गुजरात दंगे और मोदी के कट्टर आलोचक होने के कारण देवगौड़ा की पत्नी को आयकर का नोटिस?
भारतीय जनता पार्टी का विरोध करने वाले राजनेताओं को डराने-धमकाने का मामला उस समय एक नए स्तर को छू गया, जब पिछले सप्ताह आयकर विभाग ने भारत के 11वें प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा की पत्नी चेन्नम्मा देवगौड़ा को एक नोटिस जारी किया। चेन्नम्मा 85 वर्ष की हैं; उनके पति ने कर्ज लेकर अपने राजनीतिक जीवन के अधिकांश चुनाव लड़े हैं और अभी वे कर्जदाताओं के ऋण चुकाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री के रूप में लोकसभा में विश्वास मत हारने के चार साल बाद 2001 तक देवेगौड़ा पर इतना भारी कर्ज था कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव (अब दिवंगत) हरकिशन सिंह सुरजीत ने उनकी मदद करने की पेशकश की : “आप मेरे बहुत प्रिय हैं।...क्या हम अपनी पार्टी से आपके लिए धन का इंतजाम कर सकते हैं?” देवेगौड़ा की आंखें भर आईं। लेकिन उन्होंने यह पेशकश ठुकरा दी।
सुरजीत और देवेगौड़ा के बीच इस गुफ्तगू का जिक्र पत्रकार सुगाता श्रीनिवासराजू ने अपनी किताब 'Furrows in a Field: The Unexplored Life of HD Deve Gowda' में किया है। यह पुस्तक देवेगौड़ा के राजनीतिक करियर के प्रेरक पहलुओं को उजागर करती है। इसके अलावा, यह किताब देवगौड़ा को प्रधानमंत्री पद की कुर्सी से हटाने के लिए रची गई साजिश का भी खुलासा करती है।
देवेगौड़ा के बेटे एवं जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) के नेता एचडी रेवन्ना ने अपनी मां को आयकर विभाग से मिले इस नोटिस के बारे में मीडिया को बताया। उन्होंने कहा, “क्या मेरे माता-पिता ने करोड़ों रुपये कमाए हैं? क्या हमने कोई नई संपत्ति खरीदी है? देवेगौड़ा परिवार को कुछ एकड़ जमीन विरासत में मिली हुई है, जिस पर वे लोग गन्ना उगाते हैं। रेवन्ना ने कहा,“अधिकारियों को जमीन का एक ड्रोन सर्वेक्षण कर लेने दें। उन्हें मुझे भी नोटिस भेजने दीजिए। फिर हम कानून के अनुसार अपना जवाब देंगे।"
आय कर नोटिस की थियरी
यह पता लगाना आसान है कि चेन्नम्मा को आईटी नोटिस क्यों भेजा गया है। जब से भाजपा ने कर्नाटक में समाज में हिजाब, हलाल मांस के जरिए खंजर घोंपा है और मुस्लिम व्यापारियों के आर्थिक बहिष्कार जैसे मुद्दों पर खून बहाया है, तब से प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी हिंदुत्व और उसकी विभाजनकारी नीति की तीखी आलोचना कर रहे हैं। कुमारस्वामी देवेगौड़ा के चार पुत्रों में से एक हैं।
उदाहरण के लिए, कुमारस्वामी ने मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को “दक्षिणपंथी समूहों के हाथों में कठपुतली” कह कर उनकी आलोचना की है। एक अन्य अवसर पर उन्होंने कहा,“कर्नाटक विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल की संपत्ति नहीं है, यह सभी लोगों एवं सभी समुदाय का है। उन्होंने यह भी कहा कि ये संगठन हिंदुओं का वास्तविक प्रतिनिधित्व नहीं करते; वे एक राजनीतिक दल की कठपुतली हैं।”
भाजपा उन लोगों के लिए बहुत कम सहनशीलता रखती है, जो नफरत की लपटों को जलाने और उसे बनाए रखने की उसकी नीति की मुखालफत करते हैं। इसलिए आईटी नोटिस देवेगौड़ा परिवार के लिए यह संकेत है कि वे भाजपा का मुकाबला करने के लिए दक्षिण कर्नाटक के ग्रामीण इलाकों में अपने मजबूत आधार को और मजबूत करने से बाज आएं। यह उस दुर्दशा का एक पूर्वाभास भर है, जिसे मोदी सरकार अपने इशारों पर चलने से इनकार करने वाले गौड़ाओं पर थोप सकती है।
लेकिन चेन्नम्मा को आईटी नोटिस जारी करने के बारे में मोदी सरकार एक पिछली कहानी भी है। वह पिछली कहानी यह है कि देवेगौड़ा ने गुजरात दंगों के दौरान मुख्यमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी की एवं तात्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के रवैये की आलोचना की थी। और इसलिए, सवाल यह है कि क्या आय कर नोटिस नरेन्द्र मोदी के पुराने राजनीतिक हिसाब को देवेगौड़ा से निपटाने की ओर पहला कदम है?
