ख़बरों के आगे-पीछे : आदिवासी वोट के लिए मोदी की मशक़्क़त
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में चुनाव प्रचार के दौरान ही एक कार्यक्रम झारखंड में भी किया। झारखंड दिवस यानी 15 नंवबर को उन्होंने जनजातीय गौरव दिवस झारखंड में मनाया। महान स्वतंत्रता सेनानी धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को होती है। इस मौके पर प्रधानमंत्री खूंटी स्थित उनके गांव उलिहातू गए। चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री का 16 घंटे झारखंड में बिताना मामूली बात नहीं है। उन्होंने इस यात्रा के दौरान 24 हजार करोड़ रुपए की योजनाओं की शुरुआत भी की। साथ ही केंद्र सरकार की उपलब्धियों का ब्योरा आम लोगों तक पहुंचाने के लिए विकसित भारत संकल्प यात्रा की शुरुआत भी वहीं से हुई। मोदी ने यह सारी मशक्कत मिजोरम के बाद बचे हुए चार राज्यों में और उसके आगे लोकसभा चुनाव में आदिवासी वोटों को एक बार फिर से भाजपा की ओर मोड़ने के मकसद से की है।
गौरतलब है कि आदिवासी वोट एक समय भाजपा का कोर वोट माना जाता था लेकिन पिछले कुछ समय से यह वोट धीरे-धीरे खिसक रहा है। अभी जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे है उन सभी राज्यों में आदिवासी वोट बड़ी संख्या में हैं। छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान के पिछले चुनाव से लेकर झारखंड और इस साल कर्नाटक में भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ। उसके बाद से ही भाजपा आदिवासी वोट वापस हासिल करने के लिए मेहनत कर रही है। इसी रणनीति के तहत बाबूलाल मरांडी की पार्टी में वापसी करा कर उन्हें प्रदेश में भाजपा का चेहरा बनाया गया। बिरसा मुंडा के गांव जाकर प्रधानमंत्री मोदी ने देश भर के आदिवासी समुदायों को रिझाने की कोशिश की है।
दिल्ली में कांग्रेस की फिर खड़े होने की कोशिश
राजधानी दिल्ली में लगातार 15 साल राज करने के बाद कांग्रेस ऐसे खत्म हुई कि पिछले 10 साल से उसकी चर्चा ही बंद हो गई थी। लेकिन अब एक बार फिर प्रदेश कांग्रेस नए सिरे से लड़ने की तैयारी कर रही है। 15 साल मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के बेहद करीबी रहे अरविंदर सिंह लवली को अध्यक्ष बनाए जाने के बाद कांग्रेस के पुराने नेता एकजुट हो रहे हैं। हाल ही में इन नेताओं ने दिल्ली में प्रदूषण को लेकर एक बैठक की है और केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकार पर भी निशाना साधा है। असल में कांग्रेस को लग रहा है कि उसका पुराना वोट वापस लौट सकता है। तमाम प्रदेशों में कांग्रेस भी केजरीवाल की तरह मुफ्त की चीजें बांटने की राजनीति कर रही है। इसलिए वह दिल्ली में भी मुफ्त बिजली, पानी आदि की घोषणा कर सकती है। इससे प्रवासी वोट वापस लौट सकता है। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद मुस्लिम मतदाताओं का रूझान भी पार्टी की ओर बढ़ा है, जिससे कांग्रेस को मुस्लिम वोट लौटने की भी उम्मीद है। इस उम्मीद के बीच कांग्रेस रणनीति को लेकर दुविधा में है। कुछ नेता चाहते है कि आम आदमी पार्टी से तालमेल न हो लेकिन कई नेता चाहते हैं कि जिस तरह से 2013 में कांग्रेस के समर्थन करने से आम आदमी पार्टी को फायदा हुआ था और कांग्रेस का वोट उसके साथ चला गया था उसी तरह 2024 में आम आदमी पार्टी के साथ मिल कर लड़ने से कांग्रेस के वोट की वापसी शुरू हो सकती है।
भाजपा के सांसद उम्मीदवारों की मुश्किल
