देखने लायक़ अगला नज़ारा तो ट्रम्प-पुतिन शिखर सम्मेलन है
जैसा कि अपेक्षित था, ट्रम्प प्रशासन ने गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र के महासचिव, एंटोनियो गुटेरेस और सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष, डियान त्रियानस्याह डजानी,दोनों को पत्र भेजकर सूचित किया कि संयुक्त राज्य अमेरिका, ईरान पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2231 के तहत हटाये गये सभी संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों की बहाली शुरू कर रहा है।
अगर यह प्रक्रिया कामयाब हो जाती है, तो 20 अगस्त से 30 दिनों के बाद उन प्रतिबंधों को फिर से लागू किया जा सकता है। इस क़दम की व्याख्या करते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री,माइक पोम्पिओ ने न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि अमेरिका (ईरान को) स्वतंत्र रूप से विमानों, टैंकों, मिसाइलों और अन्य प्रकार के पारंपरिक हथियारों को ख़रीदने और बेचने की अनुमति कभी नहीं देगा। संयुक्त राष्ट्र इस हथियार प्रतिबंध को जारी रखेगा…ईरान की अन्य प्रकार की द्वेषपूर्ण गतिविधि के लिए उसकी जवाबदेही भी जारी रहेगी...…
पोम्पिओ ने कहा, “ईरान को फिर से बैलिस्टिक मिसाइल परीक्षण से प्रतिबंधित कर दिया जायेगा। ईरान को परमाणु सामग्री के संवर्धन के लिए चल रही परमाणु गतिविधियों के उन प्रतिबंधों के तहत फिर से वापस लाया जायेगा, जिसे कि परमाणु हथियार कार्यक्रम पर लागू किया जा सकता है।”
संक्षेप में कहा जाये, तो अमेरिका ने सुरक्षा परिषद को सूचित करते हुए "दुबारा" उस प्रक्रिया को शुरू कर दिया है कि ईरान जेसीपीओए (2015 ईरान परमाणु समझौते) का उल्लंघन कर रहा है, जिसपर, परिषद के सदस्यों या उसके अध्यक्ष को 2231 के तहत इन संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों के निलंबन को जारी रखने के लिए एक प्रस्ताव पेश करना चाहिए।
युद्ध रेखायें खींच दी गयी हैं। बड़ी संख्या में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य इस अमेरिकी क़दम का विरोध कर रहे हैं। पिछले सप्ताह ईरान पर संयुक्त राष्ट्र के हथियार प्रतिबंध को आगे बढ़ाये जाने की मांग करने वाले उस अमेरिकी प्रस्ताव को बुरी तरह से खारिज कर दिया गया था और जिसका समर्थन सिर्फ़ डोमिनिकन गणराज्य ने किया था। एक तीखी आलोचना में न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा कि अमेरिका ने "विश्व व्यवस्था से ख़ुद को काफ़ी हद तक अलग-थलग कर लिया है।"
गुरुवार को यूके, फ़्रांस और जर्मनी ने एक संयुक्त बयान जारी कर अन्य बातों के साथ-साथ इस तरह के क़दम उठाने को लेकर अमेरिका कार्रवाई की साख पर सवाल उठाते हुए कहा कि, '8 मई, 2018 को समझौते से हटने के बाद अमेरिका जेसीपीओए का महज़ भागीदार रह गया है...इसलिए हम उस कार्रवाई का समर्थन नहीं कर सकते, जो जेसीपीओए का समर्थन करने की हमारी मौजूदा कोशिशों के साथ असंगत है।"
बर्लिन से भेजी गयी एक रिपोर्ट में द पोलिटिको ने लिखा कि इस अमेरिकी क़दम ने यूरोपीय सहयोगियों को "एक अजीब-ओ-ग़रीब स्थिति" में डाल दिया है... फिलहाल, यूरोपीय रणनीति को स्थगित करना होगा। अगर पोम्पिओ इस दोबारा प्रतिबंध को आगे बढ़ाते हैं, तो वे उन उपायों पर सोचेंगे कि इसे लेकर आख़िरी फ़ैसले 3 नवंबर के राष्ट्रपति चुनाव तक टल जाय, क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि अगर जो बिडेन सत्ता में आते हैं,तो वे ट्रम्प की इस पूरी कोशिश को ही उलट देंगे।" रूस और चीन ने भी इस अमेरिकी क़दम को साफ़ तौर पर खारिज कर दिया है। गुरुवार को रूस ने सुरक्षा परिषद में "खुली बहस" की मांग की, लेकिन अमेरिका ने तुरंत इस मांग को खारिज कर दिया।