वाजपेयी की पेशकश
प्रधानमंत्री के तौर पर एचडी देवेगौड़ा के लोकसभा में विश्वास मत का सामना करने से कुछ दिन पहले भाजपा ने उनकी अल्पमत सरकार को गिरने से बचाने में मदद की पेशकश की थी, क्योंकि कांग्रेस पार्टी ने उनकी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था। श्रीनिवासराजु के फर्रोज इन ए फील्ड के अनुसार अटल बिहारी वाजपेयी ने ही यह सुझाव दिया था। इसके अगले कुछ बाद, देवेगौड़ा को शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे, साहिब सिंह वर्मा (दिल्ली से भाजपा सांसद), पूर्व केंद्रीय मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस और प्रख्यात अधिवक्ता राम जेठमलानी के भी फोन आए थे। उन्होंने उनसे वाजपेयी का प्रस्ताव स्वीकार करने का आग्रह किया।
11 अप्रैल 1997 को, जैसे ही देवेगौड़ा ने लोकसभा में विश्वास प्रस्ताव पेश किया, वाजपेयी के विश्वासपात्र, जसवंत सिंह ने तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री श्रीकांत जेना को बाहर निकलने के लिए इशारा किया। जसवंत सिंह ने जेना को एक चिट सौंपी, जिस पर लिखा था, “इस्तीफा मत दीजिए। हमारा समर्थन स्वीकार कीजिए।" तब वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने श्रीनिवासराजू से इस बात की पुष्टि की कि वाजपेयी ने देवेगौड़ा को समर्थन की पेशकश की थी। चिदंबरम ने श्रीनिवासराजू से कहा था कि, "देवेगौड़ा ने स्पष्ट रूप से वाजपेयी को इनकार कर दिया था।” देवेगौड़ा का मानना था कि भाजपा एक साम्प्रदायिक पार्टी है।
दरअसल, लोकसभा में अप्रैल 2002 में गुजरात दंगों पर एक बहस के दौरान, सांसद के रूप में देवेगौड़ा ने अटल बिहारी वाजपेयी का नाम लिए बिना ही उस प्रस्ताव का उल्लेख किया था। लेकिन उनका दिखाया गया सौजन्य कोई मायने नहीं रखता था,क्योंकि 2002 के गुजरात दंगों में मोदी की विवादास्पद भूमिका को लेकर देवेगौड़ा और वाजपेयी के बीच संबंध खट्टे होने लगे थे।
गुजरात दंगों की छाया
प्रारंभ में, एचडी देवेगौड़ा ने वाजपेयी को पत्र लिखकर उनके बहुचर्चित उदारवाद पर जोर देते हुए गुजरात दंगों की निष्पक्ष जांच करने का अनुरोध किया था। इस प्रकार, 6 मार्च 2002 को, उन्होंने वाजपेयी को यह कहते हुए लिखा, "गुजरात के मुख्यमंत्री [नरेन्द्र मोदी] द्वारा उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक जांच आयोग के गठन की घोषणा अपनी विफलता (दंगे रोकने में) पर पर्दा डालना है।”
गुजरात दंगों को लेकर देवेगौड़ा में अभी भी तड़प उठते हैं। तभी तो उन्होंने 10 मार्च को लोकसभा में एक बहस के दौरान इसको लेकर मोदी पर हमला बोला। उन्होंने कहा, “अगर राज्य सरकार किसी धर्म विशेष पर पक्षपात करती है, जैसा कि प्रेस में बताया गया है, हालांकि मैं जल्दबाजी में इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहता कि मुख्यमंत्री इस तरह हैं या नहीं। लेकिन प्रेस में जो बताया गया है, उस पर हम तब तक विश्वास करते हैं, जब तक कि यह गलत साबित न हो जाए...”
