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Decode: संघप्रमुख मोहन भागवत के भाषण के मायने 

आम चुनाव के नतीजों से तात्कालिक तौर पर हिन्दूराष्ट्र के प्रोजेक्ट को धक्का ज़रूर पहुँचा है।‌‌ इस‌ कारण से भविष्य में नागरिक अधिकार समूहों पर हमले और तेज़ होने की सम्भावना है।‌ मोहन भागवत के भाषण की उग्रता इसी ‌चीज़ को दर्शाती है।
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का जन्म 1925 में विजयादशमी के दिन ही हुआ था,इसलिए इस अवसर पर हर साल संघप्रमुख नागपुर मुख्यालय में संघ कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हैं। उनका यह भाषण संघ की दशा-दिशा तथा भविष्य की उनकी योजनाओं को भी दर्शाता है,क्योंकि केन्द्र में तथा देश के बहुसंख्यक राज्यों में संघ समर्थित भाजपा की सरकारें हैं तथा ये सरकार संघ की हिन्दूराष्ट्र की कल्पना को ज़मीन पर उतारने के लिए कटिबद्ध हैं,इसलिए इस भाषण का‌ महत्त्व और भी बढ़ जाता है। 

संघ भले ही यह दावा करता है कि दलित- पिछड़े आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के बारे में उसकी राय काफ़ी बदल गई है,लेकिन 99 साल बीत जाने के ‌बाद‌ भी इस भाषण से तो यही प्रतीत होता है कि वह मजबूती से अपनी पुराने कथित आदर्शों पर डटा हुआ है।‌ 

आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक एमएस गोलवलकर की पुस्तक ‘बंच ऑफ थॉट्स’ में उन्होंने हिन्दू राष्ट्र की‌ स्थापना में मुख्य रूप से तीन शत्रुओं को चिह्नित किया है,जिसमें पहले मुस्लिम हैं,दूसरे ईसाई और तीसरे कम्युनिस्ट। मोहन भागवत के दशहरे के इस उद्बोधन में ये‌ तीनों चीज़ें फिर बहुत आक्रामक तरीके से सामने आई हैं। वे कहते हैं,“डीप स्टेट’ जाति,समुदाय और वर्ग के आधार पर देश‌ को विभाजित करना चाहते हैं और अनेक राजनीतिक पार्टियाँ अपने राजनीतिक हितों के‌ कारण उनका सहयोग कर रही हैं।”‌ 

मोहन भागवत ने अपने भाषण में कहा कि,“डीप स्टेट, वोकिज्म और कल्चरल मार्क्सिस्ट शब्द इस समय चर्चा में है और ये सभी सांस्कृतिक परंपराओं के घोषित दुश्मन हैं।”

उन्होंने कहा कि “सांस्कृतिक मूल्यों,परंपराओं और जहाँ-जहाँ जो कुछ भी भद्र (मंगल) माना जाता है, उसका समूल उच्छेद (पूरी तरह से ख़त्म करना) इस समूह की कार्यप्रणाली का अंग है। समाज में अन्याय की भावना पैदा होती है। असंतोष को हवा देकर उस तत्व को समाज के अन्य तत्वों से अलग और व्यवस्था के प्रति आक्रामक बना दिया जाता है। व्यवस्था, कानून, शासन, प्रशासन आदि के प्रति अविश्वास और घृणा को बढ़ावा देकर अराजकता और भय का माहौल बनाया जाता है, इससे उस देश पर हावी होना आसान हो जाता है।"

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मार्क्सवादियों की आलोचना हमेशा 'सांस्कृतिक मार्क्सवाद' पर आधारित होती है। संघ ने हमेशा आरोप लगाया है कि भारत की संस्कृति 'हिंदू संस्कृति' है उसे 'सांस्कृतिक मार्क्सवाद' के माध्यम से नष्ट करने की कोशिश की जा रही है। भागवत के ऐसे बयान को 'डॉग व्हिसल' कहा जाता है,जो संघ के अनुयायियों के लिए हमले का संकेत है। विदेशी ताक़तें भारत में लोगों की भावनाओं को भड़का रही हैं,इस बयान का संबंध भारत में कई गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के ख़िलाफ़ मोदी सरकार द्वारा की गई हालिया कार्रवाई से है। 

