गर्म लहर से भारत में जच्चा-बच्चा की सेहत पर खतरा
प्रचंड गरम लहर ने अप्रैल से ही पूरे दक्षिण एशिया को अपनी चपेट ले रखा है। बबीता बसवाल के लिए इससे खराब वक्त और कोई नहीं हो सकता था। 32 वर्षीया बबीता नौ महीने की गर्भवती हैं, जो बार-बार की मितली और थकान से जूझ रही थीं। तब दिल्ली का तापमान 49 डिग्री सेल्सियस (120 फ़ारेनहाइट) तक पहुंच गया था। खासकर जबर्दस्त उल्टी होने के बाद, बबीता को इलाज के लिए दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें बताया गया कि उनके शरीर में पानी की घोर कमी (एक्सट्रीम डीहाइड्रेशन) हो गई है।
सफदरजंग अस्पताल की एक प्रसूति विशेषज्ञ डॉ एना विशेष रूप से उच्च जोखिम वाली गर्भवती महिलाओं का इलाज करती हैं। उनका कहना है कि हाल के हफ्तों में, प्रसूति इकाई में कई गर्भवती महिलाओं को इसी तरह की कठिनाइयां आई हैं।
डॉ एना कहती हैं,"उनमें से ज्यादतर महिलाएं पानी की कमी की शिकार होती हैं, उन्हें काफी पसीना आता है और वे टैचीकार्डियक हैं यानी उनका दिल लगातार या कम-कम समय के गैप में खूब तेज-तेज धड़कता है[प्रति मिनट 100 से अधिक बार धड़कता है]। लेकिन वे इस बारे में यह सोच कर शायद शिकायत नहीं करतीं कि हमारे यहां एक आम बात है।"
भारत में हीटवेव वास्तव में एक आम घटना है, लेकिन इस साल चौंकाने वाला तापमान सामान्य से पहले आया, और गर्मी के मौसम के पहले ही अपने रिकॉर्ड तोड़ स्तर पर पहुंच गया। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, इस साल उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत में विगत 122 वर्षों में अप्रैल का महीना सबसे गर्म रहा है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन के महासचिव पेटेरी तालास ने पिछले महीने मई में दिए अपने एक बयान में कहा कि यह असामान्य मौसम बिल्कुल"उसी के मुताबिक है, जिसका कि जलवायु परिवर्तन वाले परिवेश में हम उम्मीद करते हैं।"
जलवायु परिवर्तन के साथ दुनिया के कई हिस्सों में प्रचंड गर्मी पड़ रही है, जो बढ़ती ही जा रही है। इसको लेकर विशेषज्ञ की चेतावनी है कि इसका जच्चा और बच्चा पर जानलेवा असर हो सकता है।
डॉ. करिश्मा थरानी कहती हैं कि "हम ओलिगोहाइड्रामनिओस (Oligohydramnios) के कई मामलों देखते हैं, जिसमें बच्चे में [एमनियोटिक] तरल पदार्थ की कमी आई है-यह लक्षण समय से पहले जन्म लेने वाले शिशु में और गर्मियों के महीनों में गर्भवती महिलाओं में प्रीमैच्योर पेन के मामले में ज्यादा होते हैं।" डॉ. करिश्मा उच्च जोखिम वाले प्रसूति मामलों की विशेषज्ञ हैं, जो भारतीय माताओं के स्वास्थ्य के लिए काम करने वाली एक अलाभकारी संस्था ARMMAN में सलाहकार के रूप में काम करती हैं। उनका कहना है,"और भारत में गर्मियों के ये महीने बदतर होते जा रहे हैं।"
मई की भीषण गरम लहर के दौरान दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल की मैटरनिटी यूनिट में माताएं
गरम लहर की वजह से अजन्मे बच्चों को खतरा
गर्भवती महिलाओं पर गरम लहर के दुष्प्रभावों को जानने के लिए किए गए 70 अध्ययनों के मेटा - विश्लेषण में पाया गया कि तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की भी वृद्धि होने से प्रीमैच्योर बेबी के पैदा होने और मरे हुए शिशुओं के जन्म, दोनों का जोखिम 5 फीसदी तक बढ़ गया।
