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#StopKillingUs : कानपुर में सेप्टिक टैंक की सफ़ाई के दौरान तीन मज़दूरों की मौत

शटरिंग को अंदर से हटाने के लिए तीनों मज़दूरों को बिना सुरक्षा उपकरण के जबरन सेप्टिक टैंक में भेजा गया था।
StopKillingUs

लखनऊ: पूरे देश में वर्षों से औपचारिक तौर पर प्रतिबंधित होने के बावजूद उत्तर प्रदेश में सफ़ाई कर्मचारी से उनके जान से खिलवाड़ कर सेप्टिक टैंक की सफ़ाई कराई जा रही है। हाल ही में एक मैनहोल के ज़रिए एक नवनिर्मित सेप्टिक टैंक में सफ़ाई के लिए गए एक नाबालिग समेत तीन मज़दूरों की मौत हो गई। शटरिंग को अंदर से हटाने के लिए तीनों मज़दूर टैंक में उतरे थे।

शटरिंग हटाने के लिए भेजे गए मज़दूर

मृतकों की पहचान 18 वर्षीय नंदू, उनके बड़े भाई मोहित (24) और उनके पड़ोसी साहिल (16) के रूप में हुई है। ये सभी कानपुर के चौबेपुर के निवासी हैं। सेप्टिक टैंक में जाते समय उनके पास कोई सुरक्षा उपकरण नहीं था। पुलिस ने कहा कि वे घर के मालिक के ख़िलाफ़ मामला दर्ज करेंगे। मालिक फिलहाल फ़रार बताया जा रहा है।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कानपुर वेस्ट डीसीपी विजय ढुल ने कहा, “बिठूर क्षेत्र में कुछ महीने पहले बने सेप्टिक टैंक से शटरिंग हटाने के लिए गए तीन सफाई कर्मचारियों के ज़हरीले गैस के संपर्क में आने से उनकी मौत हो गई। कानपुर अग्निशमन विभाग ने उन्हें निकाला और उन्हें हैलेट अस्पताल भेजा गया लेकिन वहां पहुंचने पर उन्हें डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।”

ढुल ने आगे कहा, 'साहिल पहले टैंक में गए और बेहोश हो गए। नंदू और मोहित ने उन्हें बचाने की कोशिश की, लेकिन वे भी बेहोश हो गए। तीनों की मौत दम घुटने से हुई होगी।"

पुलिस ने आश्वासन दिया कि लापरवाही के कारण मौत हुई तो कार्रवाई की जाएगी।

डीसीपी ने कहा कि नंदू और मोहित सेप्टिक टैंक की शटरिंग का काम करते थे और साहिल उनके सहयोगी थे। ढुल ने कहा कि अगर पीड़ित परिवार शिकायत दर्ज कराना चाहता है तो मामले में केस दर्ज किया जाएगा।

इस बीच मृतक के परिजनों ने हत्या का आरोप लगाते हुए भीम सिंह के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की है।

यूपी में सफ़ाई कर्मियों की मौत

इस तरह की घटना 19 सितंबर को उत्तर प्रदेश के कानपुर ज़िले के मालवीय बिहार के बर्रा में एक निर्माणाधीन मकान में हुई जहां तीन सफ़ाई कर्मचारियों की मौत हुई थी। उस घटना में सेप्टिक टैंक में जाने वाले एक कर्मचारी की ज़हरीली गैस से मौत हो गई थी और दो अन्य लोगों ने उन्हें बचाने की कोशिश में दम तोड़ दिया था। उनके पास कोई भी सुरक्षात्मक उपकरण नहीं थे।

इसी तरह एक मज़दूर के टैंक में घुसने के बाद बेहोश हो जाने के बाद दूसरा उसे बचाने के लिए अंदर गया लेकिन वह भी ज़हरीली गैस के चलते बेहोश हो गया। अंत में, तीसरा व्यक्ति अपने सहकर्मियों को बचाने के लिए टैंक में उतरा लेकिन वह भी बेहोश हो गया। बाद में इन तीनों की दम घुटने से मौत हो गई।

वहीं मई महीने में, यूपी में अलग-अलग घटनाओं में मैनहोल में घुसने के बाद दम घुटने से दो सफाई कर्मचारियों की मौत हो गई थी। दो महीने बाद, जुलाई में कुशीनगर स्थित आवास विकास कॉलोनी में एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के टैंक की सफ़ाई के दौरान कथित तौर पर ज़हरीली गैस के संपर्क में आने के कारण दो भाइयों की मौत हो गई थी। दोनों को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक स्थानीय नेता ने काम पर रखा था और आरोप है कि बिना किसी सुरक्षा उपकरण के टैंक को साफ़ करने के लिए मजबूर किया गया था।

साल 2019 में ग़ाज़ियाबाद में एक सीवर टैंक की सफाई के दौरान पांच सफ़ाई कर्मचारियों की मौत हो गई थी।

केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय सफ़ाई कर्मचारी आयोग द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों के अनुसार, पिछले बीस वर्षों में देश में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफ़ाई के दौरान 989 श्रमिकों की मौत हुई। 1993 से फरवरी 2022 तक, तमिलनाडु में सीवर सफ़ाई के दौरान सबसे ज़्यादा 218 मौतें हुईं। गुजरात में 153 मौतें हुईं, जबकि दिल्ली में 97 मौतें हुईं। यूपी में 107, हरियाणा में 84 और कर्नाटक में 86 सफ़ाई कर्मचारियों की मौत हुई। ऐसी हर मौत का कारण सीवर में मौजूद ज़हरीली गैस बताई जा रही है।

एक्टिविस्ट और राष्ट्रीय सफ़ाई कर्मचारी आयोग के सदस्य रमेश गौतम ने न्यूज़क्लिक को बताया कि सेप्टिक टैंक की सफ़ाई के दौरान श्रमिकों की मौत की बढ़ती घटनाओं के बावजूद इस अहम मुद्दे पर विश्वसनीय और अद्यतन राष्ट्रीय स्तर के डेटा एकत्र करने पर भी सरकार पर्याप्त ध्यान नहीं दे रही है।

गौतम ने कहा, “काम की प्रकृति, विशेष रूप से सीवरेज लाइन क्लीनर के लिए सबसे ज़्यादा ख़तरनाक है। इस तरह के मानवीय अपमान को कौन सा विकसित देश सहन करता है? निश्चित रूप से सरकार लोगों को गटर में मरता हुआ देखने के बजाय सीवर साफ़ करने के लिए मशीनों में पैसा लगा सकती है।”

भारत में हाथ से मैला ढोना ग़ैरक़ानूनी है लेकिन यह अभी भी आम तौर पर हो रहा है। इस तरह का काम ख़ासकर अनियमित निजी क्षेत्र में हो रहा है। मज़दूर जिनमें से अधिकांश वंचित तबक़े से आते हैं और सामाजिक-आर्थिक रूप से हाशिए पर मौजूद समुदायों से जुड़े हैं उन्हें अक्सर निजी ठेकेदारों द्वारा काम पर रखा जाता है। ये ठेकेदार वैज्ञानिक रूप से सीवेज टैंकों की सफाई के लिए सुरक्षा उपकरण और मशीनें उपलब्ध नहीं कराते हैं।

आपको बता दें कि हाथ से मैला ढोने और बिना सुरक्षा उपकरण सेप्टिक टैंक और सीवर के सफ़ाई कराने के खिलाफ सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन ने लंबे समय से राष्ट्रीय स्तर पर #StopKillingUs यानी ‘हमें मारना बंद करो’ नाम से एक अभियान चलाया हुआ है, लेकिन अफ़सोस सरकार इस ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही।

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