समय के साथ, नरेन्द्र मोदी पर उनका हमला और भी तेज तथा सीधा हो गया। 16 मार्च 2002 को उन्होंने संसद को बताया, “मुख्यमंत्री ने अपने तंत्र से कहा कि वे अल्पसंख्यकों के बचाव में न आएं। यह राज्य प्रायोजित आतंकवाद है, या गुंडावाद है या आप चाहे इसे जिस नाम से भी पुकार सकते हैं।”
30 अप्रैल 2002 को, देवेगौड़ा ने संसद को उस अकेली यात्रा के बारे में बताया, जिसे उन्होंने गुजरात दंगे के बारे में सुनी एवं पढ़ी गई भयानक कहानियों की सचाई जानने के लिए की थी। उन्होंने कहा कि वाजपेयी के उदारवाद पर उन्हें गहरा संदेह है। “...कोई भी उम्मीद नहीं करता था कि...वाजपेयी इस तरह की चीजें (गुजरात में) होने दे रहे थे।”
देवेगौड़ा ने 28 फरवरी को अहमदाबाद में विश्व हिंदू परिषद द्वारा मुसलमानों के स्वामित्व वाली दुकानों की सूची तैयार किए जाने की बात कही, जिस दिन गुजरात में मुसलमानों पर हमला हुआ था। उनके कहने का मतलब था कि यह एक मेहनत से तैयार की गई पटकथा पर एक सुनियोजित दंगा था।
बेहद मर्मांतक बात यह कि देवेगौड़ा ने एक 85 वर्षीय मुस्लिम महिला के बारे में बताया, जिनसे वे एक राहत शिविर में मिले थे। उनकी देह तलवार से काट दी गई थी। देवेगौड़ा ने कहा, “जब मैंने उस वृद्ध महिला से पूछा कि उनके परिवार के अन्य सदस्यों के साथ क्या हुआ... उन्होंने कहा कि कोई उनके घर आया और उन्हें टुकड़े-टुकड़े कर दिया। उनका बेटे को जिंदा जला दिया गया। अब वे अकेली रह गई हैं। उस महिला का सवाल था, ‘अल्लाह ने उन्हें इस दुनिया में क्यों अकेला छोड़ दिया?’”