सेंटर फॉर रिसर्च पॉलिसी जैसे कई एनजीओ के ख़िलाफ़ यह कार्रवाई की गई,क्योंकि संघ और मोदी सरकार का दावा है कि इन संगठनों को बाहरी लोग फंडिंग करते हैं और इनसे भारत विरोधी गतिविधियां करते हैं। मोहन भागवत यही सुझाव दे रहे हैं। 

संघ का दावा है कि दुनिया भर के कई अंतरराष्ट्रीय संगठन भारत में विभिन्न संगठनों को वित्तीय सहायता देते हैं,यह सहायता भारत में विकास में बाधा डालने के लिए है। इससे पता चलता है कि भारत में कई गैर सरकारी संगठनों पर मोदी सरकार की कार्रवाई संघ के व्यापक एजेंडे का हिस्सा है। संघ के कारण ही यह कार्रवाई की गई है। 

मोहन भागवत ने अरब स्प्रिंग और बांग्लादेश की घटनाओं का ज़िक्र किया,हालाँकि इन दोनों घटनाओं का दुनिया भर में स्वागत किया गया है। अरब स्प्रिंग अधिनायकवाद और धार्मिक अतिवाद के विरोध के रूप में हुआ। अरब स्प्रिंग का उद्देश्य काफी हद तक लोकतांत्रिक था।इसी तरह बांग्लादेश में हुआ विद्रोह भी लोकतांत्रिक था। यह सच नहीं है कि यह चरमपंथियों और अमेरिका की साज़िश थी। यह केवल एक साज़िश सिद्धांत (कॉन्सपिरेसी थ्योरी) है। संघ की पूरी विचारधारा साज़िश सिद्धांत पर निर्भर करती है,इसलिए वे हर चीज़ को एक ही नज़रिए से देखते हैं कि हिंदू धर्म को मुसलमानों,ईसाइयों और मार्क्सवादियों से ख़तरा है,जो उनकी सोच का मूल है। ये बात खुद गोलवलकर ने अपनी किताब 'बंच ऑफ थॉट्स' में लिखी है। यह भी उस सिद्धांत का हिस्सा है।”

भागवत ने अपने भाषण में कहा कि अब बांग्लादेश में पाकिस्तान को साथ लेने की चर्चा हो रही है। मोहन भागवत ने अपने भाषण के दौरान बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक के मुद्दे पर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा, ''बांग्लादेश में हाल ही में हिंसक तरीके से सत्ता परिवर्तन हुआ। हिन्दू समुदाय पर क्रूर अत्याचारों की परंपरा एक बार फिर देखने को मिली। इस बार उन अत्याचारों के विरोध में हिन्दू समुदाय कुछ हद तक घर से बाहर निकला,लेकिन जब तक यह दमनकारी जिहादी प्रकृति है,तब तक वहाँ के हिंदुओं सहित सभी अल्पसंख्यक समुदायों के सिर पर ख़तरे की तलवार लटकती रहेगी। अब बांग्लादेश में पाकिस्तान को साथ लेने की चर्चा हो रही है। कौन से देश ऐसी चर्चा करके भारत पर दबाव बनाना चाहते हैं,यह बताने की ज़रूरत नहीं है। इसका समाधान सरकार का विषय है।”

बांग्लादेश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस और बांग्लादेश के अन्य महत्वपूर्ण नेताओं ने एक स्टैंड लिया है और स्पष्ट कर दिया है कि वे बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की रक्षा करेंगे। साथ ही उन्होंने अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों का दौरा किया।

संघ का असली दर्द यह है कि बांग्लादेश की राजनीति और समाज धर्मनिरपेक्ष है। अगर बांग्लादेश की व्यवस्था इस्लामी होती,तो वे इसकी आलोचना कर सकते थे। अगर बांग्लादेश के हिन्दू भारत आते,तो संघ बता पाता कि वहाँ के हिन्दू किस तरह संकट में हैं। हकीकत में ऐसा नहीं हुआ। एक ही समय में कई विरोधाभासी रुख़ अपनाना संघ और बीजेपी की विशेषता है,इसीलिए वे कहते हैं कि बांग्लादेश की सरकार को वहांँ के अल्पसंख्यकों का ख्याल रखना चाहिए,अल्पसंख्यकों के मंदिरों की रक्षा करनी चाहिए। भारत को इस बारे में बात करनी चाहिए। बांग्लादेश के दृष्टिकोण से भारत एक बाहरी शक्ति है। हिंदू होने के नाते हस्तक्षेप की माँग करना उनके लिए ग़लती होगी। जब भारत में गोहत्या के मुद्दे पर मदरसों पर हमले किए जाते हैं,मुसलमानों को मारा जाता है,बांग्लादेश या मुस्लिम देश चिंता व्यक्त करते हैं,तो क्या संघ काम करेगा?” दशहरे के मौके पर दिए गए इस भाषण में मोहन भागवत ने हालाँकि बांग्लादेश के राजनीतिक हालात पर ज़्यादा ज़ोर दिया है,लेकिन उन्होंने भारत के मुद्दों पर भी टिप्पणी की है। इन्हीं में से एक है पश्चिम बंगाल की घटना।