इसमें कोई शक नहीं कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की हर महीने बदल जाने वाली अध्यक्षता पूरे अगस्त इंडोनेशिया के पास है और इंडोनेशिया जेसीपीओए के साथ ईरान की इस नाफ़रमानी वाली अमेरिकी अधिसूचना की अनदेखी कर सकता है। (लेकिन पोम्पिओ ने कहा है कि उन्हें "विश्वास" है कि इस अधिसूचना की अनदेखी नहीं की जायेगी) अगर अमेरिका इसे आगे बढ़ाता है और अपनी इच्छा को थोपता है,तो रूस और चीन इस "दुबारा" लागू किये जाने वाले प्रतिबंधों को चुनौती दे सकते हैं।
तेहरान ने चेतावनी दी है कि वह इन "दुबारा" लागू किये जाने वाले प्रतिबंधों का मज़बूती से जवाब देगा। ईरान के लिए कई विकल्प खुले हुए हैं, जिनमें एक विकल्प उसका परमाणु अप्रसार संधि से बाहर निकल जाना है। तेहरान की ललकार उस समय सामने आया,जब गुरुवार को उसने एक नयी बैलिस्टिक मिसाइल (जनरल कासिम सोलेमानी के नाम पर) और एक अन्य क्रूज मिसाइल का अनावरण किया।
सच्चाई तो यही है कि इस टकराव से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिष्ठा को कभी न भरपाई किया जाने वाला जो नुकसान हो रहा है, वह किसी के हित में नहीं है। राष्ट्रपति ट्रम्प ने ख़ुद ही हाल में कह दिया था कि अगर उन्हें फिर से चुना गया, तो वे चार सप्ताह के भीतर ईरान के साथ एक समझौता कर सकते हैं। मंगलवार को ट्रम्प के दामाद और वरिष्ठ सलाहकार, जेरेड कुशनर ने वॉइस ऑफ़ अमेरिका के ज़रिये ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी से वाशिंगटन के साथ हो जाने की अपील की। “राष्ट्रपति रूहानी से मैं यही कहूंगा कि इस क्षेत्र को लेकर आगे बढ़ने का वक़्त है। अतीत की टकराहट में फ़ंसने से हम बचें।यह वक़्त लोगों के एक साथ आने और शांति क़ायम करने का है।”
ट्रंप नवंबर के बाद इस सिलसिले में बदलाव को लेकर खुले दिख रहे हैं। अपने "अधिकतम दबाव" बनाये रखने वाले नज़रिये की नाकामी के बावजूद, ट्रम्प ईरान के साथ एक ऐसा समझौता चाहते हैं, जो ओबामा से आगे जाता हो। इसका मतलब यह है कि चुनाव के बाद, उनकी तरफ़ से यथास्थिति के बनाये रखने के मुक़ाबले यहूदी दाताओं और रूढ़िवादी इवेंजेलिकल (ईसाई चर्च के इंजील परंपरा के लोग) से मुक्त एक बदालव की ज़्यादा गुंज़ाइश दिखती है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में टकराव और तनाव से बचने को लेकर जेसीपीओए कार्यान्वयन के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने लिए राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के 14 अगस्त को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, जर्मनी और ईरान के पांच स्थायी सदस्यों के एक ऑनलाइन शिखर सम्मेलन को शीघ्र आयोजित किये जाने के प्रस्ताव के लिए गुंजाइश बनाने का यही सही वक़्त है।
ट्रम्प ने पुतिन के इस प्रस्ताव को इस संकेत के साथ "फ़िलहाल" अस्वीकार कर दिया है कि वह नवंबर के बाद इसपर फिर से विचार कर सकते हैं। बुधवार को क्रेमलिन के प्रवक्ता,दिमित्री पेसकोव ने भी संकेत दिया कि अभी सबकुछ ख़त्म नहीं हुआ हैं। पेसकोव ने कहा: "असल में जैसा कि शुरू से साफ़ था कि अमेरिकी अस्वीकृति हमें इस ढांचे में एक साथ नहीं होने दे।”
उन्होंने कहा, “हालांकि, इसका मतलब यह कत्तई नहीं है कि इस इरानी मुद्दे पर अन्य देशों के साथ बातचीत रुकी हुई है। जेसीपीओए के बने रहने और समाधान तक पहुंचने के लिए यह बातचीत निश्चित रूप से जारी रहेगी।”
दरअसल, रूसी-अमेरिकी रिश्ते के खाके पर बहुत कुछ चल रहा है। एनबीसी न्यूज़ ने 16 अगस्त को "इस विषय से परिचित चार लोगों" के हवाले से इस बात का ख़ुलासा किया कि ट्रम्प ने कहा है कि वह नवंबर चुनाव से पहले पुतिन के साथ एक व्यक्तिगत बैठक करना चाहते हैं।
