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फ्रांस : 2023 में दिख रहे हैं 1968 के रंग

ऐसा लगता है फ्रांस में 1968 के क्रांतिकारी उभार की 50वीं वर्षगांठ पर 2023 के ‘विरोध की लहर’ (Spring of Protests) भड़क उठी है। इसलिए, स्वाभाविक रूप से, इनकी तुलना की जा रही है और समानताएं देखी जा रही हैं।
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फ़ोटो साभार: रॉयटर्स

इमैनुएल मैक्रॉन की सरकार के पेंशन सुधारों से प्रेरित फ्रांस में चल रहे मेहनतकशों के प्रतिरोध में एक जन उभार की सभी विशेषताएं हैं। 19 जनवरी 2023 को शुरू हुई विरोध की लहरें अभी भी जारी हैं। पेरिस के बाहर काम करने वाले एनआरआई मनमहल बालासुब्रमनियम ने न्यूज़क्लिक के लिए विरोध का प्रत्यक्ष विवरण दिया: “सीजीटी, सीएफडीटी और एफओ जैसी कई यूनियनें हड़ताल की घोषणा करने के बाद विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रही हैं और कई अवसरों पर, सैकड़ों हजारों कार्यकर्ता सड़कों पर उतरे हैं। बड़े पैमाने पर रैलियां हो रही हैं और लोग मांग कर रहे हैं कि दक्षिणपंथी फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन को जाना चाहिए।

21 मार्च 2023 को, फ्रांस के विभिन्न शहरों में पेंशन सुधारों के विरोध में 7,40,000 लोग सड़कों पर उतरे। 6 अप्रैल 2023 को फिर से लाखों लोग सड़क पर और हजारों लोग हड़ताल पर दिखे। अकेले पेरिस में 1,19,000 लोगों का मार्च हुआ, 20 अप्रैल 2023 को पूरे फ्रांस में दस लाख से अधिक लोग सड़क पर उतरे। ये फ्रांस के आंतरिक मंत्रालय के आंकड़े हैं और यह मानने का कोई कारण नहीं है कि फ्रांसीसी आंतरिक मंत्रालय आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा।

मनमहल ने आगे कहा, “यहां दैनिक जीवन प्रभावित हुआ क्योंकि विभिन्न क्षेत्रों के श्रमिकों ने संघर्ष में भाग लिया, विशेष रूप से सफाई कर्मचारियों ने। पेरिस और अन्य शहर कचरे से पटे हुए थे। रिफाइनरीज़ बंद होने से रेल भी प्रभावित हुआ। पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं चला। स्कूल और कॉलेज बंद थे क्योंकि छात्र भी प्रदर्शनों में हिस्सा ले रहे थे।”

सेवानिवृत्ति की आयु 62 वर्ष से बढ़ाकर 64 वर्ष किए जाने वाले कानून के विरोध में प्रदर्शनों की चिंगारी भड़की थी। इसका मतलब यह होगा कि जो लोग अभी काम कर रहे हैं उन्हें अपनी पेंशन के लिए दो साल और योगदान देना होगा, लेकिन उन्हें वही पेंशन मिलेगी जो पहले से सेवानिवृत्त अन्य कर्मचारियों को मिलती है।

हालांकि मैक्रों सरकार के पेंशन सुधार बिल के खिलाफ विरोध शुरू हुए थे, अब यह मजदूर वर्ग के कई विरोधों का संगम बन चुका है। विश्वविद्यालयों में शिक्षक और पेरिस के चार्ल्स दि गॉल हवाई अड्डे पर कर्मचारी काम छोड़कर चले गए। फ्रांसीसी रेलवे कर्मचारी पुनर्गठन (restructuring) और अल्पकालिक अनुबंध नौकरियों की शुरुआत, जो जीवन भर के रोजगार को समाप्त कर देगी, के खिलाफ रीले हड़ताल पर थे; वे भी संघर्ष में शामिल हो गए हैं।

