दुनिया की आबादी 8 अरब पार
यूनाइटेड नेशंस पापुलेशन फंड की रिपोर्ट आई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया की आबादी मंगलवार को 8 बिलियन को पार कर गई। अपनी बोलचाल की भाषा में कहा जाए तो 8 अरब के पार। यह जानने के बाद आप झट से पूछेंगे कि आखिर कर भारत का हाल क्या है? भारत की आबादी स्थिर गति से बढ़ रही है। मगर बढ़ रही है। आबादी बढ़ने की दर 0.7% है।
यहां ध्यान देने वाली बात है कि भारत की आबादी बढ़ने की दर चिंताजनक नहीं है। 0.7% की दर 2.1% से कम है। 2.1 प्रतिशत की दर आबादी बढ़ने की ठीक ठाक दर मानी जाती है। इस दर को तकनीकी भाषा में रिप्लेसमेंट दर कहा जाता है। अगर आम बोलचाल की भाषा में समझे तो इसे ऐसे समझ सकते हैं कि भूगोल में कुछ लोग मरते हैं और कुछ लोग जन्म लेते हैं। अगर आबादी बढ़ने की दर 2.1% रहेगी तो भविष्य में जनसंख्या संतुलित रहेगी। ऐसा नहीं होगा कि बूढ़ों की आबादी ज्यादा हो गई है। काम करने वाली आबादी बढ़ी नहीं रही है। यानी भारत अपनी भूगोल के हिसाब से ठीक-ठाक स्थिति में है।
मगर यही पापुलेशन रिपोर्ट कहती है कि भारत अगर 0.7% की दर से बढ़ रहा है तो वह 2023 तक चीन की आबादी को पार कर जाएगा। चीन की आबादी को पार करके दुनिया का सबसे बड़ा आबादी वाला मुल्क बन जाएगा। यह कहने के बाद भी वैज्ञानिक तथ्य ही होगा कि भारत की आबादी रिप्लेसमेंट लेवल से कम दर से बढ़ रही है। घटते हुए दर में बढ़ रही है। जिस दर से बढ़ रही है उस दर से आने वाले समय में भारत में बूढ़े लोगों की आबादी में इजाफा होगा।
यूनाइटेड नेशंस पापुलेशन फंड ने अपने स्टेटमेंट में कहा कि दुनिया की आबादी में यह बढ़ोतरी दुनिया के पब्लिक हेल्थ, पर्सनल हाइजीन और मेडिसिन का ढंग से व्यवस्था करने की वजह से हुई है। दुनिया के कुछ देशों स्वास्थ्य के क्षेत्र में भले ही बहुत बढ़िया काम ना किया हो लेकिन इतना तो जरूर किया है की मौत के मुंह से पहले के मुकाबले ज्यादा लोगों को बचाया जा सके।
यूएन पॉपुलेशन फंड का कहना है कि दुनिया की आबादी 7 अरब से 8 अरब होने में करीबन 12 साल लगे। जबकि 8 अरब से 9 अरब होने में तकरीबन 15 साल लगेंगे। अभी की ग्रोथ रेट के हिसाब से देखा जाए तो 2037 में जाकर दुनिया की आबादी 9 अरब पहुंचेंगी। इसका मतलब है कि दुनिया की आबादी में घटती हुई दर के साथ बढ़ोतरी हो रही है।
सबसे अधिक प्रजनन दर उन देशों का है जहां प्रति व्यक्ति आय बहुत कम है। दुनिया की तकरीबन आधी आबादी भारत और चीन में रहती है।
साल 1950 से लेकर 1987 के बीच दुनिया की आबादी 2.5 अरब से बढ़कर 5 अरब तक पहुंची। उसके बाद दुनिया की आबादी में गिरावट देखने को मिला। 1987 से लेकर 2022 की यात्रा यह है कि दुनिया की आबादी में तकरीबन 3 अरब की बढ़ोतरी हुई है।
यूनाइटेड नेशंस पापुलेशन फंड का अनुमान है कि दुनिया की आबादी साल 2080 तक बढ़कर 10.4 अरब तक पहुंचेगी। उसके बाद यह आबादी रुक जाएगी। दुनिया की तकरीबन 60% आबादी वैसे मुल्कों में रहती है जहां आबादी की बढ़ने की दर रिप्लेसमेंट लेवल से कम है। एक देश से दूसरे देशों में प्रवास मौजूदा वक्त की सबसे बड़ी परिघटना है। साल 2020 तक का आंकड़ा कहता है कि दुनिया की तकरीबन 281 मिलियन आबादी यानी तकरीबन 28 करोड लोग अपने देश को छोड़कर दूसरे मुल्क में रहते हैं। इंडिया नेपाल पाकिस्तान बांग्लादेश श्रीलंका जैसे देशों से सबसे अधिक प्रवास हुआ है।
साल 2010 से लेकर 2022 के बीच भारत की आबादी में तकरीबन 17 करोड़ की बढ़ोतरी हुई है। यह पिछले 12 साल की दुनिया की एक बिलियन आबादी में हुई बढ़ोतरी का 17% है। भारत के 2 राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार में पिछले 12 साल में जितनी आबादी बढ़ी है वह दुनिया की कुल आबादी की बढ़ोतरी का 5% है।
देश के जाने-माने अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने दैनिक हिंदुस्तान में लिखा है कि 1970 के आसपास दुनिया की आबादी चार अरब के आसपास हुआ करती थी। उस समय के माता-पिता 4 से 5 बच्चे पैदा किया करते थे। उन्हें लगता था कि उनके अंतिम समय तक कम से कम एक बच्चा बचेगा जो उनके बुढ़ापे का सहारा बनेगा। लेकिन तब से लेकर अब तक की स्थिति बदल चुकी है। वाह उनके सामाजिक सुरक्षा का जरिया बनेगा। मगर तब से लेकर अब तक स्थिति बदल चुकी है। परिवार में कितने बच्चे होंगे? इसे लेकर के पहले के मुकाबले अब राय बदल चुकी है। अधिकतर लोग छोटा परिवार चाहते हैं। अपनी आर्थिक स्थिति को देखकर छोटे परिवार को तवज्जो देते हैं। मगर इसके बावजूद भी सामाजिक सुरक्षा की स्थितिया जस की तस बनी हुई है। सामाजिक सुरक्षा को लेकर मौजूदा वक्त का डर पहले की तरह है। ज्यादातर लोगों को यही डर सताता है कि उनके बुढ़ापे में क्या होगा? उनके बुढ़ापे का सहारा कौन बनेगा? आबादी अपनी आपने कोई परेशानी नहीं है। परेशानी यह है कि आबादी का मानव संसाधन के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है या नहीं?
प्रोफेसर अरुण कुमार के बाद कोई आगे बढ़ाकर अगर कहा जाए तो बात यह है कि भारत का रोजगार दर 40% के आसपास है। भारत की बहुत बड़ी जनसंख्या 15 से 64 साल के बीच रहती है। इसका मतलब है कि भारत की बहुत बड़ी कार्यबल की आबादी बेरोजगारी से जूझ रही है। आबादी भले स्थिर हो गई है मगर अगर इन्हें रोजगार नहीं मिला तो आबादी रोजगार की कमी से विकराल परेशानी में तबदील हो जाएगी।
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