भाजपा ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना में अपने कई सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारा है। पार्टी ने यह सोच कर सांसदों को उम्मीदवार बनाया था कि वे खुद तो जीतेंगे ही, साथ ही अपने लोकसभा क्षेत्र की दूसरी सीटों पर भी पार्टी के उम्मीदवारों को जीत दिलाएंगे। लेकिन कई सांसदों की सीट पर भाजपा का गणित गड़बड़ाया है। कुछ सांसद उम्मीदवारों के साथ ऐसा संयोग भी हुआ कि वे गलत कारणों से खबरों में रहे। ग्वालियर-चम्बल की दिमनी सीट से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर चुनाव लड़ रहे हैं। मतदान से कुछ दिनों पहले उनके बेटे की दो वीडियो सामने आईं, जिनमें वे किसी व्यक्ति के साथ कथित तौर पर सैकड़ों करोड़ रुपये की डील करते दिखाई देते है। हालांकि तोमर ने इसका खंडन किया और कहा कि वीडियो फर्जी हैं। उन्होंने कांग्रेस पर इसका आरोप लगाया है लेकिन इन दो वीडियो से उनके लिए बहुत मुश्किल खड़ी हुई है। इसी तरह मध्य प्रदेश में नरसिंहपुर विधानसभा सीट पर केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल चुनाव लड़ रहे हैं। पिछले दिनों उनके काफिले का एक्सीडेंट हो गया, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और कुछ लोग घायल हो गए। राजस्थान में दो सांसदों- राज्यवर्धन राठौड़ और दीया कुमारी के खिलाफ भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं की जबरदस्त बगावत देखने को मिली। हालांकि उनकी सीटों के दूसरे दावेदारों को किसी तरह से मनाया गया लेकिन जमीनी स्तर पर नाराजगी अब भी बनी हुई है। उधर तेलंगाना में पार्टी ने अपने तीन सांसदों को चुनाव मैदान में उतारा है लेकिन किसी के जीतने की संभावना नहीं जताई जा रही है।
भाजपा में येदियुरप्पा जैसा क्षत्रप कोई नहीं
भाजपा के लिए इस सदी के शुरुआती साल बहुत शानदार रहे थे। उसी समय अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में एनडीए की केंद्र में सरकार थी और राज्यों में भाजपा के बड़े क्षत्रप तैयार हो रहे थे। गुजरात में नरेंद्र मोदी, राजस्थान में वसुंधरा राजे, मध्य प्रदेश में उमा भारती और शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ में रमन सिंह, कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा, महाराष्ट्र में प्रमोद महाजन और गोपीनाथ मुंडे, उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह, झारखंड में बाबूलाल मरांडी आदि का जलवा था। इन क्षत्रपों में से एक रहे नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद राज्यों के कई क्षत्रप हाशिए पर चले गए या समाप्त हो गए। बीएस येदियुरप्पा इकलौते क्षत्रप हैं, जिन्होंने आज भी अपनी ताकत बना रखी है और पार्टी उनकी अनदेखी करके राज्य का कोई भी फैसला करने की स्थिति में नहीं है। उनकी तरह ही हैसियत कुछ-कुछ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की है। येदियुरप्पा की तो यह हैसियत इसके बावजूद है कि वे कर्नाटक में दो बार में महज पांच साल मुख्यमंत्री रह पाए हैं। पहली बार में उनको तीन साल बाद हटा दिया गया था और दूसरी बार भी दो साल बाद वे हटा दिए गए थे। जबकि रमन सिंह और शिवराज सिंह चौहान 15-15 साल तो वसुंधरा राजे 10 साल मुख्यमंत्री रही हैं। योगी आदित्यनाथ भी साढ़े सात साल से देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री हैं। लेकिन किसी क्षत्रप की स्थिति ऐसी नहीं है कि वह मोदी और अमित शाह पर दबाव डाल कर अपने मनमाफिक फैसला करा सके।
प्रदूषण से ध्यान हटाने की केजरीवाल की रणनीति
दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार वायु प्रदूषण के मसले पर बुरी तरह से ऩाकाम रही है। हालात पहले से खराब हो गए हैं। कहा जा रहा है कि मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की। चार दिन तो हवा इस वजह से साफ रही क्योंकि बारिश हो गई थी। अगर बारिश नहीं हुई होती तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि दिल्ली की क्या दशा होती। इस स्थिति से निपटने के लिए केजरीवाल सरकार के पास कोई योजना नहीं है। इसलिए किसी तरह से दिन काटने और ध्यान भटकाने की रणनीति पर काम हो रहा है। इस रणनीति के तहत केजरीवाल और उनकी सरकार ने दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। द्वारिका एक्सप्रेस वे की एक जमीन के मुआवजे के मामले में विजिलेंस विभाग की मंत्री आतिशी ने कथित तौर पर जांच करा कर नरेश कुमार के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की है। उनकी रिपोर्ट केजरीवाल ने उप राज्यपाल को भेजी है और उन्हें निलंबित करने की सिफारिश की है। उन्होंने यह रिपोर्ट सीबीआई और ईडी को भेजने का निर्देश आतिशी को दिया है। पूरी पार्टी और सरकार इस मामले को ऐसे उछाल रही है, जैसे आज दिल्ली का सबसे बड़ा मुद्दा यही हो। जबकि इस मामले का दिल्ली के लोगों से कोई लेना-देना नहीं है। केजरीवाल के बंगले की जांच और अधिकारियों से झगड़े की वजह से यह मुद्दा उठाया गया है।
