मज़दूरों की मौत पर जनता का राष्ट्रीय शोक, जीवन व आजीविका के लिए सरकार से जवाबदेही की मांग
कोविड-19 के कारण लॉकडाउन से प्रभावित लोगों के जीवन एवं आजीविका की जवाबदेही की मांग और सरकारी उपेक्षा से असमय हुई मौतों को लेकर रोज़ी रोटी अधिकार अभियान ने आज पहली जून को राष्ट्रीय शोक दिवस मनाया। सुबह से ही पूरे देश में रोज़ी रोटी अधिकार अभियान से जुड़ी संस्थाओं ने शहर से लेकर ग्रामीण स्तर तक विरोध प्रदर्शन किया। सरकारों को उत्तरदायी बनाने के लिए दोपहर बाद से ट्विटर पर #शोकदिवस #DayOfMourning हैशटैग के साथ विरोध प्रदर्शन के फोटो, वीडियो, मांगों के पोस्टर, संदेश आदि को स्ट्रोम किया गया।
रोज़ी रोटी अधिकार अभियान राष्ट्रीय सचिवालय की समन्वयक आयशा ने बताया, ‘‘दिल्ली, बिहार, राजस्थान, ओडिशा, गुजरात, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश एवं झारखंड में बड़े पैमाने पर लोगों ने शोक दिवस मनाते हुए विरोध प्रदर्शन किया। 5 हजार से ज्यादा संस्थाएं एवं कई नेटवर्क इस विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए।”
उन्होंने बताया, “देश की राजधानी दिल्ली में नीति आयोग के बाहर भी अभियान से जुड़े साथियों ने प्रदर्शन किया। दिल्ली की 40 बस्तियों में प्रदर्शन की सूचना है। दिल्ली में एनसीपीआरआई की अंजलि भारद्वाज, एनएफआईडब्ल्यू की राष्ट्रीय महासचिव एनी राजा सहित कई वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया।’’
आयशा ने बताया, ‘‘विरोध प्रदर्शन में छोटे-छोटे समूह में, सुरक्षित दूरी का ध्यान रखते हुए मृतकों की याद में 2 मिनट का मौन रखा गया। कई जगहों पर सोशल डिस्टेंसिंग के साथ रैलियां निकाली गई। शहरों में भी कलेक्टर ऑफिस के सामने, जिला पंचायत के सामने और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर विरोध प्रदर्शन की खबरें हैं। सांस्कृतिक प्रतिरोध करते हुए लोगों ने जनगीत गाए। इन विरोध प्रदर्शनों की तस्वीरें एवं वीडियो को सोशल मीडिया पर लोग साझा कर रहे हैं। ट्विटर पर #शोकदिवस #DayOfMourning हैशटैग के साथ स्ट्रोम किया जा रहा है।’’
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणासी में मनरेगा मज़दूर यूनियन सहित कई संस्थाओं ने विरोध प्रदर्शन एवं शोक सभा का आयोजन किया। यूनियन के महेन्द्र ने बताया, ‘‘हमने गांव-गांव में मनरेगा मज़दूरों की बैठक की। तख्ती लेकर गांवों में प्रदर्शन किया। मज़दूरों ने बताया कि लॉकडाउन के कारण उन्हें आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।’’
रोज़ी रोटी अधिकार अभियान और सहयोग से जुड़ी लखनऊ की सुनीता सिंह ने बताया, ‘‘गोरखपुर, वाराणासी, लखनऊ सहित प्रदेश के 15 जिलों में 8 नेटवर्क संस्थाओं ने शोक दिवस मनाया। इसके साथ ही उन्होंने मौन सत्याग्रह किया। केन्द्र के साथ-साथ राज्य सरकार से भी मांग की गई कि गरीबों एवं मज़दूरों को एक साल तक मुफ्त राशन दिया जाए।’’