वाजपेयी का पलटवार
देवेगौड़ा की लगातार आलोचना से ऐसा लग रहा था कि वाजपेयी की बकरी चरा गई है। 23 दिसंबर 2002 को, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के अधिकारी कर्नाटक आए और देवेगौड़ा, उनके चार बेटों और दो बेटियों द्वारा दायर आयकर रिटर्न की फोटोकॉपी बनाई। यह जानकारी किसी तरह देवेगौड़ा को लीक कर दी गई थी, तब उन्होंने 20 जनवरी 2003 को वाजपेयी को पत्र लिखकर कहा था, “मुझे नहीं पता कि यह आपकी अनुमति से हुआ है या नहीं।”
ऐसा लगता है कि वाजपेयी ने देवेगौड़ा के पत्र का उत्तर दिया, जो 22 जनवरी के पत्र से स्पष्ट है। उस मिशन में, पूर्व प्रधानमंत्री ने पहले वाजपेयी को इस आश्वासन के लिए धन्यवाद दिया कि सीबीआई निदेशक उनसे मिलेंगे और उनके संदेह को दूर करेंगे कि परिवार के कर रिटर्न की फोटोकॉपी एकत्र करने के लिए आदेश जारी किए गए थे।
“विनम्र किसान”, जैसा कि देवेगौड़ा अभी भी खुद को कहलाना पसंद करते हैं, फिर नॉकआउट पंच दिया: “आज आपकी तरफ (वाजपेयी) से तथ्यात्मक स्थिति के बारे में सूचित करने के बाद, मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि एक स्थानीय सीबीआई अधिकारी ने 21.01.2003 को [जिस दिन वाजपेयी ने देवेगौड़ा को पत्र लिखा था।] आयकर के मुख्य आयुक्त, कर्नाटक को एक पत्र लिखा था कि पहले से ही दायर सभी आईटी विवरण प्रस्तुत किया जाए।”
इस पत्र के बाद वाजपेयी को विवश हो कर देवेगौड़ा से टेलीफोन पर बातचीत करनी पड़ी थी। सीबीआई निदेशक ने देवेगौड़ा से मुलाकात नहीं की। यह मामला जहां का तहां छोड़ दिया गया। इसके एक साल बाद, वाजपेयी को सत्ता से बाहर हो गए।
19 साल बाद, आयकर विभाग नरेन्द्र मोदी का एक उपकरण बन गया है। जाहिर तौर पर अपने आलोचकों के साथ अपने राजनीतिक मकसद साधने के लिए इसका इस्तेमाल करने का टूल हो गया है। बाद में, देवेगौड़ा और नरेन्द्र मोदी के बीच अच्छे संबंध बन गए, जैसा कि कभी उनका वाजपेयी के साथ था, पर जो हिंदुत्व के कारण विलुप्त हो गया था।
मोदी की दाम-दंड की नीति
2019 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की जीत के बाद, देवगौड़ा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से शिष्टाचार मुलाकात की थी, जिन्होंने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का नेतृत्व करते हुए कर्नाटक की 28 लोकसभा सीटों में से 26 पर जीत दर्ज की थी। मोदी के साथ बैठक के दौरान देवेगौड़ा ने अपनी जेब से एक कागज निकाला और कहा, “चुनाव प्रचार के दौरान मैंने कहा था कि अगर आपको बहुमत मिला तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा। अब आपने शानदार जीत दर्ज कर ली है...मैं इस्तीफा दे दूंगा। (पर) मैं अपनी बात पर कायम रहूंगा।”
श्रीनिवासराजू के साथ एक साक्षात्कार में देवेगौड़ा ने कहा कि मोदी ने उन्हें इस्तीफा देने से मना कर दिया। मोदी को देवेगौड़ा से यह जानने में अधिक दिलचस्पी थी कि उन्होंने प्रधानमंत्री बनने का विकल्प क्यों चुना था, जबकि कांग्रेस ने उनके पहले चरण सिंह और चंद्रशेखर के साथ भी विश्वासघात किया था, जिनको पार्टी ने अपने समर्थन से प्रधानमंत्री बनाया था। शायद मोदी देवेगौड़ा की कांग्रेस विरोधी भावनाओं को भड़काना चाहते थे और उन्हें भाजपा की तरफ खींचना चाहते थे।
ऐसा लगता है कि देवेगौड़ा मोदी की इस प्रवृत्ति के अपवाद थे कि वे अतीत में उनकी आलोचना करने वाले या उन्हें शर्मिंदा करने वालों को कभी माफ नहीं करते। मशहूर टीवी एंकर करण थापर ने इसे कठिन तरीके से सीखा है। 2007 में, नरेन्द्र मोदी उनके इंटरव्यू को बीच में ही छोड़ कर आ गए थे, जब थापर ने उनसे गुजरात दंगों के बारे में सवाल पूछने शुरू किए थे। हालांकि इसके बाद, मोदी एक घंटे तक थापर को चाय, मिठाई और ढोकला खिलाते हुए उनसे बातचीत करते रहे थे। 2014 में नरेन्द्र मोदी जब केंद्र की सत्ता में आए तो थापर को एहसास हुआ कि भाजपा के नेता अब उनके टीवी शो पर नहीं आएंगे। मोदी के इशारे पर थापर का अनकहा बहिष्कार शुरू कर दिया गया था। तो फिर मोदी ने 2007 में थापर पर इतनी मेहरबानी क्यों की थी?
