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नई रिपोर्ट ने कर्नाटक में ईसाई प्रार्थना सभाओं के ख़िलाफ़ हिंसा को दर्ज किया

पीयूसीएल की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि ज़्यादातर मामलों में पुलिस पीड़ितों को सुरक्षा प्रदान करने में विफल रही है, यहां तक कि उन मामलों में भी पुलिस सुरक्षा नहीं दे पाई जहां उन्हें खुफ़िया रिपोर्टों के ज़रिये हिंसा की संभावनाओं की चेतावनी पहले से थी।
Advocate Manavi of ALF, YJ Rajendra of PUCL and Pastor Lucas present the report.
एएलएफ़ की एडवोकेट मानवी, पीयूसीएल के वाईजे राजेंद्र और पादरी लुकास ने रिपोर्ट पेश की।

2021 में ही कम से कम 39 हिंसा और उत्पीड़न की घटनाओं की सूचना मिली है

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट में कर्नाटक के भीतर 2021 में ईसाइयों के खिलाफ संगठित हिंसा के 39 कृत्यों का दस्तावेजीकरण किया गया है। हमले कथित रूप से हिंदू दक्षिणपंथी संगठनों के सदस्यों ने किए हैं।

रिपोर्ट में यह भी आरोप लगाया गया है कि ज्यादातर मामलों में पुलिस पीड़ितों को सुरक्षा प्रदान करने में विफल रही है, यहां तक कि उन मामलों में भी जहां खुफिया रिपोर्टों में हिंसा की संभावनाओं की चेतावनी पहले से ही दी गई थी।

चिक्कबल्लापुर जिले के पादरी लुकास, जो खुद 2017 में इसी तरह की हिंसा का शिकार हुए थे, ने इस मुद्दे पर बात की। उन्होंने बताया कि, ''14 नवंबर 2021 को राजनुकुंटे में रविवार की प्रार्थना सभा थी। पुलिस को 13 तारीख को खुफिया सूचना मिली थी कि अगले दिन हिंसा होगी। मौके पर एक सब-इंस्पेक्टर समेत कई पुलिस अधिकारी मौजूद थे। हालांकि, 40 से अधिक गुंडों ने प्रार्थना कक्ष के अंदर घुसकर पुलिस के सामने जगह-जगह तोड़फोड़ की थी।

न्यूज़क्लिक ने रजानुकुंटे में पादरी जॉन शमीन से संपर्क किया। हालांकि, कानूनी कार्यवाही जारी होने के कारण वे पूरे मामले के बारे में बोलने से हिचक रहे थे। फिर भी उन्होंने बताया कि, 'वे (गुंडे) गांवों में शांति से रह रहे लोगों में डर का माहौल पैदा कर रहे हैं। गिरजाघरों में प्रवेश करना और लोगों के साथ दुर्व्यवहार करना उनका शक्ति प्रदर्शन है। यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है क्योंकि लोग अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता खो रहे हैं।” उन्होंने उल्लेख किया कि, उनके मामले में, स्थानीय पुलिस ने मदद की थी और प्राथमिकी दर्ज की थी, हालांकि अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है।

पुलिस की भूमिका

पीयूसीएल की रिपोर्ट के मुताबिक, हिंसा के ज्यादातर मामलों में पुलिस का कोई सहयोग नहीं मिला है। जबकि अपराधियों के खिलाफ कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है, जबकि पादरियों और प्रार्थना सभाओं के सदस्यों के खिलाफ कई मामले दर्ज किए गए हैं। इन अपराधों के खिलाफ इस्तेमाल की गई सामान्य धाराएँ आईपीसी 143 (गैरकानूनी सभा), 148 (दंगा, घातक हथियार से लैस), 324 (स्वेच्छा से खतरनाक हथियारों से चोट पहुँचाना), धारा 427 (पचास रुपये तक की राशि का  नुकसान पहुँचाना), 295 (हानिकारक या किसी भी पूजा स्थल को अपवित्र करना) और 295ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से किया गया जानबूझकर कार्य) शामिल है।

यहाँ विडम्बना यह है कि अब स्वयं ईसाइयों को पूजा स्थल को अपवित्र करने के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है। ज्यादातर मामलों में, पादरियों ने गवाही दी है कि पुलिस ने मामले की कार्यवाही के दौरान उनकी मदद करने के बहाने उनसे पैसे लिए है। 

हिंसा के अधिकांश मामलों में काम करने का ढंग एक जैसा लगता है। जब एक सेवा का आयोजन किया जा रहा होता है तो प्रार्थना कक्ष को लक्षित किया जाता है। पादरियों और टीम के अन्य सदस्यों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है, मारपीट की जाती है और प्रार्थना कक्ष में तोड़फोड़ की जाती है। सेल फोन पर उसके वीडियो बनाए जाते हैं और ईसाई मिशनरियों पर जीत का जश्न मनाने के लिए प्रसारित किए जाते हैं। पुलिस तब भीड़ और पादरियों के खिलाफ मामला दर्ज करती है, लेकिन कोई गिरफ्तारी नहीं होती है। हमले पूरे राज्य में हो रहे हैं और वे राज्य के लगभग सभी जिलों में फैले हुए हैं।