एयर फ्रांस के पायलटों ने अपने वेतन विवाद को लेकर हड़ताल पर जाकर विमानों को खड़ा कर दिया और वे भी हड़ताल में शामिल हो गए। फ्रांस के विश्वविद्यालयों में छात्र एक अधिक कठोर प्रवेश प्रक्रिया का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि विश्वविद्यालय के अधिकारियों को प्रवेश फ़िल्टर करने और प्रवासियों, अश्वेत और गरीब छात्रों के साथ भेदभाव करने हेतु उन्हें और अधिक अधिकार मिलेंगे। यहां तक कि अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखते हुए, व्यापक एकजुटता प्रदर्शित करते हुए छात्र श्रमिकों के प्रदर्शनों में शामिल हो गए।

ऐसा लगता है फ्रांस में 1968 के क्रांतिकारी उभार की 50वीं वर्षगांठ पर 2023 के ‘विरोध की लहर’ (Spring of Protests) भड़क उठी है। इसलिए, स्वाभाविक रूप से, इनकी तुलना की जा रही है और समानताएं देखी जा रही हैं। 1968 के फ्रांस के साथ वर्तमान प्रतिरोध किस हद तक तुलनीय हैं? गहन सैद्धांतिक स्तर पर समझने का प्रयास करें तो यूरोप के एक अत्यधिक विकसित पूंजीवादी देश में मजदूर वर्ग के क्रांतिकारी उभार की गतिशीलता क्या है? क्या फ़्रांस अन्य विकसित पूंजीवादी देशों को भी एक ऐसे युग में क्रांतिकारी प्रगति का रास्ता दिखाएगा जब "क्रांति" शब्द ही ‘आउट ऑफ फैशन’ हो गया है?

हूबहू 1968 जैसा नहीं लेकिन कई समानताएं हैं

2023 का विरोध अब तक 1968 के क्रांतिकारी विद्रोह का सटीक दोहराव नहीं माना सकता। लेकिन वर्तमान में कई यूनियनें खुलेआम एक आम हड़ताल की संभावना पर विचार कर रही हैं और कुछ तो अनिश्चितकालीन हड़ताल के बारे में भी। वामपंथी नेटवर्क और ग्रीन्स की भागीदारी के कारण, पूंजीवाद-विरोधी और जलवायु-केंद्रित पारिस्थितिक-समाजवादी (eco-socialist) विचार भी नए सिरे से प्रसारित हो रहे हैं। इसलिए, स्थितियां कुछ हद तक 1968 की दिशा में आगे बढ़ सकती हैं।

यह सच है कि 1968 में विद्यार्थी बुनियादी बदलाव के लिए संघर्ष कर रहे थे और 1968 का जन-उभार वर्तमान उभार की तुलना में उच्च राजनीतिक चेतना पर आधारित था। लोग न केवल मौजूदा सरकार बल्कि पूरी अमानवीय पूंजीवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंकना चाहते थे; हालांकि, 2023 में, सड़कों पर उतरने वाले कार्यकर्ता मुख्य रूप से दैननदिन परेशान करने वाले मुद्दों में व्यस्त हैं। लेकिन विरोध के रूपों में कई समानताएं हैं। 1968 की तरह अब बैरिकेड्स पर विरोध की गाथाएं लिखी जा रही है।

मजदूर-छात्र एकता की वापसी

1968 में छात्र पहले सड़कों पर उतरे थे, और फिर श्रमिक उनके साथ हो लिए और अब इसका ठीक उल्टा हो रहा है। 13 मई 1968 को, रेनॉल्ट कार कारखाने के श्रमिक पेरिस की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों के साथ मार्च करने के लिए अपनी नौकरियां त्याग कर बाहर आए थे। जल्द ही लगभग दस मिलियन श्रमिकों ने पूरे फ्रांस में काम बंद कर दिया था और एकजुटता में विरोध प्रदर्शन में शामिल हो गए थे, जो एक प्रमुख यूरोपीय देश में युद्ध के बाद के क्रांतिकारी उत्थान के चरम पर था।

अतीत की भांति बुद्धिजीवी वर्ग भी श्रमिकों के समर्थन में

1968 में, ज़्यां-पॉल सार्त्र, सिमोन दि बूवुआ और मिशेल फोकॉल्ट जैसे शीर्ष फ्रांसीसी बुद्धिजीवियों ने छात्रों और श्रमिकों के संघर्ष का समर्थन किया और कुछ उसमें शामिल भी हुए।