भाजपा तमिलनाडु में बनाएगी तीसरा मोर्चा
तमिलनाडु में चुनावी राजनीति पिछले करीब साढ़े चार दशक से दो ध्रुवीय रही है। डीएमके और अन्ना डीएमके में मुकाबला होता है और कांग्रेस व भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियों के साथ-साथ अन्य स्थानीय पार्टियां इनमें से किसी गठबंधन के साथ होती है। एकाध बार तीसरा मोर्चा बनाने का प्रयास हुआ लेकिन कामयाब नहीं हो सका। अब फिर ऐसा प्रयास हो रहा है। इस बार भारतीय जनता पार्टी प्रयास करती दिख रही है। अगर अन्ना डीएमके और भाजपा के बीच संबंध ठीक नहीं होते हैं और चुनाव से पहले दोनों में गठबंधन नहीं होता है तो भाजपा एक तीसरा मोर्चा बनाएगी। बताया जा रहा है कि इसमे अन्ना डीएमके से अलग हुए ओ. पनीरसेल्वम का खेमा शामिल हो सकता है। उनके अलावा टीटीवी दिनाकरण की पार्टी भी इसमें शामिल हो सकती है। गौरतलब है कि जयललिता की करीबी सहयोगी रही वीके शशिकला के भतीजे दिनाकरण ने अन्ना डीएमके पर कब्जा करने का प्रयास विफल होने के बाद अलग पार्टी बनाई थी। बताया जा रहा है कि भाजपा के लिए परदे के पीछे काम करने वाले कई तमिल लोग शशिकला के संपर्क में हैं। वे तीसरा मोर्चा बनाने में मदद कर रहे हैं। सो, डीएमके-कांग्रेस और अन्ना डीएमके से मुकाबले के लिए एक तीसरा मोर्चा बन सकता है, जिसमें कम से कम तीन पार्टियां रहेंगी। कुछ और स्थानीय पार्टियां इस मोर्चे में शामिल हो सकती हैं।
विश्वकप क्रिकेट से जुड़े राजनीतिक टोटके
वैसे तो क्रिकेट और खिलाड़ियों को लेकर ढेर टोटके हैं लेकिन एकदिवसीय क्रिकेट के विश्व कप में भारत के फाइनल में पहुंचने को लेकर भी दो टोटके हैं, जिनकी सोशल मीडिया में खूब चर्चा हो रही है। वह टोटका यह है कि भारत जब भी एक दिवसीय क्रिकेट के फाइनल में पहुंचता है तो उसके बाद वाले चुनाव में सत्ता बदल जाती है या प्रधानमंत्री बदल जाता है और जब विश्व कप मुकाबले के फाइनल में भारत की टीम नही पहुंचती है तो उसके बाद के चुनाव में सत्ता नहीं बदलती है। दूसरा टोटका यह है कि केंद्र में कांग्रेस की सरकार होती है तभी भारत विश्व कप का फाइनल जीत पाता है। इससे पहले भारतीय टीम आखिरी बार 2011 के विश्व कप मुकाबले के फाइनल में पहुंची थी और जीती भी थी। तब केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी। लेकिन उसके बाद हुए 2014 के चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह से हार कर सत्ता से बाहर हो गई। उससे पहले भारतीय टीम 2003 के विश्व कप मुकाबले के फाइनल में पहुंची थी और उसके अगले साल यानी 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा हार गई थी और अटल बिहारी वाजपेयी को सत्ता से बाहर होना पड़ा था। सबसे पहले भारत 1983 के विश्व कप फाइनल में पहुंचा था और जीता था। उसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई थी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने थे। उनकी कमान में कांग्रेस को प्रचंड जीत मिली। भारत पिछले दो विश्व कप के फाइनल में नहीं पहुंचा था। 2019 में भारत सेमीफाइनल में हार गया था और उससे पहले 2015 में भी भारत फाइनल से पहले ही टूर्नामेंट से बाहर हो गया था। 2015 के विश्व कप के बाद हुए चुनाव में सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ था। उससे पहले 2007 के विश्व कप में भी भारत फाइनल में नहीं पहुंचा था और उसके बाद के चुनाव में भी सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ था। इसका अपवाद 1996 का विश्व कप है, जब भारत फाइनल में नहीं पहुंचा था और फिर भी 1998 के चुनाव में सत्ता परिवर्तन हो गया था।
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