यूपी: नहीं थम रहा दलितों का दमन, अमेठी में ग्राम प्रधान के पति को ज़िंदा जलाने का आरोप
उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ समय से दलित उत्पीड़न और दलितों की हत्याओं की लगातार खबरें आ रही हैं। ताज़ा मामला स्मृति ईरानी के संसदीय क्षेत्र अमेठी से सामने आया है। यहां सवर्ण जाति के पांच-छह लोगों ने दलित ग्राम प्रधान के पति को अगवा कर कथित तौर पर मारपीट की और उन्हें ज़िंदा जला दिया। प्रधान के परिवार का कहना है कि आरोपी सरकारी धन उगाहने को लेकर धमकाया करते थे। पुलिस ने मामले में तीन आरोपियों को गिरफ़्तार किया है, जबकि दो अन्य की तलाश जारी है।
क्या है पूरा मामला?
प्राप्त जानकारी के मुताबिक मामला अमेठी के बंदुहिया गांव का है। यहां गुरुवार, 29 अक्टूबर देर रात एक घर से दलित प्रधान के पति अर्जुन कोरी के कराहने की आवाजें आ रही थीं। घायल स्थिति में उन्हें सीएचसी नौगिरवा पहुंचाया गया। जहां प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें तत्काल सुल्तानपुर जिला अस्पताल भेज दिया गया। डॉक्टरों ने उन्हें वहां से भी आगे रेफर कर दिया गया। जिसके बाद उनकी मौत हो गई।
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, पीड़ित को 90 फीसदी झुलसी हालत में गांव में सवर्ण जाति के एक शख्स के घर से बरामद किया गया लेकिन अस्पताल ले जाते समय रास्ते में ही दम तोड़ दिया।
ग्राम प्रधान छोटका का कहना है कि गांव के पांच से छह लोगों ने पैसों से जुड़े विवाद को लेकर पहले बर्बरता से उनके पति की पिटाई की और फिर उन्हें जिंदा जला दिया।
अर्जुन कोरी की पत्नी और ग्राम प्रधान, छोटका ने मीडिया को बताया, “मेरे पति को चौराहे से उठा लई गए हैं और भूज दिए (जला दिया)। सब पइया मांगत हैं। कहे कि परधानी में ढेर पइसा आवत रहें, सबका दिया।”
परिवारवालों का क्या कहना है?
दलित प्रधान ने गांव के ही अगड़ी जाति के पांच लोगों पर पति को जिंदा जलाने का आरोप लगाया है। परिजनों की शिकायत पर पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर अब तक तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया है।
परिवार में अर्जुन की पत्नी छोटका, तीन बेटे और दो बेटियां हैं। परिवार का आरोप है कि अर्जुन किसी काम से मुसवापुर चौराहा गए थे, वहां से उनको पांच लोगों ने अपहरण कर लिया। उनका आरोप है कि आरोपी उनसे पैसे मांगते थे और इनकार करने पर उन्होंने इस काम को अंजाम दिया है। परिवार ने पांच लोगों को नामजद किया है।
मालूम हो कि पीड़ित के परिवार वालों ने पीड़ित का मोबाइल फोन में बयान दर्ज कर लिया था, जिसमें वह गांव के पांच लोगों क नाम ले रहे हैं।
अर्जुन के घर वालों ने जली हुई हालत में उनका बयान मोबाइल फ़ोन में रिकॉर्ड किया है, जिसमें वह उन्हें जलाने के लिए गांव के ही पांच लोगों का नाम ले रहे हैं। पीड़ित के बयान के आधार पर पुलिस ने पांचों आरोपियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया।
प्रशासन क्या कह रहा है?