एमकेएसएस से जुड़े जयपुर के मुकेश ने बताया, ‘‘राज्य के कई जिलों में प्रदर्शन किया गया। जयपुर में एफसीआई गोदाम के सामने और कलेक्टर ऑफिस के बाहर प्रदर्शन किया गया। हमने मुख्यमंत्री के नाम से कलेक्टर को एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें कहा है कि केन्द्र सरकार जब निर्णय ले, तब ले, लेकिन राज्य सरकार मज़दूरों के हक में तत्काल निर्णय ले।’’
आरटीएफ रायपुर के गंगाराम पैकरा ने बताया, ‘‘हमने छह जिलों में विरोध प्रदर्शन किया। इसमें विशेष रूप से मनरेगा मज़दूर शामिल हुए। मज़दूरों को बताया गया कि मज़दूरों के असमय मौत पर राष्ट्रीय शोक दिवस मनाया जा रहा है, तो उन्हें आश्चर्य हुआ। नेताओं की मौत पर ऐसा होता आया है, लेकिन ऐसा पहली बार है कि मज़दूरों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर शोक दिवस मनाया गया।’’
बिहार आरटीएफ से जुड़े रूपेश कुमार ने बताया, ‘‘पूरे बिहार में प्रदर्शन करते हुए केन्द्र एवं राज्य दोनों सरकारों को मज़दूरों के प्रति असंवेदनशील बताया गया। मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पर महिला की मौत पर लोगों ने आक्रोश जाहिर किया। मज़दूरों ने नागर समाज को धन्यवाद दिया कि सरकार के बजाय इन्होंने मज़दूरों के घाव पर मलहम लगाया। यदि सरकार जल्द राहत नहीं देती है, तो मज़दूरों की ओर से उसे नई चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।’’
झारखंड एडीआर व आरटीएफ से जुड़े अशर्फीनंद प्रसाद ने बताया, ‘‘16 जिलों में पंचायत व विकासखंड कार्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन किया गया। सोशल डिस्टेसिंग के साथ रैलियां भी निकाली गई। प्रवासी मज़दूरों की मौत पर मुआवजे की मांग राज्य सरकार से की गई और इसके साथ ही उन्हें तुरंत रोजगार उपलब्ध कराने की बात की गई। 7 जून तक कार्यक्रम करने के बाद राज्य सरकार को एक ज्ञापन भी दिया जाएगा।’’
मध्यप्रदेश आरटीएफ की अंजलि ने बताया, ‘‘राज्य में 20 जिलो में 9 संस्थाओं ने विरोध प्रदर्शन किया है, इसमें बघेलखंड एवं बुंदेलखंड के जिले शामिल हैं, जहां पहले भी मज़दूरों की समस्या रही है और वहां से पलायन बड़े पैमाने पर होता रहा है। संस्थाओं के बैनर तले मजदूरों ने काली पट्टी बांधकर विरोध प्रदर्शन किया। ट्विटर पर मध्यप्रदेश की 20 संस्थाएं विरोध प्रदर्शन में शामिल हैं।’’ मध्यप्रदेश भारत ज्ञान विज्ञान समिति ने 12 जिलों में प्रदर्शन करते हुए सरकार की नाकामियों को उजागर किया। मध्यप्रदेश से गुजरने वाले प्रवासी मजदूरों के प्रति राज्य सरकार की उपेक्षा को उल्लेखित करते हुए कहा किया सरकार का रवैया मज़दूर विरोधी रहा है।”
राष्ट्रीय स्तर पर रोज़ी रोटी अभियान ने मांग की है कि -
1. सार्वभौमिक रूप से प्रति माह अगले छह महीने तक पीडीएस से 10 किलो अनाज, 1.5 किलो दाल एवं 800 ग्राम तेल मुफ्त दिया जाए।
2. आंगनवाड़ी एवं शालाओं में मध्याह्न भोजन के माध्यम से पका हुआ भोजन सुनिश्चित किया जाए।
3. प्रवासी मज़दूरों एवं देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे हुए मज़दूरों को सुरक्षित घर जाने की मुफ्त व्यवस्था की जाए।
