‘अगस्त क्रांति’ के दिन मज़दूर-किसानों का ‘भारत बचाओ दिवस’, देशभर में जगह-जगह सत्याग्रह और जेल भरो आंदोलन
आज, 9 अगस्त यानी भारत छोड़ो आंदोलन (अगस्त क्रांति) की 78वीं वर्षगांठ के ऐतिहासिक मौके पर केंद्र व राज्य सरकारों की मज़दूर व किसान विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ देशभर में लाखों की संख्या में मेहनतकश आम लोग सड़कों पर उतरे। मज़दूरों ने आज ‘भारत बचाओ दिवस’ मनाया तो किसानों ने ‘किसान मुक्ति दिवस’ मनाया।
आज का यह आंदोलन भी अपने आप में ऐतिहासिक रहा क्योंकि केंद्रीय ट्रेड यूनियनें, किसान संगठन, सार्वजनिक उपक्रमों की कर्मचारी यूनियनें और फ़ेडरेशनें और स्कीम वर्कर्स (आशा, आंगनबाड़ी, मिड डे मील) के साथ ही छात्रों ने भी मोदी सरकार के ख़िलाफ़ हल्ला बोला है। इस विरोध प्रदर्शन का आह्वान 11 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों,दर्जनों राष्ट्रीय फैडरेशनों सहित सैकड़ों किसान संगठनों ने किया था।
इस आंदोलन में पहले दस ही ट्रेड यूनियन शामिल थी परन्तु आंदोलन से दो दिन पहले आरएसएस से जुड़ी ट्रेड यूनियन बीएमएस भी इसमें शामिल हो गई। कहा जा रहा है मज़दूरों का सरकार के ख़िलाफ़ गुस्सा इतना ज्यादा है कि इस बार बीएमएस भी इस संयुक्त आंदोलन से खुद को अलग नहीं रख सकी, जबकि पिछले छह साल में उस पर मोदी सरकार के विरोध में हुए मज़दूर आंदोलनों को तोड़ने का आरोप लगता रहा है।
इस दौरान बिहार, केरल, बंगाल, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर हिमाचल प्रदेश व झारखंड सहित पुरे देश में सैकड़ो हज़ारों मज़दूरों व किसानों ने अपने कार्यस्थलों, ब्लॉक व जिला मुख्यालयों पर केंद्र सरकार की मज़दूर व किसान विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ जोरदार प्रदर्शन किए। दिल्ली के जंतर-मंतर पर भी भारी संख्या में कर्मचारी-मज़दूर एकत्र हुए और उन्होंने प्रदर्शन किए। इस दौरान यहाँ ट्रेड यूनियन और किसान संगठनों के शीर्ष नेता भी मौजूद थे। जबकि त्रिपुरा, हरियाणा, राजस्थान व अन्य कई राज्यों में मज़दूर-किसानों ने अपनी गिरफ़्तारियां भी दीं।
मज़दूर संगठन सीटू के महासचिव तपन सेन ने एक बयान जारी कर आज के विरोध प्रदर्शन को सफल बताया और कहा कि लगभग एक लाख स्थानों पर क़रीब एक करोड़ लोगों ने सत्याग्रह / जेलभरो / धरना / प्रदर्शन “इण्डिया नॉट फॉर सेल” “कॉरपोरेट लूट, भारत छोड़ो” के नारे के साथ देशभर में कई प्रतिबंध के बावजूद प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन के लिए सीटू ने मज़दूर वर्ग और किसानों को बधाई दी। तपन सेन ने कहा कि मोदी सरकार की देश विरोधी और जन विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ प्रसिद्ध भारत छोडो अंदोलन दिवस पर यह कार्रवाई हुई।
मज़दूर संगठन के नेताओ ने कहा कि सरकार कोरोना काल में मज़दूर किसान को राहत देने के बजाय उनके अधिकारों पर हमला कर रही है। हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान में श्रम कानूनों में बदलाव इसी प्रक्रिया का हिस्सा है।
किसान संगठनों ने केंद्र सरकार द्वारा 3 जून 2020 को कृषि उपज,वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्धन एवम सुविधा) अध्यादेश 2020, मूल्य आश्वासन (बन्दोबस्ती और सुरक्षा) समझौता कृषि सेवा अध्यादेश 2020 व आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) 2020 को किसान विरोधी बताया और कहा कि तीन किसान विरोधी अध्यादेश जारी करके किसानों का गला घोंटने का कार्य किया गया है।
मज़दूर संगठनों के नेता ने कहा कि सरकार देश की जनता के संघर्ष के परिणाम स्वरूप वर्ष 1947 में हासिल की गई आज़ादी के बाद जनता के खून-पसीने से बनाए गए बैंक, बीमा, बीएसएनएल, पोस्टल, स्वास्थ्य सेवाओं, रेलवे, कोयला, जल, थल व वायु परिवहन सेवाओं, रक्षा क्षेत्र, बिजली, पानी व लोक निर्माण आदि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को पूंजीपतियों को कौड़ियों के भाव पर बेचने पर उतारू है। ऐसा करके यह सरकार पूंजीपतियों की मुनाफाखोरी को बढ़ाने के लिए पूरे देश के संसाधनों को बेचना चाहती है। ऐसा करके यह सरकार देश की आत्मनिर्भरता को खत्म करना चाहती है।
किसान सभा के राष्ट्रीय नेता कामरेड अमराराम ने कहा कि कोरोना महामारी से देश के नागरिकों को बचाने की चिंता छोड़कर मोदी सरकार देश के महारत्न व नवरत्न कम्पनियों का निजीकरण करने में लगी हुई है। लॉकडाउन व अनलॉक की परिस्थितियों के मद्देनजर किसान व मज़दूरों को कोई राहत पैकेज नहीं दिया है जबकि पूंजीपतियों के कर्जे को बट्टे खाते में डाला जा रहा है।
किसान सभा के राष्ट्रीय महासचिव हन्नान मोल्ला ने कहा कि केंद्र सरकार ने कोरोना का फायदा उठाकर किसान मज़दूरों के ख़िलाफ़ एक ज़बरदस्त हमला बोल दिया है।
देश भर में हुए प्रदर्शनों में श्रम कानूनों में मज़दूर विरोधी परिवर्तन की प्रक्रिया पर रोक लगाने, मज़दूरों का वेतन 21 हज़ार रुपये घोषित करने, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को बेचने पर रोक लगाने, किसान विरोधी अध्यादेशों को वापस लेने, मज़दूरों को कोरोना काल के पांच महीनों का वेतन देने, उनकी छंटनी पर रोक लगाने, किसानों की फसलों का उचित दाम देने, कर्ज़ा मुक्ति, मनरेगा के तहत दो सौ दिन का रोज़गार,कॉरपोरेट खेती पर रोक लगाने, आंगनबाड़ी, मिड डे मील व आशा वर्कर्स को नियमित कर्मचारी घोषित करने, फिक्स टर्म रोज़गार पर रोक लगाने, हर व्यक्ति को महीने का दस किलो मुफ्त राशन देने व 7500 रुपये देने की मांग की गई।
प्रदर्शन में अलग-अलग इलाकों और सेक्टर के मज़दूर ने हिस्सा लिया। ऐक्टू के राष्ट्रीय महासचिव राजीव डिमरी ने कहा कि आनेवाले दिनों में मोदी सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन और तेज़ होगा। उन्होंने कहा पिछले कुछ महीनो में मज़दूर किसान लगातर सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रहा है और आने दिनों में भी ये सिलसिला जारी रहेगा।
देशभर में मज़दूर-किसानों के प्रदर्शन की झलकियाँ :-
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