एक ऑस्ट्रेलियाई अध्ययन में पाया गया कि हीटवेव के दौरान मरे हुए शिशु के पैदा होने की तादाद में 46 फीसद की वृद्धि हुई है। यह भी गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के गरम लहर से पीड़ित होने और कम वजन के शिशु के जन्म लेने में परस्पर एक संबंध है।
दक्षिण अफ्रीका में विट्स रिप्रोडक्टिव हेल्थ एंड एचआईवी इंस्टीट्यूट (WRHI) के नेतृत्व में की गई समीक्षा में यह बात सामने आई कि "ग्लोबल वार्मिंग के साथ बढ़ते तापमान का शिशु की सेहत पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।" इसमें यह भी कहा गया है कि "गर्भावस्था के दौरान गरम लहर के जोखिम के बारे में लोग काफी हद तक अनजान हैं।"
हालांकि गरम लहर के सेहत पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के बारे में अधिकांश अध्ययन उच्च आय वाले देशों में किए गए थे। परंतु समीक्षा में कहा गया है कि कम और मध्य आय वाले देशों में गर्भवती महिलाओं पर इसका विशेष खतरा हो सकता है। इस वजह से कि गरीब महिलाएं उच्च तापमान के अनुरूप खुद को ढालने में कम सक्षम हैं। यहां तक कि उन्हें अपनी गर्भावस्था के अंतिम दिनों में"गरमी सहन करने की अपनी हद से आगे जा कर"भी काम करते रहना पड़ सकता है। इससे उन्हें काफी नुकसान होता है।
WRHI की एक शोधकर्ता डॉ दर्शनिका पेमी लखू ने कहा, "वास्तव में, तापमान का प्रभाव अलग-अलग भूभाग पर रहने वाली भिन्न-भिन्न आबादी समूहों में अलग-अलग तरीके का होता है। यहां तक कि एक ही शहर में, लोगों के तापमान को महसूस करने के अलग-अलग तरीके होते हैं। भारत में, कम सामाजिक-आर्थिक हैसियत वाली महिलाओं की " कूलर या एयर-कंडीशनर तक बिल्कुल पहुंच नहीं होती या कभी-कभी तो उनके घर में एक पंखा भी नहीं होता, इसलिए कि बिजली की आपूर्ति ही अनियमित होती है।"
जब तापमान बढ़ जाता है, तो अपने को ठंडा रखना और शरीर में पानी की कमी न होने देना या तापमान के असर को धीमा करना, यह सारा कुछ लोगों के संसाधनों एवं उनकी विलासिता पर निर्भर कर सकता है।
बबीता कहती हैं, "एक हालिया रिपोर्ट में पाया गया कि पूरे भारत में 323 मिलियन लोगों की कूलर तक पहुंच नहीं है लेकिन बसवाल उन कुछेक लोगों में हैं, जिनके घर पर एसी है। उन्हें अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट मिलने के बाद ऑल-क्लियर कह दिया गया पर शरीर में पानी की कमी न होने देने की सलाह दी गई। हाल के हफ्तों में, गर्मी की झुलसाती लहर के दौरान बिजली की मांग बेतहाशा बढ़ी है। इस वजह से हर दिन दो से तीन घंटे तक बिजली में कटौती की गई है। हर बार, जब पारा ऊपर उठ जाता है,"उस समय मुझे चक्कर आने लगते हैं, मुझे उल्टी होने लगती है।"
तापमान बढ़ने पर शिशु की जान पर जोखिम
हीटवेव केवल अजन्मे शिशुओं के लिए ही खतरनाक नहीं है। यह नवजात शिशुओं को भी खतरे में डाल सकता है। अहमदाबाद में 2010 में आई झुलसाने वाली गर्मी के दौरान बिना एसी की सुविधा वाले अस्पताल में नवजात गहन देखभाल इकाई का अध्ययन किया गया था। इसमें पाया गया कि तापमान के 42 डिग्री सेल्सियस से एक भी डिग्री पार करने पर आइसीयू में दाखिल किए जाने वाले शिशुओं की तादाद में 43 फीसदी की वृद्धि हो गई थी।
एना का कहना है कि प्रचंड गर्मी ने सफदरजंग अस्पताल में दाखिल कई महिलाओं को स्तनपान कराने में लाचार कर दिया है:"अगर महिला के शरीर में पर्याप्त पानी नहीं है, तो वे बच्चे को अपना दूध कैसे पिला सकती हैं?”