मोहन भागवत ने पश्चिम बंगाल के आरजी कर अस्पताल में महिला डॉक्टर के साथ हुए रेप-मर्डर मामले पर टिप्पणी की और कहा,“कोलकाता के आरजी कर अस्पताल की घटना उन घटनाओं में से एक है जो पूरे समाज को कलंकित करती है। इतने गंभीर अपराध के बाद भी कुछ लोगों ने अपराधियों को बचाने के घृणित प्रयास किए। इससे पता चलता है कि अपराध, राजनीति और बुराई का संयोजन हमें कैसे भ्रष्ट कर रहा है।” 

मोहन भागवत आरजी कर अस्पताल की घटना के बारे में बात करते हैं,लेकिन जब उत्तर प्रदेश में हाथरस में अत्याचार हुआ,तो उन्होंने इसके बारे में एक भी शब्द नहीं कहा,इसके विपरीत उन्होंने अपने भाषण में कहा कि “सिर्फ इसलिए कि इतने बड़े देश में ऐसी घटनाएँ होती हैं,इसका मतलब यह नहीं है कि देश में बहुत खराब माहौल है।”

मोहन भागवत ने देश में महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न के मामले में एक भी शब्द नहीं बोला है। पश्चिम बंगाल के आरजी कर में हुई घटना स्पष्ट रूप से आपराधिक प्रकृति की है। उस मूल घटना में कोई राजनीति नहीं है,घटना के बाद राजनीति आ गई,हालाँकि महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न मामले में आरोपी एक राजनेता हैं। बृजभूषण शरण सिंह बीजेपी के संघी नेता हैं। वो यह नहीं कह सकते कि उनका संघ या बीजेपी से कोई संबंध नहीं है। मोहन भागवत आरजी कर अस्पताल की घटना का ज़िक्र करते हैं और बृजभूषण का ज़िक्र नहीं करते,जिन्होंने देश का गौरव महिला पहलवानों के साथ दुर्व्यवहार किया,यह किस तरह की भारतीय संस्कृति है?

संघचालक बांग्लादेश तथा कलकत्ता मेडिकल कॉलेज के रेप काण्ड की तो बार-बार चर्चा करते हैं,लेकिन वे मणिपुर में है रही घटनाओं; जहाँ क़रीब-क़रीब एक वर्ष से गृहयुद्ध जैसी स्थिति बन गई है। जिसके बारे में कहा जा रहा है कि वहाँ विभिन्न जनजातियों के बीच अविश्वास पैदा करने में संघ की भूमिका है,उस पर ये क़रीब-क़रीब चुप्पी साध लेते हैं। 

2025 में संघ की स्थापना का शताब्दी वर्ष है। पिछले दो आमचुनाव में भाजपा को मिली भारी सफलता के बाद संघ को ऐसा लग रहा था कि भारतीय समाज को ध्रुवीकृत करने की उसकी योजना सफल हो गई है,परन्तु 2024 के आमचुनाव में भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। अयोध्या जैसी सीट वह‌ हार गई। भारतीय समाज के जाति व वर्ग के मुद्दे खुलकर सामने आ गए। इससे तात्कालिक तौर पर हिन्दूराष्ट्र के प्रोजेक्ट को धक्का ज़रूर पहुँचा है।‌‌ इस‌ कारण से भविष्य में नागरिक अधिकार समूहों पर हमले और तेज़ होने की सम्भावना है।‌ मोहन भागवत के भाषण की उग्रता इसी ‌चीज़ को दर्शाती है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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