थापर के इस सवाल का जवाब दिया पूर्व राजनयिक पवन वर्मा ने। इसका जवाब वर्मा ने प्रशांत किशोर के हवाले से दिया था, जो तब उनके चुनाव सलाहकार थे। पवन वर्मा ने बताया कि “मोदी ने प्रशांत से कहा था कि वे उन्हें कभी माफ नहीं करेंगे और जब भी उन्हें अवसर मिलेगा वे अपना बदला लेंगे।”
उदारता उनका हथियार है
क्या 2019 में देवेगौड़ा के प्रति मोदी की दिखाई गई उदारता इसी तरह उन्हें अपने पाश में करने के लिए तैयार की गई थी और फिर बाद में उन्हें चकित कर दिया गया? या मोदी इसलिए उदार हुए थे क्योंकि उन्हें लगता था कि देवगौड़ा भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से उपयोगी हो सकते हैं?
2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। इसके बावजूद कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए गठबंधन कर लिया था। देवेगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने थे। किंतु इसके एक साल बाद यानी 2019 तक गठबंधन के सदस्य भाजपा की ओर खींचने लगे थे।
श्रीनिवासराजू के बारे में, देवेगौड़ा ने कहा कि 2019 की शुरुआत में नीति आयोग की एक बैठक में, नरेन्द्र मोदी ने कुमारस्वामी को एक तरफ खींच के ले गए और उनसे कहा, “आपके पिता अभी भी कांग्रेस राजनीति के आदी हैं। वे तो हमारी (हिंदुत्व) राजनीति से कोई समझौता नहीं करेंगे। लेकिन कांग्रेस आपको बर्बाद करना चाहती है। आप आज इस्तीफा दे दीजिए और मैं आपको पूरे पांच साल तक सेवा में रखूंगा।”
देवगौड़ा ने बताया कि “मेरे बेटे ने कहा कि मैं अपने पिता को उनकी इस उम्र में चोट नहीं पहुंचाना चाहता।” 2006 में, कुमारस्वामी ने भाजपा के साथ जाने का फैसला किया था, तब देवेगौड़ा इस कदर सदमे में आ गए थे कि उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। हालांकि अधिकतर लोगों ने सोचा था कि देवेगौड़ा भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बनने के कुमारस्वामी के फैसले को सही ठहराने के लिए एक नाटक कर रहे थे, लेकिन उनका रक्तचाप 240/140 तक पहुंच गया था। श्रीनिवासराजू ने अस्पताल के दस्तावेजों से इसकी तसदीक की है।
ऐसा लगता है कि गुजरात दंगों की देवगौड़ा की आलोचना को अब तक मोदी ने केवल इसलिए नजरअंदाज कर दिया क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि जेडीएस भाजपा के खिलाफ रैली करने से डर सकती है। मोदी उन राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को माफ कर रहे हैं, जो उनके वश में हो गए हैं और जो उनकी सर्वोच्चता को स्वीकार करते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं।
जिस तरह भाजपा कर्नाटक में आगे ध्रुवीकरण पर जोर दे रही है, यह स्थिति देवेगौड़ा के अनुरूप है। अब वे उम्र के 88 पड़ाव के बाद 1997 में संसद में अपने विश्वास मत के दौरान की गई बहस के दौरान जो कुछ कहा था, उसे अंजाम दे सकते हैं-कि वे फिर राख से उठेंगे, चाहे जो हो। आज देवेगौड़ा के लिए सत्ता हथियाने की लड़ाई नहीं है। यह भारत की आत्मा को बचाने के लिए उनकी लड़ाई है, जिसके लिए उनके परिवार को कीमत चुकानी पड़ सकती है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और लेखक हैं। लेख में व्यक्त विचार उनके व्यक्तिगत हैं।)
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