इसी तरह की यादों को ताजा करते हुए, आज के शीर्ष बुद्धिजीवियों में से एक, थॉमस पिकेटी, विरोध के समर्थन में सामने आए हैं। उन्होंने सार्वजनिक रूप से मांग की, "सरकार को सभी के लिए समान वर्षों के योगदान के आधार पर (पेंशन) प्रणाली का पुनर्निर्माण करना चाहिए।"

एडवर्ड लुइ एक प्रसिद्ध श्रमिक वर्ग के बुद्धिजीवी, समलैंगिक कार्यकर्ता और साहित्यकार हैं और वह पिछले साल पहली बार चेतावनी देने वालों में से एक थे कि मैक्रॉन के दावा करने के बावजूद कि "वह न तो दाएं थे, न ही बाएं", 2019 के चुनावों में वह दक्षिणपंथ की और झुकेंगे। ऐसा हुआ। आज वह भी अपने वर्ग सहयोगियों के विरोध प्रदर्शनों में सामने आए हैं और संघर्ष का समर्थन कर रहे हैं।

फ्रेडरिक लॉर्डन एक प्रसिद्ध वामपंथी अर्थशास्त्री हैं और वे श्रमिकों के प्रतिरोध का समर्थन करते हुए कारखानों पर कब्जे और श्रमिकों द्वारा आत्म-प्रबंधन का प्रस्ताव रख रहे हैं।

प्रमुख फ्रांसीसी नारीवादी, क्रिस्टीन डेल्फी अब प्रतिरोध का पक्ष लेते हुए, उसमें महिला श्रमिकों की अधिक भागीदारी सुंनिश्चित के लिए उनके समक्ष बाधाओं पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।

इतना ही नहीं, राफेल ग्लक्समैन, जो धुर दक्षिणपंथी विचारधारा के विरुद्ध एक साहसी योद्धा रहे हैं, और जो जलवायु संरक्षण के समर्थक हैं, वर्तमान उभार में प्रवासी श्रमिकों की विशेष समस्याओं पर प्रकाश डाल रहे हैं।

दार्शनिक एलेन बैडियू, जिन्होंने "ऑक्युपाई विद ए पोएम" (Occupy with a Poem) के आह्वान के साथ येलो वेस्ट्स ( Yellow Vests Movement) का समर्थन किया था, भी समर्थन कर रहे हैं।(येलो वेस्ट आंदोलन, जो मुख्य रूप से एक सर्वहारा आंदोलन था, जो 2018 के अंत में शुरू हुआ और 2019 तक जारी रहा, ने वामपंथी रुझान को बनाए रखा था।)

हालांकि फ्रांसीसी मनोविश्लेषक लेकान ने खुद को जन आंदोलनों से नहीं जोड़ा, लेकिन लकान के अनुयायी उनकी "अहं" (the “Subject”) की अवधारणा से अपने जुड़ाव के संग अब अपना ध्यान इस पर लगा रहे हैं कि आंदोलन की सामूहिक पहचान कैसे 'अहं ' को आकार देती है। ('अहं'शब्द शारीरिक व मनोवैज्ञानिक संचालन के योग को संदर्भित करता है, जो एक मानव को ‘व्यक्ति’ के रूप में बनाए रखता है)

संक्षेप में, फ्रांसीसी बुद्धिजीवियों के बीच पूंजीवाद से संक्रमण पर ध्यान केंद्रित करने के संकेत दिख रहे हैं।