प्रशासनिक अधिकारियों ने तबसे किसी शिखर सम्मेलन के आयोजन को लेकर "विभिन्न समय और स्थानों को तय करने" की कोशिश की है,जिसमें एक संभावित जगह न्यूयॉर्क है और इसके लिए यह वक़्त अगला महीना हो सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है, "शिखर सम्मेलन का लक्ष्य दोनों नेताओं के लिए किसी नये परमाणु हथियार नियंत्रण समझौते की दिशा में प्रगति की घोषणा करना होगा... विचाराधीन एक विकल्प तो यह है कि दोनों नेता न्यू स्टार्ट (New START) को बढ़ाने पर बातचीत में आगे के लिए किसी खाके पर हस्ताक्षर करें।” यह तक़रीबन वही बात है,जिसकी मैंने भविष्यवाणी की थी। (ईरान पर दुबारा अमेरिकी प्रतिबंध आसान नहीं, एशिया टाइम्स देखें)
अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर अपने सभी प्रभावों के साथ ईरान पर रूस-अमेरिकी टकराव ट्रम्प या पुतिन की चिंताओं में शामिल नहीं है। ट्रम्प ने रूस के साथ रिश्ते सुधारने के लिए अपने पहले कार्यकाल के दौरान बहुत समय गंवा दिया है, लेकिन एक घाघ सौदागर होने के नाते उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी है।
उम्मीद तो पुतिन ने भी नहीं छोड़ी है। स्टार्ट के नवीनीकरण का यह समझौता ट्रम्प की तरफ़ से दिया गया ऐसा प्रस्ताव है,जिसे पुतिन दरकिनार नहीं कर सकते हैं, क्योंकि वह भी कुछ इसी तरह के समझौते की तलाश में इसलिए रहे हैं ताकि हथियार नियंत्रण वार्ता को फिर से शुरू करने के लिए रास्ता खुल सके। इससे न सिर्फ़ रणनीतिक संतुलन मज़बूत होगा और अमेरिका-रूस सम्बन्ध उम्मीद के मुताबिक़ ढाल पायेंगे, बल्कि रूस की वैश्विक हैसियत भी बढ़ जायेगा।
इसके अलावा, इस समय ट्रम्प भी रूस पर बढ़त हासिल करने और चीन को अलग-थलग करने की उम्मीद कर रहे हैं। एक यथार्थवादी शख़्स होने के नाते पुतिन अमेरिकी घरेलू राजनीति के उन विरोधाभासों को जानते हैं, जो अमेरिका-रूस सम्बन्धों की फिसलन को रोकने और उसे पटरी पर वापस लाने के ट्रम्प के देर से उठाये गये क़दम को प्रभावित कर सकता है। इसी तरह, जैसा कि मिंस्क में हुई परिघटना से उजागर हो जाता है कि पुतिन चीन-रूसी दोस्ताने रिश्ते के उस मक़सद में भी यक़ीन करते हैं, जो कि मॉस्को के लिए एक रणनीतिक विकल्प और ज़रूरत है।
कहने की ज़रूरत नहीं कि पुतिन रूस के राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने वाली अपनी व्यावहारिक विदेश-नीति को आगे बढ़ाने वाले उपायों के साथ बने रहेंगे। लिहाज़ा, वह ट्रम्प की तरफ़ से मिलने वाले किसी शिखर सम्मेलन में शामिल होने की दावत को स्वीकार कर लेंगे।
बड़ी-शक्ति की राजनीति में मनोदशाओं के बदल जाने वाली ऐसी जटिल पृष्ठभूमि में न तो अमेरिकी और न ही रूसी हित में है कि वे इस समय न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय की नालाकार मेज पर किसी तीखे टकराव में उलझे, जबकि संभावित ट्रम्प-पुतिन शिखर सम्मेलन की तैयारी शुरू हो चुकी है।
पुतिन के लिए यह समय अमेरिका-ईरान गतिरोध के उबाल को शांत करने को लेकर मध्यस्थ के रूप में आगे क़दम बढ़ाने का है- पुतिन की यह कोशिश दो अड़ियल विरोधियों को बातचीत को लेकर संभवत: एक मेज पर ले आये। अमेरिकी चुनाव के मौजूदा दौर में इस क़दम से सिर्फ़ ट्रम्प को फ़ायदा पहुंच सकता है।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें
Next Spectacle to Watch is Trump-Putin Summit
https://www.newsclick.in/next-spectacle-watch-trump-Putin-summit
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