पुलिस के मुताबिक इस मामले में जांच जारी है। फिलहाल जिन तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है, उनमें एक नाबालिग भी बताया जा रहा है। पुलिस ने कहा कि उसकी उम्र को ध्यान में रखते हुए जरूरी वैधानिक कार्रवाई की जाएगी।
अमेठी के एसपी दिनेश सिंह ने कहा, “पुलिस को गुरुवार रात लगभग 12 बजे सूचना मिली कि गांव की प्रधान के पति झुलसी हालत में कृष्णा कुमार के अहाते में पड़े हैं। उन्हें प्राथमिक उपचार के लिए स्थानीय पीएचसी ले जाया गया, जहां से उन्हें सुल्तानपुर जिला अस्पताल रेफर किया गया। उन्हें शुक्रवार सुबह बेहतर इलाज के लिए लखनऊ ले जाया जा रहा था, रास्ते में ही उनकी मौत हो गई।”
जिलाधिकारी अरुण कुमार ने बताया, “पूरा प्रशासन यहां मौजूद है। परिवार वालों ने सरकारी सहायता की मांग की थी। तहसील प्रशासन भी यहां मौजूद है। पांच लाख की सहायता दी जाएगी। बाकी और जो भी हम सहायता कर पाएंगे, वह जरूर करेंगे।”
अयोध्या रेंज के पुलिस अधीक्षक सुनील गुप्ता का कहना है, “वास्तव में हुआ क्या था, इसका पता लगाना बाकी है। अभी यह स्पष्ट नहीं है क्या अर्जुन को सच में जिंदा जलाया गया या वह दुर्घटनावश झुलस गए थे।”
विपक्ष ने लगाया दलितों के दमन का आरोप
यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कहा है कि यूपी सरकार ने दलितों के दमन की कसम खा ली है।
अजय लल्लू ने ट्वीट कर कहा, "बीते अगस्त महीने में आजमगढ़ के दलित प्रधान सत्यमेव की गोली मारकर हत्या कर दी गई। अब अमेठी में ग्राम प्रधान पति को जिंदा जलाकर मार दिया गया। सामंतीयों द्वारा एक के बाद एक हत्याएं। दलितों के दमन की कसम खा ली है इस सरकार ने।"
बीते अगस्त महीने में आजमगढ़ के दलित प्रधान सत्यमेव की गोली मारकर हत्या कर दी गई। अब अमेठी में ग्राम प्रधान पति को जिंदा जलाकर मार दिया गया।
सामंतीयों द्वारा एक के बाद एक हत्याएं। दलितों के दमन की कसम खा ली है इस सरकार ने।
मुख्यमंत्री महोदय क्या तकलीफ़ है दलितों से?
— Ajay Kumar Lallu (@AjayLalluINC) October 30, 2020
वहीं भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने एक वीडियो ट्वीट करते हुए कहा, “उत्तर प्रदेश में दलितों की लगातार हत्याएं जारी है और यूपी के नकारा मुख्यमंत्री बिहार के चुनाव प्रचार में लगे है। प्रशासन जल्दी से अपराधियों को गिरफ्तार करे वरना मैं पूरी भीम आर्मी के साथ आ रहा हूँ।”
उत्तर प्रदेश में दलितों की लगातार हत्याएं जारी है और यूपी के नकारा मुख्यमंत्री बिहार के चुनाव प्रचार में लगे है। प्रशासन जल्दी से अपराधियों को गिरफ्तार करे वरना मैं पूरी भीम आर्मी के साथ आ रहा हूँ। https://t.co/MjDH9DN994
— Chandra Shekhar Aazad (@BhimArmyChief) October 30, 2020
गौरतलब है कि हाल के दिनों में प्रदेश में दलितों पर अत्याचार के कई मामले सामने आए हैं। सूबे की योगी आदित्यनाथ सरकार भले ही राज्य में अपराध कम होने का दावा करती हो लेकिन राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के सरकारी आंकड़ें और दलितों के विरुद्ध अपराध की दर कुछ और ही कहानी बयां करते हैं।
एनसीआरबी के आंकड़े भयावह
अगर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के हालिया आंकड़ों की बात करें तो वो भी यही बयां करते हैं कि दलितों के ख़िलाफ़ अत्याचार के मामले कम होने के बजाय बढ़े हैं।
एनसीआरबी ने हाल ही में भारत में अपराध के साल 2019 के आँकड़े जारी किए जिनके मुताबिक अनुसूचित जातियों के साथ अपराध के मामलों में साल 2019 में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जहां 2018 में 42,793 मामले दर्ज हुए थे वहीं, 2019 में 45,935 मामले सामने आए।
इनमें सामान्य मारपीट के 13,273 मामले, अनुसूचित जाति/ जनजाति (अत्याचार निवारण) क़ानून के तहत 4,129 मामले और रेप के 3,486 मामले दर्ज हुए हैं।
राज्यों में सबसे ज़्यादा मामले 2,378 उत्तर प्रदेश में और सबसे कम एक मामला मध्य प्रदेश में दर्ज किया गया है। अनुसूचित जनजातियों के ख़िलाफ़ अपराध में साल 2019 में 26.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। जहां 2018 में 6,528 मामले सामने आए थे वहीं, 2019 में 8,257 मामले दर्ज हुए हैं।
NCRB के 'क्राइम इन इंडिया, 2019' नाम से प्रकाशित डेटा के अनुसार, अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध के मामले में चार्जशीट का औसत तुलनात्मक रूप से ऊंचा रहा है और यह राष्ट्रीय स्तर पर 78.5% रहा। हालांकि हर तीन केस में एक केस से कम केस में सजा होती है।
2019 के शुरुआत में 1.7 लाख केसों का ट्रायल पेंडिंग था। करीब 35 हजार से ज्यादा केस इस साल ट्रायल के लिए गया और कुल नंबर बढ़कर 2 लाख के पार पहुंच गया। 13 हजार से भी कम केसों का निपटारा इस साल हुआ और केवल 4,000 केसों में ही सजा हुई। उत्तर प्रदेश में 95% से अधिक मामले विचाराधीन ही हैं।
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