भोपाल गैस त्रासदी: शहर को निगलता दूषित भूजल
भोपाल: पर्यावरण और जल संरक्षण के मुद्दे पर एक देशव्यापी चर्चा छिड़ गई है वह भी तब जब दिल्ली की आब-ओ-हवा घातक हो गई, लेकिन देश की ‘स्वच्छ राजधानी’ कहलाने वाली भोपाल के बारे में कोई चर्चा ही नहीं है - जहां पिछले दो दशकों से यूनियन कार्बाइड कारखाने से रिसे ज़हरीले रसायन के कारण लाखों लोग विषाक्त या दूषित पानी पीने के लिए मजबूर हैं।
1996 में, दुनिया की सबसे भयानक औद्योगिक त्रासदी के 12 साल बाद मध्य प्रदेश सरकार ने यूनियन कार्बाइड कारखाने के घातक कचरे को बगल में तालाब खोदकर दफन कर दिया था। बावजूद उसके जहरीला अपशिष्ट लीक हो गया और करीब के तालाब के भूजल को दूषित कर दिया।
सूत्रों ने बताया कि प्रदूषण धीरे-धीरे फैल रहा है। पिछले दो दशकों में, विषाक्त रसायन ने लगभग 48 कॉलोनियों के भूजल को दूषित कर दिया है, जिनकी संख्या पहले 18 हुआ करती थी। प्रतिदिन लाखों लोग इस पानी का सेवन कर रहे हैं।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजिकल रिसर्च (IITR) द्वारा 2012 में किए गए सर्वेक्षण में यूनियन कार्बाइड कारखाने के आसपास बसे 42 समुदायों के द्वारा इसेतमाल किए जा रहे भूजल की जांच करने से उसके स्वास्थ्य प्रभावों पर पड़े असर का पता चलता है और पानी में जहरीले रसायन जैसे "लेड यानी सीसा, गामा एचसीएच, लिंडेन, बीटा एचसीएच, मर्करी, अल्फा एचसीएच, अल्फा नेफथोल और डाइक्लोरोबेंज़ीन आदि” पाए गए हैं।
लेकिन बाद में राज्य के साथ-साथ केंद्र सरकार की एजेंसियों ने फैक्ट्री से सटे इलाकों में भूजल पर दर्जनों सर्वेक्षण किए और दूषित पानी का उपयोग करने वाले और गैस त्रासदी से प्रभावित पीड़ितों पर इसके प्रभाव की भी जांच की। लेकिन शायद ही इनमें कोई रिपोर्टों दिन की रोशनी देख पाई हो।
इन रिपोर्टों में कहा गया था कि विषाक्त पानी के इस्तेमाल से इन इलाकों में रहने वाले लोगों के मस्तिष्क, तंत्रिका तंत्र, यकृत, फेफड़े और रीढ़ की हड्डी को नुकसान पहुंचा है, विशेष रूप से, भ्रूण या छोटे बच्चे की विकासशील तंत्रिका तंत्र पर।
रक्त अल्पता यानी खून की कमी, त्वचा में घाव का होना, उल्टी आना, सिरदर्द, आंख, और श्वसन तंत्र में जलन रहना, एनोरेक्सिया, वजन में कमी आना, यकृत का पीला शोष, रक्त डिस्क्रैसिया, पोरफाइरिया और रक्त के नमूनों में क्रोमोसोमल टूटने के मामले सामने आए हैं।
रिपोर्ट आगे चेतावनी देती है कि इस तरह के विषाक्त पानी के सेवन से वयस्कों में रक्तचाप बढ़ सकता है और पाचन संबंधी समस्याएं पैदा हो सकती हैं साथ ही गुर्दे को नुकसान, तंत्रिका संबंधी विकार, नींद की समस्या, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द और मूड में बदलाव भी हो सकता है। सीसे के अत्यधिक स्तर के संपर्क में आने से मस्तिष्क को क्षति हो सकती है; वह बच्चे के विकास को प्रभावित करता है; गुर्दे को नुकसान; सुनने में कमी; उल्टी, सिरदर्द और भूख न लगना; और सीखने और व्यवहार संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता है। इसके अलावा रक्त विकार, चक्कर आना, सिरदर्द, और रक्त में सेक्स हार्मोन के स्तर में संभावित परिवर्तन स्वास्थ्य के लिए कुछ अन्य खतरे बताए गए हैं।
न्यूजक्लिक ने भोपाल गैस त्रासदी के कुछ पीड़ितों से मुलाकात की जो दूषित पानी का सेवन कर रहे हैं थे और विभिन्न बीमारियों से पीड़ित भी हैं, जैसे कि हृदय से जुड़ी बीमारी, जोड़ों का दर्द, सिरदर्द, त्वचा से संबंधित समस्याएं, बोलने में दिक्कत आदि हैं।
जहरीले पानी से बच्चों, नवजात शिशुओं और गर्भवती महिलाओं की हुई कुछ मौतों के बारे में भी पता चला है। अन्नू नगर की 17 साल की सारा खान ने आठ साल की उम्र में अपनी आवाज़ खो दी थी। कुछ ने दृष्टि खो दी है, जबकि हजारों बच्चे विकलांग पैदा हुए हैं।
