साल 2023 : यौन शोषण के ख़िलाफ़ कैंपस से लेकर सड़क और संसद भवन में गूंजी आवाज़
महिला सुरक्षा का मुद्दा इस देश में तभी सुर्खियों में आता है, जब या तो कहीं चुनाव हों, या कहीं कोई बड़ी घटना घटित हो गई हो। इसके अलावा ये मुद्दा हमारी सरकारी नीतियों में भी सिर्फ दावों और वादों के बीच पीठ थपथपाने के लिए इस्तेमाल होता रहा है। हालांकि छात्र और महिला संगठन तमाम आंदोलनों- प्रदर्शनों के जरिए साल भर सरकार को इस गंभीर विषय पर नींद से जगाने की कोशिश करते रहे हैं। न्यूज़क्लिक के इस लेख में एक नज़र 2023 के उन विरोध प्रदर्शनों और आंदोलनों पर जो विश्वविद्यालय कैंपस से लेकर सड़कों और संसद भवन तक महिला हिंसा और यौन शोषण के खिलाफ हुए।
महिला पहलवानों का बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ प्रदर्शन
इस साल की शुरुआत में भारतीय कुश्ती महासंघ 18 जनवरी को उस वक्त अचानक ख़बरों में आ गया, जब देश के जाने माने दिग्गज पहलवान फेडरेशन के ख़िलाफ़ राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना देने बैठ गए। इन पहलवानों ने भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह पर कुश्ती संघ को मनमाने तरीक़े से चलाने का आरोप लगाया। धरने पर बैठी महिला पहलवानों ने महासंघ के प्रेसिडेंट पर यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप भी लगाए। इन पहलवानों में ओलंपिक्स, एशियन गेम्स और राष्ट्रमंडल खेलों में भारत को कई पदक दिलाने वाली महिला कुश्ती खिलाड़ी विनेश फोगाट, साक्षी मलिक, बजरंग पुनिया समेत देश के कई दिग्गज पहलवान शामिल थे।
खेल मंत्री से कई दौर की बातचीत के बात लगभग तीन दिन बाद ये प्रदर्शन जांच के आश्वासन के बाद खत्म हो गया। हालांकि तीन महीने बाद किसी ठोस कार्रवाही के आभाव में ये खिलाड़ी एक बार फिर पोडियम से फुटपाथ पर धरना देने के लिए लौटे। इस बार ये धरना कई महीने चला। खिलाड़ियों के समर्थन में आम लोग और महिला संगठन भी आए। कई नेताओं का भी जंतर-मंतर पर जमावड़ा हुआ। नई संसद के उद्घाटन के दिन खिलाड़ियों का जोरदार प्रदर्शन देखने को मिला और इसके बाद इनका धरना समाप्त हो गया। फिलहाल ये मामला अदालत में है और पहलवान न्याय का इंतजार कर रहे हैं।
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अंकिता भंडारी के न्याय के लिए उठे हाथ
उत्तराखंड के बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड मामले में महिला और मानवाधिकार संगठनों की संयुक्त फैक्ट फाइंडिंग टीम ने 7 फरवरी को दिल्ली के प्रेस क्लब में अपनी फैक्ट रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में कई चिंताओं और सवालों के साथ ही उन तथ्यों को भी सामने रखा गया, जो टीम ने अंकिता के घर से लेकर घटनास्थल तक अपनी आंखों से देखा और लोगों से सुना था। इसके अलावा एसआईटी जांच, पोस्टमार्टम रिपोर्ट और आरोपियों के खिलाफ दाखिल चार्जशीट के भी तमाम पहलुओं को भी इस रिपोर्ट के केंद्र में रखा गया था। इस फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में एसआईटी पर जांच में जानबूझकर लापरवाही बरतने समेत वनंतरा रिजॉर्ट पर बुलडोज़र चलाने, पुलिस रिमांड की मांग न करने और राजस्व पुलिस से लेकर उत्तराखंड पुलिस तक के गोलमोल भूमिका पर सवाल खड़े किए गए थे।
देश में दिन-प्रतिदिन महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा और आरोपियों को मिलते सरकारी संरक्षण के खिलाफ 14 फरवरी को भी दिल्ली के जंतर-मंतर पर ऑल इंडिया महिला सांस्कृतिक संगठन के नेतृत्व में तमाम महिला कार्यकर्ताओं ने एकजुट होकर ज़ोरदार धरना प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन में अंकिता की मां सोनी देवी भी शामिल हुई थीं और उन्होंने शासन-प्रशासन पर जानबूझकर मामले की गंभीरता को दबाने का आरोप लगाया था। इस प्रदर्शन में महिलाओं ने एक सुर में सरकार से महिलाओं की सुरक्षा के वादे नहीं नीयत और नीति की मांग की थी।
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जूनियर महिला कोच का मंत्री संदीप सिंह के खिलाफ संघर्ष
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर हरियाणा में एक राज्यस्तरीय कार्यक्रम के दौरान जब मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर महिलाओं के सम्मान में कसीदे पढ़ रहे थे, ठीक उसी समय महिला संगठन उनके मंत्री संदीप सिंह को लेकर जोरदार प्रदर्शन कर रहे थे। यहां महिला प्रदर्शनकारियों से पुलिस के दर्व्यवहार के आरोप भी लगे। अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (एडवा) समेत कई अन्य नागरिक और महिला संगठनों की न्यायिक संघर्ष समिति ने एक साझा बयान में कहा कि राज्य के मुख्यमंत्री महिलाओं की जायज मांगों को अनसुना करके अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का ढोंग कर रहे हैं। मुख्यमंत्री को महिला विरोधी रवैये के लिए सार्वजनिक माफी मांगनी चाहिए।
