तिकर्ता मुआवज़े देने पड़ते हैं, मोदी सरकार इन कंपनियों के दबाव में यह बोझ समाज के कमज़ोर हिस्से - ड्राइवर्स पर डालना चाहती है। पुराने क़ानून में अपराधों की विस्तार से व्याख्या है लेकिन एक्सीडेंट के अपराध जो अचानक होने वाली घटना है, इसमें इतनी बड़ी सज़ा व जुर्माना लगाना सरासर ग़लत है।"

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