फ्रांसीसी पूंजीवाद का संकट

किसी भी आर्थिक नियतिवाद में जाने से बचते हुए, हम केवल यह तर्क दे सकते हैं कि फ्रांसीसी पूंजीवाद का संकट विभिन्न किस्म के प्रतिरोध को हवा दे रहा है। फ्रांसीसी अर्थव्यवस्था की एकमात्र सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है, जो अन्य यूरोपीय देशों की तुलना में काफी अधिक है। फ्रांस में आर्थिक मंदी लंबे समय से बनी हुई है और जर्मनी और ब्रिटेन की तुलना में फ्रांस में विकास कम रहा है। फ़्रांस ने एक बड़ा व्यापार घाटा निर्मित कर लिया है क्योंकि इसके निर्यात प्रतिस्पर्धी नहीं हैं। यह मिसाइलों जैसे कम श्रम-गहन (less labour-intensive) व उच्च तकनीक वाले युद्धोपकरण उत्पादन की ओर अधिक अग्रसर हो रहा है।

विशेष रूप से टेक क्षेत्र (tech sector) में छंटनी के कारण फ्रांस में भी भारी रोज़गार-हानि देखी जा रही है। डसॉल्ट सिस्टम्स, कैपजेमिनी, थेल्स और श्नाइडर इलेक्ट्रिक जैसी कंपनियों सहित फ्रांस की बड़ी टेक कंपनियों ने अपने मुनाफे में कमी देखी है और कई ने छंटनी की घोषणा भी की है। मैक्रॉन सरकार अलोकप्रिय श्रम सुधार भी कर रही थी। ऐसी पृष्ठभूमि में श्रमिकों के सामाजिक सुरक्षा लाभ को भी संकुचित किया जा रहा था। फ्रांसीसी सरकार एक उच्च सार्वजनिक ऋण से ग्रस्त है और इसलिए उसके पास बहुत ही संकीर्ण राजकोषीय स्पेस है। सरकारी खर्च को कम करने के लिए तैयार किए गए पेंशन सुधारों को इसी पृष्ठभूमि में पेश किया गया था।

वर्तमान आंदोलनकारी उभार की राजनीतिक गतिशीलता

वर्ग आंदोलनों के वर्तमान उभार से पहले ही, फ्रांस चुनावी मुख्यधारा की राजनीति में वामपंथियों के उभार का चश्मदीद रहा था। फ्रांस में पारंपरिक मध्य-वामपंथी पार्टी सोशलिस्ट पार्टी थी। यूके में लेबर पार्टी (द न्यू लेबर) के जैसे दक्षिणपंथी रुझान दिखाने के बाद, यह मतदाताओं में बदनाम हो गयी और 2017 के राष्ट्रपति चुनावों में इसके उम्मीदवार ने केवल 6% मत प्राप्त किये। यह ऐतिहासिक रूप से निम्न प्रदर्शन था।

फ्रांस में मुख्यधारा की वामपंथी राजनीति कुछ अनिश्चितता (flux) से गुजर रही थी और ज्यां-ल्यूक मेलेनचॉन के नेतृत्व वाली सोशलिस्ट पार्टी के भीतर वामपंथी असंतुष्टों ने 2016 में एक नई वामपंथी पार्टी ‘ला फ्रांस इंसूमिस’ (एलएफआई, या ‘फ्रांस जो झुकता नहीं’) बनाई। एक सामाजिक-लोकतांत्रिक कार्यक्रम तैयार किया गया, जिसमें अमीरों पर उच्च संपत्ति कर, कल्याण पर सार्वजनिक खर्च में वृद्धि और काम के घंटों में कमी शामिल थे। इस पार्टी ने श्रमिक वर्ग के बीच प्रभाव कायम किया और 2017 के राष्ट्रपति चुनावों में इसके उम्मीदवार ज्यां-ल्यूक मेलेनचॉन ने लगभग 20% मत हासिल किये। कुछ ने उनकी आलोचना ‘वामपंथी पॉप्युलिस्ट’ के रूप में की है। हालांकि वह चौथे स्थान पर रहे, यह एक वामपंथी पार्टी के लिए महत्वपूर्ण वोट शेयर है और यह देखते हुए कि वामपंथी केंद्र वाली ग्रीन पार्टी ईईएलवी (EELV) के उम्मीदवार ने 13% से अधिक वोट जीते, 2017 ने समग्र चुनावी राजनीति में एक वामपंथी परिवर्तन को चिह्नित किया और फिर से आशा जगायी कि फ्रांस में ग्रीस जैसा भी हो सकता है!