ध्यान रहे कि भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान और हरियाणा में बीजेपी के नेता संदीप सिंह के ख़िलाफ़ एक जूनियर महिला कोच ने बीते साल 26 दिसंबर को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए थे। साल के आखिरी दिन 31 दिसंबर को संदीप सिंह के खिलाफ चंडीगढ़ के सेक्टर 26 पुलिस थाने में केस भी दर्ज हुआ था। तब से इस मामले को लेकर हरियाणा की सड़कों और विधानसभा भवन में कई प्रदर्शन भी हुए, बावजूद इसके बीजेपी मंत्री को कोई फर्क नहीं पड़ा। ये मामला भी फिलहाल कोर्ट में है और पीड़िता न्याय की आस लगाए बैठी है।
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मणिपुर में महिलाओं के साथ हिंसा, एकजुट हुआ देश
इस साल की सबसे बड़ी महिला हिंसा की खबर मणिपुर से आई, जहां कुछ महिलाओं को निर्वस्त्र करके परेड कराने और गैंगरेप का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। इसके बाद देशभर में प्रगतिशील नागरिक समाज के लोगों में भारी रोष देखने को मिला। इसको लेकर देश के कई इलाकों में विरोध प्रदर्शन हुए। दिल्ली से लेकर यूपी-बिहार और हरियाणा में जगह-जगह प्रदर्शन किए गए। ये प्रदर्शन किसी एक संगठन या दल का नहीं था बल्कि आम जनता का था, जिसने हिंसा को नकारने का आह्वान किया था। इसमें बड़ी संख्या में छात्र, नौजवान और महिला संगठन और नागरिक समाज के लोग शामिल हुए थे।
मानसून सत्र के दौरान संसद में भी इस मामले ने खूब तूल पकड़ा और सदन में विपक्षी सांसदों ने नारे लगाए, तख्तियां दिखाईं। सांसद इस मुद्दे पर चर्चा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूरे मामले पर बयान की मांग कर रहे थे। कई दिन संसद में ये हंगामा जारी रहा, सांसद निलंबित हुए और विपक्ष ने महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने एकजुट होकर 'इंडिया फॉर मणिपुर' की तख्तियां लिए विरोध प्रदर्शन किया।
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हैदराबाद इफलू विश्वविद्यालय में यौन उत्पीड़न के खिलाफ लांबद हुए छात्र
इसी साल अक्तूबर में हैदराबाद के अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय (ईएफएलयू) परिसर में अज्ञात व्यक्तियों द्वारा कथित तौर पर एक छात्रा का यौन उत्पीड़न किए जाने को लेकर छात्रों ने जोरदार विरोध प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन में पीड़िता के लिए न्याय की मांग के साथ ही कैंपस में सुरक्षा का मुद्दा भी उठा। इफलू के विद्यार्थी काफी समय से विश्वविद्यालय में यौन उत्पीड़न की संवेदनशीलता, रोकथाम और निवारण (स्पर्श) समिति के पुनर्गठन की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे जिसमें अधिकतर तादाद में महिला छात्राएं मौजूद थीं।
यौन शोषण के खिलाफ बनारस हिंदू यूनीवर्सीटी के छात्रों का धरना
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी यानी बीएचयू एक बार फिर यौन शोषण को लेकर इस साल सुर्खियों में रहा। पिछले साल नवंबर में आईआईटी बीएचयू के परिसर में अध्ययनरत एक बीटेक छात्रा के साथ परिसर में हुए यौन उत्पीड़न का मामला सामने आने के बाद हजारों विद्यार्थी धरने पर बैठ गए। विद्यार्थियों ने आरोपियों के जल्द से जल्द गिरफ्तारी के लिए शांतिपूर्ण धरना किया। कैंपस में पोस्टर हाथ में लिए विद्यार्थियों ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम को बढ़ाने और GSCASH को लागू करने की मांग रखी।
बता दें कि बीएचयू में 2017 में हुए लड़कियों के ऐतिहासिक आंदोलन की सबसे बड़ी मांग विश्वविद्यालय में जेंडर सेंसिटाइजेशन कमेटी अगेंस्ट सेक्सुअल हैरेसमेंट (GSCASH) को लागू करना था। इसके बाद भी यौन शोषण को लेकर हुए कई बड़े प्रदर्शनों में छात्रों ने सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम के साथ ही GSCASH की मांग रखी लेकिन प्रशासन ने आज भी करीब पांच साल बीत जाने के बाद भी इस पर कोई सुनवाई नहीं की। इसके उलट लड़कियों पर हॉस्टल में तमाम पाबंदियां लगाने की कोशिश की गई। छात्रों को प्रदर्शन में भाग न लेने का नोटिस निकाल दिया गया और बात-बात पर लड़कियों को कैंपस के अंदर ही 'कैरेक्टर-सर्टिफिकेट' बांटे जाने लगे। जिसके खिलाफ छात्र खुलकर सामने आए।
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