यूपी: 5 अप्रैल को दिल्ली में मज़दूर-किसान संघर्ष रैली के लिए तैयारी तेज़
लखनऊ: मजदूरों, किसानों और कृषि श्रमिकों की 'मजदूर किसान संघर्ष रैली' की तैयारी जोरों पर है और पूरे उत्तर प्रदेश से इसे उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिल रही है।
केंद्र सरकार की 'मजदूर और किसान-विरोधी' नीतियों के खिलाफ पैम्फलेट बांटे जा रहे हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में अनवरत घोषणाएं और घर-घर अभियान चलाए जा रहे हैं। राज्य भर के वाम नेता जिला स्तर पर बैठकें कर रहे हैं।
सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) के महासचिव प्रेम नाथ राय ने न्यूज़क्लिक को बताया, "हमने आशा (ASHA), आंगनवाड़ी, मनरेगा और परिवहन कर्मचारी संघ सहित योजना कार्यकर्ताओं के साथ कई बैठकें की हैं और उन्हें दिल्ली में 5 अप्रैल की रैली में शामिल होने के लिए कहा है। हमने लखनऊ में एक राज्य स्तरीय सम्मेलन भी आयोजित किया है जहां असंगठित श्रमिकों की यूनियनों ने भाग लिया।"
प्रेम नाथ राय ने आगे कहा कि राज्य के 35 से अधिक जिलों में संयुक्त बैठकें की गईं, जहां हर जिले में पर्चे बांटने का निर्णय लिया गया। उन्होंने कहा, "सीटू के हमारे पदाधिकारियों द्वारा कोयला, सीमेंट, ठेका मजदूर और रेलवे फैक्ट्री यूनियन के साथ एक बैठक भी की गई और वे बड़ी संख्या में रैली में शामिल होने के लिए सहमत हुए।"
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आठ साल तक सत्ता में रहने के बावजूद इस देश के लोगों से किए गए वादे को पूरा नहीं करने का आरोप लगाते हुए, सीटू नेता ने कहा, "मोदी सरकार ने अपने करीबियों जैसे अडानी और अंबानी के लिए मजदूरों और किसानों का शोषण और लूट कर उनके लिए 'अमृत काल' सुनिश्चित करने का कोई कसर नहीं छोड़ रही है जबकि कॉर्पोरेट समर्थक नीतियों ने आम लोगों के दैनिक जीवन को भारी महंगाई के दबाव में ला दिया है।"
न्यूज़क्लिक से बात करते हुए अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) के राज्य महासचिव मुकुट सिंह ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार उन सुधारों पर जोर दे रही है जो एक ओर श्रमिक-विरोधी और यूनियन-विरोधी नीतियां हैं। महंगाई बढ़ रही है जिससे मजदूरों की और आम लोगों की दुर्दशा हो रही है।
मुकुट सिंह आगे कहते हैं, "रैली की तैयारी पिछले कुछ महीनों से चल रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ साथ डोर-टू-डोर अभियान चल रहे हैं। हम बड़ी संख्या में श्रमिकों को शामिल करने के लिए औद्योगिक केंद्र वाले क्षेत्रों का दौरा भी कर रहे हैं। हमें अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है।"
ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा करने वाले संघ के नेताओं ने कहा कि गांव का लगभग हर व्यक्ति उनके संघर्ष और उस दर्द से वाकिफ है जिससे वे वर्तमान शासन में गुजर रहे हैं। इसलिए उन्होंने उन्हें आश्वासन दिया है कि वे दिल्ली जरूर आएंगे।
सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू), ऑल इंडिया किसान सभा (एआईकेएस) और ऑल इंडिया एग्रीकल्चरल वर्कर्स यूनियन (एआईजीडब्ल्यूयू) ने संयुक्त रूप से 5 अप्रैल को दिल्ली में एक विशाल रैली का आह्वान किया है।
13 मांगे सूचीबद्ध हैं जिनमें न्यूनतम मजदूरी 26,000 रुपये प्रति माह और सभी श्रमिकों को 10,000 रुपये की पेंशन सुनिश्चित करना, अग्निपथ योजना को खत्म करना, कोई ठेकेदारी नहीं, स्वामीनाथन आयोग द्वारा सुझाए गए फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करना शामिल है। और सभी गरीब और मध्यम आय वाले किसानों और कृषि श्रमिकों के लिए एकमुश्त ऋण माफी की भी मांग की गई है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के कार्य दिवसों को 600 रुपये प्रति दिन की न्यूनतम मजदूरी के साथ दिनों को बढ़ाकर 200 करना, चार श्रम संहिताओं और बिजली संशोधन विधेयक, 2022 को समाप्त करना, शहरी रोजगार गारंटी योजना को लागू करना, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के निजीकरण को रोकना और सार्वजनिक सेवाएं, मूल्य वृद्धि से निपटना और ईंधन पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क को कम करना, अति-अमीरों पर कर लगाना, संपत्ति कर की शुरुआत करना और कॉर्पोरेट कर को बढ़ाने जैसी भी मांगे हैं।