भारत में पहले से ही बाल कुपोषण की दर काफी ऊंची बनी हुई है। पांच वर्ष से कम उम्र की बच्चों की होने वाली कुल मौतों में से अकेले दो तिहाई मौतें कुपोषण की वजह से होती है। स्वास्थ्य पर बढ़ते तापमान के दुष्प्रभाव लंबे समय से शोधकर्ताओं के लिए चिंता का एक विषय रहा है, जो आगाह करता है कि हीटवेव भोजन और पानी की कमी को बढ़ाएगा और संक्रामक रोगों का आसानी से प्रसार करेगा।
इसका सबसे अधिक खतरा गर्भवती महिलाओं और बच्चों सहित कमजोर समूहों को होगा। उदाहरण के लिए, डेंगू, जिसमें सबसे अधिक बाल मृत्यु दर है, वह जलवायु परिवर्तन के कारण हाल के वर्षों में नए क्षेत्रों में फैल गई है।
अनुसंधान, वकालत, और नीति परिवर्तन
डॉ. लखू का मानना है कि मातृ और नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य पर गर्मी के संपर्क के प्रत्यक्ष प्रभाव के बारे में अभी और शोध किए जाने की आवश्यकता है। यह ऐसा क्षेत्र है, जिसकी संभावनाओं को अंतिम रूप से खंगाला नहीं गया है और हीटवेब के अप्रत्यक्ष प्रभावों के साथ-साथ उसका पता नहीं लगाया गया है।" निम्न और मध्य आय वाले देश विशेष रूप से "अनुसंधान में कम प्रतिनिधित्व करते हैं।"
सफदरजंग अस्पताल में प्रसूति और स्त्री रोग विभाग के बाहर भयंकर गर्मी में अपनी बारी का इंतजार करते मरीज और उनके परिजन।
डॉक्टर थरानी इससे सहमत हैं। उनका कहना है"यह पहली बार है,जब कोई इस तरह के विषय पर मेरी राय मांग रहा है।" वे दाइचे वेले द्वारा इस विषय पर दिए गए इंटरव्यू के बारे में कह रही थीं।
ARMMAN स्वास्थ्यकर्मियों को हीटस्ट्रोक के लक्षणों वाले रोगियों की निगरानी करने और उन्हें हाइड्रेटेड रहने के महत्त्व पर सलाह देने के बारे प्रशिक्षित करता है। किंतु डॉ थरानी का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान गरम लहर से झुलसने के खतरों के बारे संदेश फैलाने के लिए सरकार को और अधिक काम करना चाहिए।
डॉ लखू कहती हैं कि प्रत्यक्ष परिणामों की मात्रा निर्धारित करने से बेहतर नीतिगत उपायों को आगे बढ़ाने में मदद मिल सकती है। साथ ही, मौजूदा स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों को और मजबूत करने में मदद मिल सकती है। जलवायु परिवर्तन हमारी सदी में स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बनने जा रहा है। इसलिए, यह वास्तव में महत्त्वपूर्ण है कि हम इस क्षेत्र में शोध-अनुसंधान करने में सक्षम रहें, जिसका उपयोग लोगों में परिणामों को बेहतर बनाने के लिए किया जा सकता है।
डॉ लखू समझाती हैं, "WRHI द्वारा एकत्र किए गए डेटा का उपयोग दक्षिण अफ्रीका में एक जिला स्वास्थ्य निगरानी प्रणाली के प्रोजेक्ट में किया जाएगा। यह उच्च तापमान के दौरान स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के रूप में कार्य करेगा।"उदाहरण के लिए, अगर हम जानते हैं कि एक निश्चित स्तर पर तापमान के होने के दौरान चार या पांच अतिरिक्त प्रीमैच्योर बेबी का जन्म होने जा रहा है, तो हम इस अतिरिक्त बोझ को वहन करने के लिए हेल्थकेयर सिस्टम तैयार करने में उस प्रणाली का उपयोग कर सकते हैं।"
उन्होंने आगे कहा, "इस क्षेत्र में काम करना, केवल अनुसंधान करना नहीं है। यह वास्तव में एक पैरोकार बनने की बात है।"
सौजन्य: दाइचे वेले (DW)
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