4. प्रत्येक गरीब परिवार को हर माह 7 हजार रुपये नकद दिया जाए।
5. मनरेगा के तहत प्रत्येक व्यक्ति एवं गांव लौटे सभी प्रवासी मज़दूरों को 240 दिन काम दिया जाए। शहरों में भी काम दिया जाए।
6. सभी को मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाएं दी जाएं।
इस विरोध प्रदर्शन और शोक दिवस के लिए रोज़ी रोटी अधिकार अभियान ने एक बयान जारी किया था, जिसमें कहा गया है, ‘‘पिछले 2 महीनों से पूरे देश में लागू किये गए लॉकडाउन ने देश भर के लोगों को खासकर गरीब, बेघर, हाशिए पर खडे लोगों को एवं प्रवासी मज़दूरों को अभूतपूर्भूव संकट में डाला है। 22 मई तक देश में कुल 667 मौतें हुई हैं जिनका कारण कोविड संक्रमण नहीं है, बल्कि सड़क दुर्घटना (205 मौतें), भूख और लॉकडाउन (114 मौतें) के चलते हुई पीड़ा है। इसके अलावा पश्चिम बंगाल में चक्रवात अम्फान द्वारा आई प्राकृतिक आपदा ने लोगों पर दोहरी मार डाली है। इन मसलों पर केंद्रीय सरकार की प्रतिक्रिया बहुत ही निर्दयी है। ऐसी परिस्थिति में शोक सिर्फ लोगों की मौत एवं उनकी आजीविका और आकांक्षाओं के दमन का नहीं है, बल्कि यह एक तरीका है सरकार को आईना दिखाने का, जवाबदेही तय करने का, सवाल पूछने का और लोगों की परेशानियों पर बेरहम प्रतिक्रिया पर जवाब मांगने का।’’
अभियान का कहना है कि अभी तक हमने ‘थाली बजाओ’, ‘दिया जलाओ’, ‘फूल बरसाओ’ और न जाने कैसे कैसे बिना मतलब के उत्सव एवं समारोह देखे हैं। उस पर सरकार ने राहत कार्य की घोषणा करने में देरी भी की और वह सारी घोषणाएं अभी की स्थिति के लिए अपर्याप्त है। पहले तो सरकार ने प्रवासी मज़दूरों की परेशानियों से मूंह मोड़ा और फिर मज़दूरों को उनके राज्य एवं घर पहुंचाने के लिए श्रमिक ट्रेन एवं बस चलाने में काफी देरी की। दुर्भाग्य से आगे जो कुछ हुआ वह बहुत ही दुखद था, चाहे वह मज़दूरों की सड़क एवं ट्रेन से मौत की खबर या फिर श्रमिक ट्रेनों में खाने एवं पीने के पानी की कमी। मज़दूरों की परेशानी ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। ऐसे में मज़दूरों की समस्याओं के समाधान और उनकी आवाज़ सरकार तक पहुंचाने के लिए राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन किया गया।
इस अभियान में रोज़ी रोटी अधिकार अभियान के साथ भारत ज्ञान विज्ञान समिति, अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति, जन संगठनों का राष्ट्रीय समन्वय, पीयूसीएल, एनसीपीआरआई, एमकेएसएस, सूचना एवं रोजगार अभियान, सेवा भारत, असंगठित क्षेत्र के मज़दूर अभियान, राष्ट्रीय विकलांग आंदोलन, समग्र टिकाऊ खेती के लिए समन्वय, जन स्वास्थ्य अभियान, एनएफआईडब्ल्यू, पश्चिम बंग खेत मज़दूर समिति, एचआरएलएन, भारत मुस्लिम महिला आंदोलन, मातृत्व स्वास्थ्य व मानव अधिकार का राष्ट्रीय समन्वय, एकता नारी शक्ति संगठन, नेशनल फिशरवर्कर्स फोरम सहित कई आंदोलन एवं संस्थाएं शामिल हुईं।
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