सरकार द्वारा सोनभद्र और बुंदेलखंड जैसे राज्य के दो सबसे पिछड़े क्षेत्र और आदिवासियों के ये क्षेत्र भी हमेशा उपेक्षित रहे हैं। मुख्य रूप से आदिवासी क्षेत्र वन अधिकार अधिनियम (FRA) के कड़े कार्यान्वयन की मांग कर रहे हैं; वन (संरक्षण) अधिनियम और नियमों में संशोधन को वापस लेना क्योंकि यह नियम केंद्र सरकार ने बिना वहां के निवासियों को सूचित किए जंगल की सफाई की अनुमति देता है।
वाम नेताओं के मुताबिक, 5 अप्रैल को दिल्ली में होने वाली रैली में बड़ी संख्या में आदिवासी शामिल होंगे।
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीएम) के नेता नंदलाल आर्य ने न्यूज़क्लिक से कहा, “सोनभद्र में वन अधिकार अधिनियम के लागू न होने से, जिसके कारण वन अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न और धमकी दी जा रही है, यहां के आदिवासियों के पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है। हजारों गरीब आदिवासियों को खेती के लिए मना किया जाता है जहां वे दशकों से सोनभद्र में रह रहे हैं, आदिवासी क्षेत्रों में मनरेगा और खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत उन्हें वर्षों से उनके अधिकारों से वंचित रखा गया है। हम कई वर्षों से उनके अधिकारों की मांग कर रहे हैं पर कोई सुनवाई नहीं हो रही।”
उन्होंने कहा कि सोनभद्र से लगभग 500 लोग 5 अप्रैल को रैली में शामिल होंगे।
इस बीच, वाम किसान निकाय के सदस्य आदिवासी क्षेत्रों सहित विभिन्न जिलों में कृषि संबंधी तीन विधेयकों, सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण और श्रम कानूनों के गैर-कार्यान्वयन के प्रतिकूल परिणामों को दर्शाने वाले नुक्कड़ नाटकों का आयोजन कर रहे हैं। माता दयाल, चित्रकूट में एक अनुभवी वन अधिकार कार्यकर्ता की देखरेख में बुंदेलखंड क्षेत्र में आदिवासी- जहां वे कई दशकों से उत्पीड़ित और उत्पीड़ित वनवासी समुदायों के अधिकारों को कायम रखने और उनकी रक्षा करने के लिए काम कर रहे हैं- इसमें भाग लेने के लिए 'चलो दिल्ली' का आह्वान कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, "मनरेगा में न तो काम है और न ही आदिवासियों के लिए भोजन। वन अधिकारी आदिवासियों को खेती और अन्य मुख्यधारा के काम करने की अनुमति नहीं देते हैं। वे और क्या करेंगे? आजादी के 75 साल बाद भी इस देश के आदिवासियों के पास जमीन नहीं है और न पेट भरने के लिए भोजन। हम इस रैली में उत्साह से भाग लेंगे क्योंकि यह हमारे लिए जीवन और मृत्यु का मुद्दा है।"
समर्थन जुटाने के लिए महिलाओं ने निकाली रैली
केंद्र सरकार की किसान और मजदूर-विरोधी नीतियों के खिलाफ मजदूर किसान मंच के बैनर तले गांवों में महिलाएं 5 अप्रैल को दिल्ली जाने वाले जत्थों में शामिल होने के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए विशेष रैलियां और पैदल मार्च निकाल रही हैं। अधिक से अधिक महिलाएं राष्ट्रीय राजधानी जाने की योजना बना रही हैं।
गौरतलब है कि सीतापुर, लखीमपुर खीरी, बहराइच और हरदोई जिन्हें मजदूर किसान मंच का गढ़ कहा जाता है, बड़ी संख्या में महिलाओं को भेजेंगे जो महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के लिए कम बजट से नाराज हैं।
मजदूर किसान मंच, उत्तर प्रदेश के महासचिव बृज बिहारी ने न्यूज़क्लिक को बताया, "सरकार द्वारा मनरेगा योजना के लिए कम बजट आवंटित करने को लेकर जमीनी स्तर पर लोगों में बहुत रोष है। दूसरी चिंता हमने अपने अभियान मजदूर किसान संघर्ष रैली के दौरान देखी कि अन्य राज्यों में मजदूरी 300 से 400 रुपये प्रतिदिन तक पहुंच गई है, जबकि उत्तर प्रदेश में अभी भी 230 रुपये है।
मजदूर किसान मंच के नेता ने आगे कहा कि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार बजट आवंटन में कटौती करके ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का "गला घोंटने" की कोशिश कर रही है ताकि उन्हें निजी क्षेत्र में कम वेतन दिया जा सके।
बृज बिहारी ने कहा, "प्रौद्योगिकी तक पहुंच की कमी श्रमिकों को हतोत्साहित करेगी और उन्हें योजना के बाहर सस्ती मजदूरी के लिए काम करने के लिए प्रेरित करेगी। यदि उन्हें योजना के तहत काम नहीं मिलेगा तो सरकार उन्हें वहां काम देगी जहां निवेश का काम चल रहा है। यह है कम मजदूरी के पीछे की रणनीति।"
बृज बिहारी के मुताबिक अकेले सीतापुर जिले में मनरेगा मजदूरों की 6 करोड़ रुपये की मजदूरी बकाया है।
मूल अंग्रेजी रिपोर्ट को पढने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:
UP: Preparation, Mobilisation on War Footing for April 5 Mazdoor Kisan Sangharsh Rally in Delhi
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