झारखंड-बिहार: “हमास के नाम पर फ़िलिस्तीनी अवाम का क़त्लेआम बंद हो”
''फ़िलिस्तीन में नागरिकों की हत्या बंद करो, युद्ध नहीं शांति चाहिए, हमास के नाम पर फ़िलिस्तीन के अवाम पर हमला नहीं चलेगा'' इत्यादि नारे लिखे बैनर-पोस्टरों के साथ देश के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ झारखंड व बिहार में भी सड़कों पर कड़ा विरोध प्रदर्शित किया जा रहा है।
झारखंड व बिहार में इस सवाल पर 15 अक्टूबर से राज्यव्यापी प्रतिरोध सप्ताह चलाया जा रहा है। जिसके माध्यम से आम नागरिकों से इस बात की पुरज़ोर अपील की जा रही है कि- ‘गाज़ा में इजराइल द्वारा मासूम बच्चों-महिलाओं व आम लोगों के बर्बर जनसंहार पर अविलंब रोक लगाने तथा फ़िलिस्तीन की जनता के अपनी ज़मीन पर अधिकार के पक्ष में खड़े हों। भारत में इसके नाम पर मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फ़ैलाने की सत्ता-संरक्षित साजिशों का कड़ा विरोध किया जाय’।
साथ ही फ़िलिस्तीन की जनता के जनसंहार को लेकर मोदी सरकार की चुप्पी और भारत में स्वतंत्र मीडिया/पत्रकारों पर हमले का सवाल भी ज़ोरदार ढंग से उठाया जा रहा है।
झारखंड में राज्यव्यापी प्रतिरोध सप्ताह के प्रथम दिन 15 अक्टूबर को रांची में केन्द्रीय ट्रेड यूनियन सीटू, एटक व एक्टू के अलावा किसान सभा व एआइपीएफ समेत कई सामाजिक जन संगठनों के प्रतिनिधियों ने अलबर्ट एक्का चौक पर संयुक्त विरोध प्रदर्शन किया।
जिसके माध्यम केंद्र की सरकार को स्थानीय प्रशासन के द्वारा केंद्र की सरकार को विशेष ज्ञापन प्रेषित कर मांग की गयी कि- भारत सरकार इज़राइल पर इस बात के लिए दबाव डाले कि वह ज़ल्द से ज़ल्द गाज़ा पर से अपना जबरन कब्ज़ा हटाये तथा हमास के नाम पर मासूम फ़िलिस्तीनियों का बर्बर जनसंहार को फ़ौरन बंद करे।
भारत सरकार से यह भी कहा गया कि वह फ़िलिस्तीन में हत्यारों के पक्ष में खड़ा होने की बजाए ‘विश्व शांति और बंधुत्व के लिए फ़िलिस्तीन की जनता का साथ दे।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सभी वक्ताओं ने एक स्वर से भारत के प्रधानमंत्री व उनकी सरकार द्वारा इज़राइल को एकतरफ़ा समर्थन दिए जाने की आलोचना की। गाज़ा में जारी नरसंहार को विश्व मनावता को कलंकित करनेवाला करार देते हुए अविलंब रोक लगाने की मांग की।
बिहार में इस प्रतिरोध सप्ताह की शुरुआत 15 अक्टूबर को पटना में भाकपा माले, सीपीएम व सीपीआई के संयुक्त तत्वावधान में ‘नागरिक प्रतिवाद सभा’ की गयी। जिसमें पटना स्थित बुद्धा स्मृति पार्क परिसर के समीप बड़ी संख्या में विरोध-पोस्टरों को लहराते हुए नारे लगाये गए।
“फ़िलिस्तीन पर इज़राइल के अन्यायपूर्ण क़ब्ज़े व बेगुनाहों के कत्लेआम तथा भारत में स्वतंत्र मीडिया पर दमन के ख़िलाफ़” आयोजित नागरिक प्रतिवाद सभा को संबोधित करते हुए भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने आरोप लगाते हुआ कहा कि- आज हम सबकी खुली आंखों के सामने फ़िलिस्तीन में गाज़ा को दुनिया की सबसे बड़ी खुली जेल में तब्दील कर दिया गया है। बच्चे-बुजुर्ग-महिलाओं के साथ साथ अस्पतालों व राहत कैम्पों पर लगातार बम गिराए जा रहें हैं। वहां न पानी है न बिजली और न दवाई। ऐसी नाकेबंदी का साफ़ मतलब है- एक बहुत बड़ा जनसंहार। जो होलोकास्ट यहूदियों और अन्य लोगों को हिटलर के समय झेलना पड़ा था आज वही हाल फ़िलिस्तीन का है। इज़राइल फ़िलिस्तीन को मिटा देने पर आमादा है।