कुछ मामलों में, ईसाइयों को अनुसूचित जाति और जनजाति का सदस्य माना जाता है।  इसलिए, उन्हें जातिवादी दुर्व्यवहार का शिकार होना पड़ता है और चेतावनी दी जाती है कि उनका जाति प्रमाण पत्र और आरक्षण का हक़ छीन लिया जाएगा। यह भारतीय जनता पार्टी के उन मंत्रियों के शब्दों की प्रतिध्वनि है जो धर्मांतरण के खिलाफ एक विधेयक का मसौदा तैयार कर रहे हैं।

धर्मांतरण विरोधी विधेयक

जिन नीतियों पर चर्चा की जा रही है उनमें जबरन धर्मांतरण के लिए दंड देना और हिंदू धर्म से धर्मांतरण करने वालों के आरक्षण का लाभ वापस लेना शामिल है। कर्नाटक विधायिका वर्तमान में बेलगावी जिले में सत्र में है और कहा जाता है कि यह विधेयक वर्तमान सत्र के दौरान पेश किया जाएगा। यदि कानून पारित हो जाता है, तो यह आशंका है कि राज्य में ईसाइयों को परेशान करने के लिए पुलिस के पास एक और विधायी हथियार होगा।

वर्तमान में, ईसाई या इस्लाम धर्म को अपनाने वाले दलित आरक्षण का लाभ हासिल करने के पात्र नहीं हैं। केवल हिंदू धर्म, सिख धर्म और बौद्ध धर्म से संबंधित दलित ही इसके पात्र हैं। आरक्षण को धर्म-तटस्थ बनाने की याचिका पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय (नेशनल काउंसिल ऑफ दलित क्रिश्चियन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया) में सुनवाई चल रही है।

स्थानीय मीडिया की भूमिका

पीयूसीएल की रिपोर्ट स्थानीय कन्नड़ टीवी चैनलों द्वारा निभाई गई भूमिका की तीखी आलोचना करती है। रिपोर्ट समाचार चैनलों पर जबरन धर्मांतरण के संदर्भ में कहानियों को सनसनीखेज बनाने और अपराधबोध जताने का आरोप लगाती है। रिपोर्ट में दिए गए एक उदाहरण में कहा गया है कि, "मीडिया कवरेज में एक प्रमुख व्यक्ति यानि विधायक गूलीहट्टी शेखर और उनकी मां शामिल थे। उसमें एक बयान दिया गया जैसे कि, 'गुलीहट्टी शेखर के भाई की मौत कन्वर्टर्स की वजह से हुई थी! दुख में डूबी मां को, यीशु से मिलवाया गया और उसका धर्म परिवर्तित कर दिया गया! विधायक गूलीहट्टी शेखर की माँ ने धर्म परिवर्तन क्यों किया और कैसे किया? यह सब चैनलों द्वारा प्रसारित किया जा रहा था। यह मीडिया के अंतर्निहित पितृसत्तात्मक रुख को दर्शाता है कि वे यह नहीं समझ सकते कि महिलाएं अपना धर्म खुद चुन सकती हैं और वे यह मानते हैं कि किसी भी तरह एक बेटा ही अपनी मां की धार्मिक विश्वास प्रणाली तय करने का अधिक हकदार है।

यह उदाहरण होसदुर्गा निर्वाचन क्षेत्र के भाजपा विधायक गलीहट्टी शेखर का है, जो लंबानी समुदाय से हैं। सितंबर के विधानसभा सत्र में राज्य में जबरन धर्मांतरण की बात करते हुए वे रो पड़े थे। उनकी मां ने कुछ साल पहले ईसाई धर्म अपना लिया था। विधानसभा में उनके भाषण के बाद, उनकी माँ ने फिर से हिंदू धर्म अपना लिया है।

किराए के आवासों से बेदखल करना 

मंदिरों के शहर उडुपी में रहने वाले पादरी विनय ने गवाही दी थी कि पुलिस कर्मियों के बार-बार आने (जबरन धर्मांतरण की जांच) के कारण उनके मकान मालिक ने उन्हें घर खाली करने के लिए कह दिया था। एक नया घर मिलने के बाद, पुलिस ने कथित तौर पर उनके नए मकान मालिक को धर्मांतरण के लिए हिंदुओं को निशाना बनाने के लिए परिसर से पादरी को बेदखल करने पर मजबूर कर दिया था। इसके कारण, उन्हें चर्च से लगभग 37 किलोमीटर दूर एक नया घर खोजने के लिए मजबूर होना पड़ा।

रिपोर्ट कर्नाटक में भाजपा सरकार द्वारा पेश किए जाने वाले धर्मांतरण विरोधी विधेयक का पूरा संदर्भ प्रदान करती है। इस बिल को ईसाई समुदाय को बदनाम करने और धार्मिक नेताओं को धर्मांतरण के लिए निर्दोष हिंदुओं का शिकार करने वाले दुर्भावनापूर्ण व्यक्तियों के रूप में चित्रित करने के ठोस प्रयासों के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, अभी तक राज्य में जबरन धर्मांतरण का कोई आरोप साबित करने या उसका सबूत नहीं मिला है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें। 

New Report Documents Organised Violence Against Christian Prayer Meetings in Karnataka

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