वामपंथी विचारों में नया उबाल

वर्तमान विरोध की लहर वामपंथी विचारों की पुनरावृत्ति को प्रोत्साहन देने के लिए बाध्य है, न केवल अकादमिक क्षेत्र में बल्कि व्यवहारिक क्षेत्र में भी। सोवियत संघ में बदनाम समाजवाद के पतन और चीन के पूंजीवादी पथप्रदर्शकों ने समाजवाद के विचार को अतीत बात बना दिया है। पूंजीपतियों के विचारकों ने शायद 'इतिहास का अंत' और ‘पूंजीवाद की अनंतता’ की घोषणा की होगी। हो सकता है फ्रांसीसी शिक्षाविदों में वामपंथियों ने ‘पावर अनालिसिस’ करने के लिए भाषा (डीकनस्ट्रक्शन या विरचना का सिद्धांत) का सहारा लिया हो। फ्रांस में वामपंथ अब केवल कुछ छोटे-छोटे समूहों तक सीमित नहीं था, जिनकी व्यावहारिक गतिविधि सेमिनार हॉल और सोशल मीडिया पोस्टिंग तक सीमित हो। आंदोलन की वस्तुगत स्थिति ने ही पूंजीवाद से परे के संक्रमण को एजेंडे पर ला दिया है। आखिर, शक्तिशाली पूंजीवाद-विरोधी आंदोलन इस वैचारिक खोज को तेज करने के लिए बाध्य होगी कि उत्तर-पूंजीवादी भविष्य क्या हो सकता है।

फ्रांस में तीव्र दक्षिण-वाम ध्रुवीकरण

यह केवल वामपंथ ही नहीं है जो फ्रांस में चढ़ाव पर है। दक्षिणपंथ भी उत्थान पर है। दूसरे शब्दों में, फ्रांस पिछले एक दशक में एक तेज दक्षिण-वाम ध्रुवीकरण देख रहा है। मैक्रॉन, जो मूल रूप से सोशलिस्ट पार्टी के थे, शुरू में एक मध्यमार्गी प्लेटफार्म पर जीते थे, लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद वे काफी हद तक दक्षिण की ओर चले गए।

अंधराष्ट्रवादी राष्ट्रवाद (chauvinist nationalism) और यूरोसेप्टिसिज़्म (Euroscepticism) (यूरोसेप्टिसिज़्म वह राजनीतिक सिद्धांत है जो ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के बीच घनिष्ठ संबंधों का विरोध करता है।) फ्रांस में दक्षिणपंथ को बढ़ावा देते हैं। फ्रांस सामाजिक रूढ़िवादियों का गढ़ भी है जहां 2013 में लोग सड़कों पर उतरे थे, जब फ्रांस समलैंगिक विवाह को वैध बनाने वाला 14वां देश बना था। सर्वोपरि, नवउदारवाद फ्रांसीसी दक्षिणपंथ की मुख्य ताकत है, हालांकि इसके विचार यूरोपीय पूंजीवाद के संकट के बाद से प्रभाव खो रहे हैं।

सरकारी मीडिया भी ध्रुवीकृत है। जेनी, जो भारत में फ्रैंकोफ़ोन अध्ययन में पोस्ट-डॉक्टरल शोधकर्ता हैं और फ्रेंच में धाराप्रवाह बोलती हैं, ने मुख्यधारा के फ्रांसीसी समाचार पत्रों और सोशल मीडिया पोस्टिंग्स के माध्यम से ब्राउज़ किया और न्यूज़क्लिक को बताया कि सोशल मीडिया ने विरोध कार्यक्रमों के लिए लोगों को जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जबकि मुख्यधारा की मीडिया ने प्रदर्शनकारियों द्वारा की गई हिंसा पर ध्यान केंद्रित किया।

लेखक अर्नेस्ट हेमिंग्वे ने एक बार पेरिस को ' मूवेब्ल फीस्ट' (भावविभोर करने वाला घटना स्थल) के रूप में वर्णित किया था। आज, सचमुच पेरिस वैश्विक वामपंथियों की नज़र में ‘मूवेब्ल फीस्ट’ बन गया है।

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