हमारे देश के प्रधानमंत्री जो मणिपुर में जारी जनसंहार-हिंसा पर एक शब्द भी नहीं बोलते लेकिन इज़राइल पर तुरत ट्वीट कर उसका समर्थन कर देते हैं। लेकिन आज जब पूरी दुनिया में फ़िलिस्तीन को बचाने की आवाज़ें उठ रहीं हैं और संयुक्त राष्ट्र संघ तक ने इसे जबरदस्त मानवीय संकट कहा है तब मोदी सरकार ने फ़िलिस्तीन की ओर से पीठ की हुई है। भाजपा के लोग जो आये दिन यह प्रचार करते थकते नहीं हैं कि मोदी जी ने युक्रेन युद्ध बंद करा दिया (जबकि सारी दुनिया देख रही है कि युद्ध लगातार जारी है)। इज़राइल से दोस्ती का दवा करते हैं तो इस दोस्ती का इस्तेमाल करके फ़िलिस्तीन में शांति का प्रयास क्यों नहीं करते।
फ़िलिस्तीन में “हमास” का बहाना है और पूरा फ़िलिस्तीन निशाना है। इधर भारत में “चीन” बहाना है और न्यूज़क्लिक जैसे मीडिया संस्थान और स्वतंत्र पत्रकार निशाना है। मोदी शासन, सरकार की चाटुकारिता को पत्रकारिता बना रहा है।
सीपीएम के वरिष्ठ नेता अरुण मिश्रा ने आरोप लगाया की भाजपा भारत में आतंकी हमलों और फ़िलिस्तीन में हमास के हमलों की साजिशपूर्ण ढंग से समानता दिखलाकर मुस्लिम विरोधी ध्रुवीकरण करने की कवायद कर रही है।
सीपीआई के मजदूर नेता गजनफर नवाब ने मांग की कि भारत विदेश नीति को तत्काल फ़िलिस्तीन में युद्ध विराम और शांति बहाली के साथ साथ फ़िलिस्तीनियों के संप्रभु होमलैंड को मान्यता दिलाने के लिए काम करना चाहिए।
अभियान को ऐपवा कि राष्ट्रीय नेता मीना तिवारी व शशि यादव के अलावे सीपीआई के सर्वोदय शर्मा समेत कई वाम नेताओं ने भी संबोधित किया।
कई वक्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि चूंकि भाजपा खुद तानाशाही का पक्षपोषक है इसीलिए वह इज़राइली तानशाही के समर्थन में तुरत खड़ी हो गयी। इसके पहले भी इसी इजराइल के सहयोग से उसने भारत में “पेगासस जासूसी कांड” कर विरोध की आवाज़ों को कुचलने की कोशिश कर चुकी है।
प्रतिवाद कार्यक्रम में बड़ी संख्या में नागरिक समाज के प्रतिनिधियों के साथ साथ सोशल एक्टिविस्टों, छात्र-युवा संगठनों के अलावे संस्कृतिकर्मियों ने भी सक्रिय भागीदारी निभाई।
फ़िलिस्तीन में इज़राइल द्वारा जारी जनसंहार के विरोध में आइसा के नेतृत्व में छात्रों ने पटना विश्वविद्यालय कैंपस में भी प्रतिवाद अभियान चलाया।
सनद रहे कि “फ़िलिस्तीन में इज़राइल द्वारा जारी जनसंहार के ख़िलाफ़” जारी प्रतिवाद अभियान के साथ साथ भारत में भाजपा सरकार द्वारा न्यूज़क्लिक और स्वतंत्र पत्रकारिता पर हमले के विरोध में भी झारखंड और बिहार में राज्यव्यापी विरोध लगातार जारी है।
जिसके तहत झारखंड के रामगढ़ और धनबाद तथा बिहार के भोजपुर, अरवल व सिवान समेत कई इलाकों में RYA व किसान महासभा तथा भाकपा माले इत्यादि द्वारा जगह जगह विरोध मार्च निकाले जा रहें हैं।
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