फिर भी, न तो राज्य सरकार और न ही केंद्र सरकार जहरीले पानी के मुद्दे पर कोई ध्यान दे रही है। यहां तक कि, पर्यावरणविद् और जल संरक्षणकर्ता भी इस मुद्दे पर चुप हैं।
अपना विरोध दर्ज कराने के लिए, भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों ने कारखाने के फ्लाईओवर के पास विरोध प्रदर्शन किया, जहाँ रविवार दोपहर को जहरीले कचरे को दफन कर दिया गया था और उन्होंने इसके लिए निवासियों को मुआवजे और स्वच्छ पानी तथा कचरे को हटाने की मांग की थी।
विडंबना यह है कि भोपाल के भूजल को केंद्र सरकार ने अपने दो स्वच्छता सर्वेक्षण 2017 और 2018 में - देश का ‘दूसरा सबसे स्वच्छ शहर’ होने के लिए सम्मानित किया था। और फिर 2019 में शहर ने भारत के राज्यों में 'सबसे स्वच्छ राजधानी' शहर का तमगा हासिल किया था।
1984 में, 2-3 दिसंबर की आधी रात को कारखाने के भीतर से जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट का रिसाव हुआ और उसने हजारों लोगों की जान ले ली थी। लेकिन 35 साल बीत चुके हैं वह कारखाना अभी भी शहर के निवासियों के लिए खतरा बना हुआ है।
“यूनियन कार्बाइड का जहरीला रासायनिक कचरा अगर जल्दी से नहीं हटाया गया तो वह इस खूबसूरत शहर को निगल जाएगा। भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की रशीदा बी ने कहा कि शहर के भूजल में फैलने वाले रसायन जल्द ही शहर के जल संसाधनों को दूषित कर देंगे,”।
रशीदा ने कहा कि यूनियन कार्बाइड के जहरीले रासायनिक कचरे को कारखाने के पास दफनाया गया है, जिसने 48 कॉलोनियों को अपनी चपेट में ले लिया है। केंद्र और राज्य सरकारों के कई सर्वेक्षणों ने भी यह माना है, लेकिन, कोई भी इस पर ध्यान नहीं दे रहा है।
“हम इस शहर को बचाने के लिए सभी सरकारों के सामने खतरे की घंटी बजा रहे हैं कि शायद बहुत देर न हो जाए। यूनियन कार्बाइड का कचरा भोपाल के दिल में कैंसर की तरह है।
लंबी लड़ाई, विरोध और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, केंद्र सरकार ने प्रभावित क्षेत्रों को स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने के लिए 50 करोड़ रुपये जारी किए हैं। लेकिन, नौ साल के बाद भी भोपाल नगर निगम पीड़ितों को साफ पानी मुहैया कराने में नाकाम रहा है। कुछ क्षेत्रों में, नगर निगम एक दिन में केवल आधे घंटे के लिए पानी की आपूर्ति करता है, जो एक परिवार के लिए अपर्याप्त है। नतीजतन, निवासियों को पीने के लिए विषाक्त पानी का सेवन करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा कहती हैं कि, ''टॉक्सिक यानी विषाक्त भूजल शहर के लिए एक गंभीर खतरा है। उन्होंने आगे कहा कि, "हम रसायन से प्रभावित कालोनियों से रसायन निकालने, मुआवजा देने और स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने की मांग कर रहे हैं।"
राज्य सरकार पर बरसते हुए उन्होने कहा कि कांग्रेस सरकार ‘राइट टू वॉटर’ यानी पानी का अधिकार की बात कर रही है और हर घर को स्वच्छ पानी मुहैया कराने की भी बात कर रही है, लेकिन मुख्यमंत्री को पहले राज्य की राजधानी पर तो ध्यान देना चाहिए।
उन्होंने कहा, ''भारतीय जनता पार्टी की 15 साल की सरकार के दौरान कुछ भी नहीं हुआ। हम वर्तमान शासन के प्रति काफी आशान्वित हैं। सरकार को फैक्ट्री के पास दफन यूनियन कार्बाइड के घातक रसायनों को हटाना चाहिए और शहर के भूजल को साफ करना चाहिए।”
अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
Bhopal Gas Tragedy: Contaminated Groundwater Will Swallow City, Warn Victims
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