“बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” और मासिक धर्म
केंद्र सरकार का एक लोकप्रिय नारा है, "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ"। भारत सरकार कहती है कि बेटियों को बचाओ और बेटियों को पढ़ाओ। बेटियों को पढ़ाना तो ठीक है पर बचाना किससे है और कब तक है, सरकार ने यह नहीं बताया है। सरकार ने यह भी नहीं बताया है कि क्या पढ़ती हुई या पढ़ी हुई बेटियों को भी बचाना है या... ।
बताया तो सरकार ने यह भी नहीं है कि बेटियों को सिर्फ आम पुरुषों से ही बचाना है या फिर विधायकों, मंत्रियों से भी बचाना है। सरकार ने यह भी नहीं बताया है कि एक बार बेटियां मंत्रियों से, विधायकों से अपने को न बचा पायीं तो सरकार किसका साथ देगी। मंत्री और विधायक का या फिर बेटियों का। वैसे होता तो यही है कि सरकार उन्हीं का साथ दे जिनकी वजह से वह सरकार है। सरकार का मानना है कि उसकी सरकार विधायकों की वजह से ही असतित्व में है। इसीलिए जाहिर तौर पर सरकार बेटियों के नहीं, विधायकों और मंत्रियों के साथ है।
अभी हाल में ही दिल्ली के गार्गी कालेज में फेस्ट के दौरान छात्राओं से छेड़खानी की गई। वह भी दिल्ली में वोटिंग के ऐन दो दिन पहले। छेड़छाड़ करने वाले तो मौजूद थे ही, केंद्र सरकार भी वहां मौजूद थी, दिल्ली पुलिस के रूप में। रिपोर्ट यह भी है कि छेड़छाड़ करने वाले "जय श्रीराम" के नारे लगा रहे थे। आज कल जय श्रीराम के नारे लगाने वालों को पुलिस न तो कुछ कहती है और न ही कुछ भी करने से रोकती है। सो पुलिस ने उन्हें भी न तो कुछ कहा और न ही कुछ करने से रोका। लोग “जय श्रीराम” के नारे लगाते हुए छात्राओं से छेड़खानी करते रहे और पुलिस देखती रही। वैसे भी आजकल जय श्रीराम का नारा लगा कर आप कोई भी कैसा भी गलत काम कर सकते हैं।
उधर गुजरात में एक और शिक्षा संस्थान के छात्रावास में बारह, चौदह, सोलह साल की बच्चियों के अंतःवस्त्र उतरवा कर देखा गया कि उनमें से किसे मासिक आ रहा है। उस विद्यालय के धर्म के अनुसार (विद्यालय का भी धर्म होता है, इस घटना से पता चलता है) मासिक धर्म के समय छात्रा को अन्य छात्राओं से अलग, भूतल में रहना पड़ता है और रसोई में भी प्रवेश वर्जित होता है। किसी बच्ची का मन अलग रहने का नहीं किया होगा, तो उसने नहीं बताया कि वह मासिक से है। तो सबके वस्त्र उतरवा कर देखा गया। शायद इस काम के लिए इससे माकूल तरीका कोई और हो ही नहीं सकता था।
एक स्वामी जी भी हैं। नाम है कृष्ण स्वरुप दास। वे बताते हैं कि उन्होंने शास्त्रों का गहन अध्ययन किया है। वे कहते हैं कि यदि कोई मासिक धर्म से हो रही महिला रसोई पकाती है तो वह अगले जन्म में कुतिया पैदा होती है। मुझे लगता है बहुत सारी महिलाएं यह जानते समझते हुए भी महावारी के समय इसीलिए खाना बनाती होंगी कि उन्हें अपने महिला जीवन से अच्छा तो कुतिया का जीवन ही लगता होगा।
कुछ कुत्तों/कुतियाओं से मुझे भी रश्क होता है। अधिकतर आवारा घूमते हैं पर कुछ पालतू तो इतनी आरामदेह जिन्दगी बसर करते हैं कि किसी को भी रश्क हो सकता है। उन स्वामी जी के कथन के बाद समझ आया कि जब यूरोपियन या अमरीकी महिलाएं महावारी के समय रसोई पकाती होंगी वे पालतू कुतियाओं के रूप में जन्म लेती होंगी। भारतीय महिलाओं को तो आवारा कुतियाओं का जन्म ही नसीब होता होगा।
उन स्वामी जी ने यह भी बताया कि महिला द्वारा महावारी में बनाये गये खाने को खाने वाला उसका पति अगले जन्म में बैल पैदा होता है। बहुत सारी महिलाएं इसी पति के साथ विवाह के सात जन्मों के बंधन से मुक्ति पाने के लिए भी महावारी के समय रसोई बनाती होंगी। आखिर बैल और कुतिया का विवाह होने की कोई संभावना है ही नहीं।
मैं सोच रहा हूं कि हमारी तो बहुत सारी देवियां भी हैं। विद्या की देवी सरस्वती हैं, धन की लक्ष्मी और शक्ति की देवी दुर्गा। अन्य देवियां भी हैं। वे सब देवियां होने के साथ महिलाएं भी थीं। उन सबको भी मासिक धर्म होता होगा। उनसे भी यही भेदभाव किया जाता रहा होगा क्योंकि यह भेद तो शास्त्र सम्मत था। मासिक के समय उन्हें भी निर्वासन झेलना पड़ता होगा।
पर न तो विद्या की देवी सरस्वती ने और न ही शक्ति की देवी दुर्गा ने इस भेदभाव का कोई विरोध किया। जब न विद्या की देवी ने इसके खिलाफ तर्क दिया और न ही शक्ति की देवी ने अपना बल दिखाया तो आम औरत की क्या बिसात! अब कल्पना करें, शक्ति की देवी दुर्गा मासिक धर्म के कारण पांच सात दिन के निर्वासन में हैं। राक्षसों को इस बात का पता चल गया और उन्होंने आक्रमण कर दिया। लेकिन ऐसा कोई भी द्रष्टांत वेदों, उपनिषदों या अन्य किन्हीं ग्रंथों में कहीं भी वर्णित नहीं है।
इधर मैं यह आलेख लिख ही रहा हूं और उधर योगी जी के उत्तर प्रदेश में एक महिला से एक विधायक जी ने सामूहिक रेप कर दिया। मतलब उन्होंने अकेले रेप नहीं किया, कुछ और लोगों के साथ मिल कर रेप किया। यह संयोग नहीं प्रयोग है जो उत्तर प्रदेश में किया जा रहा है। प्रयोग यह है कि मुसलमानों के बाद अब महिलाओं की बारी है। संयोग बस यही है कि इस बार प्रयोग करने के लिए उत्तर प्रदेश को चुना गया है।
(इस व्यंग्य आलेख के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।